Category: दिन विशेष कविता

  • वरिष्ठ नागरिक दिवस पर कविता

    एक निवासी व्यक्ति जो पिछले वर्ष के दौरान आयु में 60 या उससे अधिक हो गये हैँ, उन्हें वरिष्ठ नागरिक माना जाता है.

    विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस देश के वरिष्ठ नागरिकों द्वारा समाज के उत्थान और सीखने के लिए बहुत सारा ज्ञान लाने में किए गए प्रयासों और योगदान का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है। हर साल विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।

    इस वर्ष 2023, अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस की थीम ” वृद्ध व्यक्तियों के लिए मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के वादों को पूरा करना: पीढ़ियों तक ” है, जो विश्व स्तर पर वृद्ध लोगों की उनके अधिकारों के संदर्भ में अद्वितीय जरूरतों पर ध्यान आकर्षित करने का एक आह्वान है।

    वरिष्ठ नागरिक दिवस पर कविता

    वरिष्ठ नागरिक दिवस पर कविता

    करे सम्मान वरिष्ठ नागरिकों का,
    करे उनका हम सब ध्यान।
    मिलेगा उनका आशीष तुमको,
    और मिलेगा उनका तुमको ज्ञान।।

    धरोहर हैं वे हम सबकी,
    और तुम्हारी वे पहचान।
    एक दिन तुम भी बनोगे,
    उनकी अद्भुत अनोखी शान।।

    निवेदन है अपनी सरकार से,
    करे वरिष्ठ नागरिकों का ध्यान
    आय कर से उन्हें मुक्त करे,
    और करे उनका कल्याण।।

    एक दिन तुम भी बनोगे,
    करना इसका भी ध्यान
    ऐसी परंपरा डाल दो तुम
    होता रहे सबका कल्याण।।

    ये कार्य क्रम चलता रहे,
    ऐसा करे हम सब प्रयास।
    मानव सबका सेवा धर्म है,
    विश्व करता रहे सदा विकास।

    आर के रस्तोगी
    गुरुग्राम

  • छठ दिवस पर कविता

    छठ दिवस पर कविता

    छठ दिवस पर कविता

    छठ दिवस पर कविता

    उदय- अस्त दोनों समय,
    नित्य नियम से सात।
    सूर्य परिक्रमा के कहें,
    अन्तर्मन की बात।।


    प्रतिदिन दर्शन दे रहे,
    सूर्य देव भगवान।
    छठ पूजा का है बना ,
    जग मे उचित विधान।।


    सूर्य भक्त क कठिन व्रत,
    करते उन्हें प्रसन्न।
    प्रभु पूषा भी भक्त की,
    हरते दुख -आसन्न।।


    गतियों से ऋतुएँ बनी,
    पावस -गर्मी-शीत।
    मानव का सब डर हरें,
    बनकर उनका मीत।।


    देव-दनुज-मानव सभी,
    आराधन की रीत।
    मना सदा पूजा करें,

    छठ का दिवस पुनीत ।।

    एन्०पी०विश्वकर्मा, रायपुर

    छठ दिवस पर कविता

    छठ पूजा की कविता 2

    सूर्य की पूजा है …..छठ पूजा,
    यह आस्था विश्वास का है नाम दूजा।
    यह है प्रकृति की पूजा,
    नदी ,चन्द्रमा,और सूर्य की पूजा।

    यह है स्वच्छता का महान उत्सव,
    समाजिक परिदृश्य का महापर्व।
    साफ-सूथरा घर आँगन,
    यह पर्व है बड़ा ही पावन।

    सजे हुए हैं नदी,पोखर,तलाब,
    दीपों से जगमग रौशन घाट।
    हवन से सुगंधित वातावरण,
    सात्विक विचारों का अनुकरण।

    सुचितापूर्ण जीवन का संगीत,
    धार्मिक परम्पराओं का प्रतीक।
    सुमधुर छठ का लोक गीत,
    दिल में भरे अपनत्व और प्रीत।

    भक्ति और अध्यात्म से युक्त,
    तन मन निर्मल और शुद्ध।
    स्वच्छ सकारात्मक व्यवहार,
    समाज के उन्नति का आधार।

    भोजन के साथ सुख शैया का त्याग
    व्रती करते हैं कठिन तपस्या।
    निर्जला निराहार होता यह व्रत
    व्रती पहनते नुतन वस्त्र।

    उगते,डूबते सूर्य को देते अर्ध्य
    ठेकुआ, कसाढ़, फल,फूल करते अर्पण।
    जीवन का भरपूर मिठास
    रस,गुड़,चावल,गेहूँ से निर्मित प्रसाद।

    हमारी समस्त शक्ति और उर्जा का स्त्रोत,
    समाजिक सौहाद्र से ओतप्रोत।
    धर्म अध्यात्म से परिपूर्ण
    छठ पूजा सबसे महत्वपूर्ण।

    — लक्ष्मी सिंह

  • 7 दिसम्बर झण्डा दिवस पर कविता/ झण्डा दिवस पर हिंदी कविता

    झण्डा दिवस पर कविता

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा

    ● रामदयाल पाण्डेय

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा, ऊंचा सदा रहेगा।

    हिंद देश का प्यारा झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    तूफानों से और बादलों से भी नहीं झुकेगा,

    नहीं झुकेगा, नहीं झुकेगा, झण्डा नहीं झुकेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    केसरिया बल भरने वाला, सादा है सच्चाई,

