कहानी कैसे लिखें
“अच्छा कहानी कैसे लिखें ” इस हेतु हमें निम्न बातें ध्यान रखनी होगी :
शुरुआत कैसे करें
- हमेशा दुनिया की बातों को सुनें और प्रेरणा लें . चूंकि ये कहानी बाहर निकलकर लोगों के बीच पहुँचने वाली है, इसलिए अपनी कहानी को सिर्फ अपने खुद के विचारों से ही नहीं बल्कि दूसरे लोगों से भी उनके आसपास के माहौल के बारे में मौजूद विचारों के बारे में पूछना चाहिए।
- पढ़ना दिमाग के लिए भी अच्छा होता है, ये आपको इस बारे में जानकारी देगा, कि आखिर एक पब्लिश हुई बुक कैसी नजर आती है।
- अपनी शब्दावली को बढ़ाने के लिए अलग-अलग तरह की बुक्स को पढ़ने की आदत करनी होगी।
- लोगों की ज़िंदगी के अंदर झाँककर देखने की कोशिश करें और देखें अगर कोई कहानी बन पाए।
- अपनी खुली आँखों से सपने देखना शुरू कर देनी चाहिये.
- आप जब कहानी लिखना शुरू करते हैं, तब जरूरी नहीं है, कि आपको आपकी कहानी का अंत मालूम ही होना चाहिए। कहानी लिखना शुरू करते वक़्त ही, कहानी के बारे में सब-कुछ नहीं मालूम होना, जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती जाएगी ।आपको और रचनात्मक संभावनाएं नज़र आएगी और ये आपकी कहानी को और भी मजबूती भी देगा।
- बहुत से लोग आप से कहेंगे, कि “आपको सिर्फ वही लिखना चाहिए, जिसके बारे में आपको मालूम है।”
- हमेशा आपको सुनाई हुई कहानियों पर गौर जरूर करें, इनसे आपको एक अच्छा फिक्शन मिल सकता है। अगर आपकी माँ या दादी/नानी माँ हमेशा आपको उनके बचपन की कहानियाँ सुनाया करती हैं, तो उन्हें लिखना शुरू कर दें।
- पुष्टि करें, कि आप जो भी कुछ लिख रहे हैं, आपके पाठक उसे समझ पा रहे हैं।
- अगर लिखना ही आपका जुनून है, तो अपने इस जुनून को एक ऐसे सच्चे कहानीकार की तरह आपको जो भी कुछ पसंद है और आप जिसे अपनी कहानी के लिए सही समझते हैं, उसे ही लिखें। अपने दिल से लिखना सीखें।
- आप जहां भी जाएँ, अपने साथ में हमेशा एक नोटबुक लेकर जाएँ, ताकि आप के मन में जब भी कोई आइडिया आए, तो आप उसे फौरन लिख सकें।
- आपने अपनी गलती को सुधारने के लिए जो भी लिखा है, उसे एक बार फिर से देखें।
- अगर आप अपनी कहानी को दुनिया के सामने निकालने के लिए तैयार हो चुके हैं, तो आप इसे अपने साथी राइटर्स के साथ शेयर कर सकते हैं। फीडबैक केवल तभी मददगार साबित होंगे, जब आप इन्हें अच्छे से स्वीकार करें।
- अपनी कहानी लिखने से पहले, किरदारों के नाम और वो किस तरह की पर्सनालिटी को दर्शाने वाले हैं, इन सब की एक लिस्ट बना लें।
- अपनी कहानी को दिलचस्प बनाने के लिए, कभी किसी दूसरे के काम को चोरी न करें। एक अच्छी कहानी लिखने में हमेशा वक़्त लगता है, तो इसलिए आप अपनी तरफ से धैर्य बनाए रखें!
कहानी क्या है ?
