Author: कविता बहार

  • प्यार एक दिखावा

    प्यार एक दिखावा

    न कसमें थीं न वादे थे
    फिर भी अच्छे रिश्ते थे
    आखों से बातें होती थीं
    कुछ कहते थे न सुनते थे
    न आना था न जाना था
    छत पर छुप कर मिलते थे
    वो अपनी छत हम अपनी छत
    बस दूर से देखा करते थे
    अब कसमें है और वादे है
    और प्यार एक दिखावा है
    आखों से कुछ कहना मुश्किल
    होंठ ही सब कुछ कहते हैं
    दिल में  जाने क्या है किसके
    ऊपर से प्रेम जताते हैं
    बात बात पर लड़ते हैं
    इक दूजे पर हक जताते हैं
    छत पर अब कैसा मिलना
    बंद कमरे ढूँढा करते हैं
    प्यार अब व्यापार बन गया
    रिश्ते बदले मतलब में
    दिल में जाने क्या बसता है
    इक दूजे की खातिर
    समझ न कोई पाता है
    परिवार और समाज  के डर से
    बेमन से रिश्ते निभाते हैं ।।।।।।

    राकेश नमित

  • प्रीत की रीत

    प्रीत की रीत

    चंद्र गगन में आधा हो ,
    प्रिय से मिलन का वादा हो ,
    बनता है इक गीत|
    निस दिन अंखियां बरसी हो ,
    पिया मिलन को तरसीं हों
    बढ़ती है तब प्रीत|
    जब सारी रस्में निभानीं हो,
    छोटी जिंदगानीं हो,
    सजती है तब  प्रीत की रीत|
    सपनें देखें संग संग में ,
    प्यार पले दोनों मन में ,
    बनते तब वे सच्चे मीत|
    दिल से दिल का मिलन हो ,
    खुशियों का आंगन हो,
    जीवन बन जाता  संगीत |

    कुमुद श्रीवास्तव वर्मा.

  • तीन ताँका – प्रदीप कुमार दाश

    तीन ताँका

    नेकी की राह
    छोड़ते नहीं पेड़
    खाये पत्थर
    पर देते ही रहे
    फल देर सबेर ।

    जेब में छेद
    पहुँचाता है खेद
    सिक्के से ज्यादा
    गिरते यहाँ रिश्ते
    अचरज ये भेद ।

    डूबा सूरज
    डूबते वक्त दिखा
    रक्तिम नभ
    लौट रहे हैं नीड़
    अनुशासित खग ।       

    ~ ● ~ □ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”

  • प्रजातंत्र पर कविता

    प्रजातंत्र पर कविता


    जहरीला धुंआ है चारो ओर,
    मुक्त हवा नहीं है आज,
    पांडव सर पर हाथ धरे हैं,
    कौरव कर रहे हैं राज!

    समाज जकड़ा जा रहा है,
    खूनी अमरबेल के पंजों में,
    नित्य फंसता ही जा रहा है,
    भ्रष्टाचार के शिकंजों में!

    आतंक का रावण
    अट्टहास कर रहा है,
    कहने को है प्रजातंत्र,
    अधिकारों का हनन,
    कोई खास कर रहा है!

    शासन की बागडोर है,
    उनके हाथ,गुंडे-लफंगे हैं ,
    जिनके साथ!
    भ्रष्ट राजनीति के शोरगुल में,
    दबकर रह गई है,
    आमजन की आवाज़!

    पांडव सर पर हाथ धरे हैं,
    कौरव कर रहे हैं राज…..
    —-
    डा.पुष्पा सिंह’प्रेरणा’
    अम्बिकापुर।

  • सुनो एक काम करते हैं

    सुनो एक काम करते हैं

    सुनो एक काम करते हैं दोनों भाग जाते हैं
    चलेंगे उस जगह पे हम जहां सब मुस्कुराते हैं
    बहारों का हंसी मौसम जहाँ हर रोज़ रहता हो
    पपीहे पीहू पीहू के जहाँ पे गीत गाते हैं

    दूर तक फैला हो अम्बर क्षितिज सा इक नज़ारा हो
    बीच खेतों के सुंदर सा वहीं इक घर हमारा हो
    जिसके अँगने में सभी पँछी डाल पे चहचहाते हैं
    सुनो एक काम ………….

    नहीं है ये कोई सौदा,नहीं है कोई लाचारी
    सच्चा प्यार दिल में है तो करलो तुम ये तैयारी
    जानेमन न घबराओ हम तुमपे जान लुटाते हैं
    सुनो एक काम…..

    ज़रा दो हाथ हाथों में तुमसे वादा इक करना है
    ये ‘चाहत’ दिललगी सब कुछ तुम्हारे नाम करना है
    चलो न प्रेम की प्यारी सी हम बगिया सजाते हैं
    सुनो एक काम …….

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    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
    झाँसी