    हरा रंग है हरी हमारी धरती की अंगड़ाई ।

    और चक्र कहता कि हमारा, कदम कभी न रुकेगा ।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    शान हमारी ये झण्डा है, ये अरमान हमारा,

    ये बल पौरुष है सदियों का, ये बलिदान हमारा।

    जीवन-दीप बनेगा, ये अंधियारा दूर करेगा ।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    आसमान में लहराएं ये, बादल में लहराएं,

    जहां-जहां, जाए ये झण्डा ये सन्देश सुनाएं।

    है आजाद हिंद, ये दुनिया को आजाद करेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    नहीं चाहते हम दुनिया को, अपना दास बनाना,

    नहीं चाहते औरों के मुंह की रोटी खा जाना ।

    सत्य-न्याय के लिए हमारा लहू सदा बहेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    हम कितने सुख सपने लेकर, इसको फहराते हैं,

    इस झण्डे पर मर मिटने की, कसम सभी खाते हैं।

    हिन्द देश का है ये झण्डा, घर-घर में लहरेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    झण्डा वंदन

    एक हमारा ऊँचा झण्डा, एक हमारा देश !

    इस झण्डे के नीचे निश्चित एक अमिट उद्देश्य !

    हमारा एक अमिट उद्देश्य ।

    देखा जागृति के प्रभात में एक स्वतंत्र प्रकाश,

    फैला है सब ओर एक-सा अतुल उल्लास |

    कोटि-कोटि कंठों से कूजित एक विजय- विश्वास,

    मुक्त पवन में उड़ उठने की एक अमर अभिलाषा ।

    सबका सुहित, सुमंगल सबका, नहीं वैर-विद्वेष,

    एक हमारा ऊँचा झण्डा, एक हमारा देश ॥

    कितने वीरों ने कर-करके प्राणों का बलिदान,

    मरते-मरते भी गाया है इस झण्डे का गान ।

    रक्खेंगे ऊँचे उठ हम भी अक्षय इसकी आन,

    चक्खेंगे इसकी छाया में रस-विष एक समान ।

    एक हमारी सुख-सुविधा है, एक हमारा क्लेश,

    एक हमारा ऊँचा झण्डा, एक हमारा देश ।।

    मातृभूमि की मानवता का जागृत जय-जयकार,

    फहर उठे ऊँचे से ऊँचा यह अविरोध उदार ।

    साहस, अभय और पौरुष का यह अजीब संचार,

    लहर उठें जन-जन के मन में सत्य-अहिंसा-प्यार ।

    अगणित धाराओं का संगम मिलन-तीर्थ संदेश,

    एक हमारा ऊँचा झण्डा, एक हमारा देश ॥

    सुनें सब – – एक हमारा देश ।’

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा

    ● श्यामलाल गुप्त पार्षद

    विजयी विश्व तिरंगा प्यारा

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा

    सदा शक्ति दरसाने वाला

    प्रेम सुधा बरसाने वाला

    वीरों को हरषाने वाला

    मातृभूमि का तन-मन सारा ।

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा ॥

    स्वतंत्रता के भीषण रण में,

    लख कर जोश बढ़े क्षण-क्षण में ।

    काँपें शत्रु देख कर मन में,

    मिट जाएं भय संकट सारा ।

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा ॥

    इसकी शान न जाने पावें

    चाहे जान भले ही जावें

    विश्व विजय करके दिखलावें

    तब होवें प्रण पूर्ण हमारा।

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा ॥

    आओ प्यारे वीरों आओ

    देश धरम पर बलि – बलि जाओ

    एक साथ सब मिलकर गाओ

    प्यारा भारत देश हमारा।

    झण्डा ऊँचा रहे हमारा ||.

    जय राष्ट्रीय निशान

    जय राष्ट्रीय निशान !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    लहर-लहर तू मलय पवन में,

    फहर-फहर तू नीलगगन में,

    छहर-छहर जग के आँगन में,

    सबसे उच्च महान् !

    सबसे उच्च महान् !

    जय राष्ट्रीय निशान |

    बढ़े शूरवीरों की टोली,

    खेलें आज मरण की होली,

    बूढ़े और जवान !

    बूढ़े और जवान !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    मन में दीन-दुखी की ममता,

    हममें हो मरने की क्षमता,

    मानव-मानव में हो समता,

    धनी गरीब समान !

    गूँजें नभ में तान !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    तेरा मेरुदण्ड ही कर में,

    स्वतंत्रता के महासमर में,

    वज्रशक्ति बन व्यापें उर में,


    दे दें जीवन-प्राण !

    दे दें जीवन-प्राण !

    जय राष्ट्रीय निशान |.

    जय हे राष्ट्र निशान |.

    ० श्री हरि

    जय, जय, जय हे अमर तिरंगे, जय हे राष्ट्र-निशान !