“कहानी वह छोटी आख्यानात्मक रचना है, जिसे एक बैठक में पढ़ा जा सके, जो पाठक पर एक समन्वित प्रभाव उत्पन्न करने के लिये लिखी गई हो, जिसमें उस प्रभाव को उत्पन्न करने में सहायक तत्वों के अतिरिक्त और कुछ न हो और जो अपने आप में पूर्ण हो।”
एडगर एलिन पो
कहानी वह ध्रुपद की तान है, जिसमें गायक महफिल शुरू होते ही अपनी संपूर्ण प्रतिभा दिखा देता है, एक क्षण में चित्त को इतने माधुर्य से परिपूर्ण कर देता है, जितना रात भर गाना सुनने से भी नहीं हो सकता।
प्रेमचन्द
कहानी (गल्प) एक रचना है जिसमें जीवन के किसी एक अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा-विन्यास, सब उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं। उपन्यास की भाँति उसमें मानव-जीवन का संपूर्ण तथा बृहत रूप दिखाने का प्रयास नहीं किया जाता। वह ऐसा रमणीय उद्यान नहीं जिसमें भाँति-भाँति के फूल, बेल-बूटे सजे हुए हैं, बल्कि एक गमला है जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है।
प्रेमचन्द
कहानी के तत्व
- कथावस्तु,
- पात्र अथवा चरित्र-चित्रण,
- कथोपकथन अथवा संवाद,
- देशकाल अथवा वातावरण,
- भाषा-शैली तथा
- उद्देश्य।
कथावस्तु
प्रत्येक कहानी के लिये कथावस्तु का होना अनिवार्य है क्योंकि इसके अभाव में कहानी की रचना की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
कथा को सुनते या पढ़ते समय श्रोता अथवा पाठक के मन में आगे आनेवाली घटनाओं को जानने की जिज्ञासा रहती है अर्थात् वह बार-बार यही पूछता या सोचता है कि फिर क्या हुआ, जबकि कथानक में वह ये प्रश्न भी उठाता है कि “ऐसा क्यों हुआ?’ “यह कैसे हुआ?’ आदि। अर्थात् आगे घटनेवाली घटनाओं को जानने की जिज्ञासा के साथ-साथ श्रोता अथवा पाठक घटनाओं के बीच कार्य-कारण-संबंध के प्रति भी सचेत रहता है।
कथानक के चार अंग माने जाते हैं –
- आरम्भ,
- आरोह,
- चरम स्थिति एवं
- अवरोह।
पात्र अथवा चरित्र-चित्रण
कहानी का संचालन उसके पात्रों के द्वारा ही होता है तथा पात्रों के गुण-दोष को उनका ‘चरित्र चित्रण’ कहा जाता है। चरित्र चित्रण से विभिन्न चरित्रों में स्वाभाविकता उत्पन्न की जाती है।
कहानी के पात्र वास्तविक सजीव स्वाभाविक तथा विश्वसनीय लगते हैं पात्रों का चरित्र आकलन लेखक दो प्रकार से करता है
- प्रत्यक्ष या वर्णात्मक शैली द्वारा इसमें लेखक स्वयं पात्र के चरित्र में प्रकाश डालता है
- परोक्ष या नाट्य शैली में पात्र स्वयं अपने वार्तालाप और क्रियाकलापों द्वारा अपने गुण दोषों का संकेत देते चलते हैं
इन दोनों मैं कहानीकार को दूसरी पद्धति अपनानी चाहिए इससे कहानी में विश्वसनीयता एवं स्वाभाविकता आ जाती है।
कथोपकथन अथवा संवाद
संवाद कहानी का प्रमुख अंग होते हैं। इनके द्वारा पात्रों के मानसिक अन्तर्द्वन्द एवं अन्य मनोभावों को प्रकट किया जाता है।
कहानी में स्थगित कथन लंबे चौड़े भाषण या तर्क-वितर्क पूर्ण संवादों के लिए कोई स्थान नहीं होता। नाटकीयता लाने के लिए छोटे-छोटे संवादों का प्रयोग किया जाता है।
संवाद किसी भी किरदार के द्वारा बोली जाने वाली और न बोली जाने वाली बातों के जरिए काफी कुछ उजागर कर सकता है। आपको कुछ ऐसे संवाद की तलाश करना चाहिए, जो बनावटी लगने के बजाय, असल में लोगों के द्वारा बोले जाते हों। इन्हें असली दुनिया के लोगों के द्वारा बोला जाता है या नहीं, ये जानने के लिए अपने सारे डाइलॉग को ज़ोर-ज़ोर से पढ़ें।
देशकाल अथवा वातावरण
कहानी में वास्तविकता का पुट देने के लिये देशकाल अथवा वातावरण का प्रयोग किया जाता है।कहानी में भौतिक वातावरण के लिए विशेष स्थान नहीं होता फिर भी इनका संक्षिप्त वर्णन पात्र के जीवन को उसकी मनः स्थिति को समझने में सहायक होता है। मानसिक वातावरण कहानी का परम आवश्यक तत्व है।
भाषा-शैली
प्रस्तुतीकरण के ढंग में कलात्मकता लाने के लिए उसको अलग-अलग भाषा व शैली से सजाया जाता है।
लेखक का भाषा पर पूर्ण अधिकार हो कहानी की भाषा सरल , स्पष्ट व विषय अनुरूप हो।
उसमें दुरूहता ना होकर प्रभावी होना चाहिए , कहानीकार अपने विषय के अनुरूप ही शैली का चयन कर सकता है।
उद्देश्य
कहानी में केवल मनोरंजन ही नहीं होता, अपितु उसका एक निश्चित उद्देश्य भी होता है।
आज विविध सामाजिक परिस्थितियां जीवन के प्रति विशेष दृष्टिकोण या किसी समस्या का समाधान और जीवन मूल्यों का उद्घाटन आदि कहानी के उद्देश्य होते हैं