Author: कविता बहार

  • मोर गांव मोर मितान

    मोर गांव मोर मितान

    मोर गांव मोर मितान जिसके रचनाकार अनिल जांगड़े जी हैं । कविता ने ग्रामीण परिवेश का बहुत सुंदर वर्णन किया है। आइए आनंद लें ।

    मोर गांव मोर मितान

    मोर गांव मोर मितान

    मोर गाॅंव के तरिया नदिया,नरवा मोर मितान
    रूख राई म बसे हवय जी,मोर जिंनगी परान।

    गली खोर के मॅंय हंव राजा,
    दुखिया के संगवारी हंव
    दया धरम हे सिख सिखानी
    बैरी बर मॅंय कटारी हंव
    बिन फरिका के दुवारी हंव रे
    मोर अलग पहचान
    मोर गांव के तरिया नदिया,नरवा मोर मितान।

    गाॅंव के कुकुर बिलई संग हे
    मोर सुघर मितानी
    परछी बइठे बुढ़वा बबा मोर
    करथे मोर सियानी
    मॅंय गाॅंव के लहरिया बेटा
    दाई ददा भगवान
    मोर गाॅंव के तरिया नदिया,नरवा मोर मितान।

    गाॅंव म शीतला ठाकुर देवता
    करथे हमर रखवारी
    छानी परवा टूटहा कुरिया
    हवय हमर चिनहारी
    बोरे बासी खा के कमाथन
    माटी म उगाथंन धान
    मोर गाॅंव के तरिया नदिया, नरवा मोर मितान।

    🖊️ अनिल जांगड़े
    सरगांव मुंगेली छत्तीसगढ़
    8120861255

  • कविता : छत्तीसगढ़ निर्माण में अखण्ड धरना आंदोलन पर दोहा / श्रीमती आशा आजाद

    कविता : छत्तीसगढ़ निर्माण में अखण्ड धरना आंदोलन पर दोहा / श्रीमती आशा आजाद

    छत्तीसगढ़ निर्माण में अखण्ड धरना आंदोलन नामक हिन्दी कविता छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए किये गये संघर्ष पर आधारित हिंदी दोहावली है.

    छत्तीसगढ़ निर्माण में अखण्ड धरना आंदोलन

    कविता : छत्तीसगढ़ निर्माण में अखण्ड धरना आंदोलन पर दोहा / श्रीमती आशा आजाद

    राज्य शुभे छत्तीसगढ़, प्रेम अमिट विश्वास ।
    धरना अखंड जो चला, उसका है इतिहास ।।

    उन्नीसी पंचानवें, धरना शुरु था जान ।
    दशम दिसंबर तक चला, अमिट पृथक पहचान ।।

    इसवी सन उन्नीस में, बहुत हुआ संघर्ष ।
    चला राज्य निर्माण में, आंदोलन हर वर्ष ।।

    था प्रदेश में उस समय, आंदोलन का रूप ।
    आज विरासत जो मिला, कहलाता यह भूप ।।

    मुखर आज जो बिंब है, सुंदर घटित अतीत ।
    पाँच साल तक जो चला, अंत मिला शुभ जीत ।।

    संघर्षों की राह पर, सूत्रधार का नाम ।
    कर्णधार बनकर किया, श्रेष्ठ अमिट सब काम ।।

    पृथक राज्य निर्माण में, धरना चला अखंड ।
    जो जो भागीदार थे, झेला पग पग दंड ।।

    पृष्ठभूमि पर आज जो, प्रांत बना नव एक ।
    संघर्षों पर जो चले, मनुज सभी थे नेक ।।

