Author: कविता बहार

  • महिला दिवस पर कविता

    बेखबर स्त्रियां

    स्त्रियों के सौंदर्य का
    अलंकृत भाषा में
    नख से शिख तक मांसल चित्रण किए गए
    श्रृंगार रस में डूबे
    सौंदर्य प्रेमी पुरुषों ने जोर-जोर से तालियां बजाई
    मगर तालियों की अनुगूंज में
    स्त्रियों की चित्कार
    कभी नहीं सुनी गईं

    कविताओं में स्त्रियां
    खूब पढ़ी गई और खूब सुनी गई
    मगर आदि काल से अब तक
    कविताओं से बाहर
    यथार्थ के धरातल पर
    स्त्रियां ना तो पढ़ी गईं और ना ही कभी सुनी गईं

    स्त्रियों पर कई-कई गोष्ठियां हुईं
    स्त्री विमर्श पर चिंतन परक लेख लिखे गए
    स्त्री उत्पीड़न की घटनाओं पर शाब्दिक दुख प्रगट किए गए
    टीवी चैनलों पर बहसें हुईं
    अखबारों पर मोटे मोटे अक्षरों से सुर्खियां लगाई गईं
    स्त्रियां खबरों पर छाई रहीं

    पर घटनाओं से पहले
    और घटनाओं के बाद बेखबर रही स्त्रियां।

    –नरेंद्र कुमार कुलमित्र

    मुझे स्त्री कहो या कविता

    मुझे स्त्री कहो या कविता
    मुझे गढ़ों या ना पढ़ों
    मुझे भाव पढ़ना आता है।
    खुबसूरती का ठप्पा वाह में
    कभी प्रथम पृष्ठ अखबार में
    किसी घर में,
    किसी गुमनामी राह पर।
    लेकिन मैं भी आदत से लाचार हूॅं
    कभी झुक कर उठ जाती हूॅं
    कभी टूट कर जुड़ जाती हूॅं
    मुझे नदी की तरह है जीना
    सीखा है उसी की धार से
    इसी लक्ष्य के साथ
    हर कदम आगे बढ़ती रहती हूॅं।

    अंतर्आत्मा के महल में
    उन्मुक्त गगन में
    शशि,दिनकर की छांव में
    खुद को सिंचते रहती हूॅं।
    अंधेरापन के खड़कने से
    अनायास ही कुछ चटकने से
    हृदय के दरकने से
    कर्णकटु स्वर से
    सहम सी जाती हूॅं
    न जाने क्यूं,
    अपनी अस्मिता को बिन जताएं ही
    एक कदम पीछे खिसक जाती हूॅं।

    पैरों में पायल,
    हाथों में चूड़ियाॅं
    कानों में झुमकी और माथे पर बिंदियाॅं
    पल्लू के साथ कभी छांव, कभी धुप दिखाती
    दर्पण को चेहरे की भाषा समझाती
    स्वप्निल नैनों को मटकाती
    मुस्कुराते हुए मुखड़े को लेकर
    दबे पांव चलकर
    होंठों को सीलकर
    सबकी हुजूम जुटाती
    फिर भी न जाने क्यूॅं
    बड़ी मासुमियत से
    स्त्रियां,न जाने कब
    अपनों से छली जाती है।

    सुबह का चार,संध्या के चार में
    कभी महसूस नहीं होती
    बच्चों को भेजती स्कूल और
    खुद भागती हुई आंफिस,स्त्रियाॅं
    थकान को छोड़ किसी दूकान पर
    पुनः जाती अपने आशियाने में
    खुद को भूलाकर
    कमरधनी की जगह पल्लू को बांधकर
    सहेजती रहती अपने आशियाने के फूल को
    कब तार-तार हो गई जीवन
    कब बह गई पंक्तियां
    फिर,न जाने कब स्त्रियां
    परिस्थितियों के हिसाब में
    अपने ही अंदाज से ठगी सी रह जाती है।

    आज बदल गई है परिस्थितियां
    इस पर हो रहे हैं विमर्श,
    भाषणों में, गढ़ रहे हैं किताबों में
    चल रही है जालसाजी दिमागों में
    कभी भेड़-बकरियों की तरह नोंचे जातें हैं,
    अनकही – अनसुनी बागों में।
    सब कुछ बदल रहा है
    लेकिन नही बदली है नारी की तक़दीर
    क्या पता इस खेमें में आ जाए किसकी तस्वीर
    लेकिन संस्कृतियों के मिठास में
    रह गई हूॅं सिमटकर
    मैं भी चाहती हूॅं जवाब दूॅं झटकाकर
    लेकिन न जाने क्यूं
    रिश्तों की डगमगाहट से
    कॅंप – कॅंपा जाती हूॅं मैं
    लड़खड़ा सी जाती है पंक्तियां
    वास्तव में कब बदलेगी परिस्थितियाॅं
    इसी आस में छलनी हो जाती हूॅं।

    निधी कुमारी

    नारी का सम्मान करो



    लावणी छंद
    वेद ग्रंथ में कहें ऋचाएँ, जड़ चेतन में ध्यान धरो।.
    जननी भगिनी बिटियाँ पत्नी, नारी का सम्मान करो।..

    नारी से नर नारायण हैं, नारी सुखों की खान है।
    प्रसव वेदना की संधारक, नारी कोख़ बलवान है।
    ममता की मूरत है जग में,सुचिता शील वरदान है।
    ज्वाला रूप धरे नारी तब, लागे ग्रहण का भान है।
    गगन बदन भेदन क्षमता है, मुक्त कंठ गुणगान करो…
    जननी भगिनी बिटियाँ पत्नी, नारी का सम्मान करो।…

    सती रूप भी सहज कहाँ था,पुरुष भला क्या सह सकता!
    काल विधुर परिणाम करे तो, चँद बरस नहीं रह सकता।
    दो कुल की संस्कारी सरिता, क्या गंगा सा बह सकते?
    करता और बखान कलम से, बिना शब्द क्या कह सकते?
    श्वेद गार कर बाग सजाती,सह नारी श्रमदान करो…
    जननी भगिनी बिटियाँ पत्नी, नारी का सम्मान करो।…

    अस्थि तोड़ती प्रसव वेदना, अबला ही सह सकती है।
    सफल चरण की नेक कहानी,गृहणी ही कह सकती है।
    कभी अडिग हो चट्टानों सी, कभी नयनजल बहती है।
    विषम घड़ी में ढाल बनें वह, पिय वियोग में जलती है।
    त्याग तपस्या नारी कारण, जीवन का बलिदान करो।
    जननी भगिनी बिटियाँ पत्नी, नारी का सम्मान करो।…

    डॉ ओमकार साहू मृदुल

    अर्धांगिनी

    कहने को तो पत्नी अर्धांगिनी कहलाती है,
    पर कितनी खुशकिस्मत औरतें ये दर्ज़ा पाती हैं।
    घर में रहने वाली औरतें हाउसवाइफ कहलाती हैं,
    वो तो कभी किसी गिनती में ही नहीं आती हैं।

    चाहे ज़माना लाख कहे कि औरतें हैं महान,
    पर घर में रहने वाली औरतों को तो सब समझते हैं बेकार सामान।

    क्या करती रहती हो घर पर?ये उलाहना तो आम है,
    बाहर जाकर काम करने वाली औरतें ही सबकी नज़रों में महान है।

    घर, बच्चों, बड़े-बूढों को संभालना तो सबको मामूली काम लगता है,
    उन्हें बात-बात में नीचा दिखाना अब बड़ा आम लगता है।

    फिल्मों के ज़रिए लोगों को बताना पड़ता है,
    हाउसवाइफ का काम अब लोगों को जताना पड़ता है।

    जिन working women पर महानता का tag लगा है,
    कभी उनसे पूछा कि तेरा हाल क्या है?

    चाहे बाहर हाड़तोड़ मेहनत कर थकी-हारी घर आती है,
    फिर भी घर-गृहस्थी संभालने की ज़िम्मेदारी उसी के ही हिस्से आती है।

    दो पाटों के बीच पिसती रहती है,
    ये औरतें अपने आप में बस घुटती रहती हैं।

    कभी कुछ नहीं कह पाती मुँह से क्या उनकी चाहत है,
    प्यार और सम्मान, बस यही देती उनको राहत है।

    गर ये भी ना दे पाओ तो उसे अर्धांगिनी भी ना कहना,
    ख़ुद के आधे हिस्से को सम्मान और आधे हिस्से को तिरस्कार कभी ना देना।

    क्या हुआ जो पत्नी के सोते तुमने थाली परोस कर खा ली,
    क्या हुआ जो पत्नी किचन में काम कर रही थी,इसलिए शर्ट तुमने खुद निकाली,
    क्या हुआ जो एक ग्लास पानी तुमने खुद लेकर पिया,
    क्या हुआ जो आज तुमने अपना बिस्तर समेटा,


    क्या हुआ जो आज बाज़ार से सामान लाना पड़ा,
    क्या हुआ जो आज दाल में तेज नमक खाना पड़ा,
    क्या हुआ जो कभी समय पर चाय नहीं मिली,
    क्या हुआ जो आज की फरमाइश आज पूरी नहीं हुई।

    जो अपना पूरा जीवन adjust करके निकाल देती है,
    जो अपनी पसंद-नापसंद भी बिसार देती है,
    जो कभी-कभी बिन बात के भी गुस्सा हो जाती है,
    जो कभी रूठ जाती है,कभी चिड़चिड़ाती है।


    वो सिर्फ तुम्हारा ध्यान पाना चाहती है,
    कुछ बातें गुस्से में बताकर तुम्हें सिखाना चाहती है।
    क्योंकि वह जानती है कि जिन बातों पर उसे गुस्सा आता है,
    उसके जाने के बाद उन आदतों में प्यार जताकर देखने वाला और कोई नहीं होता है।

    ये पति-पत्नी दोनों जीवन गाड़ी के हैं दो पहिये,
    ये बात सौ प्रतिशत सही है,इसे झूठी ना कहिये।

    लड़खड़ा जाएगी ये गाड़ी गर औरत साथ ना देगी,
    जितना सम्मान देती है, ये उतना सम्मान भी चाहेगी।

    गर खिलखिलाते चेहरे पर चुप की चुप्पी छा जाएगी,
    तो ना होली पर ना दिवाली पर घर में रौनक नज़र आएगी।

    गर सच्चे दिल से औरत को समानता का दर्ज़ा देते हो,
    घर को उनकी ज़रूरत है, ये सच्चे दिल से कहते हो,
    तो बस प्यार और सम्मान से उन्हें सींचते रहिएगा,
    चाहे housewife हो या working wonen,

    उन्हें अपनेपन का साथ देते रहियेगा।
    जैसे खूबसूरती दिखाने वाला आईना भी टूटकर
    एक चेहरे को हज़ार चेहरों में बिखेर देता है,
    उस तरह से औरत के आत्मसम्मान को टूटकर कभी बिखरने ना दीजियेगा।

    श्रीमती किरण अवधेश गुप्ता

    हाँ मैं नारी हूँ

    मैं ही तुमको जीवन देती हूँ लेकिन अपना नाम नहीं देती हूँ।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि मैं ही इस संसार की रचना करती हूँ।।


    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’
    तुम इस संसार में मुझे बस सुनाते हैं, फिर भी मैं कुछ नहीं कहती हँू।
    लेकिन तुम यह नहंी जानते हो कि मैं सब कुछ समझती हूँ।।
    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’


    तुम मुझे बुरा भला कहते हो तो भी मैं तुम्हारे सामने जवाब नहीं देती हूँ।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि मैंने अपने पति के जीवन को यमराज से भी छुडा़या है।।
    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’
    तुम मुझे रोज ताने मारते हो तो भी मैं तुम्हारे साथ ही रहती हँू।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि मैंने एक बार अपने प्रेम की खातिर जहर को भी पी लिया है।।


    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’
    तुम मुझे कमजोर समझते हो लेकिन मुझे मेरे ईश्वर ने सहनशक्ति दी है।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि मैंने एक बार अपने राज्य की खातिर

    अपने बच्चे को पीठ पर बाँधकर अग्रेजोें को धूल चटायी है।।
    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’
    तुम मुझे रोजाना अपने पिंजरे में कैद करने की कहते हो।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि मैं चाँद पर भी होकर आयी हूँ।।


    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’
    तुम मुझे नारी समझते हो लेकिन मैं नारी नहीं नारायणी हूँ।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि मैं ही तेरी रचयिता हँू।।


    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’
    तुम मुझे कार्य करने की मशीन समझते हो फिर भी मैं तेरे सुख दुख में साथ देती हँू।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि इस दुनिया को मैं ही चलाती हँू।।


    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’
    तुम मेरे चरित्र पर सवाल उठाते रहे मैं केवल परीक्षा देती रही।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि मैंने अपने पति के वचन की खातिर चैदह वर्ष वनवास किया है।।
    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’


    तुम मेरी हर समय तपस्या लेते रहे तो भी मैं देती रही।
    लेकिन तुम यह नहीं जानते हो कि जरूरत पड़ने पर मैं पत्थर की अहिल्या भी बन गयी।।
    ‘‘हाँ मैं नारी हूँ, मैं चेहरे की हवाईयाँ ही नहीं, आज मैं हवाई जहाज भी उड़ाती हूँ’’

    धर्मेन्द्र वर्मा (लेखक एवं कवि)

    इंसान के रूप मे जानवर

    क्यों ,जानवर इंसानियत को इतना शर्मसार कर रहा है
    वो जानकर भी कि ये गलत है फिर भी गलती बार-बार कर रहा है
    वो कुछ इस तरह से लिप्त हो रहे दरिंदगी मे मानो
    दरिंदगी के लिए ही पैदा हुआ हो सो हजार बार कर रहा है.
    मर चुका है इंसान उसका राक्षस को संजोए हुए हैं
    अंजाम की परवाह नहीं मौत का कफ़न ओढ़े हुए हैं
    वो बहन बेटी की इज्ज़त से आज खुलेआम खेल रहा है
    चीख रही निर्भया कितने उसे दर्द मे धकेल रहा है

    क्यों, जानवर इंसानियत को इतना शर्मसार कर रहा है.
    उसके कृत्य को थू-थू सारा ही संसार कर रहा है
    जिस देश मे जल -पत्थर भी पूजे जाते हैं
    यहां संस्कृति है ऐसी नारी भी देवी कहे जाते हैं
    फिर क्यों, इंसान इतना शैतान होता जा रहा है
    छेड़खानी-बालात्कारी हर दिन छपता जा रहा है
    हमारे संस्कार को धूमिल वो हर बार कर रहा है
    क्यों, जानवर इंसानियत को इतना शर्मसार कर रहा है.

