Author: कविता बहार

  • शिक्षक दिवस पर कविता

    शिक्षक दिवस पर कविता

    शिक्षक से है ज्ञान प्रकाश ।
    शिक्षक  से बंधती है आस।
    शिक्षक में करुणा का वास।
    जिनके कृपा से चमके अपना ताज।
    चलो मनाएं , शिक्षक दिवस आज।

    शिक्षक दिलाते हैं पहचान ।
    शिक्षक से ही बनते  महान ।
    शिक्षक होते गुणों की खान।
    निभायेंगे हम ये सम्मान का रिवाज।
    चलो मनाएं , शिक्षक दिवस आज।

    जग में सुंदर,  गुरू से नाता।
    बिन गुरु ज्ञान कौन है पाता?
    गुरु ही होते हैं  सच्चे विधाता ।
    शीश नवाके आशीष पाऊंगा आज ।
    चलो मनाएं , शिक्षक दिवस आज।

    शिक्षक होते हैं रचनाकार ।
    ज्ञान से करते हैं चमत्कार ।
    बंजर में भी ला देते हैं बहार।
    वो जो चाहे वैसे बन जायेगी समाज।
    चलो मनाएं , शिक्षक दिवस आज।

     मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़

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  • 9 नवम्बर राष्ट्रीय क़ानूनी साक्षरता दिवस पर कविता

    9 नवम्बर राष्ट्रीय क़ानूनी साक्षरता दिवस

    अन्याय जब हद से बढ़ जाए ,
    बेईमानी सर पे चढ़ जाए ।
    समाज में निज मान पाने को
    जो अपने हक पे लड़ जाए ।
    आज है जिसकी आवश्यकता ,
    वो है, वो है कानूनी साक्षरता ।।
    न्याय सभी के लिए, चाहे अज्ञानी निर्धन ।
    बिन इसके कैसे ? हो सुरक्षित जनजीवन ।
    सही न्याय मिले,शीघ्र न्याय मिले ,
    आज विकसित हो जिससे मानवता ।
    वो है, वो है कानूनी साक्षरता ।।
    कानून के आंखे फैसला करें समभाव से ।
    निष्पक्षता बनी रहे निर्णय ना हो दबाव से ।
    लोक अदालत हो ,सच्चा वकालत हो ,
    असहाय को जो देगी, शीघ्र सहायता।
    वो है, वो है कानूनी साक्षरता ।।
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     मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़

  • 16 सितंबर विश्व ओजोन दिन विशेष

    16 सितंबर विश्व ओजोन दिन विशेष

    ओजोन परत के संरक्षण के अंतर्राष्ट्रीय दिवस

    सूरज है आग का गोला ।
    जलता है ,बनकर शोला ।

    किरणों में है ,पराबैंगनी ।
    सबके लिए ,घातक बनी।

    धन्यभाग, हम मानव का।
    जो कवच है इस धरा का।

    ओज़ोनपरत वो कहलाए।
    घातक किरणें आ ना पाए।

    आज छेद होने का है डर ।
    भोग विलास का है असर ।

    एसी फ्रिज उर्वरक से रिसे।
    क्लोरोफ्लोरोकार्बन  गैसें ।

    यह नहीं, पानी में घुलती ।
    पर्त में सीधे हमला करती।

    जहर ओजोनछिद्र बनाता।
    पराबैंगनी सीधे धरा आता।

    फैले कैंसर ,चर्म-नेत्र रोग ।
    हाहाकार करते सब लोग ।

    नहीं खतरा एक ही देश को।
    चेतावनी है मानव लोक को।

    प्रदूषण कम करें,बचायें जान।
    मिलजुल कोशिश से आसान।

    संभलजा तू! अभी मुमकिन ।
    कहे16 सितंबर ओजोन दिन।

     मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़

  • वीरांगना बिलासा बाई वीरगाथा पर दोहे

    (वीरांगना बिलासा बाई निषाद की वीर गाथा,जिसके नाम से छ.ग. के सुप्रसिद्ध शहर-बिलासपुर का नाम पड़ा)
    (जनश्रुति के अनुसार)

    वीरांगना बिलासा बाई वीरगाथा पर दोहे

    बहुत समय की बात है,वही रतनपुर राज।
    जहाँ बसे नर नारि वो,करते सुन्दर काज।।1।।
    केंवट लगरा गाँव के,कुशल परिश्रमदार।
    कर आखेटन मत्स्य का,पालत स्व परिवार।।2।।
    तट देखन अरपा नदी,इक दिन पत्नी साथ।
    पत्नी बैसाखा कही,लिए हाथ में हाथ।।3।।
    दोनों की थी कामना,सुन्दर हो सन्तान।
    बैसाखा तो दे गई,कन्या का वरदान।।4।।
    सुन्दर सौम्य स्वरूप वो,दिया बिलासा नाम।
    पिता परशु हर्षित हुआ,देख बिलासा काम।।5।।
    बचपन बीता खेल में,शस्त्र कला की चाह।
    मर्दानों सी तेज वो,करे नहीं परवाह।6।।      
    साहस उनमें थी भरी,शौर्य पराक्रमवान।
    दुश्मन तो ठहरे नहीं,कोई वीर जवान।।7।।
    नाव चलाना तो उसे,देख लोग थर्राय।
    सभी काम में दक्ष वो,युद्ध नीति अपनाय।।8।।
    अरपा की धारा प्रबल,रही बिलासा डूब।
    बंशी जी ने थाम कर,दिया किनारा खूब।।9।।
    मधुर प्रेम का जन्म तब,अरपा नदी गवाह।
    वरमाला विधि से हुआ,अद्भुत हुआ उछाह।।10।।
    पहुँचे नृप इक दिन यहाँ,राज रतनपुर धाम।
    अपने सैन्य समेत वो,आखेटक ले काम।।11।।
    प्यासा राजा प्यास से,तड़प उठा इक बार।
    चल आये अरपा नदी,पाये थे सुख चार।।12।।

