आओ चले गाँव की ओर
आओ चले गाँव की ओर
गाँव की मिट्टी बुलाती उन्मुक्त गगन ओर
रस बस जाए गाँव में ही,
स्वर्ग सी अनुभूति होती यहीं।
खुला आसमाँ, ये सारा जहाँ
स्वछंद गाते, नाचते भोली सूरत यहाँ।
आओ चले गाँव की ओर
गाँव की मिट्टी बुलाती उन्मुक्त गगन ओर
आमों के बगीचे हैं मन को लुभाते,
फुलवारियाँ संग-संग हैं सबको झूमाते ,
झूम-झूम कर खेतों में गाते हैं फसलें,
मदहोश सरसों संग सब गाते हैं वसंती गजलें।
आओ चले गाँव की ओर
गाँव की मिट्टी बुलाती उन्मुक्त गगन ओर
संस्कारों का निराली छटा है हर जहाँ,
नये फसलें संग त्यौहार मिलकर मनाते यहाँ।
प्यारी बोलियाँ ,मधुर गाने गूँजते कानों में
स्वर्णिम किरणें चमकते दैहिक खानों में
आओ चले गाँव की ओर
गाँव की मिट्टी बुलाती उन्मुक्त गगन ओर
एकता सूत्र में बंधे हैं सब जन,
भय, पीड़ा से उन्मुक्त है सबका अन्तर्मन।
पुष्प सा जनमानस जाते हैं खिल यहाँ,
वर्षा खुशियों की होती हैं हर पल यहाँ।
आओ चले गाँव की ओर
गाँव की मिट्टी बुलाती उन्मुक्त गगन ओर
रीतु देवी
दरभंगा, बिहार
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद