Author: कविता बहार

  • छेरछेरा  / राजकुमार ‘मसखरे’

    छेरछेरा / राजकुमार ‘मसखरे’

    छेरछेरा / राजकुमार ‘मसखरे’

    छत्तीसगढ़ कविता
    छत्तीसगढ़ कविता

    छेरिक छेरा छेर मरकनिन छेरछेरा
    माई कोठी के धान ल हेर हेरा.

    आगे पुस पुन्नी जेखर रिहिस हे बड़ अगोरा
    अन्नदान के हवै तिहार,करे हन संगी जोरा…
    छेरछेराय बर हम सब जाबो
    धर के लाबो जी भर के बोरा…..!

    आजा चैतू,आजा जेठू आ जा ओ मनटोरा
    जम्मों जाबो,मजा पाबो,चलौ बनाथन घेरा……
    छत्तीसगढ़ हे धान के सीघ
    ये हमर धरती दाई के कोरा…..!

    टेपरा,घांघरा,घंटी अरोले होगे संझा के बेरा
    टोपली-चुरकी,झोला धर,चलौ लगाबो फेरा…….
    धान सकेल बेच,खजानी लेबो
    ये खाबो खोवा,जलेबी,केरा…!

    दान पाबो,दान करबो,ये आये हे सुघ्घर बेरा
    चार दिन के चटक चांदनी,झन कर तेरा मेरा…..
    दाई अन्नपूर्णां के आसीस ले
    भरय ये ढाबा-कोठी फुलेरा……!

    छेरिक छेरा छेर मरकनिन छेर छेरा
    माई कोठी के धान ल हेर हेरा
    अरन बरन कोदो दरन,जभे देबे तभे टरन
    आये हे अन्नदान के सुघ्घर परब छेर-छेरा…।।

    ~ राजकुमार ‘मसखरे’
    मु.-भदेरा (गंडई)
    जि.-के.सी.जी.(छ.ग.)

  • दिल एक मंदिर / पद्म मुख पंडा

    दिल एक मंदिर / पद्म मुख पंडा

    दिल एक मंदिर

    दिल एक मंदिर / पद्म मुख पंडा

    मंदिरों में, अगर, भगवान रहा होता
    हर कोई भक्त, बहुत धनवान, रहा होता!

    गरीबी में, जिंदगी, यूँ नहीं गुजरती,
    मजे में, हर कोई इन्सान ,रहा होता!

    सच्चाई की, न उड़ती ,यूँ धज्जियां,
    झूठ से, न कोई भी, परेशान रहा होता!

    न्याय, न गिडगिडाता ,कभी न्यायालय में,
    शिकंजे में, हर कोई, बेईमान रहा होता!

    सदाचारी को ,न मिलती, सजा कभी,
    अपराधी, न कभी ,सीना तान रहा होता!

    ढोंग और पाखंड के, ये सब अड्डे हैं!
    काश, किसी गरीब का, मकान रहा होता !

    पद्ममुख पंडा
    ग्राम महा पल्ली पोस्ट लोइंग जिला रायगढ़
    छत्तीसगढ़ 496001

  • प्रलय / रमेश कुमार सोनी

    प्रलय / रमेश कुमार सोनी

    प्रलय / रमेश कुमार सोनी

    Hindi Poem Collection on Kavita Bahar

    दिख ही जाता है प्रलय ज़िंदगी में
    दुर्घटना में पूरे परिवार के उजड़ जाने से,
    बाढ़,सूनामी,चक्रवात से और
    किसी सदस्य के घर नहीं लौटने से
    प्रलय की आँखों में ऑंखें डालकर
    कौन कहेगा कि नहीं डरता तुझसे।

    आख़िरी क्षण होगा जब हम नहीं होंगे
    चिंता,फिक्र और तमाम सोच के
    उस पार होगी तो सिर्फ चिरनिद्रा
    ना भूख होगी ना सपने और ना ही उम्मीदें।

    प्रलय के रुपों में हैं-
    युद्ध का भयाक्रांत शोर
    चक्रवात,सूनामी और भूकम्प के ताण्डव संग
    सृष्टि के संहार का बवंडर
    इंसानी करतूतें बुलाती हैं इसे क्योंकि वह
    प्रदूषण का कम्बल ओढ़े बेफ़िक्र है।

    प्रलय की भाषा अलग है लेकिन
    सब कुछ निगलकर भी ये डकार नहीं लेता
    प्रकृति के संहार का ये तरीका पुराना है
    विज्ञान इसे पढ़ नहीं पा रहा
    इतरा रहे हैं लोग भोगवादी दुनिया में
    प्रलय के साथ सेल्फी लेने तत्पर हैं लोग!
    किसे भेजेंगे,कौन लाइक करेगा?

    प्रलय आरम्भ भी है नयी दुनिया का
    शास्त्रों में वर्णित हैं ये घटनाएँ
    जिसका आरम्भ है उसका अंत भी निश्चित है
    आइए वर्तमान को मुस्कुराते हुए जी लें
    सर्वे भवन्तु सुखिनः…के संकल्प से।
    ……
    रमेश कुमार सोनी
    रायपुर,छत्तीसगढ़

  • पालक जागरूकता पर कविता / डॉ विजय कन्नौजे

    पालक जागरूकता पर कविता / डॉ विजय कन्नौजे

    पालक जागरूकता पर कविता / डॉ विजय कन्नौजे

    पालक जागरूकता पर कविता / डॉ विजय कन्नौजे

    बुलाते हैं शिक्षक पालक को
    पर आते नहीं है लोग।
    पालक बालक जागरूक हो
    शिक्षक को लगाते दोष।

    अनुशासन की पाठ कहें तो
    कुछ शिक्षक नही निर्दोष।
    गेहूं के संग है कुछ घुन पीसे
    शिक्षक गरिमा हो दोस्त।।

    शिक्षा विभाग पद गरिमा
    मानते हैं लोग गुरूनंत।
    विद्यालय है एक मंदिर
    जहां बाल रूप भगवंत।।

    बाल पाल अरू गुरू मिल
    करें सदा विचार।
    संस्कार सृजन हेतु सबन
    ध्यान देवें सरकार।।

  • चमकते सितारे/ आशीष कुमार

    चमकते सितारे/ आशीष कुमार

    चमकते सितारे

    चमकते सितारे/ आशीष कुमार

    नन्हे नन्हे और प्यारे प्यारे
    आसमान में चमकते सितारे
    देखा दूर धरती की गोद से
    लगता पलक झपकाते सारे

    ऊपर कहीं कोई बस्ती तो नहीं
    जहाँ के चिराग दिखाएँ नजारे
    उड़ा ले गया कोई जुगनुओं को
    आकाशगंगा सा टिमटिमाते सारे

    जला आया कोई दीपक लाखों
    या मोमबत्तियाँ धरती को निहारें
    लालटेनों की रोशनी तो नहीं
    जो सुबह-सवेरे बुझ जाते बेचारे

    जड़ दिए हो किसी ने हीरे-मोती
    शान से उस जहाँ में दमकते न्‍यारे
    छुपते कभी बादलों की ओट में
    आँख मिचौली जैसे करते सारे

    हम भी चमके आसमान में
    घर वाले हैं कहते हमारे
    ध्रुव तारा या सप्तर्षि सा बन
    यूँ ही सबके हो जाते दुलारे

    • आशीष कुमार
      मोहनिया, कैमूर, बिहार