बसंत बहार
शरद फुहार जाने लगी
बसंती बहार आने लगी !
कोयल की कूक गुंजे चहुँ ओर
धीरे – धीरे धूप तेज कदम नें
बाग में आम बौराने लगी!
शाम ढ़ले चहचहाते पक्षियों
घोसला को लौटने झुंड में,
पेड़ों को पत्ते पीला होकर
एक – एक कर झड़ने लगी!
खेत खलिहान मे पुआल
गाय बकरी सुबह शाम तक
निश्चिंत हो चरने लगी!
आया बसंत बहार
लाया कविता बहार!
तेरस कैवर्त्य (आँसू)
सोनाडुला, बिलाईगढ़
छ. ग.