    आनंद कुमार, बिहार

    तुझको क्या लगता है

    नारी शक्ति (महिला जागृति)

    सैलाब को समेटे खुद में
    वो शीतल मंद नदी से बहती है
    और तुझको क्या लगता है नारी शक्तिहीन होती है।

    मान सम्मान परंपराओं के आवरण में
    वो खुद की क्षमताओं की सीमाओं को बांधे रखती है
    और तुझको क्या लगता है नारी शक्तिहीन होती है।

    जागृत ज्वाला प्रचंड है वो
    पर स्वभाव ठंडी गंगाजल सी रखती हैं
    और तुझको क्या लगता है नारी शक्तिहीन होती हैं।

    कौन जंजीरों में बांध सका है उसको
    वो प्रेम वशीभूत अपना सब कुछ समर्पण करती है
    और तुझको क्या लगता है नारी शक्तिहीन होती है।

    कि कैसे आवाहन करूं मैं नारी कि जागृति का
    वो जागृत देवी स्वरूपा हर रूप में बसती है
    और तुझको क्या लगता है नारी शक्तिहीन होती है।

    प्रांशु गुप्ता

    लगता है मेरी अस्थियो को फिकँवाने चले है

    दरिंदो ने दरिंदगी निभा ही दी,
    फरिश्ते अब मेरी मौत के बाद मदद की दुहार लगाने लगे है।
    मेरे माँ-बाप को गले से लगाने चले है,
    लगता है मेरी अस्थियो को फिकँवाने चले है।
    काश! काश!
    बालात्कार कर छोड़ गई बेटी,
    आसमाँ में परिंदो सा उड़ पाती।
    मुस्कुराहट पर हक है उसका ,
    ये बात दुनिया मुसकुराकर कह जाती।
    हाँ, तब वो जिंदा होती।।
    उसे कोई गले से लगाने वाला तो होता ,
    उसके लिए लड़ जाने वाला तो होता ।
    मरकर भी जिंदा हो जाती,
    उसकी लाश को सहलाने वाला तो कोई होता।।
    कह दो अपने सभापति से
    अगली सभा थोड़ी पहले बुलाये,
    कम से कम मन जिंदा तो होगा लड़ जाने के लिए।
    माँ-बाप के पास लाश तो होगी जलाने के लिए।।
    जिंदा रहने की चाहत मर-सी गई होगी,
    कैसे जीऊँगी ये सोच वो डर-सी गई होगी,
    शायद तब उसकी रूह उससे बिछड़-सी गई होगी।।
    मौत की वजह दरिंदे है,
    पर जिंदा रहने की चाहत क्यों मरी उसकी वजह ???

    नाम-पायल

    नारी तुम हो नदी की धारा

    तुमसे ही है जीवन सारा,
    तुम ही हो शक्ति,
    तुम ही हो भक्ति,
    पुरातन से लेकर नूतन तक ,
    तुमने ही यह दुनिया सवारी,
    इतने जुल्म  सहकर,
    कुरीतियो  का ज़हर पीकर,
    पहाड़ जैसी मुसीबत झेलकर भी,
    अपने मार्ग से न डगमगाई,
    और ओढ़ी सफलता की रजाई ।                  


     कभी लक्ष्मी बाई बनकर,
    अंग्रेजों को धूल चटाई।
     तो कभी  इंदिरा गाँधी बनकर,
     देश हित  सरकार  बनाई।
    कभी  सावित्री  फुले  बनकर
    कुरीतियो के ख़िलाफ़ आवाज़  उठाई।


    कभी  कल्पना  चावला  बनके,
    चाँद  तक पहुँचने  की राह  बताई।
    कभी किरण बेदी बनकर,
    चोरो  की  करी  धुलाई।
    तो कभी  लेखिका  बनकर,
    कलम  की ताकत  बताई।


    कभी  पी वी सिंधु  बनके,
    ओलिंपिक मैं गाड़  दिए  झंडे।
    कभी  मैरीकॉम  बनके,
    दिखाई  मुक्केबाज़ी की कला।        
    तो कभी श्वेता सिंह बनके,
    सारे  जहाँ  की  खबर  सुनाई।

    हर रूप  में  तुम हो  आई,
    जिसमे  यह  दुनिया समाई     ।                          

    तुम ही  हो  तिरंगे की शान,
    तुमसे ही है देश का मान,
    तुमसे ही है देश का मान….।।

    यक्षिता जैन , रतलाम मध्य प्रदेश

    तू नारी है तू शक्ति है

    “भारत की शान हो,
    हम सबकी अभिमान हो!
    स्वर्णिम इतिहास के लिए,
    देश की गौरव गान हो!!”

    “खुशियों का संसार हो,
    जीवन का आधार हो !
    प्रेम की शुरुआत हो,
    जीवन का आगाज हो!!”

    “माता का मान हो,
    पिता का सम्मान हो!
    पति की इज्जत हो,
    रिश्तो का शान हो!!”

    “जीवन की छाया हो,
    मोहभरी माया हो!
    जीवन को परिभाषित,
    करने वाली निबंध हो!!”

    “स्नेह,प्रेम,ममता,का भंडार हो,
    आज बनी युग की निर्माता हो!
    नारी तुम स्वतंत्र हो,
    जीवन धन यंत्र हो!!”

    कृष्णा चौहान

    नारी तू ही शक्ति है

    नारी तू कमजोर नहीं, तुझमें अलोकिक शक्ति है,
    भूमण्डल पर तुमसे ही, जीवों की होती उत्पत्ति है।
    प्रकृति की अनमोल मूरत, तू देवी जैसी लगती है,
    परिवार तुझी से है नारी, तू दिलमें ममता रखती है।।

    म से “ममता”, हि से “हिम्मत” ला से तू “लावा” है,
    महिला का इतिहास भी, हिम्मत बढ़ाने वाला है।
    ठान ले तो पर्वत हिला दे, विश्वास नहीं ये दावा है,
    हिम्मत करे तो दरिंदों की, जान का भी लाला है।।

    याद कर अहिल्याबाई, रानी दुर्गावती भी नारी थी,
    दुश्मन को छकाने वाली, लक्ष्मी बाई भी नारी थी।
    शीशकाट भिजवाने वाली, हाड़ीरानी भी नारी थी,
    सरोजिनी नायडू, रानी रुद्रम्मा देवी भी नारी थी।।

    वहशी हैवानों की नजरों में, रिश्ते ना कोई नाते है,
    मां, बहन, बेटियों से भी, विश्वासघात कर जाते हैं।
    मौका मिले तो वहशी गिद्ध नोच नोच खा जाते हैं,
    सबूत के अभाव में दरिंदे, सज़ा से भी बच जाते हैं।।

    तू ही काली, तू ही दुर्गा, तू ही मां जगदम्बा है,
    खड़्ग उठाले उस पर तू, जो मानवता ही खोता है।
    निर्बल समझे जो तुझको, पालता मन में धोखा है,
    सबक सिखादे वहशियों को, समझते जो “मौक़ा” है।।

    आम आदमी समीक्षा और चर्चा कर दूर हो जाते हैं,
    पीड़ित नारी “अपनी नहीं”, इसी से संतुष्ट हो जाते हैं।
    घटना घटने के बाद बहना, सब सहानुभूति जताते हैं,
    जिम्मेदार, संभ्रांत व्यक्तियों के, वक्तव्य छप जाते हैं।

    अब नारी तू ही हिम्मत करले, शक्तियों को जगाले तू,
    अपने मुंह को ढकने वाले, पल्लू को कफ़न बनाले तू।
    इज्ज़त पे जो भी हाथ डाले, उसी को सबक सिखादे तू,
    आंखों से खूनी आंसू पोंछ, गुस्से को हथियार बनाले तू।

    है बेमिसाल नारी

               कहते है इसे नारी
               है विश्वास से भरी |

               शक्ति की मिसाल
              रखती सबका ख्याल |

                 है समझ से परे
                काल भी इससे डरे |
            
                 आँसुओ की गागर
                 पर करे नहीं उजागर |

           है अनोखी ये ममता की देवी
              है निशब्द जगत हर कवि |

                  जीवन की रचयिता
                 हर स्थिति की विजेता |

       है ज़रा सी प्यार की भूखी
       ना करो उसे दुखी |

      लगन से उसका जतन कर
      वो संवारे स्वर्ग जैसा तुम्हारा घर|  

    रिंकू सेन

    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है

    पंडित जवाहर लाल जी कह गए,
    लोगों को जगाने के लिए,
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.

    घर परिवार की जिम्मेदारी हंस कर उठा लेती है
    किसी से कुछ ना कहती अपने दुख सारे सह लेती है.
    जानती है वह अच्छे से खुद को मजबूत बनाना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.

    पिता के घर की बिटिया रानी भाई बहनों की मां बन जाती है.
    ससुरजी के घर की लक्ष्मी होती पत्नी स्वरूप में पति की जां बन जाती है.
    जानती है वह अपना कर्तव्य निभाना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.

    श्रृष्टि की रचना भी एक महिला आदि भवानी मां ने की है.
    महिलाओं को मां के रूप में देवी मां की उपमा दी है.
    इस संसार में महिलाओं का होना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.

    एक बार जो नारी कदम उठाती है.
    अपने परिवार गांव को आगे बढ़ाती है.
    उसका शिक्षित भी होना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना भी जरूरी है.

    दहेज प्रथा अशिक्षा असमानता का सामना करती है.
    यौन हिंसा भ्रूण हत्या का भी दुःख वह सहती है.
    इन सब पर अब रोक भी लगाना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.

    घरेलू हिंसा वैश्यावृत्ति मानव तस्करी भी सहती है.
    लैंगिक भेदभाव राष्ट्र में इनको पीछे धकेलती है.
    महिलाओं को अब सशक्त बनाना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.

    महिला पुरुष के बीच असमानता से जन्म समस्याओं का होता है.
    इन समस्याओं के कारण राष्ट्र का विकास बाधित होता है.
    महिलाओं को पुरुषों के बराबर होने का अधिकार होना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.

    भारतीय समाज में अब महिलाओं में सशक्तिकरण लाना होगा.
    महिलाओं के खिलाफ बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना होगा.
    महिलाओं के विरुद्ध अपनी बुरी सोच को बदलना जरूरी है.
    महिलाओं का जागृत होना जरूरी है.

    रीता प्रधान

    भारतीय स्त्रियों पर कविता

    स्त्री

    कोई व्रत है नहीं औरत के लिए
    उपवास नहीं कन्या के लिए,
    पत्नी का व्रत है पति के लिए
    माँ का उपवास है सुत के लिए।
    फिर भी जाने किस मिट्टी से
    औरत को बनाया ईश्वर ने,
    नए जीव को जन्म भी देती है
    लंबी सी उम्र जी लेती है।

    सीता

    पति की अनुगामिनी बनती है
    हर सुख दुख में संग चलती है,
    महल हो या वनवास ही हो
    हर पथ सहभागिनी बनती है।
    पर अग्निपरीक्षा देकर भी
    जब परित्यकता बन जाती है,
    निज स्वाभिमान की रक्षा में
    धरती में समा भी जाती है।

    द्रौपदी

    मत्स्य चक्षु भेदा जिसने
    निज हृदय में उसे बिठाती है,
    पर मातृ आज्ञा की खातिर
    वह पांच कंत अपनाती है।
    ऐसी कुलवधू द्यूत में जब
    दांव पर लगाई जाती है,
    निज सखा को विनय सुनाकर तब
    वो मानिनी लाज बचाती है।

    राधा

    वो परम प्रेयसी बनती हैं
    बंसी बट में यमुना तट पर,
    प्रियतम से दूर विरह सहकर
    जीवन न्योछावर करती है।

    मीरा

    भक्ति में जोगन बनती है
    प्रेम अनन्य वो करती है,
    हंसकर विष भी पी जाती है
    मूरत में समाहित होती है।

    शबरी

    बृहद प्रतीक्षा करती है
    अपने गृह प्रभु के आने की,
    वो प्रेम से जूठे बेर खिलाकर
    परमधाम को पाती है।

    उर्मिला

    चौदह वर्ष दूर प्रियतम से
    महल में वन सी रहती है,
    भाई संग भेज प्राणप्रिय को
    वह विरह वेदना सहती है।

    पन्ना धाय

    निज सुत उत्सर्ग वो करती है
    राजपुत्र की रक्षा में,
    ऐसी बलिदानी थी नारी
    यूं राजभक्ति वो निभाती है।

    रानी लक्ष्मी बाई

    घोड़े पर चढ़ दत्तक सुत बांध
    रणचंडी बन जाती है,
    राज्य की रक्षा करने को
    बलिदानी जान लुटाती है।

    सावित्री

    पतिव्रत धर्म निभाती है
    नित सत्यकर्म अपनाती है,
    मृत पति के प्राण को दृढ़ होकर
    यमराज से छीन भी लाती है।

    सशक्त नारी

    नारी की शक्ति न कम आंको
    जो ठान ले वो कर जाती है,
    भावना के बस कमज़ोर हो वो
    बिन मोल के ही बिक जाती है।

    चाह

    कितने किरदार निभाती है
    बदले में किंचित चाह लिए,
    कुछ प्यार मिले, सम्मान मिले
    थोड़ी परवाह चाहती है।
    कोई उसके लिए भी व्रत रखे
    यह लेशमात्र भी चाह नहीं,
    बस उसके किए की कद्र करे
    इतना सा मान चाहती है।।

    नारी तू ही शक्ति है

    नारी तू कमजोर नहीं, तुझमें अलोकिक शक्ति है,
    भूमण्डल पर तुमसे ही, जीवों की होती उत्पत्ति है।
    प्रकृति की अनमोल मूरत, तू देवी जैसी लगती है,
    परिवार तुझी से है नारी, तू दिलमें ममता रखती है।।

    म से “ममता”, हि से “हिम्मत” ला से तू “लावा” है,
    महिला का इतिहास भी, हिम्मत बढ़ाने वाला है।
    ठान ले तो पर्वत हिला दे, विश्वास नहीं ये दावा है,
    हिम्मत करे तो दरिंदों की, जान का भी लाला है।।

    याद कर अहिल्याबाई, रानी दुर्गावती भी नारी थी,
    दुश्मन को छकाने वाली, लक्ष्मी बाई भी नारी थी।
    शीशकाट भिजवाने वाली, हाड़ीरानी भी नारी थी,
    सरोजिनी नायडू, रानी रुद्रम्मा देवी भी नारी थी।।

