Category हिंदी कविता

लो चले आये तुम भी श्मशान

लो चले आये तुम भी श्मशान कहाँ गया धन दौलत भाई,,कहाँ गया तेरा अभिमान ,,,बाँस की ठठरी चढ़कर भाई,,लो चले आये तुम भी श्मशान । लुट गया धन दौलत भाई  ,,मिट गया देख मेरा अभिमान,,खाट छोड़ अब बाँस पे चढ़कर,,लो…

सुंदर और अच्छे में भेद

सुंदर और अच्छे में भेद युवावस्था में सुंदर दिखते हैं सभी,चाह होती है,उम्र की परवाह होती है,श्रृंगार से प्रेम,दर्पण से लगाव,घण्टों निहारते अपने हाव-भाव,आधुनिक परिधानों से सुसज्जित,भीड़ में अलग दिखने की चाह में भ्रमित!किंतु–प्रौढ़ावस्था में,श्रृंगार बदलने लगता है,कभी मन मचलता…

ख्वाब में प्रिय

ख्वाब में प्रिय रात ख्वाब में देखा प्रिय,,मैंने तुम्हारा साथ हो,,झट आई बिछावन पे,,और बोली करो प्यार की बात हो,,        है तू मेरी हर साँस में,        सबसे अलग तू खास में,,       मत देख यूँ अब आ लिपटकर,,       गुजार…

कविता का संसार

कविता का संसार गीतों ने संसार रचायाहंसी-खुशी के ताल संग।अलंकारों की झंकार मेंनाचता है छमछम छंद।। नायिका के ख्वाब सजानेनायक चाँद-सितारे लायानदिया गीत सुहाने गायेगूंजे निर्झर कलकल नाद दुःख -सुख की अजब रंगोलीविरह-मिलन की गमगीनीडूब-उबरते जाने कितने प्रेमीप्रीत के सागर…

अकड़ पर कविता

अकड़ पर कविता जीवन के इस उम्र तकना जाने कितने मुर्दे देखे।  कितनो को नहलाया   तैयार भी कियाऔर पाया    केवल अकड़सचमुच मुर्दो में अकड़ होती है  लेकिन जीते जी इंसान   क्यूं दिखाते है अकड़         क्या वे मुर्दे के समान है        …

अब गरल है जिंदगी

अब गरल है जिंदगी. शौक कहाँ साहेब,तब जरूरतें होती थीं,रुपया बड़ा,आदमी छोटा,पूरी न होने वाली हसरतें होती थीं!मिठाइयों से तब सजते नहीं थे बाज़ार,आये जब कोई,पर्व-त्योहार,पकवानों से महकता घर,भरा होता माँ का प्यार! तब आसमान में जहाज देखआँगन में सब…

हरियाली पर कविता

हरियाली पर कविता एक वृक्ष सौ पुत्र समान|जंगल वसुधा की शान||पर्यावरण सुरक्षित कर |धरती का रखें सम्मान|| स्वच्छ परिवेश बनाना है|पेड़ अधिक लगाना है ||हरितमा बनीं धरा को |धानीं चुनर पहनानाहै|| हरियाली चहुं ओर आयी|ठंडी हवा बही सुखदायी||धरा बनीं है…

नमन तुम्हें है राष्ट्रभाषा

नमन तुम्हें है राष्ट्रभाषा नमन तुम्हें है राष्ट्रभाषानमन तुम्हें से मातृभाषाजीवंत तुम्हें अब रहना हैपुष्पों के जैसे खिलना है। अंग्रेजों ने था अस्तित्व मिटायाहिन्दी भाषा को मृत बनायाअपनी भाषा का परचम लहरायाहमारी भाषा को हमसे किया पराया। आजा़दी के बाद…

निराला प्रकृति- कुंडलिया छंद

निराला प्रकृति निराला रूप प्रकृति का , लगता है चितचोर।भाये मन को ये सदा , करता भाव विभोर।।करता भाव विभोर , सभी को खूब लुभाता।फैला चारों ओर , मनुज दोहन करवाता ।।रखना ‘मधु’ यह ध्यान , बनें हम नहीं निवाला।प्रकृति…