Author: कविता बहार

  • योग बने मुस्कान हमारी / डा० भारती वर्मा बौड़ाई

    योग बने मुस्कान हमारी / डा० भारती वर्मा बौड़ाई

    डा० भारती वर्मा बौड़ाई की यह कविता सरल, प्रवाहमयी और प्रेरणादायक भाषा में रची गई है। कविता का उद्देश्य योग के लाभों को सरल और सहज रूप में प्रस्तुत करना है, ताकि पाठक इसे आसानी से समझ सकें और अपने जीवन में शामिल कर सकें।

    yogasan

    योग बने मुस्कान हमारी / डा० भारती वर्मा बौड़ाई

    योग बने मुस्कान हमारी 
    योग बने पहचान हमारी,
    योग पताका फहरी सर्वत्र 
    योग में बसी जान हमारी।

    योग दिवस आने वाला है 
    आओ अपना ध्येय बनायें,
    सफल इसे करने के वास्ते 
    हम योग अभियान चलायें।

    योग अपनाओ

    यदि 
    स्वस्थ रहना है 
    जीवन में 
    योग अपनाओ
    इसे जीवन-अंग बना
    निरोगी बन जाओ,
    स्वस्थ शरीर में 
    स्वस्थ मन रहेगा 
    स्वस्थ विचारों का 
    अजस्र प्रवाह चलेगा…!
    स्वयं करना 
    औरों को प्रेरित करना 
    जब सबका लक्ष्य बनेगा
    तभी देश का हर जन
    स्वस्थ बना 
    नव उपमान गढ़ेगा…!!
    ब्रह्म मुहूर्त में 
    उठ, स्नान-ध्यान कर 
    सूर्य नमस्कार करने का 
    पक्का नियम बनायें
    नित्य योग करना 
    अपना धर्म बनायें…!!!
    स्वस्थ, निरोगी होकर 
    कर्म करो कुछ ऐसे 
    घर, समाज, देश 
    सभी गर्वित हो जायें…!!!!
    योग स्वास्थ्य, प्रसन्नता की कुंजी है 
    सबको यह समझाना है 
    स्वस्थ नागरिक बन 
    हम सबको राष्ट्र निर्माण में 
    जुट जाना है।

    डा० भारती वर्मा बौड़ाई

    देहरादून, उत्तराखंड

    योग बने मुस्कान हमारी” कविता में कवि डा० भारती वर्मा बौड़ाई ने योग के महत्व और लाभों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है। कविता में योग को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य का स्रोत बताया गया है। योग के नियमित अभ्यास से जीवन में खुशहाली, संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह कविता पाठकों को योग के प्रति जागरूक करने और इसे अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाने की प्रेरणा देती है। योग से जीवन में मुस्कान और खुशहाली बनी रहती है, और व्यक्ति समग्र विकास की ओर अग्रसर होता है।

  • योग से दिन है सुहाना / कवि डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर”

    योग से दिन है सुहाना / कवि डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर”

    डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर” की यह कविता सरल, प्रवाहमयी और प्रेरणादायक भाषा में रची गई है। कविता का उद्देश्य पाठकों को योग के लाभों से अवगत कराना और उन्हें इसे अपने जीवन में शामिल करने के लिए प्रेरित करना है।

    योग से दिन है सुहाना / कवि डिजेंद्र कुर्रे "कोहिनूर"

    योग से दिन है सुहाना / कवि डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर”

    योग से दिन है सुहाना,  
    योग को जरूर अपनाना। 

    योग ध्यान करके दिन की शुरुआत करना। 
    निरोग रहकर स्वास्थ्य को अच्छा बनाना ।

    हर कार्य को तन मन लगाकर, 
    जीवन की संघर्ष को आसान बनाना ।

    योग से दिन है सुहाना, 
    योग को जरूर अपनाना।

    खान पान को सादगी सरल करना। 
    जीवन में आत्मीय गुण को जगाना ।

    आपस में प्रेम भाव को बढ़ाकर
    हंसता-खेलता जीवन को आगे चलाना ।
    योग से दिन है सुहाना,  
    योग को जरूर अपनाना। 

    कवि डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर”

    पीपरभवना, बलौदा बाजार(छ.ग.)