    ‘सन् सत्तावन’ की अंगड़ाई,

    ‘नौ अगस्त’ की तू तरुणाई,

    तुझमें कोटि-कोटि वीरों का प्रतिबिम्बित बलिदान ।

    मूर्त शक्ति तू मूर्त त्याग तू,

    विश्वशान्ति का अमर राग तू,

    तुझमें कोटि-कोटि प्राणों के गुम्फित हैं अरमान।

    दिशि दिशि में अवनी अम्बर पर,

    तू अपनी आभा प्रसरित कर,

    पारतन्त्र्य-तम चीर ला रहा है स्वातन्त्र्य-विहान ।

    ज्वालाओं में जलते मन-सा,

    तप-तप कर निखरा कंचन-सा,

    तुझ पर सौ-सौ बार निछावर सारा हिन्दुस्तान ।

    विश्व – विजय करने की क्षमता,

    बने सदा मानव की ममता,

    तेरे तार-तार में मुखरित, मानवता के गान।

    हम निज तन देंगे, मन देंगे,

    तेरे हित जीवन दे देंगे,

    प्राण गंवाकर भी रख लेंगे, हम तेरा सम्मान।

    शीश कटें, घर-द्वार छिनें

    शीश करें, घर-द्वार छिनें,

    औ’ उजड़ें चाह भारत सारा ।

    लाठी चलें, गोलियाँ बरसें,

    प्रलय मचें, भर जावें कारा ॥

    वज्र गिरें, तलवारें चमकें,

    चाहे बहे रक्त की धारा ।

    झुकें नहीं यह ध्वजा, गगन में

    चमकें बनकर शक्ति-सितारा ॥

    जो इसकी छाया में आवें,

    महाकाल से भी भिड़ जावें ।

    तुंग हिमालय से भारत के,

    महासिंधु तक यह फहरावें ।

    सागर पर हो राज हमारा,

    अंबर पर अधिकार हमारा ।

    वायुयान और जलयानों पर,

    लहराएं यह तिरंगा प्यारा ॥

    नव-प्रभात हो, भारत भर में,

    हो ऐसा अनुपम उजियारा।

    अंधकार मिट जाएं, मुक्ति के

    गीतों से गूँजें नभ सारा ॥

    भारत के कोने-कोने में,

    झंडा फहरे आज हमारा।

    उठ जाएं तूफान देश में,

    कर दें जिस दिन एक इशारा ॥

    नगाधिराज शृंग पर

    नगाधिराज शृंग पर खड़ी हुई,

    समुद्र की तरंग पर अड़ी हुई,

    स्वदेश में जगह-जगह गड़ी हुई,

    अटल ध्वजा हरी, सफेद, केशरी !

    न साम-दाम के समक्ष यह रुकी,

    न दंड-भेद के समक्ष यह झुकी,

    सगर्व आज शत्रु- शीश पर ठुकी,

    निडर ध्वजा हरी, सफेद, केशरी !

    चलो, उसे सलाम आज सब करें,

    चलो, उसे प्रणाम आज सब करें,

    अमर सदा इसे लिये

    अजय ध्वजा

    हुए हरी, सफेद, केशरी !

    राष्ट्र-ध्वज तना रहे

    ● ताराचन्द पाल ‘बेकल’

    ज्योति नग बना रहे।

    राष्ट्रध्वज तना रहे ॥

    वीर हर जवान हो,

    सिंह के समान हो,

    कार्यक्रम- देश के,

    देश के संदेश के,

    हो सफल प्रत्येक पल,

    राष्ट्र कार्य में अटल,

    चेतना नवीन हो,

    हर कोई प्रवीण हो,

    वक्ष तान-तान कर,

    वायु समान स्वर,

    जय कहें स्वदेश की,

    देश के संदेश की,

    सत्य पथ प्रयाण हो,

    भव्य भावना रहे।

    ज्योति नग बना रहे।

    राष्ट्र-ध्वज तना रहे ॥

    कर्म के संकेत पर,

    छाए खेत-खेत पर,

    शस्य की विभा नयी,

    स्वर्ण-सी प्रभा नयी,

    प्राण में पुलक भरे,

    एक नव झलक भरे,

    मंजिलों के गीत हों,

    प्रेरणा-संगीत हो,

    शान से बड़े चलो,

    गिरि-शिखर चढ़े चलो,

    काफिला रुके नहीं,

    और ध्वज झुके नहीं,

    शक्ति-साधना रहे।

    नव्य कामना रहे॥

    ज्योति-नग बना रहे।

    राष्ट्र-ध्वज तना रहे ॥

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा

    रामदयाल पाण्डेय

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा, ऊंचा सदा रहेगा।

    हिंद देश का प्यारा झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    तूफानों से और बादलों से भी नहीं झुकेगा,

    नहीं झुकेगा, नहीं झुकेगा, झण्डा नहीं झुकेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    केसरिया बल भरने वाला, सादा है सच्चाई,

    हरा रंग है हरी हमारी धरती की अंगड़ाई ।

    और चक्र कहता कि हमारा, कदम कभी न रुकेगा ।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    शान हमारी ये झण्डा है, ये अरमान हमारा,

    ये बल पौरुष है सदियों का, ये बलिदान हमारा।

    जीवन-दीप बनेगा, ये अंधियारा दूर करेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    आसमान में लहराएं ये, बादल में लहराएं,

    जहां-जहां, जाए ये झण्डा ये सन्देश सुनाएं।

    है आजाद हिंद, ये दुनिया को आजाद करेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    नहीं चाहते हम दुनिया को, अपना दास बनाना,

    नहीं चाहते औरों के मुंह की रोटी खा जाना ।

    सत्य-न्याय के लिए हमारा लहू सदा बहेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    हम कितने सुख सपने लेकर, इसको फहराते हैं,

    इस झण्डे पर मर मिटने की, कसम सभी खाते हैं।

    हिन्द देश का है ये झण्डा, घर-घर में लहरेगा।

    झण्डा ऊंचा सदा रहेगा।

    झण्डा वंदन

    एक हमारा ऊँचा झण्डा, एक हमारा देश !

    इस झण्डे के नीचे निश्चित एक अमिट उद्देश्य !

