शिवांगी मिश्रा की कविता “आओ मिल कर योग करें हम” योग के सामूहिक और सामाजिक महत्व को उजागर करती है। इस कविता में कवयित्री ने योग को न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य और शांति का साधन बताया है, बल्कि इसे एक सामूहिक गतिविधि के रूप में भी प्रस्तुत किया है जो समुदाय और समाज में एकता और सकारात्मकता लाने का काम करती है।
शिवांगी मिश्रा की यह कविता सरल, प्रेरणादायक और समर्पण की भावना से ओतप्रोत है। कविता का उद्देश्य योग के सामूहिक अभ्यास के महत्व को रेखांकित करना और पाठकों को इसे अपनाने के लिए प्रेरित करना है।
आओ मिल कर योग करें हम / शिवांगी मिश्रा
चेतन्य रहे अपना ये तन मन ।
आओ मिल कर योग करें हम ।।
स्वास्थ्य साधना करनी सबको
यह संदेश दिया जाए ।।
सदा हमे रहना है सुखी तो ।
आओ योग किया जाए ।।
योग करोगे दूर रहेंगे,सदा हमारे रोगों का गम ।।
आओ मिल कर योग करें हम ।।
जीवन का गर बने नियम ये ।
तो हर इक मन बच्चा हो ।।
योग को हिस्सा बना लो अपना ।
स्वास्थ्य हमेशा अच्छा हो ।।
कभी बीमारी रोग के भय से,किसी की ना हों आंखे नम ।।
आओ मिल कर योग करें हम ।।
यह कानून ना बना किसी का ।
ना ही इक ये दिवस मात्र है ।।
हम सबका ही भला है इसमें ।
अपना लो ना ये बुरा साथ है ।।
इतना इसको अपनाओ की,
कभी कही ना पाए थम ।।
चेतन्य रहे अपना ये तन मन ।
आओ मिल कर योग करें हम ।।
शिवांगी मिश्रा
“आओ मिल कर योग करें हम” कविता में कवि शिवांगी मिश्रा ने योग के सामूहिक और सामाजिक महत्व को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। कविता में बताया गया है कि मिल-जुल कर योग करने से न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि समाज में एकता, भाईचारा और सकारात्मकता भी बढ़ती है। योग का सामूहिक अभ्यास एक प्रेरणादायक और सहयोगी वातावरण का निर्माण करता है, जिसमें हर व्यक्ति अपने स्वास्थ्य और कल्याण के लिए प्रेरित होता है। यह कविता पाठकों को योग के सामूहिक अभ्यास के लाभों को समझने और इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाने के लिए प्रेरित करती है।