कलम से वार कर
परिणाम अच्छे हो या बुरे,,
उसे सहर्ष स्वीकार कर,,
किसी को दोषी मत ठहरा,,
अपने आप का तिरस्कार कर,,
समीक्षा कर अंतःकरण का,,
और फिर कलम से वार कर ।।
जहाँ तुम्हें लगे मैं गलत हूँ,,
वहाँ बेझिझक अपनी हार कर,,
अपने चिंतन शक्ति को बढ़ाकर,,
तुम ज्ञान का प्रसार कर,,
अपने अन्दर अटूट विश्वास कर ले,,
और फिर कलम से वार कर।।
साथ दे या न दे कोई,,
तो भी तुम उसका आभार कर,,
अधिकार किसी का छीना जाय,,
तो अपनी बातों से उस पर प्रहार कर,,
निस्काम भाव निःस्वार्थ सेवा में,,
फिर कलम से वार कर ।।
आएगी तुम्हारी भी बारी,,
अपनी बारी का इंतज़ार कर,,
विश्वास रखो तुम भी महान होगे,,
बस अपने गुणों का निखार कर,,
हे मानव अपने ऊपर अधिकार रख,,
और फिर कलम से वार कर ।।
रचना:– बाँकेबिहारी बरबीगहीया