    वहशी हैवानों की नजरों में, रिश्ते ना कोई नाते है,
    मां, बहन, बेटियों से भी, विश्वासघात कर जाते हैं।
    मौका मिले तो वहशी गिद्ध नोच नोच खा जाते हैं,
    सबूत के अभाव में दरिंदे, सज़ा सेभी बच जाते हैं।

    तू ही काली, तू ही दुर्गा, तू ही मां जगदम्बा है,
    खड़्ग उठाले उस पर तू, जो मानवता ही खोता है।
    निर्बल समझे जो तुझको, पालता मन में धोखा है,
    सबक सिखादे वहशियों को, समझते जो मौक़ा है।

    आम आदमी समीक्षा और चर्चा कर दूर हो जाते हैं
    पीड़ित नारी “अपनी नहीं”, इसी से संतुष्ट हो जाते हैं
    घटना घटने के बाद बहना सब सहानुभूति जताते हैं
    जिम्मेदार, संभ्रांत व्यक्तियों के, वक्तव्य छप जाते हैं

    अब नारी तू ही हिम्मत करले, शक्तियों को जगाले तू
    अपने मुंह को ढकने वाले, पल्लू को कफ़न बनाले तू
    इज्ज़तपे जोभी हाथडाले, उसीको सबक सिखादे तू
    आंखसे खूनीआंसू पोंछ, गुस्सेको हथियार बनाले तू

    राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान

    मैं एक नारी हूँ

    मुझसे ही इस सृष्टि का निर्माण हुआ है,
    मैं ना कभी हारूँगी, ना मैं कभी हारी हूँ।

    मेरा वजूद से ही कायम है इस दुनिया का वजूद,
    मैं कोई उपभोग की वस्तु नही, मैं एक नारी हूँ।

    कितने कारनामे अंजाम दिए मैंने, कितनो को पछाड़ा है,
    आ जाऊं गर मैदान में तो मैं सौ पर भी भारी हूँ।

    कभी पुलिस बनकर रक्षा करती हूं, कभी मैं एक खिलाड़ी हूँ,
    राजनीति में गर हिस्सा लूं तो मैं भी सत्ताधारी हूँ।

    मोम सी फितरत है मेरी, ममता की मैं मूरत हूँ,
    क्रोधित कोई गर मुझे पाए तो मैं एक चिंगारी हूँ।

    कितने अपराध होते है, जो बस मेरे ही खिलाफ होते है,
    मुझको शिकार समझने वालों मैं भी एक शिकारी हूँ।

    हर रूप में मैं ढल जाती हूँ, हर रिश्ते को आज़माती हूँ,
    सहनशीलता की मूरत हूँ, ना समझना बेचारी हूँ।

    आजाद अशरफ माद्रे

    बेटी तो है फूल बागान( महिला जागृति पर रचना )

    गांव, शहर में मारी जाती, बेटी मां की कोख की,
    बेटी मां की कोख की, बेटी मां की कोख की।।

    जूही बेटी, चंपा बेटी, चन्द्रमा तक पहुंच गई,
    मत मारो बेटी को, जो गोल्ड मेडलिस्ट हो गई,
    बेटी ममता, बेटी सीता, देवी है वो प्यार की।
    बेटी बिन घर सूना सूना, प्यारी है संसार की,
    गांव, शहर में मारी जाती, बेटी मां की कोख की।।

    देवी लक्ष्मी, मां भगवती, बहन कस्तूरबा गांधी थी,
    धूप छांव सी लगती बेटी, दुश्मन तूने जानी थी।
    कल्पना चावला, मदरटेरेसा इंदिरागांधी भी नारी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वो तो, झांसी वाली रानी थी,
    गांव, शहर में मारी जाती, बेटी मां की कोख की।।

    पछतावे क्यूं काकी कमली, किया धरा सब तेरा से,
    बेटा कुंवारा रह गया तेरा, करमों का ही फोड़ा है।
    गांव-शहर, नर-नारी सुनलो, बेटा-बेटी एक समान,
    मत मारो तुम बेटी को, बेटी तो है फूल बागान।।

    राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान

  • शहीदों पर कविता

    शहीदों पर कविता

    शहीदों पर कविता , उस व्यक्ति को हम शहीद कहते हैं. ऐसे व्यक्ति जो कि किसी भी लड़ाई में देश की सुरक्षा करते हुए या देश के नागरिकों की सुरक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान देते हैं. ऐसे व्यक्तियों को शहीद कहा जाता है. यह व्यक्ति पुलिस, जल सेना, वायु सेना, थल सेना, BSF, होम गार्ड आदि के सिपाही होते है, इन्ही के लिए कविता बहार की कुछ कविताये जो इनके शहादत को बुला नहीं देगी

    mahapurush

    शहीदों पर कविता

    ढह गई वह इमारत
    जिसके लोकार्पण के
    पत्थर की सीमेंट
    नहीं सूखी अभी तलक
    जिसके निर्माण की फाईल
    अभी हुई थी पास
    हाल ही में हुए थे
    इंजीनीयर के हस्ताक्षर
    फाईल पर
    इमारत क्यूं न ढहे
    इसने खड़ी कर दी
    कितनी आलीशान इमारतें
    ठेकेदार की कोठी
    इंजीनीयर का बंगला
    बड़े बाऊ का फलैट
    इस इमारत को
    मिलना ही चाहिए
    शहीद का दर्जा
    जो ठेकेदार, इंजीनीयर
    व बड़े बाऊ के
    भवन पर
    हो गई कुर्बान

    विनोद सिल्ला

    शहीदों पर कविता

    गूंज रही थीं
    स्वरलहरियां
    ‘शहीदों की चिताओं पर
    लगेंगे हर वर्ष मेले’
    अवसर था
    एक शहीद की
    चिता पर लगे मेले का
    इस मेले में हुए एकत्रित
    शहीद की जाति के लोग
    था आयोजन का मुख्यातिथि
    शहीद की जाति का सफेदपोश
    जिसने बताया शहीद को
    अपनी जाति का गौरव
    अपनी जाति का
    मान-सम्मान
    संकीर्णता ने
    शहीद की
    शहादत का दायरा
    कर दिया
    कितना संकुचित
    और कर लिए
    अपनी जाति के
    सभी वोट पक्के

    शहीदों की शहादत की कहानी

    शहीदों की शहादत की  कहानी   भी सुनानी है।
    चरण रज वीर की लेकर यूँ मस्तक से लगानी है।
    ये सरहद  जो हमारी  है ,यही गुरुधाम है यारों,
    मिटे जो देश की   खातिर उन्हें  सम्मान दो प्यारों।
    चलें हम राह पर  उनकी,हमें किस्मत बनानी  है,
    शहीदों  की शहादत की   कहानी भी सुनानी है।
    रखा है   मान वीरों ने    बचायी लाज आँचल की
    दुआ अब दे रही आत्मा, हुई आवाज़ पायल की
    दिलाकर न्याय यूँ उनको हमें कीमत चुकानी है ।
    शहीदों की शहादत की   कहानी भी   सुनानी है।
    नहीं औकात दुश्मन की जो हमको आँख दिखलाये
    रही आदत हमारी है  कि सबका मान   रख    आये ।
    सिखायी शास्त्र ,ग्रंथों ने वही     रीती     निभानी है
    शहीदों की     शहादत       की कहानी भी सुनानी है ।
    सदा दिल की हि सुनते हैं हमें मत आज़माओ तुम
    अगर चुप हैं डराने को न अब भभकी दिखाओ तुम
    यही वो    बात है अपनी जो    दुनियाको दिखानी है
    शहीदों   की शहादत    की कहानी भी  सुनानी है।
                     नीलम सिंह

    शहादत पर कविता

    शहादत की इबादत का,
    यही दस्तूर होता है।
    दिलो मे गर्व भर जाए,
    नयन में नीर होता है।
    मुल्क का मान रखते हैं,
    मौत ईमान रखते हैं।

    जगे जब वीर सीमा पे,
    चैन से देश सोता है।
    छोड़ परिवार सब प्यारे,
    सितारे गगन गिनता है।
    तभी तो हर शहादत पे,
    किसी का चाँद खोता है।

    नमन करते शहादत को,
    शमन आतंक करते है।
    शहीदी मान के खातिर,
    शरीरी तान बोता है।
    मुझे मन हूक उठती है,
    तिरंगे कफन चाहत की।

    मिला ना क्यों मुझे अवसर,
    सोच के लाल रोता है।
    शहीदों की शहादत से,
    यही पैगाम है मिलता।
    मरें तो देश के खातिर,
    जनम क्यों व्यर्थ ढोता है।

    करें अब होंश की बातें,
    दिलों में जोश जग जाएँ।
    का्व्य जो जोश भरता है,
    जोश ही शोक धोता है।

    बाबू लाल शर्मा “बौहरा”

    ज़ख्म भी गहरे भरे हैं

    छोड़ चले प्यारे वतन को ,मेरे वीर जवान है
    ज़ख्म भी गहरे भरे है,दिखते अब निशान है।

    ऐसे धोखे बार बार हम , अकसर खाते रहे हैं
    भारत माँ की आँखों से,आंसू भी आते रहे हैं
    बिखर गए टुकड़े होकर,ऐसा क्यों बलिदान है
    ज़ख्म भी गहरे भरे हैं, दिखते अब निशान है।

    सुनके क्या गुजरी है,मुँह का निवाला छूट गया
    जिनके भी कश्मीर में थे, उनका दिल टूट गया
    आज खबर मैं देखूं कैसे,उनमें अपनी जान है
    ज़ख्म भी गहरे भरे हैं, दिखते अब निशान है।

    एक -एक कतरे पर ,भारत माँ का नाम लिखा
    ओढ़ तिरंगा आये जब,सब देशों में मान दिखा
    अंतिम सांस बचे  तो बोेले ‘मेरा देश महान है’
    ज़ख्म भी  गहरे भरे हैं , दिखते अब निशान है

    चीख निकल गयी माँ की, मूर्छित हो गई बेटी
    तोड़ चूड़ियां दहाड़ मार,पत्नी धरती पर लेटी
    सदमें में परिवार,फिर भी जिन्दा वो हैवान है
    ज़ख्म भी गहरे भरे हैं, दिखते अब निशान हैं।

    मुर्दा बनकर तूआतंकी,किस बिल में सोया है
    मेरे वतन का कोना-कोना,गला फाड़ रोया है
    ढूंढ-ढूंढ मारेगे तुमको,जब तक तन में प्रान है
    ज़ख्म भी गहरे भरे हैं , दिखते अब निशान है।


    ✍–धर्मेन्द्र कुमार सैनी,बांदीकुई

    शहीद बना दो

    वतन पर शहीद हो जाऊँ,
    ऐसा मेरा दिल बना दो ।
    भगत,आजाद,
    या फिर से मुझे बिस्मिल बना दो ।। (1)

    तूफानों से निबाह,
    मेरा बरसों से रहा ।
    अब मुझे किसी कश्ती का,
    शाहिल बना दो ।। (2)

    दुश्मनों के नापाक ईरादे,
    टिक नहीं पाएंगे ।
    बस उनके लिए मुझे,
    बेरहम क़ातिल बना दो ।। (3)

    मातृभूमि के सिवा,
    और कुछ भी याद न रहे ।
    ऐसा कोई देशभक्त,
    मुझे कोई फाज़िल बना दो ।। (4)

    बसंती चोला लिए,
    राख हो जाऊँ इस मुल्क पर ।
    मेरे भी जीवन को,
    तुम किसी काबिल बना दो ।। (5)

    बापू के महान विचार,
    जीवित रहें फ़लक पर ।
    इस धरा की मिट्टी को,
    सदा के लिए दुर्मिल बना दो ।। (6)

    वीरों की शहादत को,
    सुभद्रा सी रोशनाई दूँ ।
    दिनकर,चतुर्वेदी,
    या फिर मुझे धूमिल बना दो ।। (7)

    प्रकाश गुप्ता ‘हमसफ़र’

    कारगिल जंग के वीर

    वतन की हिफाजत के लिए त्याग दिए प्राण।
    तुमने आह!तक नहीं किये त्यागते समय प्राण।।
    सीने पर गोली खा के हो गये देश के लिए शहीद।
    मुख में था मुस्कान गोली खा के भी बोले जय हिंद।।
    मेरे वतन के जांबाज सिपाहियों तुमको शत्-शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों तुमको शत् शत् श्रद्धा सुमन।। 1।।

    धन्य हैं जिसने तुमको आंचल में छुपा कर दुध पीलाई वो माता।
    धन्य है जिसने तुमको हाथ पकड़कर चलना सीखलाया वो पिता।।
    धन्य है जिसने तुमको वीरता की राखी पहनाई वो बहन।
    धन्य है जिसने तुम्हारे लिए सदा जीत की दुआ मांगती वो पत्नी।।
    मेरे वतन के जांबाज सिपाहियों तुमको शत्-शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों तुमको शत् शत् श्रद्धा सुमन।। 2।।

    जब तक रहेगा सुरज-चांद अमर रहेगा तुम्हारा नाम।
    हिंद देश के हिंदुस्तानी कर रहे हैं तुमको बारंबार प्रणाम।।
    मां-बाप के आंखों के तारा भारत माता की सपूत वीर।
    अपने खून से सजाया तुमने भारत माता की तस्वीर।।
    मेरे वतन क जांबाज सिपाहियों तुमको शत्-शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों तुमके शत् शत् श्रद्धा सुमन।। 3।।

    वीर शहीदों भारत मां की सपुत करते हैं तुमपे नाज।
    श्रद्धा सुमन के दो फूल समर्पित करते हैं हम तुम को आज।।
    जिसने बहाया अपना खून – पसीना वो है कितना महान।
    धन्य हुई भारत मां की मिट्टी की रख ली आन बाण शान।।
    मेरे वतन के जांबाज तुमको शत् – शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों तुमको शत् शत् श्रद्धा सुमन।। 4।।

    कर दिए वीरान दुश्मनों ने वो माता-पिता के गुंजते आंगन।
    उजाड़ दिए माथे की सिंदूर इक पतिव्रता नारी की सुहागन।।
    अगल कर दिए भाई-बहन के प्रेम की रक्षा-बंधन से।
    कर दिए अलग वीर सपूत को भारत माँ की दामन से।।
    मेरे वतन के जांबाज सिपाहियों को बारंबार नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों तुमको शत् शत् श्रद्धा सुमन।।5।।

