Category: दिन विशेष कविता

  • लघुकथा कैसे लिखें?

    लघुकथा कैसे लिखें?

    kavita

    लघुकथा छोटी कहानी का अति संक्षिप्त रूप है । लघुकथा का लक्ष्य जीवन के किसी मार्मिक सत्य का प्रकाशन होता है जो बहुधा इस ढंग से अभिव्यक्त होता है जैसे बिजली कौंधती है। इसमें अत्यल्प साधनों द्वारा ही जीवन के चरम सत्य को उजागर करने की चेष्टा की जाती है। लघुकथाओं में बहुत कुछ राह सुझाने का भाव होता है। लघुकथाएँ निर्जन सुनसान से होकर गुजरने वाली पगडंडी है ।लघुकथाओं में अति कल्पना का खुलकर प्रयोग होता है।

    मुख्य तौर पर लघुकथा वर्णनात्मक, वार्तालाप शैली अथवा मिश्रित शैली ( जिसमें कथन के अलावा पात्रों के माध्यम से संवाद/ वार्तालाप भी होता है) में लिखी जाती है । यदि कथानक की आवश्यकता हो तो मोनोलाॅग शैली ( स्वयं से बात ) में भी लघुकथा कही जा सकती है ।

    लघुकथा-सावन की फुहार

    दीपक अपने कमरे में चुपचाप, गुमसुम बीते दिनों की याद में खोया हुआ था । अतीत की बातें उसकी आँखों के सामने एक एक करके आने लगे थे । बड़ी हसरत से उसने अपना एक छोटा- सा आशियाना बनाया था । अपनी जीवनसंगिनी और अपने बच्चों के साथ वह बहुत खुश था । बच्चों को अच्छा संस्कार दिया , उच्च शिक्षा दिलायी , लेकिन आदमी की हर इच्छा पूरी हो , शायद यह संभव नहीं है । ना जाने कैसे उसका इकलौता बेटा सत्या ” पब जी ” गेम के वशीभूत होता चला गया जिसका दुष्प्रभाव सत्या के दिनचर्या पर दिखाई पड़ने लगा था ।

    घर में सभी परेशान रहने लगे थे । किसी की समझाइश का कोई भी असर नहीं पड़ता देख दीपक ने सब कुछ समय पर छोड़ दिया । ना जाने कब दीपक की आँख से आँसू टपकने लगे थे । दीपक को लगा जैसे कोई उसे झकझोर रहा है । आँखें खोली तो देखा ,सत्या उसे जोर जोर से हिला रहा था , उसकी आँखें डबडबाई हुई थी । उसनेे रूँधे गले से कहा -” पापा , मुझे माफ़ कर दो । आपकी क़सम पापा , आज से मैं ” पब जी ” गेम की ओर देखूँगा भी नहीं ।”
    दीपक को लगा मानो उसके परिवार में सावन की नई फुहार आ गई है ।


    गजेन्द्र हरिहारनो ” दीप “
    डोंगरगाँव,जिला – राजनांदगाँव(छत्तीसगढ़)

    लघुकथा-मोहल्लेदारी


    आज सुबह मोहल्ले के शर्मा जी घर आए…
    गर्मी, महँगाई और रिश्तेदारों पर दो घंटे बातचीत की..

    मैंने चाय का पूछा तो उन्होंने नींबू पानी पीने की ख्वाहिश की.. कहा – आजकल नींबू पानी कोरोना में बहुत मुफीद है।

    दो घंटे के बाद जाते हुए दुआएँ दी और बोले : अब ऊपर वाले ने चाहा तो पंद्रह दिन बाद मुलाकात होगी, डाक्टरों ने दो हफ्ते के लिए क्वांरटाइन इलाज बताया है। कह रहे थे इस दौरान किसी से मिलियेगा जुलियेगा नहीं, तो मैंने सोचा आज ही सारे मोहल्ले वालों से मिल आऊँ …
    आखिर मुहल्लेदारी भी कोई चीज़ होती है।


    गजेन्द्र हरिहारनो ” दीप “
    डोंगरगाँव,जिला – राजनांदगाँव(छत्तीसगढ़)

  • मणिकर्णिका-झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर कविता

    मणिकर्णिका-झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर कविता

    kavita


    अंग्रेजों को याद दिला दी,
    जिसने उनकी नानी।
    मर्दानी, हिंदुस्तानी थी,
    वो झांसी की रानी।।

    अट्ठारह सौ अट्ठाइस में,
    उन्नीस नवंबर दिन था।
    वाराणसी हुई वारे न्यारे,
    हर सपना मुमकिन था।।
    नन्हीं कोंपल आज खिली थी,
    लिखने नई कहानी…

