लघुकथा कैसे लिखें?
लघुकथा कैसे लिखें? लघुकथा छोटी कहानी का अति संक्षिप्त रूप है । लघुकथा का लक्ष्य जीवन के किसी मार्मिक सत्य का प्रकाशन होता है जो बहुधा इस ढंग से अभिव्यक्त होता है जैसे बिजली कौंधती है। इसमें अत्यल्प साधनों द्वारा…
लघुकथा कैसे लिखें? लघुकथा छोटी कहानी का अति संक्षिप्त रूप है । लघुकथा का लक्ष्य जीवन के किसी मार्मिक सत्य का प्रकाशन होता है जो बहुधा इस ढंग से अभिव्यक्त होता है जैसे बिजली कौंधती है। इसमें अत्यल्प साधनों द्वारा…
तुम्हारा साथ काफी है जिंदगी में तुम्हारा साथ काफी है, हाथों में मेरे तेरा हाथ काफी है। दूर हो या हो पास कोई बात नही है, तुम साथ हो यह एहसास काफी है। लड़ते भी रहते हैं,हँसते भी रहते है,…
इस ग़ज़ल में किसी से मिलने की आरज़ू को बयाँ किया गया है |
फिर किसी मोड़ पर वो मिल जाएँ कहीं - ग़ज़ल - मौलिक रचना - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम"
धर्मपत्नी पर कविता ( विधाता छंद, २८ मात्रिक ) हमारे देश में साथी,सदा रिश्ते मचलते है।सहे रिश्ते कभी जाते,कभी रिश्ते छलकते हैं। बहुत मजबूत ये रिश्ते,मगर मजबूर भी देखे।कभी मिल जान देते थे,गमों से चूर भी देखे। करें सम्मान नारी…
सुख-दुख की बातें बेमानी ( १६ मात्रिक ) मैने तो हर पीड़ा झेली,सुख-दुख की बातें बेमानी। दुख ही मेरा सच्चा साथी,श्वाँस श्वाँस मे रहे संगाती।मै तो केवल दुख ही जानूं,प्रीत रीत मैने कब जानी,सुख-दुख की बातें बेमानी। साथी सुख केवल…
अब तो मेरे गाँव में . ( १६,१३ )अमन चैन खुशहाली बढ़ती ,अब तो मेरे गाँव में,हाय हलो गुडनाइट बोले,मोबाइल अब गाँव में। टेढ़ी ,बाँकी टूटी सड़केंधचके खाती कार में,नेता अफसर डाँक्टर आते,अब तो कभी कभार में। पण्चू दादा हुक्का…
उड़ जाए यह मन (१६ मात्रिक) यह,मन पागल, पंछी जैसे,मुक्त गगन में उड़ता ऐसे।पल मे देश विदेशों विचरण,कभी रुष्ट,पल मे अभिनंदन,मुक्त गगन उड़ जाए यह मन। पल में अवध,परिक्रम करता,सरयू जल मन गागर भरता।पल में चित्र कूट जा पहुँचे,अनुसुइया के…
समय सतत चलता है साथी गीत(१६,१६) कठिन काल करनी कविताई!कविता संगत प्रीत मिताई!! समय सतत चलता है साथी,समय कहे मन त्याग ढ़िठाई।वक्त सगा नहीं रहा किसी का,वन वन भटके थे रघुराई।फुरसत के क्षण ढूँढ करें हमकविता संगत प्रीत मिताई। समय…
आओ सच्चेे मीत बनाएँ (१६,१६)आओ सच्चेे मीत बनाएँ,एक एक हम वृक्ष लगाएँ।बचपन में ये सुन्दर होते ,नेह स्नेह के भाव सँजोते। पालो पोषो गौरव होता।मधुर भाव हरियाली बोता।आज एक पौधा ले आएँ,आओ सच्चे मीत बनाएँ। यौवन मे छाँया दातारी,मीठे खट्टे…
वर्षा-विरहातप (१६ मात्रिक मुक्तक ) कहाँ छिपी तुम,वर्षा जाकर।चली कहाँ हो दर्श दिखाकर।तन तपता है सतत वियोगी,देखें क्रोधित हुआ दिवाकर। मेह विरह में सब दुखियारे,पपिहा चातक मोर पियारे।श्वेद अश्रु झरते नर तन से,भीषण विरहातप के मारे। दादुर कोकिल निरे हुए…