    हमारा एक अमिट उद्देश्य ।

    देखा जागृति के प्रभात में एक स्वतंत्र प्रकाश,

    फैला है सब ओर एक-सा अतुल उल्लास ।

    कोटि-कोटि कंठों से कूजित एक विजय – विश्वास,

    मुक्त पवन में उड़ उठने की एक अमर अभिलाषा ।

    सबका सुहित, सुमंगल सबका, नहीं वैर-विद्वेष,

    एक हमारा ऊँचा झण्डा, एक हमारा देश ।।

    कितने वीरों ने कर-करके प्राणों का बलिदान,

    मरते-मरते भी गाया है इस झण्डे का गान ।

    रक्खेंगे ऊँचे उठ हम भी अक्षय इसकी आन,

    चक्खेंगे इसकी छाया में रस-विष एक समान ।

    एक हमारी सुख-सुविधा है, एक हमारा क्लेश,

    एक हमारा ऊँचा झण्डा, एक हमारा देश ॥

    मातृभूमि की मानवता का जागृत जय-जयकार,

    फहर उठे ऊँचे से ऊँचा यह अविरोध उदार ।

    साहस, अभय और पौरुष का यह अजीब संचार,

    लहर उठें जन-जन के मन में सत्य-अहिंसा प्यार ।

    अगणित धाराओं का संगम मिलन – तीर्थ- संदेश,

    एक हमारा ऊँचा झण्डा, एक हमारा देश ||

    सुनें सब- एक हमारा देश ।’

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा

    श्यामलाल गुप्त पार्षद

    विजयी विश्व तिरंगा प्यारा

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा

    सदा शक्ति दरसाने वाला

    प्रेम सुधा बरसाने वाला

    वीरों को हरषाने वाला

    मातृभूमि का तन-मन सारा ।

    झण्डा ऊँचा रहे हमारा ॥

    स्वतंत्रता के भीषण रण में,

    लख कर जोश बढ़े क्षण-क्षण में ।

    काँपें शत्रु देख कर मन में,

    मिट जाएं भय संकट सारा ।

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा ॥

    इसकी शान न जाने पावें

    चाहे जान भले ही जावें

    विश्व विजय करके दिखलावें

    तब होवें प्रण पूर्ण हमारा।

    झण्डा ऊँचा रहे हमारा ॥

    आओ प्यारे वीरों आओ

    देश धरम पर बलि – बलि जाओ

    एक साथ सब मिलकर गाओ

    प्यारा भारत देश हमारा।

    झण्डा ऊँचा रहें हमारा ॥

    जय राष्ट्रीय निशान

    जय राष्ट्रीय निशान !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    लहर-लहर तू मलय पवन में,

    फहर- फहर तू नीलगगन में,

    छहर-छहर जग के आँगन में,

    सबसे उच्च महान् !

    सबसे उच्च महान् !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    बढ़े शूरवीरों की टोली,

    खेलें आज मरण की होली,

    बूढ़े और जवान !

    बूढ़े और जवान !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    मन में दीन-दुखी की ममता,

    हममें हो मरने की क्षमता,

    मानव-मानव में हो समता,

    धनी गरीब समान !

    गूँजें नभ में तान !

    जय राष्ट्रीय निशान !

    तेरा मेरुदण्ड ही कर में,

    स्वतंत्रता के महासमर में,

    वज्रशक्ति बन व्यापें उर में,

    दे दें जीवन प्राण !

    दे दें जीवन प्राण !

    जय राष्ट्रीय निशान ।

    जय हे राष्ट्र- निशान !

    श्री हरि

    जय, जय, जय हे अमर तिरंगे, जय हे राष्ट्र-निशान !

    ‘सन् सत्तावन’ की अंगड़ाई,

    ‘नौ अगस्त’ की तू तरुणाई,

    तुझमें कोटि-कोटि वीरों का प्रतिबिम्बित बलिदान ।

    मूर्त शक्ति तू मूर्त त्याग तू,

    विश्वशान्ति का अमर राग तू,

    तुझमें कोटि-कोटि प्राणों के गुम्फित हैं अरमान ।

    दिशि दिशि में अवनी अम्बर पर,

    तू अपनी आभा प्रसरित कर,

    पारतन्त्र्य-तम चीर ला रहा है स्वातन्त्र्य – विहान ।

    ज्वालाओं में जलते मन-सा,

    तप तप कर निखरा कंचन-सा,

    तुझ पर सौ-सौ बार निछावर सारा हिन्दुस्तान ।

    विश्व – विजय करने की क्षमता,

    बने सदा मानव की ममता,

    तेरे तार-तार में मुखरित, मानवता के गान।

    हम निज तन देंगे, मन देंगे,

    तेरे हित जीवन दे देंगे,

    प्राण गंवाकर भी रख लेंगे, हम तेरा सम्मान।

    शीश कटें, घर-द्वार छिनें

    हरिकृष्ण प्रेमी

    शीश करें, घर-द्वार छिर्ने,

    औ’ उजड़ें चाह भारत सारा।

    लाठी चलें, गोलियाँ बरसें,

    प्रलय मर्चे, भर जावें कारा ॥

    वज्र गिरें, तलवारें चमकें,

    चाहे बहे रक्त की धारा ।

    झुकें नहीं यह ध्वजा, गगन में

    चमकें बनकर शक्ति-सितारा ॥

    जो इसकी छाया में आवें,

    महाकाल से भी भिड़ जावें ।

    तुंग हिमालय से भारत के,

    महासिंधु तक यह फहरावें ॥।

    सागर पर हो राज हमारा,

    अंबर पर अधिकार हमारा।

    वायुयान और जलयानों पर,

    लहराएं यह तिरंगा प्यारा ॥

    नव-प्रभात हो, भारत भर में,

    हो ऐसा अनुपम उजियारा ।

    अंधकार मिट जाएं, मुक्ति के

    गीतों से गूँजें नभ सारा ॥

    भारत के कोने-कोने में,

    झंडा फहरे आज हमारा।

    उठ जाएं तूफान देश में,

    कर दें जिस दिन एक इशारा ॥

    नगाधिराज शृंग पर

    हरिवंशराय ‘बच्चन’

    नगाधिराज श्रृंग पर खड़ी हुई,

    समुद्र की तरंग पर अड़ी हुई,

    स्वदेश में जगह-जगह गड़ी हुई,

    अटल ध्वजा

    हरी, सफेद, केशरी !

