Author: कविता बहार

  • श्रम के देवता- किसान हिंदी कविता / वीरेंद्र शर्मा

    श्रम के देवता- किसान हिंदी कविता / वीरेंद्र शर्मा

    श्रम के देवता- किसान हिंदी कविता / वीरेंद्र शर्मा

    वीरेंद्र शर्मा की “श्रम के देवता किसान” एक शक्तिशाली हिंदी कविता है जो हमारे समाज में किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका का प्रतीक है। यह उनकी अटूट प्रतिबद्धता और राष्ट्र के पोषण में उनके योगदान की प्रशंसा करता है। यह काव्यात्मक कृति किसानों के अथक प्रयासों और भूमि के साथ उनके दिव्य संबंध की गहरी सराहना करती है। वीरेंद्र शर्मा ने कुशलतापूर्वक किसानों को सच्चे नायकों के रूप में चित्रित किया है जो सभी के लिए खाद्य सुरक्षा और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए निस्वार्थ भाव से कड़ी मेहनत करते हैं।

    वीरेंद्र शर्मा की “श्रम के देवता किसान” हिंदी में किसान की कड़ी मेहनत के सार और महत्व को खूबसूरती से दर्शाती है। यह किसानों को श्रद्धांजलि अर्पित करता है, हमारे समाज को बनाए रखने और राष्ट्र को खिलाने में उनकी दिव्य भूमिका पर प्रकाश डालता है। यह हृदयस्पर्शी कविता एक काव्यात्मक कृति है जो हमारे किसान समुदाय के समर्पण और लचीलेपन की गहरी प्रशंसा करती है। दिव्य मजदूर – किसान एक शक्तिशाली हिंदी कविता है जो हमारे समाज में किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका का प्रतीक है। यह उनकी अटूट प्रतिबद्धता और राष्ट्र के पोषण में उनके योगदान की प्रशंसा करता है। यह काव्यात्मक कृति किसानों के अथक प्रयासों और भूमि के साथ उनके दिव्य संबंध की गहरी सराहना करती है।

    शीर्षक: श्रम के देवता – किसान/वीरेन्द्र शर्मा

    Labour श्रम के देवता- किसान

    जाग रहा है सैनिक वैभव, पूरे हिन्दुस्तान का,

    गीता और कुरान का।

    मन्दिर की रखवारी में बहता ‘हमीद’ का खून है,

    मस्जिद की दीवारों का रक्षक ‘त्यागी’ सम्पूर्ण है।

    गिरजेघर की खड़ी बुर्जियों को ‘भूपेन्द्र’ पर नाज है,

    गुरुद्वारों का वैभव रक्षित करता ‘कीलर’ आज है।

    धर्म भिन्न हैं किंतु एकता का आवरण न खोया है,

    फर्क कहीं भी नहीं रहा है पूजा और अजान का।

    गीता और कुरान का,

    पूरे हिन्दुस्तान का।

    दुश्मन ने इन ताल तलैयों में बारूद बिछाई है,

    खेतों-खलियानों की पकी फसल में आग लगाई है।

    खेतों के रक्षक-पुत्रों को, मां ने आज जगाया है,

    सावधान रहने वाले सैनिक ने बिगुल बजाया है।

    पतझर को दे चुके विदाई, बुला रहे मधुमास हैं,

    गाओ मिलकर गीत सभी, श्रम के देवता किसान का।

    गीता और कुरान का,

    पूरे हिन्दुस्तान का।

    सीमा पर आतुर सैनिक हैं, केसरिया परिधान में,

    संगीनों से गीत लिख रहे हैं, रण के मैदान में।

    माटी के कण-कण की रक्षा में जीवन को सुला दिया,

    लगे हुए गहरे घावों की पीड़ा तक को भुला दिया।

    सिर्फ तिरंगे के आदेशों का निर्वाह किया जिसने,

    पूजन करना है ‘हमीद’ जैसे हर एक जवान का।

    गीता और कुरान का,

    पूरे हिन्दुस्तान का।

    खिलते हर गुलाब का सौरभ, मधुवन की जागीर है,

    कलियों और कलम से लिपटी, अलियों की तकदीर है।

    इसके फूल-पात पर, दुश्मन ने तलवार चला डाली,

    शायद उसको ज्ञान नहीं था, जाग गया सोया माली।

    गेंदे और गुलाबों से सब छेड़छाड़ करना छोड़ो,

    बेटा-बेटा जागरूक है, मेरे देश महान् का।

    गीता और कुरान का,

    पूरे हिन्दुस्तान का।

  • तुझे कुछ और भी दूँ !/ रामअवतार त्यागी

    तुझे कुछ और भी दूँ !/ रामअवतार त्यागी

    तुझे कुछ और भी दूँ !/ रामअवतार त्यागी


    तन समपित, मन समर्पित

    और यह जीवन समर्पित

    चाहता हूँ, देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ!

    माँ ! तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन

    किंतु इतना कर रहा फिर भी निवेदन,

    थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब

    स्वीकार कर लेना दयाकर वह समर्पण !

    गान अर्पित, प्राण अर्पित

    रक्त का कण-कण समर्पित

    चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ!

