Category विविध छंदबद्ध काव्य

नेक काम पर कविता

नेक काम पर कविता आये हो संसार मे, नेक काम कर जाय।विपदा आफत टाल कर,सब की करे सहाय।सब की करे सहाय,प्रभु ने लायक बनाया।मेहर उस की होय,खुशिया जी भर लुटाया।कहै मदन कर जोर, यही से सब कुछ पाये।दाता को लौटाय,…

सरस्वती माँ पर कविता-बाबू लाल शर्मा बौहरा

सरस्वती माँ पर कविता शारदे आप ही आओ।कंठ मेरे तुम्ही गाओ।शान बेटी सयानी के।बात किस्से गुमानी के। धाय पन्ना बनी माता।मान मेवाड है पाता।पद्मिनी की कहानी है।साहसी जो रुहानी है। बात झाँसी महारानी।शीश हाड़ी दिए मानी।वीर ले जा निशानी है।बात…

चितवन पर कविता

चितवन पर कविता चंचल चर चितवन चषक, चण्डी,चुम्बक चाप्!चपला चूषक चप चिलम,चित्त चुभन चुपचाप!चित्त चुभन चुपचाप, चाह चंडक चतुराई!चमन चहकते चंद, चतुर्दिश चष चमचाई!चाबुक चण्ड चरित्र, चाल चतुरानन चल चल!चारु चमकमय चित्र, चुनें चॅम चंदन चंचल! *चंडक~चंद्र, चॅम~मित्र, चष~दृश्य शक्ति,…

फरवरी माह पर दोहे

फरवरी माह पर दोहे माह फरवरी शीत में, पछुआ मंद बयार।बासंती मौसम हुआ, करे मधुप गुंजार।। माह फरवरी जन्म का, वेलेन्टाइन संत।प्रेम पगा संसार हो, प्रीत रीत का पंत।। भारत में उत्सव मनें, फाग बसन्ती गीत।माह फरवरी में चले, प्राकृत…

पिता पर कविता~बाबूलाल शर्मा

पिता पर कविता-बूलालशर्मा पिता ईश सम हैं दातारी। कहते कभी नहीं लाचारी। देना ही बस धर्म पिता का। आसन ईश्वर सम व्यवहारी।१ तरु बरगद सम छाँया देता। शीत घाम सब ही हर लेता! बहा पसीना तन जर्जर कर। जीता मरता…

शारदे माँ पर कविता

शारदे माँ पर कविता (1)हे शारदे माँ ज्ञान के,भंडार झोली डार दे।आये हवौं मँय द्वार मा,मन ज्योति भर अउ प्यार दे।।हे हंस के तँय वाहिनी,अउ ज्ञान के तँय दायिनी।हो देश मा सुख शांति हा,सुर छोड़ वीणा वादिनी।। (2)आ फूँक दे…

बसन्त ऋतु पर गीत

बसन्त ऋतु पर गीत लगे सुहाना मौसम कितना,मन तो है मतवाला।देख बसन्त खिले कानन में,फूलों की ले माला।। शीतलता अहसास लिए हैं,चलते मन्द पवन हैं।ऋतु बसन्त घर आँगन महके,जलते विरही मन हैं।।पंछी चहके हैं डाली पर,गाते गीत निराला।।लगे सुहाना………………………… ढाँक…

साधना पर कविता

साधना पर कविता करूँ इष्ट की साधना,कृपा करें जगदीश।पग पग पर उन्नति मिले,तुझे झुकाऊँ शीश।। योगी करते साधना,ध्यान मगन से लिप्त।बनते ज्ञानी योग से,दूर सभी अभिशिप्त ।। जो मन को हैं साधते,श्रेष्ठ उसे तू जान।दुनिया के भव जाल में,फँसे नहीं…

महँगाई पर दोहे

महँगाई पर दोहे महँगाई की मार से , हर जन है बेहाल।निर्धनभूखा सो रहा,मिले न रोटी दाल।।1।। महँगाई डसती सदा,निर्धन को दिनरात।पैसा जिसके पास है,होती उसकी बात।।2।। महँगाई में हो गया , गीला आटा दाल।पूँछे कौन गरीब को,जिसका है बेहाल।।3।।…

ऋतुराज बसंत पर दोहे

ऋतुराज बसंत पर दोहे धरती दुल्हन सी सजी,आया है ऋतुराज।पीली सरसों खेत में,हो बसंत आगाज।।1।। कोकिल मीठा गा रही,भांतिभांति के राग।फूट रही नव कोंपलें , हरे भरे हैं बाग।।2।। पीली चादर ओढ़ के, लगती धरा अनूप।प्यारा लगे बसंत में, कुदरत…