    “मोरोपंत” घर बेटी जन्मी,
    मात “भगीरथी बाई”।
    “मणिकर्णिका” नामकरण,
    “मनु” लाड कहलाई।।
    घुड़सवारी, रणक्रीडा, कौशल,
    शौक शमशीर चलानी…

    मात अभावे पिता संग में,
    जाने लगी दरबार।
    नाम “छबीली” पड़ा मनु का,
    पा लोगों का प्यार।।
    राजकाज में रुचि रखकर,
    होने लगी सयानी…

    वाराणसी से वर के ले गए,
    नृप गंगाधर राव।
    बन गई अब झांसी की रानी,
    नवजीवन बदलाव।।
    पुत्र हुआ, लिया छीन विधाता,
    थी चार माह जिंदगानी…

    अब दत्तक पुत्र “दामोदर”,
    दंपत्ति ने अपनाया।
    रुखसत हो गये गंगाधर,
    नहीं रहा शीश पे साया।।
    देख नजाकत मौके की,
    अब बढी दाब ब्रितानी…

    छोड़ किला अब झांसी का,
    रण महलों में आई।
    “लक्ष्मी” की इस हिम्मत नें,
    अंग्रेजी नींद उड़ाई।।
    जिसको अबला समझा था,
    हुई रणचंडी दीवानी…

    झांसी बन गई केंद्र बिंदु,
    अट्ठारह सौ सत्तावन में।
    महिलाओं की भर्ती की,
    स्वयंसेवक सेना प्रबंधन में।।
    हमशक्ल बनाई सेना प्रमुख,
    “झलकारी बाई” सेनानी…

    सर्वप्रथम ओरछा, दतिया,
    अपनों ने ही बैर किया।
    फिर ब्रितानी सेना ने,
    आकर झांसी को घेर लिया।।
    अंग्रेजी कब्जा होते ही,
    “मनु” सुमरी मात भवानी…

    ले “दामोदर” छोड़ी झांसी,
    सरपट से वो निकल गई।
    मिली कालपी, “तांत्या टोपे”,
    मुलाकात वो सफल रही।।
    किया ग्वालियर पर कब्जा,
    आंखों की भृकुटी तानी…

    नहीं दूंगी मैं अपनी झांसी,
    समझौता नहीं करूंगी मैं।
    नहीं रुकुंगी नहीं झुकूंगी,
    जब तक नहीं मरूंगी मैं।।
    मैं भारत मां की बेटी हूं,
    हूं हिंदू, हिंदुस्तानी…

    अट्ठारह जून मनहूस दिवस,
    अट्ठारह सौ अट्ठावन में।
    “मणिकर्णिका” मौन हुई,
    “कोटा सराय” रण आंगन में।।
    “शिवराज चौहान” नमन उनको,
    जो बन गई अमिट निशानी…

    ः– *शिवराज सिंह चौहान*
    नांधा, रेवाड़ी
    (हरियाणा)
    १८-०६-२०२१

  • जीवन का अमृत है संगीत (विश्व संगीत दिवस पर कविता)

    जीवन का अमृत है संगीत (विश्व संगीत दिवस पर कविता)

    जीवन का अमृत है संगीत (विश्व संगीत दिवस पर कविता)



    व्यथित जीवन में सुख का,
    एहसास कराता है संगीत।
    गम के बादलों से घिरे मन को,
    शांत कराता है संगीत।



    दुख सागर में,अटके जीवन नैया,
    उसको भी पार लगाता है संगीत।
    जीवन के हर मोड़ पर ,
    साथ निभाता है संगीत।



    दुख या गम हो कितने जीवन में,
    खुशियों की सौगात लाता है संगीत।
    सोए हुए अंतरात्मा को भी,
    पल भर में जगाता है संगीत।

    घातक रोग से पीड़ित मन को,
    प्रतिरोधक बन जिलाता है संगीत।
    औषधि बनकर कितनो के?
    जीवन बचाता है संगीत।



    प्रेम, भक्ति,और संतोषभाव,
    मन में जगाता है संगीत।
    अनर्थ और बुरे कर्मो से,
    ध्यान हटाता है संगीत।



    हर गम और झगड़े भुलाकर,
    प्रेम और मित्रता सिखाता है संगीत।
    मृत काया में भी अमृत बन,
    प्राण फूंक जाता है संगीत।



    सच्चा साथी बनकर मानव को,
    मानव से मिलाता है संगीत।
    सारे गम दुख को मिटाकर,
    सही राह दिखाता है संगीत।



