महदीप जंघेल की कविता
महदीप जंघेल की कविता बचपन जीने दो भविष्य की अंधी दौड़ में,खो रहा है प्यारा बचपन।टेंशन इतनी छोटी- सी उम्र में,औसत उम्र हो गया है पचपन। गर्भ से निकला नहीं कि,जिम्मेदारी के बोझ तले दब जाते,आपको ये बनना है,वो बनना…
महदीप जंघेल की कविता बचपन जीने दो भविष्य की अंधी दौड़ में,खो रहा है प्यारा बचपन।टेंशन इतनी छोटी- सी उम्र में,औसत उम्र हो गया है पचपन। गर्भ से निकला नहीं कि,जिम्मेदारी के बोझ तले दब जाते,आपको ये बनना है,वो बनना…
पिछड़ा वर्ग के संबंध नये कानून के संदर्भ में आयोजित संसद के सत्र में महिला सांसदों के साथ बदसलूकी की गई है.
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद भगत सिंह जी का कार्य व देश के लिए योगदान का उल्लेख कविता के माध्यम से किया गया है।
गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 में पटना, बिहार में हुआ था। उनके पिता का नाम गुरु तेग बहादुर और माता का नाम गुजरी था। उनके बचपन का नाम गोबिन्दराय था। गुरु गोबिन्द सिंह जी जीवन भर मुगलों से संघर्ष करते रहे। मुगलों के साथ उन्होंने 14 युद्ध लड़े। देश और धर्म के लिए उनका पूरा परिवार शहीद हो गया। उनके कर्मों ने उन्हें नर से नारायण बना दिया। महाराष्ट्र के नांदेड़ में, 7 अक्टूबर 1708 को वे अपना मानव शरीर छोड़कर अनंत में विलीन हो गए।
इस कविता में क्रिकेट के महान जादूगर सचिन तेंदुलकर की महान उपलब्धियों और उनके एक महान खिलाड़ी होने की भावना को चरितार्थ रूप में प्रस्तुत करने की एक कोशिश की है
सचिन :- क्रिकेट का भगवान- कविता - मौलिक रचना - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम"
हिन्द देश के वीर/बलबीर सिंह वर्मा “वागीश” आजादी का पर्व ये, हर्षित सारा देश।छाई खुशियाँ हर तरफ, खिला-खिला परिवेश।।खिला – खिला परिवेश, गीत हर्षित हो गाए।मना रहे गणतंत्र, तिरंगा नभ लहराए।।थे सब वीर महान, जिन्होंने जान लगा दी।आया दिन ये…
कितना कुछ बदल गया इन दिनों… देशभक्ति कभी इतनी आसान न थीसीमा पर लड़ने की जरूरत नहींघर की चार दीवारी सीमा मेंबाहर जाने से ख़ुद को रोके रहना देशभक्ति हो गई ऑफिस जाने की जरूरत नहींबिना काम घर में बैठे…
स्वदेशी पर कविता इंग्लिस्तानी छोड़ सभ्यता,अपनाओ देशीहिंदुस्तानी रहन-सहन हो,छोड़ो परदेशी। वही खून फिर से दौड़े जो,भगतसिंह में था,नहीं देश से बढ़कर दूजा, भाव हृदय में था,प्रबल भावना देशभक्ति की,नेताजी जैसी,इंग्लिस्तानी छोड़ सभ्यता,अपनाओ देशीहिंदुस्तानी रहन-सहन हो,छोड़ो परदेशी। वही रूप सौंदर्य वही…
देशप्रेम पर कविता देशप्रेम रग-रग बहे, भारत की जयकार कर। रहो जहाँ में भी कहीं, देशभक्ति व्यवहार कर। मातृभूमि मिट्टी नहीं, जन्मभूमि गृहग्राम यह।स्वर्ग लोक से भी बड़ा, परम पुनित निजधाम यह।जन्म लिया सौभाग्य से, अंतिम तन संस्कार कर।-1रहो जहाँ…