    न साम-दाम के समक्ष यह रुकी,

    न दंड-भेद के समक्ष यह झुकी,

    सगर्व आज शत्रु- शीश पर ठुकी,

    निडर ध्वजा

    हरी, सफेद, केशरी !

    चलो, उसे सलाम आज सब करें,

    चलो, उसे प्रणाम आज सब करें,

    अमर सदा इसे लिये हुए मरें,

    अजय ध्वजा हरी, सफेद, केशरी !

    राष्ट्र-ध्वज तना रहे

    ताराचन्द पाल ‘बेकल’

    ज्योति नग बना रहे।

    राष्ट्र-ध्वज तना रहे।

    वीर हर जवान हो,

    सिंह के समान हो,

    कार्यक्रम देश के,

    देश के संदेश के,

    हो सफल प्रत्येक पल,

    राष्ट्र कार्य में अटल,

    चेतना नवीन हो,

    हर कोई प्रवीण हो,

    वक्ष तान-तान कर,

    वायु के समान स्वर,

    जय कहें स्वदेश की,

    देश के संदेश की,

    सत्य पथ प्रयाण हो,

    भव्य भावना रहे।

    ज्योति – नग बना रहे।

    राष्ट्र-ध्वज तना रहे ।

    कर्म के संकेत पर,

    छाए खेत-खेत पर,

    शस्य की विभा नयी,

    स्वर्ण-सी प्रभा नयी,

    प्राण में पुलक भरे,

    एक नव झलक भरे,

    मंजिलों के गीत हों,

    प्रेरणा-संगीत हो,

    शान से बड़े चलो,

    गिरि – शिखर चढ़े चलो,

    काफिला रुके नहीं,

    और ध्वज झुके नहीं,

    शक्ति-साधना रहे।

    नव्य कामना रहे ।

    ज्योति- -नग बना रहे।

    राष्ट्र ध्वज तना रहे ।

  • 12 जनवरी स्वामी विवेकानन्द जयन्ती पर कविता / स्वामी विवेकानंद पर कविता

    12 जनवरी स्वामी विवेकानन्द जयन्ती पर कविता / स्वामी विवेकानंद पर कविता

    12 जनवरी स्वामी विवेकानन्द जयन्ती पर कविता: स्‍वामी विवेकानंद का जन्‍म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। भारत में उनके जनमाँ दिन को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी जी की बुद्धिमत्ता और अद्भुत उत्तर पूरी दुनिया का कायल थी। उन्होंने पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन रखा।

    स्वामी विवेकानंद
    स्वामी विवेकानंद

    स्वामी विवेकानंद पर कविता

    गेरूआ वस्त्र, उन्नत मस्तक, कांतिमय शरीर ।
    है जिनकी मर्मभेदी दृष्टि, निश्छल, दिव्य,धीर।।

    युवा के उत्थान हेतु तेरे होते अलौकिक विचार ।
    आपके विचार से चल रहा आज अखिल संसार।।

    शिकागो में पुरी दुनिया को दिया धर्म का ज्ञान।
    राजयोग और ज्ञानयोग हेतु,  किए  व्याख्यान।।

    हे नरेन्द्र, परमहंस शिष्य ,स्वामी विवेकानंद।
    आप सा युगवाहक,युगदृष्टा होते जग में चंद।।

    हे महान तपस्वी मनस्वी, राष्ट्रभक्त, हे स्वामी।
    हे दर्शनशास्री, अध्यात्म के अद्वितीय ज्ञानी।।

    सृष्टि के गूढ़ रहस्यों को  आत्मसात कर डाली।
    हे महान! तुम ब्रह्मचारी विलक्षण प्रतिभाशाली।।

    हे महामानव महात्मा,  भारत के युवा संन्यासी ।
    विश्व में जो पहचान दिलायें गर्व करे भारतवासी।।