    आज सुनाती हूँ सुनो, गाथा शुभ निर्माण ।
    कष्ट झेलकर ही हुआ, आंदोलन निर्वाण ।।

    श्रीमती आशा आजाद

  • माँ पर गजल

    माँ पर गजल

    यहां पर माधुरी डर सेना द्वारा माँ पर बेहतरीन ग़ज़ल लिखा गया है।यहाँ मान पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

    mother their kids
    माँ पर कविता

    माँ पर गजल

    बड़ी खूबसूरत सी सौगात है माँ
    कभी खत्म न हो वो बरसात है माँ

    है आँगन की तुलसी सदा जो महकती
    लगे स्वर्ग की कोई परिजात है माँ ।

    तरन्नुम सुरीली है मीठी सी लोरी
    खुदा की दुआ नर्म जज़्बात है माँ ।

    कभी गम के साये फटकने न देती
    उजाले लिए सुब्ह औ रात है माँ ।

    समंदर की लहरें समेटे हुए है
    रखे गर्दिशों में भी कुशलात है माँ

    उन्ही के हैं दस्तख़त मेरे जिस्म जां में
    वकालत को हरपल ही तैनात है माँ ।

    चमकता हुआ वो सितारा बना दे
    फरिश्तों की मीठी मुलाक़ात है माँ ।

    जमाने में काबिल बना के दिखाती
    जहां में बुलंदी की औक़ात है माँ

    कभी मर्म छू लो बुढ़ापे में “मुदिता”
    रखे आज तक भी ख़यालात है माँ।

    —- माधुरी डड़सेना “मुदिता”

  • शिवरात्रि पर कविता

    bhagwan Shiv
    शिव पर कविता

    शिवरात्रि पर कविता

    शिव को ध्याने के लिए लो आ गई रात्रि।
    मौका मिला है शिव की करने को चाकरी।

    शिव को मनाने के लिए बस श्रद्धा चाहिए।
    शिव को पाना जो चाहो तो नजरिया चाहिए।
    हो मुक्कमल सफ़र अपना और जाए यात्री।

    हम जन्म मरण से मुक्त हों और पाएं मोक्ष को।
    मंजिल कठिन हो चाहे पर अर्जुन सा लक्ष्य हो।
    शिव जी को पा लेना जैसे लग जाए लाटरी।

    हर कंकर है शंकर और हर पत्थर श्री राम है।
    गोपों के संग वृंदावन में रास रचाए राधेश्याम है।
    शिव को डमरू प्यारा है कान्हा को बांसुरी।

    अपनी जटाओं में गंगा को शिव ने धरा है।
    फिर विष को अपने कंठ में धारण किया है।
    हमको भी चरणों में धर लो हे भोले गंगाधरी।

    शिव को है प्यारा चिलम धतूरा और रुद्राक्ष,
    तप एकांत शंख बिल्व और प्यारा है कैलाश।
    भर दो भक्ति से हमारी खाली भिक्षा पात्री।

    रखें भरोसा भोले पर जो यहां तक ले आया है।
    आगे भी लेकर जाएगा जहां भी लेकर जाना है।
    सूर्य सा दो निखार हे भोले दिवाकरी।

    कर्ता करे न कर सके शिव करे सो होय,
    तीन लोक नौ खंड में तुझसे से बड़ा न कोय।
    आज हवा में सुर्खी लाई महाशिवरात्रि।

    *सुधीर कुमार*

  • आज कल अवसाद से गुजर रहा हूं मैं

    *ग़ज़ल*

    आज कल अवसाद से गुज़र रहा हूं मैं।
    बिना तेरे निबाह! कैसे उमर रहा हूं मैं।

    एक उम्र तक जिंदगी से गिला न रहा,
    जिंदगी के साये से अब डर रहा हूं मैं।

    तू था साथ,तो हसीन थे दिन रात मेरे,
    अब पशोपेश से दो चार कर रहा हूं मैं।

    नाकाम आशिक,सौदाई भी नहीं हूं मैं,
    मेरी मर्ज़ी दीवानों सा अगर रहा हूं मैं।

    आरज़ू है !कोई पुकारे लेके नाम मेरा,
    हूबहू रहूं कि पहले नामवर रहा हूं मैं।

    बाट जोह रहा हूं मैं किसी इंतज़ार का,
    हैरान हूं `सुधीर` किस कदर रहा हूं मैं।

    अवसाद=शोक
    निबाह=गुज़ारा
    पशोपेश=संघर्ष
    हूबहू=निशां बाकी रहे
    सुधीर=धैर्यवान

    ▫️ *सुधीर कुमार*