Category हिंदी कविता

hasdev jangal

हसदेव जंगल पर कविता

हसदेव जंगल पर कविता हसदेव जंगल उजार के रोगहा मन पाप कमा के मरही।बाहिर के मनखे लान केमोर छत्तीसगढ़ म भरही।। कभु सौत बेटा अपन नी होवय,सब झन अइसन कइथे।सौत भल फेर सौत बेटा नहीसौतिया डाह हर रइथे।। हसदेव जंगल…

सतनाम पर कविता

सत के रद्दा बताये गुरूसही मारग दिखाये।सहीं मारग बतायें गुरू जय‌‌‌तखाम ल गड़ाये।। चंदा सुरूज ल चिनहायेगुरु,जोड़ा खाम ल गड़ायेविजय पताका ल फहरायेसाहेब, सतनाम ल बताये।। तोरे चरनकुंड के महिमासाहेब, जन-जन ल बताये। सादा के धजा बबा,सादा तिलक तोर माथे…

हर क्षण नया है

हर क्षण नया है। साल नया आ गया गौर से देखो हर क्षण नया होता है।कुछ मिलता है, कुछ खोना होता है।हर क्षण नया होता है। जीवन के इस सफर में, कोई अपना कोई पराया होता है।सुख, दुःख की दो…

लो..और कर लो विकास पर कविता

*लो..और कर लो विकास !* ग्लेशियर का टूटना और ये भूकम्प का आनाभूस्खलन,सुरंग धसना और बादल फटना,सरकार और कॉरपोरेट जगत तो मानते हैंये सभी है महज एक सहज प्राकृतिक घटना ! इस तरह की कई हादसों का जिम्मेदार हैविकास की…

आत्म ज्ञान ही नया दिन

जिस दिन जीवन खुशहाल रहे,जिस दिन आत्मा ज्ञान प्रकाश रहे,उस दिन दीवाली है।जिस दिन सेवा समर्पण भाव रहे,जिस दिन नवीन अविष्काररहेनव वर्ष आने वाली हैं।जिस दिन घर घर पर दीपजले,जिस दिन पापियन निज हाथ मलेउस दिन दीवाली है।नव वर्ष की…

कल्पना शक्ति पर कविता

कल्पना शक्ति बनाम मन की अभिव्यक्ति! भावावेश में आकर,कल्पनाओं के देश में जाकर,अक्सर बहक जाता हूं, खुद को पंछी सा समझ कर,उड़ता हूं, उन्मुक्त गगन में,खुशी से, चहक जाता हूं!यह मेरे, मन की, भड़ास हैया कि छिछोरा पागलपन,क्या कुछ है,…

नव वर्ष का उत्सव !

*नव वर्ष का उत्सव !* मैंने नव वर्ष का उत्सवआज ये नही मनाया है……….!किसे मनाऊँ,किसे नहीकुछ समझ न आया है …..!! चाहे ये विक्रम संवत हो या जो ग्रेगोरियन रंगाया हैचाहे अपना शक संवत होया हिजरी ने जो नचाया है…

चमचा गिरि नही करूंगा

चमचा गिरि नही करूंगा जो लिखुंगा सत्य लिखुंगाचमचा गिरी नही करूंगा।कवि हूं कविता लिखुंगाराजनेता से नहीं बिकुंगा।। चापलुसी चमचा गिरी तोकिसी कवि का धर्म नहीं।अत्याचार मै नहीं सहूंगा।जो लिखुंगा सत्य लिखुंगा । राज नेता से नहीं बिकुंगा ।कवि हूं मैं,…

गंगा की पुकार

गंगा की पुकार गंगा घलो रोवत हे,देख पापी अत्याचार।रिस्तेदारी नइये ठिकाना,बढ़गे ब्यभीचार।। कलयुग ऊपर दोष मढत हे,खुद करम में नहीं ठिकाना।कइसे करही का करही एमनओ नरक बर करही रवाना।। स्वार्थ के डगर अब भारी होगेअनर्थ होत हे प्यार।प्यार अंदर अब…

तृषित है मन सबका!

तृषित है मन सबका!***शंकर ने, विष पान किया,तब नील कण्ठ कहलाए,व्याघ्र चर्म का, वसन पहनकर,मंद मंद मुसकाए!विष धर को, गलहार बनाया, नंदी पीठ बिरजाए,चंद्र शीश पर रखकर, शिव जी,चंद्रमौली कहलाए!पर्वत पर आशियां बनाया, डमरू हाथ बजाए,कंद मूल खाकर ही जिसने,…