    कविता का सार:

    “योग से दिन है सुहाना” कविता में कवि डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर” ने योग के दैनिक अभ्यास से जीवन में आने वाले सकारात्मक परिवर्तनों का वर्णन किया है। कविता में योग के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक लाभों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया है। यह कविता पाठकों को योग के महत्व को समझने और उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाने के लिए प्रेरित करती है। योग से दिन की शुरुआत को सुहाना बनाने का संदेश देते हुए कवि ने इस साधना को नियमित रूप से अपनाने की प्रेरणा दी है, जिससे जीवन में संतुलन, शांति और सकारात्मकता बनी रहती है।

  • योग भगाये रोग /  कंचन कृतिका

    योग भगाये रोग / कंचन कृतिका

    कंचन कृतिका की कविता “योग भगाये रोग” योग के शारीरिक और मानसिक लाभों को उजागर करती है। इस कविता में योग के महत्व और उसके द्वारा रोगों के निवारण का वर्णन किया गया है। कवि ने योग को एक चमत्कारी उपाय के रूप में प्रस्तुत किया है, जो न केवल शारीरिक बीमारियों से छुटकारा दिलाता है बल्कि मानसिक शांति और संतुलन भी प्रदान करता है।

    योग भगाये रोग/ कंचन कृतिका

    yog divas
    21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 June International Yoga Day

    आलस्य त्याग पूर्व ही,
    सूर्योदय से उठ जाएँ!
    यौगिक क्रियाकलापों से,
    तन को सक्रिय बनाएँ!!
    पीकर गुनगुना जल,
    निपटकर नित्यक्रिया से!
    करें आत्मशुद्धि के उपाय,
    शारीरिक अनुक्रिया से!!
    सभी आसनों में है,
    प्रमुख सूर्य नमस्कार!
    देता है नई स्फूर्ति,
    मिट जाते सभी विकार!!
    चित्त प्रवृत्ति को जकड़,
    प्रकृति से नाता जोड़ें!
    होगा अनुलोम-विलोम,
    सांस को खींचकर छोड़ें!!
    मुद्रासन नित्य करें यदि,
    बढ़ेगी चेहरे की कान्ति!
    ओंकार उद् घोष से,
    मिलती है मन को शान्ति!!
    होगा मोटापा कम!
    सर्वांगासन रोज लगाएँ!
    जकड़न हो हाथ- पैर में,
    तो स्वस्तिकासन अपनाएँ
    गुंजित करें परिवेश,
    भ्रामरी ध्यान लगाकर!
    नेत्र की ज्योति बढ़ाएँ
    त्राटक अपनाकर!!
    दिनभर के ताजगी की है,
    यह सबसे सुन्दर युक्ति!
    लगायें संध्या ध्यान,
    मिलेगी अनिद्रा से मुक्ति!!
    स्वस्थ रहे हर जन,
    है प्राणायाम का मर्म!
    नित ही करके अभ्यास,
    रखें खुद पर हम संयम!!
    है सर्वथा अनुकूल,
    वेदों नें भी समझाया!
    योग… भगाये रोग,
    रखे निरोगी काया!!

    कंचन कृतिका

    योग भगाये रोग” कविता में कवि कंचन कृतिका ने योग के अद्वितीय लाभों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है। कविता में योग के माध्यम से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने का संदेश दिया गया है। कवि ने यह स्पष्ट किया है कि नियमित योग अभ्यास से न केवल शारीरिक बीमारियों का निवारण होता है, बल्कि मानसिक शांति और संतुलन भी प्राप्त होता है। यह कविता पाठकों को योग के प्रति जागरूक करने और इसे अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाने की प्रेरणा देती है।

