जंजाल होगे मानुस बर कपटी करोना जीव के काल होगे।। छोटे बड़े नई चिन्हैं अंधरा, सबो ल बारे तै बन अंगरा। तपे तै तपनी अईसे बैरी , कुबेर घलो कंगाल होगे । जंजाल होगे मानुस बर कपटी करोना जीव के काल होगे।। जमो जिनिस अउ हाथ म रईथे, छूत महामारी तोला कईथे। मुँह म तोपना हाथ म साबुन घर घर ह अस्पताल होगे । जंजाल होगे मानुस बर, कपटी करोना जीव के काल होगे।। डाक्टर पुलिस अफसर बाबू , हावै करोना म सबले आघु। जगा जगा म लागे हे करफू , करमईता के भुंईया हड़ताल होगे । जंजाल होगे मानुस बर, कपटी करोना जीव के काल होगे।। देहरी बंद हवय देवता के , प्रथा सिरावत हे नेवता के । घर म रहना कहूँ नई जाना भीड़ घलौ जी के काल होगे । जंजाल होगे मानुस बर, कपटी करोना जीव के काल होगे।। सुन्ना परगे गाँव शहर ह, हवा म बगरे एखर जहर ह। बम बारुद के भरे खजाना, इहा दवई के दुकाल होगे । जंजाल होगे मानुस बर, कपटी करोना जीव के काल होगे।। पैसा वाला मस्त हावै, जमो गरीब त्रस्त हावै। रंग रंग केे पकवान कहूं ल, पेज पसिया के मुहाल होगे। जंजाल होगे मानुस बर, कपटी करोना जीव के काल होगे।। गुजर बसर के नियम बदलगे, चीन देस के जादू ह चलगे। हाथ ल धो के पाछू परगे , चारोमुड़ा सुनसान होगे । जंजाल होगे मानुस बर, कपटी करोना जीव के काल होगे।।
गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।
भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।
जय गणेश जी पर कविता
ददा ल जगा दे दाई, बिनती सुनाहुं ओ, नौ दिन के पीरा ल, तहु ल बताहुं ओ। लईका के आरो ल सुनके, आँखी ल उघारे भोला, काए होेगे कइसे होगे, कुछु तो बताना मोला। कईसे मैं बतावौ ददा, धरती के हाल ल, आँसू आथे कहे ले, भगत मन के चाल ल होवथे बिहान तिहा, जय गणेश गावथे, बेरा थोकन होय म, काँटा ल लगावथे। गुड़ाखू ल घसरथे, गुटका ल खाथे ओ, मोर तिर म बईठे, इकर मुँह बस्सावथे। मोर नाव के चंदा काटे, टूरा मन के मजा हे, इहे बने रथव ददा, ऊँंहा मोर सजा हे।
रोज रात के सीजर दारू, ही ही बक बक चलथे ग, धरती के नाव ल सुनके, जी ह धक धक करथे ग। डारेक्ट लाईन चोरी, एहू अबड़ खतरा, नान नान टिप्पूरी टूरा, उमर सोला सतरा। मच्छर भन्नाथे मोर तिर, एमन सुत्थे जेट म, बडे़ बडे़ बरदान माँगथे, छोटे छोटे भेंट म। ऋद्वि सिद्वी तुहर बहुरिया, दुनो रिसाये बईठे हे, कुछू गिफ्ट नई लाये कइके, सुघर मुँ ंह ल अईठे हे। मोला चढ़ाये फल फूल, कभू खाये नई पावौ ग, कतका दुःख तोला बतावौ, कईसे हाल सुनावौ ग। आसो गयेव त गयेव ददा, आन साल नई जावौ ग, मिझरा बेसन के लाडु, धरौ कान नई खावौ ग।