कैसे गीत लिखूं
अब मैं कैसे गीत लिखूं
कैसे प्रीत की रीत लिखूं
ना कोई संगी ना कोई साथी
जैसे तेल बिन जले है बाती
कैसे प्रीत की रीत लिखूं..
ना कोई मेल ना है मिलाप
फिर क्यों बिछोह का है आलाप
अब कैसे मैं गीत लिखूं..
इक बस तेरा ही सहारा था बस
हर पल संग तेरे ,गंवारा था बस…
तूनें ही मुंख मोड़ लिया
बरबस नाता तोड़ लिया
कैसे प्रीत की रीत लिखूं..
मेरे गीत के बोल थे तुम
मेरी नज़र में अनमोल थे तुम
मैं ही निकली सूखी पाती
जो बिन हवा के उड़ती जाती
अब मैं कैसे …
तुमको न पाकर मैं थी रोई
यादों में सिमटी सी खोई खोई
तुम क्यों मुझसे दूर हुये
न मिलनें को मजबूर हुये
अब मैं कैसे गीत लिखूं
कैसे प्रीत की रीत लिखूं…
कुमुद श्रीवास्तव वर्मा..