  • सरकारी योग दिवस / विनोद सिल्‍ला

    सरकारी योग दिवस / विनोद सिल्‍ला

    विनोद सिल्ला की कविता “सरकारी योग दिवस” में योग दिवस के औपचारिक और सरकारी रूप को चित्रित किया गया है। कविता के माध्यम से कवि ने योग दिवस के आयोजन की प्रक्रिया, उसकी तैयारियों और इसके सामाजिक-राजनीतिक महत्व को व्यंग्यात्मक और भावनात्मक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है।

    विनोद सिल्ला की काव्य शैली सरल, प्रवाहमयी और व्यंग्यात्मक है। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक घटनाओं को सरल और व्यंग्यात्मक भाषा में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, ताकि पाठक इसे आसानी से समझ सकें और इससे प्रेरणा ले सकें।

    सरकारी योग दिवस/ विनोद सिल्‍ला

    yog divas
    21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 June International Yoga Day

    आज है योग दिवस
    नहीं-नहीं
    सरकारी योग दिवस 
    आज के आयोजन में
    प्रशासन था
    भीड़ जुटाने के लिए
    शीर्षासन में
    जो समस्त कर्मचारी
    व अधिकारियों को लाया
    लगभग अपहरण करके 
    सत्‍तासीन थे
    सुखासन में
    अनपढ़ या कम पढों की
    खिदमत में थे 
    उच्‍चाधिकारी
    अंधे ने 
    अपने-अपनों को
    बांटी रेवडियाँ
    यूँ मना योग दिवस.

    vinod silla 

    -विनोद सिल्‍ला©

    “सरकारी योग दिवस” कविता योग दिवस के सरकारी आयोजनों पर एक व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। इसमें योग के वास्तविक महत्व को उजागर करते हुए सरकारी आयोजनों में होने वाले आडंबर और दिखावे पर कटाक्ष किया गया है। कवि ने संदेश दिया है कि योग को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाएं, केवल एक दिन के आयोजन तक सीमित न रखें। योग का सही लाभ नियमित और निरंतर अभ्यास से ही प्राप्त किया जा सकता है।

  • सहज योग तुम कर लेना / राजेश पाण्डेय *अब्र*

    सहज योग तुम कर लेना / राजेश पाण्डेय *अब्र*

    इस कविता में कवि राजेश पाण्डेय ‘अब्र’ सहज योग को अपनाने और उसके लाभों के बारे में बता रहे हैं। सहज योग एक ऐसी साधना है जो सरलता से की जा सकती है और इसके माध्यम से व्यक्ति आत्मज्ञान और शांति की प्राप्ति कर सकता है। यह योग व्यक्तिगत विकास, मानसिक शांति, और आत्मा के वास्तविक स्वरूप को पहचानने का एक मार्ग है।

    सहज योग तुम कर लेना / राजेश पाण्डेय *अब्र*

    सहज योग तुम कर लेना / राजेश पाण्डेय *अब्र*

    तम की एक अरूप शिला पर
    तुमको कुछ गढ़ते जाना है
    भाग्य नहीं अब कर्म से अपने
    राह में कुछ मढ़ते जाना है,

    चरण चूमते जाएँगे सब
    तुम कर्म की राह पकड़ लेना
    भाग्य प्रबल होता है अक्सर
    इस बात को तुम झुठला देना,

    संकट काट मिटाकर पीड़ा
    लक्ष्य विजय तुम कर लेना
    भाग्य नहीं वीरों की कुंजी
    सबल कदम तुम धर लेना,

    दर्प से क्या हासिल होता है
    सहज योग तुम कर लेना
    सुस्त नहीं अब पड़ो पहरुए
    कर्म सफल तुम कर लेना.

    राजेश पाण्डेय अब्र
       अम्बिकापुर

    सहज योग का अभ्यास करना एक ऐसी साधना है जो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी है। राजेश पाण्डेय ‘अब्र’ ने इस कविता में सहज योग के माध्यम से आत्मज्ञान और शांति की प्राप्ति का संदेश दिया है और इसे अपने जीवन में अपनाने की प्रेरणा दी है।