    बाँके बिहारी बरबीगहीया

    स्वामी विवेकानंद जी पर कविता

    विश्व गुरु का पद पाकर भी,
    नहीं कभी अभिमानी थे।
    संत विवेकानंद जगत में ,
    वेदांतो के ज्ञानी थे।।
    //१//
    सूक्ष्म तत्व का ज्ञान जिन्हें था,
    मानव जन्म प्रवर्तक थे।
    दिन दुखी निर्धन पिछड़ो का,
    यह तो परम समर्थक थे।
    धरती से अम्बर तक जिसनें,
    पावन ध्वज फहराया था।
    प्रेम-भाव के रीति धर्म का,
    जग को मर्म बताया था।
    तपते रेगिस्तानों में जो,
    आशाओं के पानी थे।
    संत विवेकानंद जगत में ,
    वेदांतो के ज्ञानी थे।।
    //२//
    नहीं झुके थे,नहीं रूके थे,
    आगे कदम बढ़ाते थे।
    मानवता के मर्म भेद को,
    जग को सदा पढ़ाते थे।
    किया पल्लवित मन बागों को,
    लेप लगाकर घावों में।
    प्रखर ओज शुचिता भरते थे,
    बूझ रहें मनभावों में।
    ज्ञान दान करने के पथ में,
    सबसे बढ़कर दानी थे।
    संत विवेकानंद जगत में ,
    वेदांतो के ज्ञानी थे।।
    //३//
    विपदाओं को दूर करें जो,
    लक्ष्य वही थे कर्मो में।
    भेद नहीं करते थे स्वामी,
    कभी किसी के धर्मो में।
    भगवा पट धारणकर हम भी,
    जग में अलख जगाएंगे।
    “कोहिनूर”अब विश्व गुरु के,
    पग में सुमन चढ़ाएंगे।
    जीवन की परिभाषाओं में,
    जिनसे पुण्य कहानी थे।
    संत विवेकानंद जगत में ,
    वेदांतो के ज्ञानी थे।।

    डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”

    विवेकानंद जी को शब्दांजलि-बाबू लाल शर्मा

    विभा—
    विभा नित्य रवि से लिए, धरा चंद्र बहु पिण्ड!
    ज्ञान मान अरु दान दो, रवि सम रहें प्रचंड!!

    विभा विवेकानंद की, विश्व विजेत समान!
    सभा शिकागो में उदय, हिंद धर्म विज्ञान!!

    चंद्र लिए रवि से विभा, करे धरा उजियार!
    ज्ञानी कवि शिक्षक करे, शशिसम ज्ञान प्रसार!!

    विभात—-
    रवि रथ गये विभावरी, नूतन मान विभात!
    संत मनुज गति धर्मपथ, ध्रुवसम विभा प्रपात!!

    रात बीत फिर रवि उदय, ढले सुहानी शाम!
    होता नित्य विभात है, विधि से विधि के काम!!

    विभूति–
    रामकृष्ण थे संतवर, परमहंस गुण छंद!
    पूजित महा विभूति गुरु, शिष्य विवेकानन्द!!

    संत विवेकानंद जी, ज्ञानी महा विभूति!
    गृहण युवा आदर्श कर, माँ यश पूत प्रसूति!!

    शर्मा बाबू लाल मैं, लिख कर दोहे अष्ट!
    हे विभूति शुभकामना, मिटे देश भू कष्ट!!


    © बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ

    वही विवेकानंद बने

    कलुष कर्म मानव जीवन में,
    नहीं गले का फंद बने।
    जो मन साधन करे योग का,
    वहीं विवेकानंद बने।
    उठो जागकर बढ़ो निरंतर,
    जब तक लक्ष्य नहीं मिलता।
    ज्ञान नीर बिन मन बागों में,

    सुरभित पुहुप नहीं खिलता।
    कर्म योग अरु ज्ञान योग बिन।
    जीवन यह अंधेरा है,
    जब प्रकाश ही नहीं रहे तो,
    क्या तेरा क्या मेरा है।
    परम ज्ञान के पुंज है स्वामी,

    पुण्य परम् मकरंद बने।
    जो मन साधन करे योग का,
    वहीं विवेकानंद बने।।
    धर्म ध्वजा को हाथ थाम कर,
    जग को पाठ पढ़ाया है।

    भारत भू का धर्म सभा में,
    जिसने मान बढ़ाया है।
    मानवता की सेवा करके,
    जिसने जन्म गुजार दिया।
    जन जन के निज प्रखर ज्ञान से
    खुशियों का संसार दिया।

    स्वामी जी की शुभ विचार को,
    धार मनोज मकरंद बने ।
    जो मन साधन करें योग का ,
    वही विवेकानंद बने ।।
    दीक्षा लेकर परमहंस से ,
    चले सदा बन अनुगामी ।

    भले उम्र छोटी थी लेकिन,
    बने रहे जग के स्वामी ।
    जिसने जग को दिव्य ज्ञान से ,
    समझाई थी परिभाषा ।
    जो पढ़ ले इसके जीवन को ,

    पूर्ण करें मन अभिलाषा ।
    कोहिनूर ने जब कोशिश की ,
    तब यह अनुपम छंद बने ।
    जो मन साधन करें योग का ,
    वही विवेकानंद बने।।

    डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
    छत्तीसगढ़(भारत)

    भारत की पावन माटी में

    o राजेन्द्र राजा

    भारत की पावन माटी में अनगिन संतों ने जनम लिया।

    अपने दर्शन की भाषा में मानवता का संदेश दिया ।

    ऐसे संतों में एक संत जैसे अंबर में ध्रुवतारा ।

    जिसके चरणों की रज लेने आतुर था भूमंडल सारा ॥

    इस भोगवाद के जीवन को उसने जाने रख दिया कहाँ ?