    पुनीत राम सूर्यवंशी “सोनाखान”

    वतन के रखवाले

    सरहद की दुर्गम घाटी चोटी पर,
    नित प्रहरी बन तैनात हैं
    निशि-वासर हिमवर्षा,पावस में
    कर्तव्यनिष्ठ भारत माँ के लाल हैं।

    घर  छोड़ सरहद पर बैठे हैं रणबांकुरे
    देशवासी चैन की नींद सो पाते हैं
    अमन शांति सर्वत्र है हमसे
    निर्भय, निडर परिवेश बनाते हैं।
    मात- पिता परिवार प्रियजन
    सबसे बढ़कर है देश की रक्षा
    बारूद के ढेर पर तोपों से हम
    दुश्मन से करते हैं सुरक्षा।

    जब जब रिपु ने वार किया
    देश की थाती पर प्रहार किया
    बसंती चोला पहन निकले हम
    अरि का भीषण संहार किया।
    आँच न आने देंगे माँ तुझ पर
    प्राणों की बाजी लगा देंगे
    आँख उठाई दुश्मन ने तो
    अस्तित्व जड़ से मिटा देंगे।

    जान हथेली पर लेकर हम
    दुश्मन की ईंट बजाते हैं
    छठी का दूध दिलाकर याद
    भारत माँ का ध्वज़ फहराते हैं।
    वतन के हम रखवाले हैं
    फौलादी सीना ताने मतवाले हैं
    आज़ादी की रक्षा में तत्पर
    शहादत देने वाले हैं।
    आतंकी जेहादी का हम
    सीमा पर ढेर लगाते हैं
    फर्ज़ निभाने की खातिर
    सर पर कफ़न बांध कर चलते हैं।।

    सौभाग्य है हम रखवालों का
    हिफाज़त-ऐ-वतन जीवन बिताते हैं
    मौका-ए-शहादत मिल जाए तो
    तिरंगे में लिपट कर आते हैं।  

    कुसुम लता पुंडोरा

    वतन परस्ती में खुद को

    नाम वतन के अपनी आन और शान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    है हिम्मत तो आगे आओ,
    देशभक्ति का बिगुल बजाओ
    देखो लुटेरा लूट रहा है,
    माँ बहनों की लाज बचाओ
    देख तू खुद को सच से न अंजान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    आज वतन भी ताक रहा है,
    कौन फ़र्ज़ से भाग रहा है
    मातृभूमि की रक्षा के हित,
    कौन हितैषी जाग रहा है
    सबसे पहले अपने वतन का मान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    साम्प्रदायिकता परवान चढ़ रही
    अनैतिकताएं कितनी बढ़ रही
    हिन्दू मुस्लिम राजनीति है
    सब क़ौमें आपस में लड़ रहीं
    बंदे तू तो खुद को हिंदुस्तान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    भिन्न भिन्न परिवेश हो चाहे,
    अलग भाषा और भेस हो चाहे
    जग में हमको एक है रहना
    आपस मे कई भेद हों चाहे
    वीर शहीदों के पूरे अरमान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    वतन की खातिर मरना सीखो
    अपने वतन पर मिटना सीखो
    आंच न इस कि आन पे आए
    इन दावों पर टिकना सीखो
    अपनी पावन माटी का सम्मान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    अपने वतन की बात निराली,
    कहीं ईद और कहीं दीवाली
    रंग बिरंगी परम्परा है
    यहां भजन और वहाँ कव्वाली
    ‘चाहत’ है गीतों में तू यशगान कर
    वतन परस्ती में खुद को कुर्बान कर

    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’

    वतन हमारा है चमन – देश पर दोहे

    वतन हमारा है चमन, भाँति-भाँति के फूल |
    रंग रूप सबसे अलग, “जन-गण-मन” है मूल |

    उर में बसता हिन्द है, बसे तिरंगा नैन |
    जय भारत जय हिन्द की, बसा जीभ पर बैन ||

    तीन रंग का ओढ़कर, आज दुशाला यार |
    देश प्रेम में डूबकर, करते जय जयकार ||

    भारत प्यारा देश है, प्यारे सारे लोग |
    जो जैसा है सोचता, वैसा पाता भोग ||

    सिक्का चित पट से बना, दोंनो हुए विशेष |
    हुए आदमी कुछ बुरे, बुरा नहीं है देश ||

    सुकमोती चौहान रुचि

    आजाद हिन्दुस्तान पर कविता

    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    चारो ओर फैला प्रदूषण, भारत माता कराह रही |
    स्वच्छ भारत अभियान चला,नदियों में भी राह नही |

    प्रकृति से करते खिलवाड़, मन में अब उत्साह नही |
    इस धरा को स्वर्ग बनाने, जय बोलो युवा संतान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |

    चारो ओर आतंक मचा है, दुश्मन गोली बरसाते है |
    भारत माँ के वीर सपूत, सीने पर गोली खाते हैं |
    दोस्ती का हाथ बढ़ाकर,शत्रु को भी अपनाते हैं |
    बहुत वीरगांथाए हैं, जय बोलो बलिदान की |

    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    अणु -परमाणु बना रहे, बना रहे मिसाइल हैं |
     इंटरनेट का जाल बिछा,तरंगो से सब घायल हैं |

    रासायनिक उर्वरको का, प्रयोग करते जाहिल हैं |
    सुधार प्रक्रिया अपनाने को, जय बोलो विज्ञान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |

    राजनीति के गलियारो में, अच्छे नेताओ का टोटा है |
    भ्रष्टाचार मचा हुआ है, हमारा सिक्का खोटा है |
    गरीब मजदूरों के पास, न थाली न लोटा है |
    हिन्दू मुस्लिम भाई -भाई, जय बोलो इंसान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |

    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    शिक्षा व्यवस्था चौपट सब,स्कूल में कौन पढ़ाते है |
    निजी विद्यालय को देखो , शुल्क रोज बढ़ाते है |
    ट्यूशन और फरमानो से, बच्चे बोझ से दब जाते हैं |
    शिक्षा में  गुणवत्ता लाने, जय बोलो शिक्षा मितान की |

    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के किसान की |
    हाहाकार मचा हुआ है,देख  हिमालय की घाटी में |
    वीर सपूत लोहा लेते हैं, रक्त सिंचते है माटी में |

    अर्थव्यवस्था बिगाड़ रहे,यही शत्रु की परिपाटी  में |
    आतंकियो को मार भगाने , जय बोलो जवान की |
    आओ हम बुनियाद रखे, आजाद हिन्दुस्तान की |
    आओ हम जयगान करे, भारत के  किसान की |

    मोहम्मद अलीम

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  • स्वतंत्रता दिवस पर कविता

    स्वतंत्रता दिवस पर कविता

    स्वतंत्रता दिवस पर कविता :- हर वर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता है। सन् 1947 में इसी दिन भारत के निवासियों ने ब्रिटिश शासन से स्‍वतंत्रता प्राप्त की थी। यह भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है। पूरे भारत में अनूठे समर्पण और अपार देशभक्ति की भावना के साथ स्‍वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। देश के प्रथम नागरिक और देश के राष्ट्रपति स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर “राष्ट्र के नाम संबोधन” देते हैं। इसके बाद अगले दिन दिल्‍ली में लाल किले पर तिरंगा झंडा फहराया जाता है, जिसे 21 तोपों की सलामी दी जाती है। इसके बाद प्रधानमंत्री देश को संबोधित करते हैं। आयोजन के बाद स्कूली छात्र तथा राष्ट्रीय कैडेट कोर के सदस्य राष्ट्र गान गाते हैं। लाल किले में आयोजित देशभक्ति से ओतप्रोत इस रंगारंग कार्यक्रम को देश के सार्वजनिक प्रसारण सेवा दूरदर्शन (चैनल) द्वारा देशभर में सजीव (लाइव) प्रसारित किया जाता है। स्वतंत्रता दिवस की संध्या पर राष्ट्रीय राजधानी तथा सभी शासकीय भवनों को रंग बिरंगी विद्युत सज्जा से सजाया जाता है, जो शाम का सबसे आकर्षक आयोजन होता है।

    स्वतंत्रता दिवस पर कविता
    स्वतंत्रता दिवस पर कविता

    स्वतंत्रता दिवस पर कविता

    स्वतंत्रता की मुस्कान

    दो सौ वर्षों की गुलामी के बाद,
    हमारा भारत देश हुआ आजाद।
    गांधी – भगतसिंह थे जैसे वीर,
    कोई था गरीब कोई था अमीर।
    देश की आजादी के लिए भारतीय हुए कुर्बान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    अंग्रेजी अधिकारीयों की तानाशाही,
    हिन्दुस्तान पर जुल्म का कहर ढाई।
    चारों तरफ था अन्याय – अत्याचार,
    हिंसा से करते गोरे हुकूमत का प्रचार।
    देश की आजादी के लिए लोगों ने दी बलिदान।
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    लक्ष्मीबाई- दुर्गावती जैसी नारी – शक्ति,
    लोगों को सिखाया देश-प्रेम की भक्ति।
    सुभाषचंद्र बोस चंद्रशेखर की ऐसी थी कहानी,
    नाम सुनकर कांपते अंग्रेज और मांगते थे पानी।
    आजादी के लिए लाचार था भारत का इंसान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    संघर्ष को आगे बढ़ाए स्वतंत्रता – सेनानी,
    हो गए शहीद लेकिन कभी हार न मानी।
    मंगल पांडे खुदीराम बोस का था श्रेष्ठ योगदान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    संघर्ष – बलिदान है आजादी का सूत्र,
    कई स्त्रियों ने गंँवाई वीर भाई – पुत्र।
    हमें आजादी मिली है कई संघर्षों के बाद,
    मेरे देश वासियों इसे रखना तुम आबाद।
    सभी महापुरुषों का मैं करूं सहृदय गुणगान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    15 अगस्त को लहराओ शान से तिरंगा,
    न करो हिन्दुस्तान में धार्मिक द्वेष – दंगा।
    हिन्दू-मुस्लिम और सिख – ईसाई,
    हम आपस में हैं सब भाई – भाई।
    परोपकार से तुम भी बनालो अपनी पहचान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।

    अकिल खान

    यूं ही नहीं ये तिरंगा महान है

    यूं ही नहीं ये तिरंगा महान है।
    यही तो मेरे देश की पहचान है।
    हो गए कितने ही प्राण न्यौछावर इसके सम्मान में,
    आज भी इस तिरंगे के लिए सबकी एक हथेली पर जान है।
    मेरे दिलो जिस्मों जान से ये सदा आती है,
    ये तिरंगा ही तो मेरा ईमान है।
    मिट गए देश के खातिर कैसे -कैसे देश भगत यहाँ,
    गांधी,तिलक,सुभाष व जवाहर जैसे फूल इस तिरंगे की पहचान है।
    भूला नहीं सकता कभी ये देश इन वीर जवानों को,
    भगत सिंह,राज गुरु,सुखदेव जैसे वीर जवान इस तिरंगे के लिए हुए कुर्बान है।
    घटा अमृत बरसाती है , फिज़ा गीत सुनाती है, धरा हरियाली बिछाती है,
    कई रंग कई मज़हब के होकर भी सबके हाथो में,

    एक ही तिरंगा और सबकी ज़ुबान पर एक ही गान है।
    उत्साह की लहर शांति की धारा बहाती है नदियां,
    हम भारतीय की पहचान बताती ये धरती सुनहरी नीला आसमान है।
    करते है वतन से मुहब्बत कितनी ना पूछो हम दीवानों से,
    वतन के नाम पर सौ जान भी कुर्बान है।
    एक ही तिरंगे के साये में कई तरह के फूल खिलते व खुशबू महकती है,
    रंग,नस्ल, जात, मज़हब भिन्न- भिन्न होकर भी एक ही धरा के हम बागबान है।
    लिखी जाती है मुहब्बत की कहानियां पूरी दुनिया में,
    मगर मुहब्बत का अजूबा ताज को बताकर मिलता हिंदुस्तान को स्वाभिमान है।
    ज़मी तो इस दुनिया में बहुत है पैदा होने के लिए,
    “तबरेज़” तू खुशनसीब है जिस ज़मी पर पैदा हुआ वो हिंदुस्तान है।

    तबरेज़ अहमद
    बदरपुर नई दिल्ली

    लहराता तिरंगा बजता राष्ट्रीय गान

     

    कहीं लहराता तिरंगा
    बजता राष्ट्रीय गान कहीं
    कहीं कहीं देश के नारे
    शहीदों का सम्मान कहीं

    पूजा थाली दीप सजाकर
    चली देश की ललनाएँ!!
    भैया द्वारे सूत खोलकर
    रक्षा की ले रही दुआएँ।।

    रंग बिरंगी सजी थी राखी
    भीड़ लगी थी बाजारों में! 
    खिली खिली देश की गली
    दो दो पावन त्यौहारों मे! 

    दोनों प्रहरी  इस  मिट्टी के
    संजोग ये कैसा आज है आई? 
    इधर बहन की रक्षक बैठे
    उधर सीमा पर सैनिक भाई!

    जाता सावन दुख भी देता
    फिर न मिलेगा ऐसा रूप! 
    पल न बीते भादों आता
    ऐसा इनका जोड़ी अनूप!!

    गोल थाल सी निकली चंदा
    सावन पुन्नी अति मनभावन! 
    शिवशंकर का नमन करे सब
    बम बम भोले मंत्र है पावन! 

    शाम सबेरे दिन भर आनंद
    लो फिर आ गयी है रात! 
    वत्स कहे शुभ रात्रि सभी को
    राम लला को नवाकर माथ!

