लाख निकाले दोष, काम होगा यह उनका। उन पर कर न विचार, पाल मत खटका मन का। करना है जो काम, बेझिझक करते चलना। टाँग खींचते लोग, किन्तु राही मत रुकना। कुत्ते सारे भौंकते, हाथी रहता मस्त है। अपने मन की जो सुने, उसकी राह प्रशस्त है।
ये दुनिया है यार, चले बस दुनियादारी। बन जायेगा बोझ, शीश पर जिम्मे भारी। कितना कर लो काम, कर न सकते खुश सबको। काम करो बस आज, बुरा जो लगे न रब को। इतना करना भी बहुत, बड़ा काम है जान ले। खुद पर है विश्वास तो , जीवन सार्थक मान ले।।
आया वसंत आज, भव्य ऋतु मन हर्षाए। खिले पुष्प चहुँ ओर, देख खग भी मुस्काए।। मोहक लगे वसंत, हवा का झोंका लाया। मादक अनुपम गंध, धरा में है बिखराया।।
आम्र बौर का गुच्छ, लदे हैं देखो सारी। सृजित नवल परिधान, वृक्ष की महिमा भारी।। ऋतुपति दिव्य वसंत, श्रेष्ठ है कान्ति निराली। इसके आते मान, सजे हैं गुलशन डाली।।
गया ठंड का जोर, आज ऋतु वसंत आया। चला दौर मधुमास, शीत का कहर भगाया।। मौसम लगते खास, रूप है भव्य सुहाना। हृदय भरे आह्लाद, झूम सब आज जमाना।।
टेसू फूले लाल, वनों को शोभित करते। भ्रमर हुए मदमस्त, बाग पर नित्य विचरते।। सरसों का ऋतु काल, नैन को खूब रिझाए। पीत सुमन का दृश्य, चपल मन को भा जाए।।
चार दिन के जिनगी संगी चार दिन के हवे जवानी चारेच दिन तपबे संगी फेर नि चलय मनमानी।
चारेच दिन के धन दौलत चारेच दिन के कठौता। चारेच दिन तप ले बाबू फेर नइ मिलय मौका।।
चार भागित चार,होथे बराबर गण सुन। चार दिन के जिनगी म चारो ठहर गुण।।
चार झन में चरबत्ता गोठ चारो ठहर के मार। चार झनके संग संगवारी लेगही मरघट धार।। चार झन के सुन, मन म गुण कर सुघ्घर काम। चार झन ल लेके चलबे चलही तोर नाम।।