क्या होती है निराशा
लेती जो छीन जीने की आशा
पेंचीदा है ,इसकी परिभाषा
सवालों से घिरे बयां करते चेहरे,
बता रहे क्या होती है निराशा।।
खो गई मुस्कान कहीं दूर
किस्मत में नहीं, वो भी मंजूर
आंखो में छाई, काली घटा
आंसू भी बरसने को मजबूर।।
टूटे सपनों को फिर जोड़ना चाहूं
जो साथ छोड़े,उन्हें छोड़ना चाहूं
हवाएं भी अपना रुख बदल रही
उन्हें भी अपनी तरफ मोड़ना चाहूं।।
खुद ही सम्हल जाऊ या खुद को हताश कर दूं
गिर कर उठ जाऊं या खुद का विनाश कर दूं
रूठी- सी जिंदगी में अब बचा ही क्या है?
आए जो निराशा दर पर मेरे,उसे भी निराश कर दूं।।
धनेश्वर पटेल
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