    माँज दो तलवार को, लाओ न देरी

    बाँध दो कसकर कमर पर ढाल मेरी

    भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी

    शीश पर आशीष की छाया घनेरी

    स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित

    आयु का क्षण-क्षण समर्पित

    चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।

    तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो,

    गाँव मेरे, द्वार-घर आँगन क्षमा दो,

    आज बाएँ हाथ में तलवार दे दो,

    और सीधे हाथ में ध्वज को क्षमा दो !

    ये सुमन लो, यह चमन लो

    नीड़ का तृण-तृण समर्पित

    चाहता हूँ देश की धरती तुझ कुछ और भी दूँ!

  • बज उठी रण-भेरी / शिवमंगलसिंह ‘सुमन’

    बज उठी रण-भेरी / शिवमंगलसिंह ‘सुमन’

    बज उठी रण-भेरी / शिवमंगलसिंह ‘सुमन’

    shivmangal singh 'suman '
    शिवमंगल सिंह ‘सुमन ‘



    मां कब से खड़ी पुकार रही,

    पुत्रों, निज कर में शस्त्र गहो ।

    सेनापति की आवाज हुई,

    तैयार रहो, तैयार रहो।

    आओ तुम भी दो आज बिदा,

    अब क्या अड़चन, अब क्या देरी ?

    लो, आज बज उठी रण-भेरी।

    अब बढ़े चलो अब बढ़े चलो,

    निर्भय हो जय के गान करो।

    सदियों में अवसर आया है,

    बलिदानी, अब बलिदान करो।

    फिर मां का दूध उमड़ आया बहनें देतीं मंगल-फेरी !

    लो, आज बज उठी रण-भेरी।

    जलने दो जौहर की ज्वाला,

    अब पहनो केसरिया बाना ।

    आपस की कलह-डाह छोड़ो,

    तुमको शहीद बनने जाना ।

    जो बिना विजय वापस आये मां आज शपथ उसको तेरी !

    लो, आज बज उठी रण-भेरी।

  • सबकी प्यारी भूमि हमारी / कमला प्रसाद द्विवेदी

    सबकी प्यारी भूमि हमारी / कमला प्रसाद द्विवेदी



    सबकी प्यारी भूमि हमारी, धनी और कंगाल की।

    जिस धरती पर गई बिखेरी, राख जवाहरलाल की ।।

    दबी नहीं वह क्रांति हमारी, बुझी नहीं चिनगारी है।

    आज शहीदों की समाधि वह, फिर से तुम्हें पुकारी है।

    इस ढेरी को राख न समझो, इसमें लपटें ज्वाल की।

    जिस धरती पर… ॥१॥

    जो अनंत में शीश उठाएं, प्रहरी बन था जाग रहा।

    प्राणों के विनिमय में अपना, पुरस्कार है माँग रहा।

    आज बज गई रण की श्रृंगी, महाकाल के काल की।

    जिस धरती पर… ॥२॥

    जिसके लिए कनक नगरी में, तूने आग लगाई है।

    जिसके लिए धरा के नीचे, खोदी तूने खाई है।

    सगर सुतों की राख जगाती, तुझे आज पाताल की।

    जिस धरती पर… ॥३॥

    रण का मंत्र हुआ उद्घोषित, स्वाहा बोल बढ़ो आगे।

    हर भारतवासी बलि होगा, आओ चलो, चढ़ो आगे।

    भूल न इसको धूल समझना, यह विभूति है भाल की।

    जिस धरती पर… |४||

  • जीत मरण को वीर / भवानी प्रसाद तिवारी

    जीत मरण को वीर / भवानी प्रसाद तिवारी

    जीत मरण को वीर / भवानी प्रसाद तिवारी

    bhawani prasad tivari
    भवानी प्रसाद तिवारी



    जीत मरण को वीर, राष्ट्र को जीवन दान करो,

    समर-खेत के बीच अभय हो मंगल-गान करो।

    भारत-माँ के मुकुट छीनने आया दस्यु विदेशी,

    ब्रह्मपुत्र के तीर पछाड़ो, उघड़ जाए छल वेशी।

    जन्मसिद्ध अधिकार बचाओ, सह-अभियान करो,

    समर-खेत के बीच, अभय हो, मंगल-गान करो।

    क्या विवाद में उलझ रहे हो हिंसा या कि अहिंसा ?

    कायरता से श्रेयस्कर है छल-प्रतिकारी हिंसा।

    रक्षक शस्त्र सदा वंचित है, द्रुत संधान करो,

    समर-खेत के बीच, अभय हो मंगल-गान करो।

    कालनेमि ने कपट किया, पवनज ने किया भरोसा,

    साक्षी है इतिहास विश्व में किसका कौन भरोसा ।

    है विजयी विश्वास ‘ग्लानि’ का अभ्युत्थान करो,

    समर-खेत के बीच, अभय हो मंगल-गान करो।

    महाकाल की पाद-भूमि है, रक्त-सुरा का प्याला,

    पीकर प्रहरी नाच रहा है देशप्रेम मतवाला ।

    चलो, चलो रे, हम भी नाचें, नग्न कृपाण करो,

    समर-खेत के बीच, अभय हो मंगल-गान करो।

    आज मृत्यु से जूझ राष्ट्र को जीवन दान करो,

    रण-खेतों के बीच अभय हो मंगल-गान करो।