आँख खुलने लगी / नीलम

आँख खुलने लगी/ नीलम आँख खुलने लगी/ नीलम रात के पिछले पहर मेंशीत की ठंडी लहर मेंकोहरे की चादर ओढ़ेसो रहे थे चाँद-तारे धीरे -धीरे धरा सरकतीजा पहुँची प्राची के द्वारेथरथराती ठंड से सिकुड़तीथपथपा खुलवा रही थी द्वार उषा ने…

हिंदी कविता संग्रह

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आँख खुलने लगी/ नीलम आँख खुलने लगी/ नीलम रात के पिछले पहर मेंशीत की ठंडी लहर मेंकोहरे की चादर ओढ़ेसो रहे थे चाँद-तारे धीरे -धीरे धरा सरकतीजा पहुँची प्राची के द्वारेथरथराती ठंड से सिकुड़तीथपथपा खुलवा रही थी द्वार उषा ने…

मानवता के दीप/ भुवन बिष्ट मानवता के दीप/ भुवन बिष्ट हम तो सदा ही मानवता के दीप जलाते हैं,उदास चेहरों पर सदा मुस्कराहट लाते हैं। हार मानकर बैठते जो कठिन राहों को देख,हौंसला बढ़ाकर उनको भी चलना सिखाते हैं। कर देते…

चांदनी रात / क्रान्ति द्वारा रचित चांदनी रात / क्रान्ति चांदनी रात मेंपिया की याद सताएमिलने की चाहदिल में दर्द जगाए।। हवा की तेज लहरजिगर में घोले जहरकैसे बताऊं मैं तुम्हेंसोई नहीं मैं रातभर।। दिल के झरोखे मेंदस्तक देती हवाएंदेखकर…

धूप की ओट में बैठा क्षितिज /निमाई प्रधान’क्षितिज’ रवि-रश्मियाँ-रजत-धवल पसरीं वर्षान्त की दुपहरी मैना की चिंचिंयाँ-चिंयाँ से शहर न लगता था शहरी वहीं महाविद्यालय-प्रांगण में प्राध्यापकों की बसी सभा थी किंतु परे ‘वह’ एक-अकेला छांव पकड़ना सीख रहा था !…

दैव व दानवों की वृत्तियां /पुष्पा शर्मा “कुसुम”द्वारा रचित दैव व दानवों की वृत्तियां/ पुष्पा शर्मा “कुसुम” कंटक चुभकर पैरों मेंअवरोधक बन जाते हैं,किन्तु सुमन तो सदैव हीनिज सौरभ फैलाते हैं। बढा सौरभ लाँघ कंटकवन उपवन और वादियाँ,हो गया विस्तार…