                – राजेश पान्डेय वत्स

    तिरंगा हाथ में ले काफिला जब गुजरता है

    तिरंगा हाथ में ले काफिला जब – जब गुजरता है ।
    जवानी जोश जलवा देख शत्रु का दिल मचलता है।।

    कसम है हिन्दुस्तां की जां निछावर फिर करेंगे हम,
    नज़र कोई दिखा दे तो लहू रग – रग उबलता है ।

    महक सोंधी मिट्टी की जमीं मेरी सदा महकाये ,
    सलामत खूब हिन्दोस्तां रहे झिल-मिल चमकता है।

    जरूरत यदि पड़े तो सर कटा दें देश की खातिर ,
    जवां इस देश पर कुरबान होने को तरसता है ।

    अमन का ताज भारत पे खिले हरदम दुआ करते ,
    तिरंगे फूल से आजाद गुलशन अब महकता है।

    दुआ हो गर खुदा का हम जनम हर बार लेंगे अब ,
    झुकाते शीष हम आशीष हरदम ही झलकता है ।

    कहे दिल से “धरा” भी ,फ़क्र करते हैं वतन पर हम ,
    तिरंगा हिन्द का अब चाँद पर भी फहरता है।

    धनेश्वरी देवांगन धरा
    रायगढ़ छत्तीसगढ़

    राष्ट्रीय पर्व पर कविता

    तीन रंगों का मैं रखवाला खुशहाल भारत देश हो।
    मेरी भावनाओं को सब समझें ऐसा यह सन्देश हो।

    जब-जब होता छलनी मेरा सीना मैं भी अनवरत रोता हूँ ।
    मेरे दिल की तो समझो मैं भी कातर और ग़मज़दा होता हूँ।
    सब के मन को निर्मल कर दो प्यार का समावेश हो।
    मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो।
    तीन रंगों का मैं ….

    जब मेरी खातिर लड़ते-लड़ते मेरे सपूत शहीद हो जाते हैं |
    मेरी ही गोद में सिमटकर वे सब मेरे ही गले लग जाते हैं।
    बोझिल मन से ही सही उन्हें सहलाऊँ ऐसा मेरा साहस हो।
    मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो।
    तीन रंगों का मैं ….

    जाकर उस माता से पूछो जिसने अपना लाल गँवाया है।
    निर्जीव देह देखकर कहती  मैंने एक और क्यों न जाया है |
    तेरे जैसी वीरांगनाओं से ही देश का उन्नत भाल हो।
    मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो।
    तीन रंगों का मैं ….

    मेरे प्यारे देश को शूरवीरों की आवश्यकता, अनवरत रहती है ।
    उन प्रहरियों की सजगता के  कारण ही, सुरक्षित रहती धरती है ।
    आ तुझे गले लगाऊँ, तुझ पर अर्पण सकल आशीर्वाद हों ।
    मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो।
    तीन रंगों का मैं ….

    मैं भी सोचा करता हूँ पर इस व्यथा को किसे सुनाऊँ मैं।
    छलनी होता मेरा सीना अपनी यह पीड़ा किसे दिखाऊँ मैं।
    देश की खातिर देह उत्सर्ग हो यही सबका अंतिम  प्रण हो।
    मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो।
    तीन रंगों का मैं ….

    श्रीमती वैष्णो खत्री
    (मध्य प्रदेश)

    *पुलवामा हमले में शहीद  को अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि

    आतंकी हमले की निंदा करके ये रह जाएंगे।
    और शहीदों की अर्थी पर पुष्प चढ़ाकर आएंगे।।

    इससे ज्यादा कुछ नहीं करते ये भारत के नेता हैं।
    आज देश का बच्चा-बच्चा इन को गाली देता है।।

    सीमा पार से आतंकी कैसे हमले कर जाते हैं?
    दिनदहाड़े देश के 40 जवान मर जाते हैं।।

    सत्ता के सत्ताधारी अब थोड़ी सी तो शर्म करो।
    एक-एक आतंकी को चुनकर के फांसी पे टांक धरो।।

    घटना सुनकर के हमले की दिल मेरा थर्राया है।
    सोया शेर भी आज गुफा से देखो कैसे गुर्राया है?

    सैनिक की रक्षा हेतु अब कदम बढ़ाना ही होगा।
    संविधान परिवर्तित कर कानून बनाना ही होगा।।

    कितनी बहिनें विधवा हो गई और कितनों का प्यार गया।
    उस माँ पर क्या बीती होगी जिसका फूलों सा हार गया।।

    जितने हुए शहीद देशहित उनको वंदन करता हूं।
    उनके ही चरणों में मैं अपने शीश को धरता हूँ।।

    दे दी हमें आजादी पर कविता

    दे  दी  हमें  आजादी  तो ,
    भुला   देंगे  क्या  उनको l
    रहने  को न  मिला चैन से,
    हिन्दोस्तां   में   जिनको ll

    खाईं जिन्होंने गोलियाँ ,
    अनाज    के    बदले I
    हँस   फाँसी  स्वीकारी ,
    सुख – चैन  के बदले ll


    गिल्ली , मैच , ताँश न भायी ,
    खेल    किया   बन्दूक   से l
    दुश्मन  मुक्त  कराया  भारत ,
    खून  किया  जब  खून  से ll

    पड़ा मूलधन ब्याज चुकी न ,
    नमन    करें    हम   उनको l
    रहने  को  न  मिला  चैन से ,
    हिन्दोस्तां      में    जिनको ll

    जरा निकलकर बाहर आओ ,
    अपनी    इस    तस्वीर   से  I
    उस भारत  को  फिर से देखो ,
    सींचा  जिसको  खूँ – नीर से ll


    नशा  भयंकर  बिना  मधु  के ,
    आजादी       के       खातिर l
    कभी नींद औ भूख लगी न ,
    राष्ट्र   भक्ति    के      शातिर ll

    आओ ‘माधव’ तुम्हें  बुलाता ,
    नत    मस्तक  है      उनको l
    रहने  को  न  मिला  चैन  से ,
    हिन्दोस्तां     में    जिनको  Il

    सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव”

    मेरा देश महान

    मेरा देश महान भैया !
    मेरा देश महान ।।
    सिर पर मुकुट हिमालय का है
    पावँ पखारे सागर

    पश्चिम आशीर्वाद जताता
    पूरब राधा  नागर
    हर पनघट से
    रुन झुन छिड़ती
    मधुर मुरलिया तान ।।

    नदिया झरने हर दम इसके
    कल कल सुर में गावे
    कनक कामिनी वनस्पति भी
    खिल खिल कर इठलावे

    हर समीर हो
    सुरभित महके
    बिखरे जान सुजान ।।

    इसकी हर नारी सावित्री
    हर बाला इक राधा
    नूतन अर्चन के छन्दों पर
    साँस साँस को साधा

    प्रेम से पूजते
    मानव पत्थर
    बन जाते भगवान ।।

    इसकी योगिक शक्ति को
    हर देश विदेश सराहावे
    इसकी संस्कृति को देखो
    झुक झुक शीश नवावे

    जन गण मन का
    भाग्य विधाता
    गए तिरँगा गान ।।

    रीति रिवाज अलग हैं  इसके
    अलग अलग हैँ भाषा
    भारतवासी कहलाने की
    किन्तु एक परिभाषा

    मिल जुल कर
    खेतों में काटती
    मक्का गेहूँ धान ।।

    घायल की गति घायल जाने
    मीरा कहे दीवानी
    चुनरी का दाग छुड़ाऊँ कैसे

    खरी कबीर की बानी
    मेरो मन कहाँ सुख पावे
    सही सूर का बान ।।

    चहल पहल शहरों में इसके
    गाँवो में भोलापन
    जंगल मे नव जीवन इसके

    बस्ती में कोलाहल
    कण कण में
    आकर्षण इसके
    हर मन मे एक आन ।।

    सुशीला जोशी
    मुजफ्फरनगर

    सबसे बढ़कर देशप्रेम है

    प्रेम की वंशी, प्रेम की वीणा।
    प्रेम गंगा है……प्रेम यमुना ।।

    प्रेम धरा की मधुर भावना।
    प्रेम तपस्या,प्रेम साधना ।।

    प्रेम शब्द है,प्रेम ग्रंथ है ।
    प्रेम परम् है,प्रेम अनंत है।।

    प्रेम अलख है,प्रेम निरंजन ।
    प्रेम ही अंजन,प्रेम ही कंचन।।

    प्रेम लवण है , प्रेम खीर है ।
    प्रेम आनंद औ’प्रेम ही पीर है।।

    प्रेम बिंदु है,प्रेम सिंधु है ।
    प्रेम ही प्यास,प्रेम अंबु है।।

    प्रेम दुःखदायी,प्रेम सहारा ।
    प्रेम में डूबो.. मिले किनारा ।।

    प्रेम धरा की मधुर आस है ।
    प्रेम सृजन है,प्रेम नाश है ।।

    प्रेम मानव को ‘मानव’ बनाता ।
    प्रेम शिला में.. ईश्वर दिखाता ।।

    प्रेम दया है,प्रेम भाईचारा।
    प्रेम स्नेही….प्रेम दुलारा ।।

    प्रेम प्रसून है,प्रेम गुलिस्तां ।
    प्रेम से बनता पूरा हिंदोस्ताँ ।।

    जित देखिए प्रेम ही प्रेम है
    पर सबसे बढ़कर देशप्रेम है ।।

    निमाई प्रधान ‘क्षितिज’

    प्राणों से प्रिय स्वतंत्रता….

    शहीदों के त्याग,तप की अमरता
    हमें प्राणों से प्रिय है स्वतंत्रता!
    धमकी से ना हथियारों से,
    हमलों से अत्याचारों से,
    न डरेंगे,न झुकेंगे राणा की संतान हैं
    विजयी विश्व तिरंगा हमारी,
    आन, बान, शान हैं!
    अगणित बलिदानों से,
    अर्जित है स्वतंत्रता
    हमें प्राणों से…….
    नफरतों की आग से,फूंकते रहो बस्तियां,
    अफवाहों से,भय से बढ़ाते रहो दूरियां,
    गीता,कुरान संग पढ़ेंगे,
    मंदिर-मस्जिद दिलों में रहेंगे,
    सीने पर जुल्म की,
    चलाते रहो बर्छियां,
    अश्रु,स्वेद रक्त सिंचित स्वतंत्रता,
    हमें प्राणों से……
    पैगाम अमन के देती रहूंगी,
    हर रोज संकल्प ये लेती रहूंगी,
    लहू से गीत आजादी के,
    वन्देमातरम लिखती रहूंगी,
    किसी कीमत पर स्वीकार नहीं परतंत्रता,
    हमें प्राणों से प्रिय है स्वतंत्रता….


    डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’
    अम्बिकापुर, सरगुजा(छ. ग.)

    मेरा देश सिखाता है

    हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख ईसाई,
    हर मजहब से नाता है।
    सब धर्मों की इज्ज़त करना,
    मेरा देश सिखाता है।

    इक दूजे के बिना अधूरे,
    हिन्दू मुस्लिम रहते हैं।
    खुद को मिलकर के बड़े,
    गर्व से हिन्दुस्तानी कहते हैं ।
    दीवाली में अली जहां हैं,
    शब्द राम का रमजानों में आता है
    सब धर्मों की इज्ज़त करना,
    मेरा देश सिखाता है।

    आजादी में की लड़ी लड़ाई ,
    हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख ईसाई ने।
    सीने पर गोली खायीं हर,
    मजहब की तरुणाई ने ।
    आजादी का श्रेय देश में,
    हर मजहब को जाता है।
    सब धर्मों की इज्ज़त करना,
    मेरा देश सिखाता है।

    हिन्दू मस्जिद जाता है,
    मुस्लिम भी मंदिर जाते है।
    भारतवासी होने के ,
    मिलकर संबंध निभाते हैं।
    हमको एक देखकर के,
    दुश्मन भी भय खाता है
    सब धर्मों की इज्ज़त करना,
    मेरा देश सिखाता है।  
                             रचयिता
                            किशनू झा

    आज तिरंगा लहरायेगा

    आज तिरंगा लहरायेगा
    आजादी की शान।
    इसके नीचे पूरे होंगे
    दिल के सब अरमान।
    जय जय हिन्दुस्तान।
    जय जय वीर  जवान।।

    हुई गुलामी सहन नहीं तब,
    फूँक शंख आजादी का।
    अलख जगी भारत मे घर-घर,
    खून खौल गया वीरों का।
    सिर पर कफन बाँध कर निकले
    होने को बलिदान।

    आज…..।
    इस….।
    जय…..।जय….।

    वीर सावरकर ,तात्या टोपे,
    झाँसी की लक्ष्मी बाई।
    भगत सिंह आजाद वीर ने
    दुश्मन को ललकार लगाई।
    आजादी के महायज्ञ में
    हुए सभी बलिदान।।

    आज….।इस…।
    जय…।जय…।

    भारत के कोने-कोने में,
    जंग छिड़ी आजादी की।
    छोड़े घर -परिवार  रिश्ते,
    राह  चले आजदी की।
    सभी एक मंजिल के राही
    हिन्दू मुसलमान।।

    आज…..।इस…।
    जय…।जय…।

    अनमोल अपनी आजादी,
    बच्चों! तुम रखवाली करना।
    जाति धर्म का भेद भुलाकर,
    सदा एक होकर रहना।
    यही एकता देगी जग में
    भारत को पहचान।।

    आज….।इस….।
    जय….।जय….।

    पुष्पाशर्मा”कुसुम”

    वह भारत देश हमारा है


    जहाँ तिरंगा लहराता,
    मंदिर मस्जिद गुरुद्बारा है,
    वह भारत देश हमारा है ••••


    उत्तर में गिरिराज हिमालय
    दक्षिण सागर लहराते ,
    राम कृष्ण गौतम गाँधी की,
    दसों दिशा गाथा गाते ,
    अविरल बहती जिस छाती में
    माँ गंगा की धारा है ,
    वह भारत देश हमारा है!


