स्वर्ण की सीढ़ी चढी है – बाबू लाल शर्मा

स्वर्ण की सीढ़ी चढी है – बाबू लाल शर्मा चाँदनी उतरी सुनहलीदेख वसुधा जगमगाई।ताकते सपने सितारेअप्सरा मन में लजाई।। शंख फूँका यौवनों मेंमीत ढूँढे कोकिलाएँसागरों में डूबने हितसरित बहती गीत गाएँ पोखरों में ज्वार आयाझील बापी कसमसाई।चाँदनी……………….।। हार कवि ने मान ली हैलेखनी थक दूर छिटकीभूल ता अम्बर धड़कनाआँधियों की श्वाँस अटकी आँख लड़ती पुतलियों … Read more

गुलमोहर है गुनगुुनाता – बाबू लाल शर्मा

गुलमोहर है गुनगुुनाता – बाबू लाल शर्मा गुलमोहर है गुनगुुनाता,अमलतासी सी गज़ल। रीती रीती सी घटाएँ,पवन की अठखेलियाँ।झूमें डोलें पेड़ सारे,बालियाँ अलबेलियाँ।गीत गाते स्वेद नहाये,काटते हम भी फसल।गुलमोहर है गुनगुनाता,अमलतासी सी गज़ल। बीज अरमानों का बोया,खाद डाली प्रीति की।फसलें सींची स्वेद श्रम से,कर गुड़ाई रीति की।भान रहे हमको मिलेंगी,लागतें भी क्या असल।गुलमोहर है गुनगुनाता,अमलतासी सी … Read more

इक शिखण्डी चाहिए – बाबू लाल शर्मा

इक शिखण्डी चाहिए – बाबू लाल शर्मा पार्थ जैसा हो कठिन,व्रत अखण्डी चाहिए।*आज जीने के लिए,**इक शिखण्डी चाहिए।।* देश अपना हो विजित,धारणा ऐसी रखें।शत्रु नानी याद कर,स्वाद फिर ऐसा चखे। सैन्य हो अक्षुण्य बस,व्यूह् त्रिखण्डी चाहिए।।आज जीने के……. घर के भेदी को अब,निश्चित सबक सिखाना।आतंकी अपराधी,को आँखे दिखलाना। सुता बने लक्ष्मी सम,भाव चण्डी चाहिए।।आज जीने … Read more

प्रीत शेष है मीत धरा पर

नवगीत- प्रीत शेष है मीत धरा पर प्रीत शेष है मीत धरा पररीत गीत शृंगार नवल।बहे पुनीता यमुना गंगापावन नर्मद नद निर्मल।। रोक सके कब बंधन जल कोकूल किनारे टूट बहेआँखों से जब झरने चलतेसागर का इतिहास कहे पके उम्र के संग नेह तबनित्य खिले सर मनो कमल।प्रीत……………………..।। सरिताएँ सागर से मिलतीनेह नीर की ले … Read more