Author: कविता बहार

  • छत्तीसगढ़ी संस्कृति

    छत्तीसगढ़ी संस्कृति

    1 नवम्बर छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस 1 November Chhattisgarh State Foundation Day
    1 नवम्बर छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस 1 November Chhattisgarh State Foundation Day

    दक्षिण कोशल के बीहड़ वन में
    साल, सागौन की है भरमार
    सतपुड़ा पठार शोभित उत्तर में
    मध्य है महानदी बस्तर पठार
    देखो छत्तीसगढ़ की छटा मनोहर
    चलो करें हम वन विहार ।।


         है छत्तीसगढ़ का खेल ये अनुपम
         फुगड़ी,लंगड़ी,अटकन-बटकन
          कैलाश गुफा, बमलेश्वरी मंदिर का
          देख नजारा खो जाता है मन
         ऐसे भव्य प्रदेश में आकर
         बाँटू  सभी से अपना प्यार ।।


    यहाँ खाने को व्यंजन लजीज़ है
    चीला, भजीया- भुजिया ,मुठिया
    साबूदाने की खिचड़ी की स्वाद
    और मशहुर यहाँ की है पकवान
    खूब खिलाते,प्यार लुटाते
    और करते आदर सत्कार ।।


         छत्तीसगढ़ी नारी की मनोहारी आभूषण
         झुमका, खिनवा, लुरकी, तिरकी
         पहनावा की भी बात निराली
         लहगा, साया, सलुखा, लुगरी
         देख मेरा मन बसा यही पर
         छत्तीसगढ़ी नारी की मनमोहक श्रंगार।।


    लोकगीत यहाँ की बड़ी ही उतम
    चंदैनी,पाँडवानी और ढोलामारू
    भाँति-भाँति के जनजाति यहाँ मिलते
    अधरीया,अतरा, गोंडा,उरावं
    ऐसी लोकसंस्कृति को देखकर
    जीवन हो जाता साकार ।।


         पर्वत सिंहावा में ऋषि श्रंगी बसते
         गुरु घासीदास,गहिरा महान
         गौरा-गौरी के लोकनृत्य से
         परिचित है सब लोग जहाँन
         ऐसी विहंगम नृत्य को देखने
          आता रहूँगा बार- बार।।

    ✒️बाँके बिहारी बरबीगहीया

  • सर्दी मौसम पर कविता

    सर्दी मौसम पर कविता

    वो जाड़े की रात, ओस की बरसात,
    वो दिन का कुहासा, पढ़ने की आशा,
    बासंती पवन, मस्त होता है मन,
    वो ताजी हवाएं ,ये महकी फिजायें
    बहुत खूब भाता है सर्दी का मौसम ।।


    सर्द जाड़े की आग, मालकौस की राग,
    वो धान की कटनी , पुदीने की चटनी,
    वो सरसों का साग, ठंड रातों का आग,
    वो अरहर की दलिया मटर वाली फलियां,
    बहुत खूब भाता है सर्दी का मौसम ।।


    वो दीन का निकलना ,पता भी न चलना ,
    वो पुस का महीना, गर्म दूध पीना,
    कोयल का कुहकना, फूलों का महकना ,
    वो मोटी पोशाक, जीने की आस,
    बहुत खूब भाता है सर्दी का मौसम ।।


    वो आग वाली लिटी, हाँ जानम की चिठ्ठी ,
    वो प्रियतम की यादें, कसकती वो बातें,
    वो चेहरा नुरानी ,हाँ लड़की दीवानी ,
    ठंड में गर्म खाना, उनका मुस्कुराना,
    बहुत खूब भाता है सर्दी का मौसम ।


    कवि बाके बिहारी बरबीगहीया✒️

  • नवजीवन पर कविता

    नवजीवन पर कविता

    विविध रंग सज ऊषा, कर शृंगार।
    करती नव जीवन का ,शुभ संचार।
    उदित दिनमणि तरु ओट, बिहँसी किरन ।
    झूम करती चढ विटप, साख नर्तन।

    हुआ खग कलरव लगी, नीड़न भीर।
    जनु बहुत दिन से मिले ,होय अधीर।
    क्षुधा वश हुए व्याकुल, शिशुन निहार।
    उड़ चले नील नभ में ,पंख पसार।

    खिल गये उपवन सुमन,सुरभि बहार।
    गूँजती  लोलुप मधुप, की गुंजार।
    तरुबेल पात हिम कण , शोभा रजत।
    हर्षित मन सतरंगी , तितली लखत।

    मंगलाचरण घर- घर, खुलते द्वार।
    देवालय शंख वाद्य,ध्वनि झंकार।
    निज -निज कर्म रत हुआ , चल संसार।
    प्रात हुआ नवजीवन , सृष्टि प्रसार।

    पुष्पा शर्मा “कुसुम”

  • मेरी पलकें नमाज़ी हुई

    मेरी पलकें नमाज़ी हुई

    मेरी  पलकें  नमाज़ी  हुई  तेरे  दीदार  से
    नूर बरसता है यूँ पाक़  तेरे रुख़सार से ।
    मुजस्सिम ग़ज़ल हो मेरी, उम्र की ताजमहल का
    बेयक़ीन  हुआ  नहीं  मैं  इश्क़  में  ऐतबार  से ।
    गोया  कि  तुम  मेरे हाथ  की लकीर हो या रब
    हाथ  होता  नहीं  तो  क्या  होता जाँ निसार से ।
    मसरूफ़ियत  में  भी  हमने  सजदे  किये  तेरे
    वीरान  जज़ीरे  में  बाहर  आई  फिर प्यार  से ।
    शैदाई  हैं  शराफ़त  के हम   सुख़नवर ऐ  “अब्र”
    तसबीह-ए-दिल छोड़कर , सब ले जाओ क़रार से ।

    कलम से
    राजेश पाण्डेय “अब्र”
             अम्बिकापुर

  • सूरज का है आमंत्रण

    सूरज का है आमंत्रण

    अंधेरों से बाहर आओ,
    सूरज का है आमंत्रण!
    बिखरो न यादों के संग,
    बढ़ो,लिए विश्वासी मन!
    अतीत के पन्नों पर नूतन,
    गीत गज़ल का करो सृजन!
    भीगी आंखों को धोकर,
    भर लो अब तुम नवजीवन!
    खुशियों को कर दो ‘अर्पण’,
    जियो औरों की ‘प्रेरणा’बन!!

    -डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’