    भेदभाव है नहीं जहाँ पर
    सब जिसको माँ कहते हैं,
    एक डोर मन बँधे जहाँ पर
    जय भारत सब कहते हैं ,
    प्रेम शाँति “गणतंत्र” हमारा
    दिया विश्व को नारा है,
    वह भारत देश हमारा है


    वेद पुराण बसे कण-कण में
    विश्व गुरु कहलाता है,
    योग ज्ञान सारी दुनियाँ को
    जो भारत सिखलाता है,
    मानवता ही सत्य धर्म है
    जो भारत सिखलाता है
    फैला है जिस देश से”नीलम”
    आज यहाँ उजियारा है,
    वह भारत देश हमारा है!!
                  नीलम सोनी
             सीतापुर,सरगुजा (छत्तीसगढ़)

    हिन्दूस्तां वतन है

    हिन्दूस्तां वतन है, अपना जहां यही है।
    यह आशियाना अपना, जन्नत से कम नहीं है।
    उत्तर में खड़ा हिमालय, रक्षा
    में रहता तत्पर।

    चरणों को धो रहा है, दक्षिण
    बसा सुधाकर।
    मलयागिरि की शीतल, समीर बह रही है।
    हिन्दू स्तां…।यह….।

    फल -फूल से लदे, तरुओं की शोभा न्यारी,
    महकी  हुई है ,प्यारी केसर की खिलती क्यारी।
    कलरव पखेरुओं का, तितली उछल रही है।
    हिन्दू स्तां….।यह…।

    अनमोल खजानों से ,वसुधा
    भरी है सारी।
    खेतों मे  बिखरा सोना, होती
    है फसलें सारी।
    ये लहलहाती फसलें, खुशियाँ लुटा रही है।
    हिन्दू स्तां …।यह…।

    मिट्टी में इसकी हम सब, पलकर बड़े हुये हैं।
    आने न आँच देंगे, ऐसा ही प्रण लिये हैं।
    मिट जायें हम वतन पर,
    तमन्ना यह रही है।

    हिन्दू स्तां वतन है, अपना जहां यही है।
    यह आशियाना अपना,
    जन्नत से कम नहीं है।

    पुष्पा शर्मा ” कुसुम’

    तिरंगे की शान पर कविता

    सिर्फ तिरंगा फहराने से,
    बढ़ेगी कैसे हमारी शान।
    जिन्होंने दी है कुर्बानियाँ,
    उनका करें सदा सम्मान।।

    फले-फूले परिवार उनके,
    जो देश के लिए कुर्बान।
    पूरा समाज शिक्षित बने,
    सबके हों पूरे अरमान।।

    प्रगति पथ पर बढ़ते रहें,
    पूरी दुनिया में पहचान।
    विज्ञान फलित होता रहे,
    मिले ज्ञान को सम्मान।।

    हक बराबर सबको मिले,
    सबके लिए ये संविधान।
    ना जाति ना वर्गभेद रहे,
    हो अधिकार एक समान।।

    मधु राजेंद्र सिंघी

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    होली पर कविता

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    होली पर कविता

    होली पर कविता होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। प्राचीन काल में लोग चन्दन और गुलाल से ही होली खेलते थे। समय के साथ इनमें भी बदलाव देखने को मिला है। कई लोगों द्वारा प्राकृतिक रंगों का भी उपयोग किया जा रहा है, जिससे त्वचा या आँखों पर किसी भी प्रकार का कुप्रभाव न पड़े। टीवी9 भारतवर्ष द्वारा घर पर होली के रंग बनाने एवं रासायनिक रंगों से दूर रहने की सलाह दी गई है।

    होली पर कविता

    होली पर कविता

    होली की छाई है गजब की खुमारी
    लाल लाल दिखे सब नर नारी.

    देवरजी ने हरा रंग डाला
    ननदजी ने पीला रंग डाला
    जीजाजी ने गुलाबी रंग डाला
    सिंदूरी रंग पे हाय ये दिल हारा
    होहह पियाजी का रंग सब पे है भारी
    होली की छाई है गजब खुमारी
    लाल लाल…..

    पीकर भांग नागिन सी हुई चाल
    रंग बिरंगे रंगरसिया लगे सबके गाल
    विदेशिया लगे स्टाइल इन्द्रधनुषी बाल
    बुढ़े लगाते ठुमके ताल में दे ताल
    होहह रंग उड़े फूल बरसे फूलवारी
    होली की छाई है ….
    लाल लाल….

    गर्म गर्म बड़ा पकोड़े टमाटर की चटनी
    गिलास गिलास ठंढ़ाई पापड़ी की चखनी
    मीठी मीठी गुझिंया ,चीनी की चाशनी
    खट्टी मिट्ठी नमकीन लगती हो सजनी
    होहह इस बार की होली है बड़ी करारी
    होली की छाई है…
    लाल…..

    ✍ सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

    होली आई रे

    होली आई रे, आई रे, होली आई रे !

    तन-मन में उमंग भर लाई रे !

    रंग बरस रहा है, रस बरस रहा,

    जन-मन का मगन मन हरष रहा,

    नव रंगों के कलश भर लाई रे !

    नवनीत-से गाल, गुलाल-भरे,

    गोरी झांक रही खिड़की से परे,

    चोरी-चोरी से नजर टकराई रे !

    रण-भूमि में रंग बसंत का था,

    पथ तेरा सिपहिया अनंत का था,

    तुझे मिली विजय सुखदाई रे !

    हवन करें, पापों

    o आचार्य मायाराम ‘पतंग’

    हवन करें, पापों तापों को, देशप्रेम ज्वाला में ।

    कपट, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, भूले स्नेहिल हाला में ॥

    शीतजनित आलस्य त्यागकर, सब समाज उठ जाए।

    यह मदमाती पवन आज तन-मन में जोश जगाए ।

    थिरक उठें पग सभी जनों के मिलकर रंगशाला में ।

    कपट, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, भूले स्नेहिल हाला में ॥

    भाषा और प्रांत भेदों की हवा न हम गरमाएँ ।

    छूआछूत की सड़ी गंध से, मुक्त आज हो जाएँ।

    पंथ, जाति का तजकर अंतर, मिलें एक माला में ।

    कपट, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, भूले स्नेहिल हाला में ॥

    भारत भू के कण-कण में, धन प्रेमसुधा बरसाएँ ।

    गौरवशाली राष्ट्र परम वैभव तक हम ले जाएँ ।

    मिट जाए दारिद्र्य, विषमता, परिश्रम की ज्वाला में।

    कपट, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, भूले स्नेहिल हाला में ।

    हवन करें पापों तापों को, देशप्रेम ज्वाला में ॥

    बह चली बसंती वात री।

    बह चली बसंती वात री।
    मह मह महक उठी सब वादी
    खिल उठी चांदनी रात री।

    सब रंग-रंग में रंग उठे
    भर अंग अंग में रंग उठे
    रग रग में रंग लिए सबने
    उड़ उठा गगन में फाग री।

    हो होकर हो-ली होली में
    प्रिय प्यार लुटाते टोली में
    मैं प्रेम रंग में रंग उठी
    चल पड़ी प्रिय के साथ री।

    ये लाल गुलाबी रंग हरे
    कर दे जीवन को हरे-भरे
    जीवन खुशियों से भर जाए
    लेके हाथों में हाथ री।

    आओ कुछ मीठा हो जाए
    अपनेपन में हम खो जाए
    बजे तान,तन- मन में तक- धिन
    गा गाकर झूमे गात री।

    हर दिन हो होली का उमंग
    चढ़ जाए सारे प्रेम रंग
    जल जाए जीवन की चिंता
    हो जाए तन मन साफ री।

    जीवन के रंग पर रंग चढ़े

    सबके मन में सौहार्द बढ़े
    प्रेम रंग चढ़ जाए इते कि
    मिट जाए मन की घात री।

    रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी

    अपनी जिंदगी की शानदार  होली

    होली तो बहाना है – मनीभाई

    पिया से मिलने जाना है।
    ओ….हो..हो….
    पिया से मिलने जाना है।
    होली तो…बहाना है।
    सबसे हसीन… सबसे जुदा
    उससे  रिश्ता …बनाना है।
    पिया से मिलने जाना है…

    हाथों में तेरे….चुड़िया छन छन बजे।
    पैरों में तेरे …पायलिया छम छम बजे।
    रंग लगाके उसके गालों में…
    और भी सजाना है।
    होली तो…. बहाना है।
    पिया से मिलने जाना है।

    हरा गुलाबी…. लाल लगाऊंगा।
    अपने हाथों से…. गुलाल लगाऊँगा
    आंचल में उसके.. प्यार भीगाके
    गले से उसे लगाना है।
    होली तो … बहाना है।
    पिया से मिलने जाना है।

    मेरे प्यार में आज  …. वो रंग जायेगी
    मुझे गले लगाके …नहीं भूल पायेगी।
    फागुन का महीना …प्रेम का महीना
    प्रेम जताने में क्या शरमाना है?
    होली तो….बहाना है।
    पिया से मिलने जाना है।

    होली के रंग है हजार,खिल जाये होठों में बहार।
    यारा मेरे दिलदार,तुझ संग मिला मुझे प्यार॥

    ये हमारी मस्तानी टोली,मीठी बोली,सूरतिया भोली।
    लोगों को मिलाये ऐसी होली,पानी ने रंग को जैसे घोली।

    होली के रंग में डुबा संसार,होली के रंग है हजार।
    होली के रंग है हजार,खिल जाये होठों में बहार॥1॥

    क्या जमीं के रंग?क्या आसमाँ के रंग?
    मिल गया दोनों के रंग, आज होली के संग।

    कोई ना बचा आज लाचार, होली के रंग है हजार।
    होली के रंग है हजार,खिल जाये होठों में बहार॥2॥

    हम पिया के दीवाने,कौन -सा रंग दें ना जानें।
    सारा तन रंग से गीला, फिर भी दिल ना मानें।

    होली है रंग की बौछार, होली के रंग है हजार।
    होली के रंग है हजार,खिल जाये होठों में बहार॥3॥

    मनीभाई पटेल नवरत्न

    होली पर्व पर कविता

    दिया संस्कृति ने हमें,अति उत्तम उपहार,
    इन्द्रधनुष सपने सजे,रंगों का त्यौहार।1।

    नव पलाश के फूल ज्यों,सुन्दर गोरे अंग,
    ढ़ोल-मंजीरा थाप पर,थिरके बाल-अनंग।2।

    मलयज को ले अंक में,उड़े अबीर-गुलाल,
    पन्थ नवोढ़ा देखती,हिय में शूल मलाल।3।

    कसक पिया के मिलन की,सजनी अति बेहाल,
    सराबोर रंग से करे,मसले गोरे गाल।4।

    लुक-छिप बॉहों में भरे,धरे होंठ पर होंठ,
    ऑखों की मस्ती लगे,जैसे सूखी सोंठ।5।

    बरजोरी करने लगे,गॉव गली के लोग,
    कली चूम कहता भ्रमर,सुखदाई यह रोग।6।

    झर-झर पत्ते झर रहे,पवन बहे इठलाय,
    सुधि में बंशी नेह की,अंग-अंग इतराय।7।

    तरुणाई जलने लगी,देखि काम के बाण,
    बिरहन को नागिन डसे,प्रियतम देंगे त्राण।8।

    पत्तों के झुरमुट छिपी,कोयल आग लगाय,
    है निदान क्या प्रेम का,कोई मुझे बताय।9।

    ऋद्धि-सिद्धि कारक बने,ऊॅच-नीच का नाश,
    अंग-अंग फड़कन लगें,पल-पल नव उल्लास।10।

    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,

    falgun mahina
    फागुन महिना पर हिंदी कविता

    होली के रंग कविता- आरती सिंह

    लाल रंग हो अधीर,सज्जित होकर अबीर,
    निकले हैं आज कंचन काया को सजाने |

    हरे-नील रंग चले, लेकर उमंग चले
    आज मधुर बेला में सबको रिझाने |

    चाहे कोई अमीर होवे या फिर फ़क़ीर
    रंग सभी को लगे हैं एक सा रंगाने |

    प्रेमी हो, मित्र चाहे, बैरी हो या हो बंधु
    रंग सभी को लगे हैं एक कर मिलाने |

    आज कोई मूढ़ नहीं, ना कोई सयाना है
    एक जैसे चेहरे लगा आईना बताने |

    प्रेम रंग डूबे सब, भूल गए ज़ात-पाँत
    ईश्वर के पुत्र लगे ईश को मानाने |

    कान्हा ने राधा संग, खेले होली के रंग
    त्रिभुवन को भक्ति प्रेम रस में डुबाने |

    आरती सिंह

    रंगों की बहार होली कविता

    रंगों की बहार होली, खुशियों की बहार होली
    अल्हड़ों का खुमार होली, बचपन का श्रृंगार होली

    होली के रंगों में भीगें , आपस का प्यार होली
    रिश्तों की जान होली, दिलों का अरमान होली

    प्रेयसी का श्रृंगार होली, प्रियतम का प्यार होली
    अंग – अंग खुशबू से महकें , प्रेम का इजहार होली

    सैयां की बैंयां का हार होली, अरमानों का आगाज़ होली
    आशिकों का प्यार होली, मुहब्बत का इजहार होली

    गुलाल से रोशन हो आशियाँ, दिलों में पलता प्यार होली
    कभी पिया का इन्तजार होली, कहीं खिलती बहार होली

    कहीं इश्क़ का इजहार होली, कहीं नफरत पर वार होली
    खुदा की इबादत होली, खुदा पर एतबार होली

    पालते जो दिलों में मुहब्बत , उन पर निसार होली
    उम्मीदों का ताज होली, रिश्तों का रिवाज होली

    कुदरत का करिश्मा होली, प्रकृति का प्यार होली
    प्यार की जागीर होली, ख्वाहिशों का संसार होली

    रंगों की बहार होली, खुशियों की बहार होली
    अल्हड़ों का खुमार होली, बचपन का श्रृंगार होली

    होली के रंगों में भीगें , आपस का प्यार होली
    रिश्तों की जान होली, दिलों का अरमान होली

    मौलिक रचना –

    अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    होली पर कविता – रचना चेतन

    रंग, गुलाल, अबीर लिए, हर बार है होली आती
    लेकिन सुनो इस बार की होली, होगी बड़ी निराली ।।

    पिचकारी, गुब्बारे, रंग, उमंग और उत्साह
    एक नई तरंग लिए, ये होली होगी कुछ खास ।।

    रंग उड़े, गुलाल उड़े, पर रहना होगा सावधान
    अपने संग अपनों की सेहत का, रखना होगा ध्यान ।।

    कोरोना का खतरा टला नहीं है, अतः बनी रहे दो गज दूरी
    गुजिया, नमकीन का स्वाद बढ़े, पर मास्क बहुत जरूरी ।।

    सड़कों, चौबारों, मैदानों में हर साल, रंग बहुत उड़ाये
    सबकी सुरक्षा के लिए इस बार, चलो होली घर में मनाएँ ।।

    सेहत और खुशियों से भरी रहे, सब लोगों कि झोली
    एक नया संदेश लिए, देखो आई है ये होली ।।

    रचना चेतन

    हमारी होली – आशीष बर्डे

    रंगो में तु रंग मिलाकर
    रंगीन हो जा स्वयं को रंगकर

    आग लगाओं क्रोध को
    भस्म कर दो मोह को
    छोड़ के बेरंग दुनिया को
    आनंद में रंग दो तन मन को

    रंगो में तु रंग मिलाकर
    रंगीन हो जा स्वयं को रंगकर

    खुशीयो का रंग चडाकर
    दुखो का चोला छोड़कर
    उल्लास में स्वयं भिगकर
    हर्षित कर दो जन जन को

