छत्तीसगढ़ी संस्कृति
दक्षिण कोशल के बीहड़ वन में
साल, सागौन की है भरमार
सतपुड़ा पठार शोभित उत्तर में
मध्य है महानदी बस्तर पठार
देखो छत्तीसगढ़ की छटा मनोहर
चलो करें हम वन विहार ।।
है छत्तीसगढ़ का खेल ये अनुपम
फुगड़ी,लंगड़ी,अटकन-बटकन
कैलाश गुफा, बमलेश्वरी मंदिर का
देख नजारा खो जाता है मन
ऐसे भव्य प्रदेश में आकर
बाँटू सभी से अपना प्यार ।।
यहाँ खाने को व्यंजन लजीज़ है
चीला, भजीया- भुजिया ,मुठिया
साबूदाने की खिचड़ी की स्वाद
और मशहुर यहाँ की है पकवान
खूब खिलाते,प्यार लुटाते
और करते आदर सत्कार ।।
छत्तीसगढ़ी नारी की मनोहारी आभूषण
झुमका, खिनवा, लुरकी, तिरकी
पहनावा की भी बात निराली
लहगा, साया, सलुखा, लुगरी
देख मेरा मन बसा यही पर
छत्तीसगढ़ी नारी की मनमोहक श्रंगार।।
लोकगीत यहाँ की बड़ी ही उतम
चंदैनी,पाँडवानी और ढोलामारू
भाँति-भाँति के जनजाति यहाँ मिलते
अधरीया,अतरा, गोंडा,उरावं
ऐसी लोकसंस्कृति को देखकर
जीवन हो जाता साकार ।।
पर्वत सिंहावा में ऋषि श्रंगी बसते
गुरु घासीदास,गहिरा महान
गौरा-गौरी के लोकनृत्य से
परिचित है सब लोग जहाँन
ऐसी विहंगम नृत्य को देखने
आता रहूँगा बार- बार।।
✒️बाँके बिहारी बरबीगहीया