सलिल हिंदी – डाॅ ओमकार साहू

सलिल हिंदी (सरसी छंद)

*स्वर व्यंजन के मेल सुहाने, संधि सुमन के हार।*
*रस छंदों से सज धज आई, हिंदी कर श्रृंगार..*

वर्णों का उच्चारण करतें, कसरत मुख की जान।
मूर्धा जिह्वा कंठ अधर सह, दंतो से पहचान।
ध्वनियों को आधार बनाकर, करते भेद सुजान।
*भाव सहित संदर्भ समाहित, सहज शील संचार…*
*रस छंदों से सज धज आई, हिंदी कर श्रृंगार..*

अभिव्यक्ति की सरल इकाई, मधुरस से है बोल।
तत्सम अरु तद्भव कानों में, मिश्री देते घोल।
मुहावरे गागर में सागर, सामासिक अनमोल।
*जाति धर्म में मेल बढ़ाती, सामंजित संस्कार….*
*रस छंदों से सज धज आई, हिंदी कर श्रृंगार..*

अपने ही घर में गुमसुम है, देखो हिंदी आज
अंग्रेजी उर्दू में होते, शासन के सब काज।
लौटा दो हिंदी का गौरव, आसन सत्ता राज।
*हिंदी भाषी राज्य बने सब,नाद करे टंकार…*
*रस छंदों से सज धज आई, हिंदी कर श्रृंगार..*

== डॉ ओमकार साहू *मृदुल* 14/09/22==

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