    रंगो में तु रंग मिलाकर
    रंगीन हो जा स्वयं को रंगकर

    स्वभाव कर लो अमृतमयी
    बैराग चोड़कर दूर कही
    हर जीव्हा को मिष्ठान से भरकर

    आशीष बर्डे (khumen)

    होली – एक प्रेमी की नज़र से (आझाद अशरफ माद्रे)

    शीर्षक : होली-एक प्रेमी की नज़र से
    रंगों में रंग जब कभी मिलते है,
    चेहरे फुलों की तरह खिलते है।

    जान पहचान की ज़रूरत नही,
    होली में दिल दिल से मिलते है।

    होली में काश दोनों मिल जाए,
    कितने अरमान दिल में पलते है।

    रूठकर प्रेमी नही खेलते होली,
    बाद में हाथों को अपने मलते है।

    जाने अनजाने में वो मुझे रंग दे,
    आज़ाद उनकी गली में चलते है।

    आझाद अशरफ माद्रे

    भटके हुए रंगों की होली – राकेश सक्सेना

    आज होली जल रही है मानवता के ढेर में।
    जनमानस भी भड़क रहा नासमझी के फेर में,
    हरे लाल पीले की अनजानी सी दौड़ है।
    देश के प्यारे रंगों में न जाने कैसी होड़ है।।

    रंगों में ही भंग मिली है नशा सभी को हो रहा।
    हंसी खुशी की होली में अपना अपनों को खो रहा,
    नशे नशे के नशे में रंगों का खून हो रहा।
    इसी नशे के नशे में भाईपना भी खो रहा।।

    रंग, रंग का ही दुश्मन ना जाने कब हो गया।
    सबका मालिक ऊपरवाला देख नादानी रो गया,
    कैसे बेरंग महफिल में रंगीन होली मनाएंगे।
    कैसे सब मिलबांट कर बुराई की होली जलाऐंगे।।

    देश के प्यारे रंगों से अपील विनम्र मैं करता हूँ।
    धरती के प्यारे रंगों को प्रणाम झुक झुक करता हूँ
    अफवाहों, बहकावों से रंगों को ना बदनाम करो,
    जिसने बनाई दुनियां रंगों की उसका तुम सम्मान करो।।

    हरा, लाल, पीला, केसरिया रंगों की अपनी पहचान है।
    इन्द्रधनुषी रंगों सा भारत देश महान है,
    मुबारक होली, हैप्पी होली, रंगों का त्यौहार है।
    अपनी होली सबकी होली, अपनों का प्यार है।।

    (राकेश सक्सेना)

    मैं आया खेलन फाग तिहार

    मेरे दिलबरजानी मेरे यार
    सांवरिया ….
    मैं  आया खेलन फाग तिहार ।
    सांवरिया ….
    आज रंग लगा ले ….ना कर इनकार।

    आज रंगों से करले …तू श्रृंगार।
    अपनाले…. मेरा प्यार…..सांवरिया।।
    चम चम चमके रे  ..तेरी लाली बिन्दिया।
    मेरा चैन लेके रे …लुटे निन्दिया।

    तुम्हीं मेरे  …सरकार ।
    सांवरिया ….
    मैं  आया खेलन फाग तिहार ।
    सांवरिया….

    आज रंग लगा ले ….ना कर इनकार।
    आज रंगों से करले …तू श्रृंगार।
    अपनाले…. मेरा प्यार…..सांवरिया।।
    धक धक धड़के रे… दिल मेरा आज।

    नैनन फड़के रे…. ना छुपे कोई राज़।
    तू बन गई ….प्राणाधार।
    सांवरिया …

    मैं  आया खेलन फाग तिहार ।
    सांवरिया ….
    आज रंग लगा ले ….ना कर इनकार।
    आज रंगों से करले …तू श्रृंगार।
    अपनाले…. मेरा प्यार…..सांवरिया।।

    तन मन अंग में….बस गई रे तेरी सूरत।
    तू ही जिन्दगी है और जरूरत।
    चल निकल पड़े ….चांद पार।।

    सांवरिया …।
    मैं  आया खेलन फाग तिहार ।
    सांवरिया ….
    आज रंग लगा ले ….ना कर इनकार।

    आज रंगों से करले …तू श्रृंगार।
    अपनाले…. मेरा प्यार…..सांवरिया।।

    मनीभाई नवरत्न

    होली होनी थी हुई – बाबू लाल शर्मा

    कड़वी सच्चाई कहूँ, कर लेना स्वीकार।
    फाग राग ढप चंग बिन, होली है बेकार।।

    होली होनी थी हुई, कहँ पहले सी बात।
    त्यौहारों की रीत को,लगा बहुत आघात।।

    एक पूत होने लगे, बेटी मुश्किल एक।
    देवर भौजी है नहीं, कित साली की टेक।।

    साली भौजाई बिना, फीके लगते रंग।
    देवर ढूँढे कब मिले, बदले सारे ढंग।।

    बच्चों के चाचा नहीं, किससे माँगे रंग।
    चाचा भी खाए नहीं, अब पहले सी भंग।।

    बुरा मानते है सभी, रंगत हँसी मजाक।
    बूढ़ों की भी अब गई, पहले वाली धाक।।

    पानी बिन सूनी हुई, पिचकारी की धार।
    तुनक मिजाजी लोग हैं,कहाँ डोलची मार।।

    मोबाइल ने कर दिया, सारा बंटाढार।
    कर एकल इंसान को,भुला दिया सब प्यार।।

    आभासी रिश्ते बने, शीशपटल संसार।
    असली रिश्ते भूल कर, भूल रहे घरबार।।

    हम तो पैर पसार कर, सोते चादर तान।
    होली के अवसर लगे, घर मेरा सुनसान।।
    आप बताओ आपके, कैसे होली हाल।
    सच में ही खुशियाँ मिली,कैसा रहा मलाल।।

    बाबू लाल शर्मा,”बौहरा”

    फागुन के रंग

    हर इंसान अपने रंग में रंगा है,
    तो समझ लो फागुन की होली है।
    हर रंग कुछ कहता ही है,
    हर रंग मे हंसी ठिठोली है।

    जीवन रंग को महकाती आनंद उल्लास से,
    जीवन महक उठता है एक-दूसरे के विश्वास से।
    प्रकृति की हरियाली मधुमास की राग है,
    नव कोपलों से लगता कोई लिया वैराग है।

    हर गले शिकवे को भूला दो,
    फैलाओं प्रेम रूपी झोली है।
    हर इंसान अपने रंग में रंगा है,
    तो समझ लो फागुन की होली है।

    आग से राग तक राग से वैराग्य तक,
    चलता रहे यूँ ही परम्परा ये फ़ाग तक।
    होलिका दहन की आस्था,
    युगों-युगों से चली आ रही है।

    आग मे चलना राग मे गाना,
    प्रेम की गंगा जो बही है।
    परम्परा ये अनूठी होती है,
    कितनी हंसी ठिठोली है।

    हर इंसान अपने रंग में रंगा है,
    तो समझ लो फागुन की होली है।
    सपनों के रंग मे रंगा ये संसार सारा,
    सतरंगी लगता इंद्रधनुष सबको है प्यारा।

    बैगनी रंग शान महत्व और
    राजसी प्रभाव का प्रतीक।
    जामुनी रंग दृढ़ता नीला विस्तार
    और गहराई का स्वरूप।

    हरा रंग प्रकृति शीतलता,
    स्फूर्ति और शुध्दता लाये।
    पीला रंग प्रसन्नता आनंद से घर द्वार महकाये।
    रंग नारंगी आध्यात्मिक सहन शक्ति सिखाये।

    लाल रंग उत्साह साहस,
    जीवन के खतरे से बचाये।
    रंग सात ये जीवन मे रंग ही रंग घोली है।
    हर इंसान अपने रंग में रंगा है,
    तो समझ लो फागुन की होली है।

    आया होली का त्यौहार – रविबाला ठाकुर

    आया होली का त्यौहार, 
            लेके रंग अबीर-गुलाल।
    आओ मिलके खुशी मनाएँ,   
            चलो तिलक लगाएँ भाल।
    जाति-पाँति और वर्ग-भेद का,  
             तोड़ो क्लेश भरा जंजाल।
    मानव ने ही रचा-बसा है,
              ये सभी घिनौना जाल।
    ऊपर वाले ने तो ढाला,
              देखो सबको एक समान।
    इसी लिए तो हम सबका है, 
               खून एक सा गहरा लाल।
    आओ मिलकर रंगों से हम,
               रंग दें एक-दूजे का गाल।
    एक-सूत्र में बँध जाएँ,  
                मानव-मानव एक समान।
    तभी मिटेगा देश-राज से, 
                 चीनी-पाकी सा शैतान।
    और बनेगा जग में मेंरा,
                  प्यारा भारत देश महान।
    आओ मिलकर सभी मनाएँ,
                   रंग भरा होली त्यौहार।

    रविबाला ठाकुर”सुधा”

    होली के रंग – बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

    (1)

    होली की मची है धूम, रहे होलियार झूम,
    मस्त है मलंग जैसे, डफली बजात है।

    हाथ उठा आँख मींच, जोगिया की तान खींच,
    मुख से अजीब कोई, स्वाँग को बनात है।

    रंगों में हैं सराबोर, हुड़दंग पुरजोर,
    शिव के गणों की जैसे, निकली बरात है।

    ऊँच-नीच सारे त्याग, एक होय खेले फाग,
    ‘बासु’ कैसे एकता का, रस बरसात है।।

    (2)

    फाग की उमंग लिए, पिया की तरंग लिए,
    गोरी जब झूम चली, पायलिया बाजती।

    बाँके नैन सकुचाय, कमरिया बल खाय,
    ठुमक के पाँव धरे, करधनी नाचती।

    बिजुरिया चमकत, घटा घोर कड़कत,
    कोयली भी ऐसे में ही, कुहुक सुनावती।

    पायल की छम छम, बादलों की रिमझिम,
    कोयली की कुहु कुहु, पञ्च बाण मारती।।

    (3)

    बजती है चंग उड़े रंग घुटे भंग यहाँ,
    उमगे उमंग व तरंग यहाँ फाग में।

    उड़ता गुलाल भाल लाल हैं रसाल सब,
    करते धमाल दे दे ताल रंगी पाग में।

    मार पिचकारी भीगा डारी गोरी साड़ी सारी,
    भरे किलकारी खेले होरी सारे बाग में।

    ‘बासु’ कहे हाथ जोड़ खेलो फाग ऐंठ छोड़,
    किसी का न दिल तोड़ मन बसी लाग में।।

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया कविता बहार से जुड़ने के लिये ध
    न्यवाद

    आया रंगो का त्यौहार – भुवन बिष्ट

      होली के रंग अबीर से।
    आओ बाँटें मन का प्यार।।
    खुशहाली आये जग में।
    है आया रंगों का त्यौहार।।
                रंग भरी पिचकारी से अब।
                धोयें राग द्वेष का मैल।।
                ऊँच नीच की हो न भावना।
                उड़े अबीर लाल गुलाल।।
    होली के हुड़दंग में भी।
    बाँटें मानवता का प्यार।।
    खुशहाली आये जग में।
    आया रंगों का त्यौहार।।
                 होली के रंग अबीर से।
                 आओ बाँटें मन का प्यार।।
                 गुजिया मिठाई की मिठास से।
                 फैले अब खुशियों की बहार ।।
    आओ रंगों की पिचकारी से।
    धोयें जग का अत्याचार।।
    होली के रंग अबीर से।
    आओ बाँटें मन का प्यार।।
               खुशहाली आये जग में।
               है आये रंगों का त्यौहार।।
               बसंत बहार के रंगों से।
               ओढ़े धरती है पितांबरी।।
    ईष्या राग द्वेष को त्यागें।
    सिचें मानवता की क्यारी।।
    रूठे श्याम को भी मनायें।
    रंगों से खुशियाँ फैलायें।।
                रंगों और पानी से सिखें।
                झलक एकता की दिखलायें।।
                मानवता का हो संचार।
                 बहे सुख समृद्धि की धार।।
    होली के रंग अबीर से।
    आओ बाँटें मन का प्यार।।
    खुशहाली आये जग में।
    है आये रंगों का त्यौहार।।

    भुवन बिष्ट
    रानीखेत (उत्तराखंड)

    होली के रँग हजार – सुशीला जोशी

    होली के रँग हजार
    होली किस रंग खेलूँ मैं ।।

    लाल रंग की मेरी अंगिया
    मोय पुलक पुलक पुलकावे
    ढाक पलाश  फूल फूल कर
    मो को अति उकसावे
         लाई मस्ती भरी खुमार
         होली किस रंग खेलूँ मैं ।। पीत रंग चुनरिया मेरी
    फहर खेतों में फहरावे
    गेंहु सरसों के खेतों में
    लहर लहर बन लहरावे
            सँग लाये बसन्ती बयार
            होली किस रंग खेलूँ मैं । नील रंग गगन सा विस्तृत
    निरन्तर हो कर  विस्तारे
    चैत वासन्ती विषकन्या सी
    अंग  छू छू कर मस्तावे
          किलके सूरज चन्द हजार
          होली किस रंग खेलूँ मैं ।। श्याम रंग नैन का काजल
    घना हो हो कर गहरावे
    सुरमई बदली ला ला करके
    गर्जना   करके  धमकावे
             मेरी फीकी पड़ी गुहार
             होली किस रंग खेलूँ मैं ।। धानी रंग धरा अंगडाइ
    इठला इठला सरसावे
    बाग बगीचे कोयल कुके
    मनवा में अगन लगावे
           बौराई सतरँगी बहार ।
          होली किस रंग खेलूँ मैं ।। न हिन्दू न मुसलमा कोई
    नही कोई सिख ईसाई
    होली के रंगों में रंग कर
    सब दिखते है भाई भाई
           अब न पनपे कोई दरार
          होली किस रंग खेलूँ मैं ।।

    सुशीला जोशी

    मिल-जुल कर सब खेले होली – पंकज

    फाल्गुन का मौसम है आया,
                    फ़ाग गीत सबको है भाया।
    अम्बर पर रंगों का साया ,
                     सबके मन में प्रेम समाया।
    तुम भी आ जाओ हमजोली,
               मिल-जुल कर सब खेले होली।
    झांझ,नगाड़े,ताशे,ढोल,
                          कानो में रस देते घोल।
    बात सुनो ये बड़ी अनमोल,
                    द्वेष छोड़ और प्रेम से बोल।
    सबके संग हो हंसी ठिठोली,
               मिल-जुल कर सब खेले होली।
    टेशू, पलाश के फूल खिलेंगे,
                            होली वाले रंग बनेंगे।
    मुख पर मुखौटे खूब सजेंगे,
                    पी के भंग सब खूब नचेंगे ।
    पिचकारी से भिगो दे चोली,
                मिल-जुल कर सब खेले होली।
    किस्म-किस्म पकवान बनाओ,
                   और सभी मित्रो को बुलाओ।
    बैरी को भी गले लगाओ,
                       अपने मन से बैर मिटाओ।
    सब जन बोले प्रीत की बोली,       
                 मिल-जुल कर सब खेले होली।
       पंकज

    होली पर कविता – राज मसखरे

    जला दी हमने
    राग-द्वेष,लालच
    लो अब की बार..
    पून:अंकुर न ले
    न हो कोई बहाना
    ओ मेरे सरकार..
    हो न कोई नफरत
    अब हमारे बीच
    न कोई बने दिवार..
    रंगिनियाँ बिखरता रहे
    लब में हो मुस्कान
    ओ मेरे मीत,मेरे यार.
    चढ़ता जाये मस्ती
    उतर न पाये होली मे
    ये रंगीन खुमार …
    दिल से दिल मिले
    ‘मसखरे’सुन लो जरा
    रहे खुशियाँ बेशुमार .

