Category: छत्तीसगढ़ी कविता

  • रावन मारे बर बड़ हुसियार / राजकुमार ‘मसखरे’

    रावन मारे बर बड़ हुसियार / राजकुमार ‘मसखरे’

    इस कविता में समाज के उन लोगों या नेताओं की आलोचना करता है जो जनता के अधिकारों और संसाधनों का दुरुपयोग करते हैं। “बहुरूपिया” का मतलब ऐसे लोग जो अपनी असली पहचान छिपाकर छल करते हैं। इसे समाज में जागरूकता फैलाने या भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के खिलाफ आवाज उठाने  में अपना रंग दिखाते हैं ।

    रावन मारे बर बड़ हुसियार !

    रावन मारे बर बनगे बड़ हुसियार
    सजधज के मटमट ले होगे तियार,
    काली जेन हरियर बेशरम रिहिन
    आज बनगे बड़ पड़री खुसियार !

    नकली रावन ल नकली ह मारत हे
    बता तो येला मारे के का अधिकार,
    मारना हे त बने मार न रे अइबी
    तोर अंतस म घुसरे रावन ल मार !

    ले बता राम के, के ठन गुन हवय
    रावन के गुन घलो नइ हे दू- चार,
    रावन के मुड़ी तो दसे रिहिस होही
    तुँहर तो चारो मुड़ा ये हवय हज़ार !

    इँहा कइ नकली बाबा,नेता,महंत
    येला सोझिया के ठाढ़ो भुर्री बार ,
    अब अइसन रावन ल खोज मारव
    तभे ये देश,समाज म होही सुधार !

    ये कागज़,पैरा भूसा के ल रहन दे
    जेन छेल्ला घुमत हे तेला जोहार ,
    जनता के बाँटा ल जेन डकारत हे
    अइसन बहुरूपिया ल धर कचार !

    राजकुमार 'मसखरे'

    भदेरा (गंडई),जि.-KCG

  • बड़ अच्छा लगथे / राजकुमार ‘मसखरे

    बड़ अच्छा लगथे / राजकुमार ‘मसखरे

    बड़ अच्छा लगथे

    “छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया”
    ये नारा बड़ अच्छा लगथे !
    ये नारा बनइया के मन भर
    पयलगी करे के मन करथे !!

    जब छत्तीसगढ़िया मन
    गुजराती लॉज/राजस्थानी लॉज म रुकथे
    हरियाणा जलेबी/बंगाली चाय के बड़ई करथे
    बड़ अच्छा लगथे !!

    जब छत्तीसगढ़िया मन
    अपन घर म कोनों काम-कारज ल धरथे
    बीकानेर/जलाराम ले मन भर खरीदी करथे
    बड़ अच्छा लगथे !!

    जब छत्तीसगढ़िया मन
    बाहिर वाले के कृषि फारम म काम करथे
    साउथ वाले के नर्सिंगहोम के चाकरी म जरथे
    बड़ अच्छा लगथे !!

    जब छत्तीसगढ़िया मन
    ये परदेशिया नेता मन के गुलामी करथे
    इंखर जय,गुनगान करत,झण्डा धर निकलथे
    बड़ अच्छा लगथे !!

           — *राजकुमार ‘मसखरे’*

  • 5 जून अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस छत्तीसगढ़ी गीत

    5 जून अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस छत्तीसगढ़ी गीत

    5 जून अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस छत्तीसगढ़ी गीत

    save nature


    पेड़ हमर तो संगी साथी,
    पेड़ हमर आय जान।
    जीव जंतु सबो के आसरा,
    पेड़ आय ग भगवान।।

    डारा पाना अउ जड़ी सबो,
    आथे अबड़ दवाई।
    जीवन एखर बिन शून्य हे,
    होथे बड़ सुखदाई।

    देथे दाई असन मया जी,
    सुख के एहर खदान।
    पेड़ हमर……



    जियत मरत के नाता रिस्ता,
    जोरे हन हम भाई।
    आठो बेरा ताकत हमरो,
    चाहे हमर भलाई।

    जिनगी के सुख हावय सबो,
    करत मानव कल्यान।
    पेड़ हमर……..

    बरसा लावय सुख बगरावय,
    सुख के लिखय कहानी।
    नदिया नरवा औ चारो कोती,
    अगला उछला पानी।

    धरती  के  सिंगार  पेड़ हे,
    जिइसे गहना समान।
    पेड़ हमर……



    घाम-छाँव दे मया मयारू,
    देत हवा अउ पानी।
    धान,गहूँ आनी बानी के,
    खेती करत किसानी।

    एखर से जीवन के किस्सा,
    एखर किस्सा महान।
    पेड़ हमर…….



    खातू ,माटी ,पान पताई,
    सर के बनथे जानव।
    सुख-दुख के ए संगी साथी,
    भाई अइसन मानव।

    चले रोज घर के जी चूल्हा,
    भाई संझा बिहान।
    पेड़ हमर..

    परमेश्वर अंचल

  • चार के चरचा/ डा.विजय कन्नौजे

    चार के चरचा
    *****4***

    चार दिन के जिनगी संगी
    चार दिन के‌ हवे जवानी
    चारेच दिन तपबे संगी
    फेर नि चलय मनमानी।

    चारेच दिन के धन दौलत
    चारेच दिन के कठौता।
    चारेच दिन तप ले बाबू
    फेर नइ मिलय मौका।।

    चार भागित चार,होथे
    बराबर गण सुन।
    चार दिन के जिनगी म
    चारो ठहर गुण।।

    चार झन में चरबत्ता गोठ
    चारो ठहर के मार।
    चार झनके‌ संग संगवारी
    लेगही मरघट धार।।
    चार झन के सुन, मन म गुण
    कर सुघ्घर काम।
    चार झन ल लेके चलबे
    चलही तोर नाम।।
  • गणेश वंदना / डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    गणेश वंदना / डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    गणेश वंदना / डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    गणेश वंदना
    गणेश वंदना


    मै हव अड़हा निच्चट नदान
    दया करबे ग गणेश भगवान
    गौरी गौरा आथे सुरता
    तुंहर संग नंदी मेहरबान।

    मुसुवा सवारी लड्डू खवइया
    मुल बाधा तै दुख दुर करइया
    तोर घर परिवार आथे सुरता
    दया करबे ज्ञान देवइया।।

    कवि विजय के बिनती मानबे
    रिद्धि सिद्धि तै संग मा लानबे
    मोर अंगना बढा़दे शोभा
    कारज घलो मोर सुधारदे।।

    जय हो गणेश, कांटों क्लेश
    तोला कइथे गौरी गणेश
    अवघड़ दानी भोले बाबा
    नंदी सवारी पिता महेश।।