    जब जब संगत करता हूं,
    मेरा हौसला बढ़ाता है संगीत।
    जीवन जीने की हमे,
    कला सिखलाता है संगीत।



    जीवन के हर मोड़ पर,
    मेरा मीत है संगीत।
    जीवनरक्षक और प्राणदायिनी,
    जीवन का अमृत है संगीत।


    महदीप जंघेल
    निवास – खमतराई
    विकासखंड-खैरागढ़
    जिला -राजनांदगांव( छ.ग)

  • 8 जून विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस पर कविता

    8 जून विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस पर कविता

    kavita



    लगातार सिरदर्द रहे या, कभी अचानक चक्कर आए
    बढ़े चिड़चिड़ापन तो सम्भव, प्रकट ब्रेन ट्यूमर हो जाए।

    यह दिमाग के किसी भाग में, धीमे या तेजी से छाता
    हो सी.टी. स्कैन नहीं तो एम. आर. आई. भेद बताता
    किसी विषय पर बात करें तो,हो विचार में आनाकानी
    सुनने में भी दिक्कत आए, और बढ़े जमकर हैरानी

    लगे लड़खड़ाहट चलने में, हाथ- पैर में ऐंठ समाए
    रोगी बहुत सिसकता देखा, पीड़ा सहन नहीं हो पाए।

    उल्टी आने लगे बोलने में भी दिक्कत होती जाती
    और देखने में भी बाधा रोगी को है बहुत रुलाती
    इसको हम सामान्य न समझें, है यह खतरनाक बीमारी
    अगर समय से पता न हो तो, बढ़ती बहुत अधिक लाचारी

    पूरा ट्यूमर या फिर डैमेज भाग सर्जरी बाहर लाए
    जोखिम ब्लीडिंग, इंफेक्शन का रोगी को फिर बहुत सताए।

    कभी -कभी ट्यूमर में पारम्परिक सर्जरी काम न आती
    ब्रेन सर्जरी बनी आधुनिक एंडोस्कोपिक ही चल पाती
    और असम्भव जगह कहीं हो, आसानी से ट्यूमर निकले
    फिर साइड इफेक्ट्स यहाँ न्यूरोनेविगेशन से फिसले

    आज रेडियोथेरेपी भी, सारी चिंता दूर भगाए
    कुछ ट्यूमर गामा नाइफ से, भी लोगों ने ठीक कराए।

    रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड.
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उ० प्र०)
    मोबा- 98379 441878 जून विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस पर कविता

  • वृक्ष की पुकार कविता -महदीप जंघेल

    विश्व पर्यावरण दिवस पर वृक्ष की पुकार कविता -महदीप जंघेल

    poem on trees
    poem on trees

    मत काटो हमें,
    संरक्षण दो।
    सिर्फ पेड़ नही हम,
    हैं हम जीवन का आधार
    हमें भी जीने दो,
    सुन लो, हमारी पुकार।।

    बिन हमारे धरती सूनी,
    सूना है संसार।
    बिन हमारे धरती मां का,
    कौन करे श्रृंगार?
    हमें भी जीने दो,
    सुन लो, हमारी पुकार।।

    हमसे ही पाया है सब कुछ ,
    बदले में किया तिरस्कार।
    चंद रुपयों में तौल दिया,
    न मिला प्रेम दुलार।
    हमे भी जीने दो,
    सुन लो ,हमारी पुकार।

    बहे ,हमी से जीवन धारा,
    सजे हमी से धरा श्रृंगार।
    वृक्ष लगाकर, वृक्ष बचाकर,
    विश्व पर करो उपकार।
    हमे भी जीने दो,
    सुन लो, हमारी पुकार।।

    जब वृक्षहीन हो जाएगी धरणी,
    तब तपेगा सारा संसार।
    त्राहि माम ,त्राहि माम होगा विश्व में,
    चहुँ ओर गूंजेगा चित्कार।
    हमे भी जीने दो ,
    सुन लो,हमारी पुकार।

    विश्व बचाना हो अगर,
    तो हो जाओ अब तैयार।
    वृक्षारोपण करो धरा पर,
    करो आदर और सत्कार।
    हमे भी जीने दो।,
    सुन लो, हमारी पुकार।।

    सब कुछ किया अर्पण तुम पर,
    जिंदगी का कराया दीदार।
    मत काटो हमें,
    संरक्षण दो ।
    हैं हम जीवन का आधार,
    हमे भी जीने दो,
    सुन लो, हमारी पुकार।।

    ✍️रचनाकार- महदीप जंघेल
    निवास- खमतराई
    वि.खं – खैरागढ़
    जिला -राजनांदगांव(छ. ग)