    फिर तो हिंसक भेड़िया,किये अचानक वार।
    घायल कइ सेना हुये,बहे रुधिर की धार।।13।।

    किया बिलासा वार तब,राजा प्राण बचाय।
    हर्सित राजा थे हुए,सेवा से सुख पाय।।14।।
    हुए बिलासा गर्व तब,बंशी फुले समाय।
    फैली चर्चा राज्य में,जहाँगीर तक जाय।।15।।
    बंशी दिल्ली चल दिए,गए बिलासा साथ।
    सम्मानित दोनों हुए,मिला हाथ से हाथ।।16।।
    अरपा तट जागीर भी,दिए बिलासा राज।
    बरछी तीर कमान से,करती थी वो काज।।17।।
    बना बिलासा गाँव जो,वो केंवट की शान।
    नगरी बना बिलासपुर,है उन पर अभिमान।।18।।
    मल्ल युद्ध में अग्रणी,डरते थे अंग्रेज।
    रहते थे भयभीत सब,छुप जाते थे सेज।।19।।
    तोड़ सुपारी हाथ से,करे अचम्भा खेल।
    बगल दबाके नारियल,दिए निकाले तेल।।20।।
    लौह हाथ से मोड़ते,बाजीगर तलवार।
    नींद बिलासा ने लुटी,मुगलों की सरकार।।21।।
    जहाँगीर दिल खोल के,कहा बिलासा मात।
    सेनापति बन के लड़ो,लो दुश्मन प्रतिघात।।22।।
    मान बढ़ा कौशलपुरी,सेनापति बन आय।
    वंश कल्चुरी शान को,दुनिया में फैलाय।।23।।
    अमर बिलासा हो चली,अद्भुत साहस वीर।
    केंवट की बेटी वही,सहज सौम्य गम्भीर।।24।।
    गर्व निषाद समाज की,मर्यादा की खान।
    ध्वजा वाहिका संस्कृति,नाम बिलासा मान।।25।।
    बोधन करत प्रणाम है, मातु बिलासा आज।
    केंवट कुल की स्वामिनी,किये पुण्य के काज।।26।।
    अरपा की इस धार को,देखूँ बारम्बार।
    सुन्दर दमके चेहरा,चमक उठे हर बार।।27।।
    छत्तीसगढ़ी शान है, मातु बिलासा मान।
    देखो आज बिलासपुर,है इसकी पहचान।।28।।
    रचनाकार:-
    बोधन राम निषादराज “विनायक”
    व्याख्याता वाणिज्य
    सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

  • कब्र की ओर बढ़ते कदम -रमेशकुमार सोनी

    कब्र की ओर बढ़ते कदम

    पतझड़ में सूखे पत्ते विदा हो रहे हैं
    विदा ले रहे हैं, खाँसती आवाज़ें ज़माने से
    कुछ पल जी लेने की खुशी से
    वृद्धों का झुंड टहलने निकल पड़ा है
    दड़बों से पार्क की उदास बेंच की ओर
    उनकी धीमी चाल और छड़ी से चरमराते पत्ते सिसक पड़े हैं।
    बेंच पर बैठे हैं कुछ ठूँठ से पेड़
    पतझर में बतियाते अपने किस्से
    किसी को रिश्तों की दीमक ने चाटा,
    किसी का भरोसा टूटा,
    कुछ को अपनों ने बेघर किया………. , 
    गूगल से दुश्मनी ठाने टूटी ऐनक से
    झाँक रहा है इनका विश्वास वृद्धाश्रम में
    ये पतझड़ कब तक रहेगा ?
    क्या भविष्य के वक्त का भी ऐसा ही पतझड़ होगा
    पीला, सूना, चरमराता, परित्यक्त और बुहार दिया गया जैसे ? 
    घर के कूड़े– कचरे के जैसा।
    वृध्द इस देश की वैचारिक धरोहर हैं
    बौद्धिकता की टकसाल हैं
    अनुभवों की पोटली लिए फिरते खुली किताब हैं
    इन्हें इस तरह बुहार दिया जाना ज़माने को भारी पड़ेगा
    भविष्य में सभ्यताएं इसे कोसेंगी।
    किसी की राह ताकते जिंदा हैं इनकी सांसे
    कभी तो कोई इनकी उँगली थाम कहेगा– 
    कहानी सुनाओ ना दादीजी, 
    आपकी दाढ़ी कितनी चुभती है,
    आपका ऐनक टूट गया है, मेरे गुल्लक में पैसे हैं
    आपके बर्थडे में गिफ्ट दूँगा……
    बेंच में गूंज रहा है ऐसा ही ठहाका
    बचपन की बातें, जवानी की यादें, बुढ़ापे का दर्द
    लौट रहे हैं ये कदम शाम ढले अपने घरों की ओर
    जहाँ अब उनके नाम की तख्ती बदल दी गयी है
    कब्र की ओर बढ़ते कदम धीमे हो जाते हैं।।
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    रमेशकुमार सोनी बसना छत्तीसगढ़
    पिन 493554  मोबाइल7049355476