    जो कभी ‘नरेंद्र’ कहाता था बन गया विवेकानंद यहाँ ।।

    संयम का अर्थ बताने को पहना उसने भगवा बाना ।

    हिंदुत्व भावना के ध्वज को फहराने निकला दीवाना ।।

    पुरवा के झोंके ने जाकर पछुवा का रंग बदल डाला।

    जब उच्छृंखलता ने झुककर संयम को पहनाई माला ॥

    वह गया शिकागो तक दौड़ा भारत की महिमा गाने को ।

    भारत है सबका धर्मगुरु दुनिया को सच बतलाने को ।

    बचपन के खेल खिलौने तज वह पीड़ाओं से खेला था।

    वह मनुज नहीं था साधारण बजरंगबली का चेला था।

    उसकी तेजस्वी आभा से सूरज भी शरमा जाता था ।

    उसकी ओजस्वी वाणी से हिम तक भी गरमा जाता था ।

    अध्यात्मवाद की गंगा को वह भूमंडल पर लाया था।

    अद्वैतवाद की महिमा को जाकर सबको समझाया था ॥

    पुरुषार्थ, त्याग का मूर्तरूप या स्वयं धर्म की परिभाषा ।

    सहचर था वह हर पीड़ित का था दीन-दुःखी जन की आशा ॥

    जैसे चंदन बिखराता है अपने तन से चहुँ ओर गंध ।

    ऐसे ही बिखराने आया वह महामानव अपनी सुगंध ॥

    हर हिंदू से वह कहता था ‘हिंदू’ होने पर गर्व करो ।

    भारत माँ को माँ कहने में ना कहीं किसी से कभी डरो।।

    रोम्या रोलाँ तक ने जिसको अपने घर में सम्मान दिया।

    सबने भारत के बेटे को युग का प्रवर्तक मान लिया ।।

    झुक गया गगन भी धरती पर सुनने संन्यासी की वाणी।

    हर्षित होकर पग धोने को मचला था सागर का पानी ।।

    वह देश नहीं रहता जीवित जिसकी भाषा मर जाती है।

    भाषा है निज माँ की बोली जग में पहचान कराती है।

    उस महापुरुष के चरणों में करता हूँ शत-शत बार नमन ! ऐसे ही पुष्पों से मेरे भारत का खिलता रहे चमन ॥

    भारत की गुरुता का जिसने

    ० धनंजय ‘धीरज’

    भारत की गुरुता का जिसने,

    इस धरती पर ध्वज फहराया।

    संत विवेकानंद, विश्व को

    करके विजय, लौटकर आया ॥

    भारतीय संस्कृति का गौरव,

    मान गई मानवता सारी।

    आत्म और अध्यात्म ज्ञान में,

    भारत सम्मुख, विश्व भिखारी ॥

    समझ गए थे संत, विश्व का

    भारत ही कल्याण करेगा।

    आत्म ज्ञान की, भूख जगत् की,

    और न कोई शांत करेगा ।

    ईश्वर दर्शन किया उन्होंने,

    सेवा करने में जन-जन की।

    सेवा पथ, हम भी अपनाएँ,

    अभिलाषा है, अपने मन की ॥

  • प्यार पर कविता / वेलेंटाइन दिवस पर कविता

    प्यार पर कविता / वेलेंटाइन दिवस पर कविता

    प्यार पर कविता

    प्रेम

    प्यार है जीवन का आधार

    एक सत्य जीवन का, प्रेम जीवन का आधार।
    स्नेह प्रेम की भाषा समझे, ये सारा संसार ।

    एक उत्तम फूल धरा पर, जो खिल सकता,वो है प्रेम का फूल।
    मानव हृदय में प्रस्फुटित होता, प्रेम में क्षमा हो जाती हर भूल।

    प्रेम पूर्णिमा के चांदनी जैसी, करती शीतलता प्रदान।
    कभी सूर्य की किरणों सम, तेज ताप कर देती महान।

    प्रेम में सहनशीलता ,प्रेम में समर्पण का भाव।
    प्रेम पिता का प्यार है ,औैर प्रेम ममता की छांव ।

    प्रेम के फूल से महक सकता है, ये सारा संसार।
    प्रेम मिटाए नफरत को औैर मिटाए बैर की दीवार।

    मानव मानसिकता में परिवर्तन, प्रेम से ही संभव है।
    मानवता का आधार प्रेम है, जहां प्रेम वहां मानव है।

    प्रेम परोपकार भाव से,मानवता की ओर ले जाए।
    पाशविक वृत्ति से दूर निकाले , सच्चा मानव हमें बनाए।

    अतिशयोक्ति नहीं है ये सब , पूर्ण सत्य है प्यार।
    प्रेम ही तो होता है , हम सब का जीवन आधार ।

    इश्क समर्पण पर कविता

    मन मयूरा थिरकता है
    संग तेरे प्रियतम
    ढूंढता है हर गली
    हर मोड़ पर प्रियतम

    फूल संग इतराएं कलियां
    भौंरे की गुनगुन
    मन की वीणा पर बजे बस
    तेरी धुन प्रियतम

    सज के आया चांद नभ में
    तारों की रुनझुन
    मै निहारूं चांद में बस
    तेरी छवि प्रियतम

    क्षितिज में वो लाल सूरज
    किरने हैं मद्धम
    दूर है कितना वो
    कितने पास तुम प्रियतम

    बरसे सावन की घटा जब
    छा के अम्बर पर
    छलकती हैं मेरी अंखियां
    तेरे बिन प्रियतम

    ताप भीषण हो गया तम
    उमड़े काले घन
    दाह लगाए बिरहा तेरी
    मुझको ओ प्रियतम

    उमड़ पहाड़ों से ये नदिया
    चली झूम कलकल
    तुमसे मिलने के जुनून में
    जैसे मैं प्रियतम

    पल्लवों पर शबनम, किरने
    थिरके झिलमिल कर
    मेरे अश्कों में छलकते
    तुम मेरे प्रियतम

    लीन तपस्या में कोई मुनि
    अर्पित करता है तनमन
    करूं समर्पण तप सारा
    तुम पर मेरे प्रियतम।।

