Author: कविता बहार

  • राधा कृष्ण के प्रेम कविता

    राधा कृष्ण के प्रेम कविता

    राधा कृष्ण के प्रेम कविता

    radha shyam sri krishna


    (विष्णुपद छंद १६,१० चरणांत गुरु,आधारित गीत)
    . °°°°
    तुम्ही बताओ राधा रानी,
    क्या क्या जतन करें।
    मन मोहन गिरधारी छलिया,
    काहे नृतन करे।

    गोवर्धन को उठा कन्हाई,
    गिरधर नाम किये।
    उस पर्वत से भारी जग में,
    बेटी जन्म लिये।
    बेटी के यौतक पर्वत सम,
    कैसे पिता भरे।
    आज बता हे नंद दुलारे,
    चिंता चिता जरे।
    तुम्ही………..

    लाक्षागृह से बचवाकर तू,
    जग को भ्रमित कहे।
    घर घर में लाक्षा गृह सुलगे,
    क्या वे विवश दहे।
    महा समर लड़वाय कन्हाई,
    रण मे नृतन करे।
    घर-घर में कुरु क्षेत्र बने अब,
    रण के सत्य भरे।
    तुम्ही………………

    इक शकुनी की चाल टली कब?
    नटवर स्वयं बने।
    अगनित नटवरलाल बने अब,
    शकुनी स्वाँग तने।
    मित अर्जुन का मोह मिटाने,
    गीता कहन करे।
    जन-मन मोहित माया भ्रम में,
    समझे मथन करे।
    तुम्ही बताओ………

    नाग फनों पर नाच कन्हाई,
    हर फन कुचल दिए।
    नागनाथ कब साँपनाथ फन,
    छल बल उछल जिए।
    अब धृतराष्ट्र,सुयोधन घर पथ,
    सच का दमन करे।
    भीष्म,विदुर,सब मौन हुए अब,
    शकुनी करन सरें।
    तुम्ही बताओ………

    एक कंस हो तो हम मारे,
    इत उत कंस यथा।
    नहीं पूतनाओं की गिनती,
    तम पथ दंश कथा।
    मानव बम्म बने आतंकी,
    सीमा सदन भरे।
    अन्दर बाहर वतन शत्रु अब,
    कैसे पतन करें।
    तुम्ही बताओ……….

    इक मीरा को बचा लिए थे,
    जिस से गरब थके।
    घर घर मीरा घुटती मरती,
    कब तक रोक सके।
    शिशू पाल मदमाते हर पथ,
    कैसे शयन करे।
    कुन्ती गांधारी सी दुविधा,
    पट्टी नयन धरे।
    तुम्ही…………

    विप्र सुदामा मित्र बना कर,
    तुम उपकार कहे।
    बहुत सुदामा, विदुर घनेरे,
    लाखों निबल रहे।
    जरासंध से बचते कान्हा,
    शासन सिंधु करे।
    गली गली में जरासंध है,
    हम कित कूप परे।
    तुम्ही बताओ………
    मन मोहन गिरधारी छलिया,
    काहे नृतन करे।

    बाबू लाल शर्मा

  • नटखट नंद किशोर- नीरामणी श्रीवास

    नटखट नंद किशोर- नीरामणी श्रीवास

    नटखट नंद किशोर

    goverdhan shri krishna
    कविता संग्रह

    चोरी करके छुप गया , नटखट नंद किशोर ।
    सभी गोपियाँ ढूँढती , प्यारा माखन चोर ।।
    प्यारा माखन चोर , शिकायत माँ से करते ।
    दधि की मटकी फोड़ , चैन हम सबकी हरते ।।
    नियति कहे कर जोड़ , अनूठी लीला तोरी ।
    प्रेम भक्ति की मान , बचाने करते चोरी ।।

    चोरी करते देखकर , बाँधी माँ ले डोर ।
    डोरी कम पड़ती गई , कसती माँ जब छोर ।।
    कसती माँ जब छोर , हार कर बोली मैया ।
    जादूगर शैतान , हाय हंँसता है दैया ।।
    बँधे प्रेम के पाश , पुलकती गोकुल गोरी ।
    ‌ममता वश मिल साथ ,कराये माखन चोरी ।।

    चोरी करना पाप है , सिखलाते पितु मात ।
    पुत्र बुराई से बचे , सुरभित हो हर नात ‌।।
    सुरभित हो हर नात , यही शिक्षक भी कहते ।
    करके मेहनत नित्य , खुशी से दामन भरते ।।
    नियति कहे कर जोड़ , नहीं कर सीना जोरी ।
    मात पिता सम्मान , रहे मत करना चोरी ।।

    नीरामणी श्रीवास नियति
    कसडोल छत्तीसगढ़

  • राधा और श्याम की प्रेम कविता

    राधा और श्याम की प्रेम कविता

    राधा और श्याम की प्रेम कविता

    राधा और श्याम की प्रेम कविता

    तू मेरी राधा मैं तेरा श्याम हूं।
    तुमसे प्रेम करके मैं बदनाम हूं।

    तुझे देखें बिन ,मेरी जीवन की बांसुरी में सूर कहां?