    राज मसखरे

    होली है बेरंग-डॉ.पुष्पा सिंह ‘प्रेरणा’

    सभी रंग मिलावट के,
    होली है बेरंग!
    नहीं नेह की पिचकारी
    नहींभीगता  अंग!
    भय,शोक,चिंता तनाव,
    प्रीत,प्रेम नहीं सद्भाव,
    रिश्तों की डोरी टूटी
    जैसे कटी पतंग!
    होली है…………
    टेसू और पलाश सिसकते,
    खुशबू को अब फूल तरसते,
    पेड़ों पर डाली के पत्ते
    गुम है पतझड़ संग
    होली है बेरंग…
    कागा करता काँव-काँव,
    आम्रकुंज की उजड़ी छाँव,
    फिर कोयल की हूक से,
    क्यों होते हम दंग!
    होली है बेरंग……
    पकवानों के थाल नहीं,
    ढोल,मांदर, झाल नहीं,
    चरस,गाँजे और शराब में,
    फीकी पड़ गयी भंग!
    होली है बेरंग…
    डॉ.पुष्पा सिंह ‘प्रेरणा’

    होली के रंग – केवरा यदु “मीरा “

    अबके  बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।
    साँवरे  रंग मोहे  भाये   भाये  न कोई  रंग ।।


    अब  बरस– आ गई ग्वालन  की  छोरी।
    अनगिन मटकी में रंग  घोरी।।


    रंग में केसर भी घोरे  अब कर देंगे बदरंग।।
    अबके बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।

    बंशी बजा कर श्याम बुलाते ।
    छुप कर फिर वो रंग  लगाते।।


    छुप कर मैं भी रंग डालूंगी रह जाये कान्हा दंग ।
    अब के बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।।

    फगुवा  गीत  गाते फगुवारे।
    छम छम नाचत नंद दुलारे।।


    बजे नगाड़े ढ़ोल देखो और बजे मृदंग ।
    अबके बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।।

    रंग में उनके कबसे रंगी हूँ।
    साँवर प्रीत में मैं  पगी हूँ।।


    जन्म जन्म तक छूटे न बस चढ़े श्याम का रंग ।
    अबके बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।।

    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम

    रंगो का त्योहार होली – रिखब चन्द राँका

    होली पर्व रंगों का त्योहार,
    पिचकारी पानी की फुहार।
    अबीर गुलाल गली बाजार,
    मस्तानो की टोली घर द्वार।


    हिरण्यकश्यप का अभिमान,
    होलिका अग्नि दहन कुर्बान।
    प्रहलाद की प्रभु भक्ति महान,
    श्रद्धा व विश्वास का सम्मान।


    अग्नि देव का आदर सत्कार,
    वायु देव का असीम उपकार।
    लाल चुनरिया भी  चमकदार,
    प्रह्लाद को भक्ति का पुरस्कार।


    मस्तानों की टोली रंगो के साथ,
    वर्धमान के पिचकारी रंग हाथ ।
    लाल,हरा, नीला,पीला रंग माथ,
    राधा रंगी प्रेम रंग में कृष्ण नाथ।


    स्वादिष्ट व्यंजन गुंजियाँ तैयार,
    पकौड़ी खाजा,पापड़ी भरमार।
    गेहूँ चने की बालियाें की बहार
    अाग पके धान प्रसाद,स्वीकार।


    जग में प्रेम सुधा रस बरसाना,
    दीन दु:खियों को गले लगाना।
    सद्भाव के प्रेम दीपक जलाना ,
    होली पर्व ‘रिखब’ संग तराना।

    रिखब चन्द राँका ‘कल्पेश’ जयपुर राजस्थान

    ब्रज में उड़े ला गुलाल – बाँके बिहारी

    ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली
    खेले होली हो खेले होली
    नयना लड़ावे नंदलाल,ब्रज पिया खेले होली
    ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।


    सखी सब नाचे ढोल बजावे
    एक दूजे पर रंग बरसावे
    साथ रंग लगाये गोपाल ब्रज पिया खेले होली हो
    ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।


    धुरखेल करत हैं वृषभानु दुलारी
    जोरा जोरी करे मोरे रास बिहारी
    पकड़े बईया मोहन रंगे राधे की गाल
    ब्रज पिया खेले होली
    ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।


    पिसी- पिसी भाँग श्यामा प्यारी को पिलावे
    मारी-मारी मटकी रसिया सखी को बुलावे
    पिचकारी से मचाए धमाल ब्रज पिया खेले होली
    ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।


    कभी यमुना तट कभी बगीया में
    होली में रंग डाले रसिया मोरे अंगिया में
    पंचमेवा खिलावे नंदलाल ब्रज पिया खेले होली
    ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।


    मोहे मन भावे ब्रज की होली
    बाल-सखा सब सखीयन की टोली
    देखो प्यारे सबको करते निहाल
    ब्रज पिया खेले होली
    ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।

    बाँके बिहारी बरबीगहीया

    अंग – अंग में रंग चढ़ाया – सन्तोष कुमार प्रजापति

    विधा – गीत (सरसी छन्द)      

      प्यारा यह मधुमास सुहावन ,
           काम तनय सब जान I
    अंग – अंग  में  रंग  चढ़ाया ,
            मदन  तीर  ले  तान Il तुम्हें  बताऊँ  कैसे  सजना ,
             मन  की अपने पीर I
    होली का मनभावन उत्सव , 

            तुम बिन धरे न धीर ll
    आ जाओ फिर होली खेलें ,
             भाँग  पिलाओ छान I
    अंग – अंग में …   ….   … मुझे   पड़ोसी   ऐसे   ताकें ,
             जैसे    सोना   चोर l
    मला गुलाल बहुत गालों में ,
              बदन  रंग  में  बोर Il
    तन  मेरा  ये  दहक  रहा  है ,
              मन भी बहका मान l
    अंग – अंग में …  ….   ….. मुझे चैन मत  पड़ता साजन ,
               होली  करे   कमाल I
    बुरा न मानो कह – कह सबने ,
               चोली  करदी  लाल ll
    आँखें    मेरी     हुईं    शराबी ,
                बदल गई  मम तान l
    अंग – अंग में …  ….   …. हरा , लाल , नीला औ  पीला ,
                धानी   उड़े  गुलाल I
    तन  मेरे   मकरन्द   टपकता ,
                 भ्रमर देख तो हाल Il
    यौवन  की   मदहोशी   छायी ,
                  चढ़ा  प्रेम  परवान l
    अंग – अंग में …    ….    …. तुम  मुझको  मैं  तुम्हें  रंग  दूँ ,
                  फिर  गायेंगे  फाग l
    राधा     तेरी     राह     निहारे ,
                  माधव आओ भाग Il
    तुम बिन  मटकी  मेरी अटकी ,
                  करो  फोड़  सम्मान I
    अंग – अंग में …    ….    … स्वरचित

    सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव”

    खुशियों का त्योहार होली – मनी भाई

    धूल उड़ रहे आसमान में
    उड़ रहा अबीर गुलाल है
    भेदभाव कटुता को मिटाकर
    फैलाता चहुँओर प्यार है
    ऐसा पावन पर्व है होली
    खुशियों का त्योहार है
    ऐसा पावन पर्व हमारा
    रंगो का त्योहार है ।।   

    धुरखेल हो गया सुबह में देखो
    शाम को उड़ेगे रंग
    सज- धज कर निकलेगी सजनीया
    डालेंगी पिया पे रंग
    पिचकारी में रंग भरे हैं
    और रंगो का फूहार है
    ऐसा पावन पर्व है होली
    खुशियों का त्योहार है ।।

    क्या बच्चे क्या बूढ़े को भी देखो
    मचा रहे हुड़दंग
    उम्र की सीमा तोड़ प्यार से
    झुमे सभी के संग
    ढोलक, झांझ ,मंजीरो की धुन का
    देखो अद्भुत झंकार है
    ऐसा पावन पर्व है होली
    खुशियों का त्योहार है ।।

    पेड़,पौधे पशु -पक्षी पर छाया
    होली का खुमार है
    बेसनबरी,फुलौरी,भभरा का
    विशेष आहार है
    कांजी,भाँग ,ठंढाई पीने को
    भीड़ जुटा भरमार है
    ऐसा पावन पर्व है होली
    खुशियों का त्योहार है ।।

    अंधकार भगा प्रकाश को लाता
    होली का त्योहार है
    कच्चे अन्न को पका-पकाकर
    बनता होला भरमार है
    ब्रज रसिया और अवध पिया भी
    लूटाते सभी पर प्यार हैं
    ऐसा पावन पर्व है होली
    खुशियों का त्योहार है
    ऐसा पावन पर्व हमारा
    रंगो का त्योहार है

    मनी भाई

    मधुमासी रंग – सुशीला जोशी

    नव रंगों से भर गए ,वन उपवन अरु बाग
    केसरिया टेसू हुआ , ढाक लगावे आग ।।

    मधुमासी मद से भरे सारे तरु कचनार
    मस्ती हास् विलास ले ,आयी मधुप बाहर ।।

    ऋतुराज की सुगन्धसे  ,मदमाया परिवेश
    शुक पिक  कोकिल कुजते , अपने बैन विशेष ।।

    नटखट वासन्ती चले ,छेड़ करे बरजोर
    देख न पाई आज तक , अन्तस् मन का चोर ।।

    निर्मल नभ से झांकता , करता   विधु विनोद
    ढोल ढप और गीत से , करता मोद प्रमोद ।।

    ललछौंहीं कोपल हँसी , हसि लताएँ उदास
    हृदय झरोखे झांकती ,नेह कोपली  आस ।।

    तरुवर बौराये हुए , देख  फागुनी रंग
    पीले लाल गुलाल का ,मचा हुआ हुड़दंग ।।

    अम्बर सिंदूरी हुआ ,हुआ समंदर लाल
    होली मस्ती रँग भरी , इठला देवे ताल ।।

    दिशा बावरी हो गयी ,लख मधुमासी रूप।
    पहले जैसी न रही ,वी कच्ची से धूप ।।

    फूलों कीफूटी हंसी , बजे सुनहले पात
    सम्मोहन सा बुन रही , अब मधुमासी रात ।।

    ठिठुरायी सर्दी गयी , अब आया मधुमास ,
    ,खिल खिल वासन्ती भरे , कण कण बास सुबास ।।

    फूल फूल को चूमते , भवँर करे गुंजार
    रंग बिरंगी तितलियाँ , नाचे बारम्बार ।।

    सुशीला जोशी

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  • शाकाहारी दिवस पर कविता

    शाकाहारी दिवस पर कविता

    प्रत्येक वर्ष 1 नवंबर को विश्व स्तर पर वर्ल्ड वैगन डे यानि विश्व शाकाहारी दिवस मनाया जाता है। यह दिन मनुष्यों, जानवरों और प्राकृतिक पर्यावरण के लिए शाकाहारी होने के लाभ के बारे में प्रचार-प्रसार करने लिए मनाया जाता है। विश्व शाकाहारी दिवस आम तौर पर शाकाहारी भोजन और शाकाहारी होने के लाभों को बढ़ावा देने का एक अवसर है। शाकाहारी दिवस पर कविता पर आधारति है ये कविताएँ

    Vegetable Vegan Fruit
    शाकाहारी दिवस

    शाकाहारी दिवस पर कविता

    कंद-मूल खाने वालों से
    मांसाहारी डरते थे।।

    पोरस जैसे शूर-वीर को
    नमन ‘सिकंदर’ करते थे॥

    चौदह वर्षों तक खूंखारी
    वन में जिसका धाम था।।

    मन-मन्दिर में बसने वाला
    शाकाहारी *राम* था।।

    चाहते तो खा सकते थे वो
    मांस पशु के ढेरो में।।

    लेकिन उनको प्यार मिला
    ‘शबरी’ के जूठे बेरो में॥

    चक्र सुदर्शन धारी थे
    गोवर्धन पर भारी थे॥

    मुरली से वश करने वाले
    गिरधर’ शाकाहारी थे॥

    पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम
    चोटी पर फहराया था।।

    निर्धन की कुटिया में जाकर
    जिसने मान बढाया था॥

    सपने जिसने देखे थे
    मानवता के विस्तार के।

    नानक जैसे महा-संत थे
    वाचक शाकाहार के॥

    उठो जरा तुम पढ़ कर देखो
    गौरवमय इतिहास को।।

    आदम से आदी तक फैले
    इस नीले आकाश को॥

    दया की आँखे खोल देख लो
    पशु के करुण क्रंदन को।।

    इंसानों का जिस्म बना है
    शाकाहारी भोजन को॥

    अंग लाश के खा जाए
    क्या फ़िर भी वो इंसान है?

    पेट तुम्हारा मुर्दाघर है
    या कोई कब्रिस्तान है?

    आँखे कितना रोती हैं जब
    उंगली अपनी जलती है

    सोचो उस तड़पन की हद               
    जब जिस्म पे आरी चलती है॥

    बेबसता तुम पशु की देखो
    बचने के आसार नही।।

    जीते जी तन काटा जाए,
    उस पीडा का पार नही॥

    खाने से पहले बिरयानी,
    चीख जीव की सुन लेते।।

    करुणा के वश होकर तुम भी
    गिरी गिरनार को चुन लेते॥

    -अज्ञात