    तू है मेरे साथ तो सुंदर लगता है,यह सारा जहां।

    बस तेरी ही धुन में रमे रहूं बस दिन रात तेरा नाम लूं।

    तू मेरी राधा मैं तेरा श्याम हूं।
    तुझसे प्रेम करके मैं बदनाम हूं।

    तुझे याद करकर के सोता हूं।
    तेरे लिए जीता, मैं मरता हूं।

    तुझसे मिलने को हे राधा, तेरे सपनों में आ जाता हूं।

    तू मेरी राधा मैं तेरा श्याम हूं।
    तुझसे प्रेम करके मैं बदनाम हूं।

    कहीं अब मन लगता नहीं है।
    बस तेरे ही ख्यालों में डूबा रहता हूं।

    तू मेरी राधा मैं तेरा श्याम हूं।
    तुझसे प्रेम करके मैं बदनाम हूं।

    तेरे नयनों के काजल माथे की बिंदिया।

    उड़ा लेती है मेरी रातों की निंदिया।

    तुझे पाने को मैं जनम,जनम से बेताब हूं।

    तू मेरी राधा मैं तेरा श्याम हूं।
    तुझसे प्रेम करके मैं बदनाम हूं।

    जब तक तू न मिलेगी रूप बदलकर,

    वेश बदलकर जग में आता रहुंगा।

    हाथों में प्रेम की बंशी लेकर मधुर ,

    मधुर राधा राधा धुन गाता रहुंगा।

    स्वपन बोस बेगाना
    9340433481

  • हो मुरलिया रे / केवरा यदु “मीरा”

    हो मुरलिया रे / केवरा यदु “मीरा”

    हो मुरलिया रे / केवरा यदु “मीरा”

    shri Krishna
    Shri Krishna


    हो मुरलिया रे तँय का का  दान पुन करे हस।
    तँय का का दान पुन करे हस।
    तोर बिना राहय नहीं कान्हा ओकरे संग धरे हस।
    तँय का का दान पुन करे हस।।


    सुन रे मुरलिया तोर भाग जबर हे कान्हा के संग रहिथस।
    मोहना के हिरदय के बात ला अपने धुन मा कहिथस।
    राधा सही तँय ओकर पियारी होठ मा तँय हा लगे हस।।
    तँय का का दान पुन करे हस।
    तँय का का-


    राधा रूक्मनी के जिवरा जरथे कान्हा ला नइ छोंड़स।
    कनिहा मा कभू हाथ मा बसे हस थोरको संग नइ छोड़स।
    तोर जिनगानी श्याम बने हे सांस मा ओकरे बसे हस।।
    तँय का का दान पुन करे हस।
    तँय का का–


    तोरे धुन मा राधा ला बलाथे जमुना भरे बर पानी।
    मुरली के धुन सुन आगे गुवालिन सब हे तोरे दिवानी।
    गोप गुवाल अऊ गइया बछरूसबो के मन मा बसे हस।।
    तँय का का दान पुन करे हस।।
    तँय  का का-


    ब्रम्हा बिष्णु शिव जी मोहागे तोरे धुन ला सुनके।
    जहर के पियाला मीरा पी गे बंसी के धुन सुनके।
    बंसी के धुन मा तोरे पिरित मा जग ला तँय मोहे हस।।
    तँय  का का दान पुन करे हस।


    हो मुरलिया रे तँय का का दान पुन करे हस।।
    तोर बिना राहय नहीं कान्हा ओकरे संग धरे हस।।
    तँय का का दान पुन करे हस।।
    तँय का  का दान-


    केवरा यदु “मीरा”

  • कृष्ण रासलीला

    कृष्ण रासलीला

    shri Krishna
    Shri Krishna

    कृष्ण रासलीला

    लीला राधे कृष्ण सम,आँख उठा के देख।
    लाख कोटि महा शंख में,लख लीला है एक।।

    सब देवों की नारियाँ,कर नित साज सिंगार।
    गमन करें शुचि रास में ,बन ठन हो तैयार।।

    कृष्णप्रेम विह्वल शम्भु,निज मन कियो विचार।
    राधे कृष्ण प्रेम परम ,जा देखूँ इक बार।।

    शिव गौरा से जा तभी,कहने लगे सकुचाय।
    रास लखन मै भी चलूँ ,सुन गौरा मुसकाय।।

    कैसे जा सकते वहाँ , लिए गले में शेष।
    लीला में वर्जित सदा, पुरूषों का प्रवेश।।

    ऐसा क्यों कहती सती ,अतुल शक्ति ले पास।
    कर यत्न ले चलो मुझे ,देखन लीला रास।।

    शिवअडिग लालसा लखी,कह गौरा समझाय।
    भेष बदल नारी बनों , यहीं है इक उपाय।।

    नार नवेली बन गये , रूप रंग चटकार।
    पहुँच गये गौरा संग में ,कृष्ण रास दरबार।।

    कृष्ण पारखी नजर से ,शिवजी गयो लखाय।
    पानी हो शिव शरमसे,निज मुख लियो छुपाय।।

    हँस पड़ी सभी गोपियाँ ,हँसते कृष्ण मुरार।
    प्रेम सिंधु में डूब शिव , लूटत रास बहार।।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ,विजयीपुर

    गोपालगंज (बिहार)841508