    शची श्रीवास्तव

    इश्क बिना जीवन में रस नहीं

    प्रेम बिना जीवन में रस नहीं।
    प्रेम करना पर अपने बस में नहीं।
    किसी की आंखों में खो जाता है।
    बस ऐसे ही प्रेम हो जाता है।

    रहता नहीं खुद पर जोर।
    मन भागता है हर ओर।
    पर मिल जाता है मन का मीत
    तब हो जाती है उससे प्रीत।

    लिखते प्रेमी उस पर कविता
    मन रहता जिस पर रीता।
    हृदय बहती प्रेम की सरिता।
    मन की रेखा से प्रेम पत्र लिख जाते ।

    कितने प्रेम ग्रंथ लिख जाते,
    पाकर प्रीतम की एक छवि।
    जैसे ईश्वर को बिन देखे भी
    उनके चित्र बनाते कलाकार। होकर भक्ति में लीन वैसे ही प्रेमी

    बनाते हृदय अपने प्रिय की तस्वीर
    कल्पनाओं को करते साकार। पूजते प्रिय को ईश के समान ।
    इसी लिए कहते जग में सारे । दिल है मंदिर प्रेम है इबादत।

    सरिता सिंह गोरखपुर उत्तर प्रदेश

    उसके नखरे सहे हजार

    वह खुश रहती मेरे साथ,
    और करती है मुझसे बात।
    उसके लिए मैं प्यारा,
    मुझको वो प्यारी।
    उसकी सूरत इस ,
    संसार में सबसे न्यारी।
    आज वो करने लगी,
    मुझसे जान से ज्यादा प्यार।
    क्योंकि मैंने ही अकेले,
    उसके नखरे सहे हजार।

    मेरे लिए वो सजती-संवरती,
    फिर मेरे करीब आती है।
    धीरे से मेरे अधरों पर,
    चुम्बन वो कर जाती है।
    आज भी मेरे लिए वो,
    होकर आती है तैयार।
    क्योंकि मैंने ही अकेले,
    उसके नखरे सहे हजार।।

    कवि विशाल श्रीवास्तव फर्रूखाबादी।

    प्रेम ही जीवन है

    हे प्रिय मैं तुमसे कुछ कहता हूँ
    हाँ आज फिर कुछ लिखता हूँ
    हाँ आज फिर कुछ लिखता हूँ।
    एक तड़प रहती है मिलन की
    तो एक तड़प रहती है जुदाई की
    दोनों के बीच में मैं पिसता हूँ
    हाँ आज फिर कुछ लिखता हूँ।


    तुम हो तो जीवन है
    तुम हो तो है रवानी
    तुम हो तो प्यार है
    तुम हो तो है जिंदगानी
    तुमसे हर दिन हमारा वैलेनटाइन है
    है हर साँस तुम्हारा हमारा
    तुम हमारे दिल में हो
    उम्मीद करू कि मैं भी तुम्हारे दिल में रहता हूं
    हां आज फिर कुछ लिखता हूँ।


    हर दिन अपना वसन्त हो
    हर रात हो अपनी होली
    हर नर नारी के दिल में एक ऐसी आग हो
    जो वतन के लिए खेल दें खूनों की होली
    हे प्रिय मैं हर देशवासी को ये संदेशा कहता हूँ
    हाँ मैं आज फिर कुछ लिखता हूँ ।।

    पवन मिश्र

    कविता के बहाने

    आ गया हूं मैं तेरे पास,
    अपना गीत गुनगुनाने।
    प्रेमी हूं मैं ,
    प्रेम की कविता सुनाने।
    कहना है आई लव यू,
    कविता के बहाने।

    तेरे बिन सूनी है,
    मेरी ये जवानी।
    कैसे बढ़ेगी आगे,
    तेरी मेरी कहानी।
    अब तो चल साथ मेरे,
    आया हूं मैं बुलाने।
    कहना है आई लव यू,
    कविता के बहाने।

    ह्रदय की धड़कन बढ़ रही है,
    तेरी सूरत मेरी आंखों में चढ़ रही है।
    मैंने खत तेरे लिए जो भेजा,
    आज वही आज तू पढ़ रही है।
    आया हूं मैं तेरे प्रति,
    अपना प्रेम जताने।
    कहना है आई लव यू,
    कविता के बहाने।।

    कवि विशाल श्रीवास्तव फर्रूखाबादी

    जो मेरे द्वारे तू आए

    प्राण मरुस्थल खिल-खिल जाए
    साँस-डाल भी हिल-हिल गाए
    छोड़ झरोखे राज महल के
    जो मेरे द्वारे तू आए ।

    जुड़े सभा सपनों की आकर
    आंखों की सूनी जाजम पर
    खेल न पाएँ बूँदें खारी
    पलकों की अरुणिम चादर पर

    चहल-पहल हो मेलों जैसी
    गुमसुम अधरों पर गीतों की
    फुल उदासी झड़े धूल-सी
    खिले जवानी नभ दीपों-सी

    उमर चाल छिपते सूरज-सी
    घबराकर पीली पड़ जाए ।
    छोड़ झरोखे राज महल के
    जो मेरे द्वारे तू आए ।

    शुष्क मरुस्थल-सी सूखी देह से
    फूट पड़ें अमृत के धारे
    दीपदान करने को दौड़ें
    खुशियाँ मुझे जिया के द्वारे

    संगीतमयी संध्या-सी हों
    डूबी-सी धड़कन की रातें
    मानस की चौपाई जैसे
    महकें अलसायी-सी बातें

    झरे मालती रोम-रोम से
    कस्तूरी गंध बदन छाए
    छोड़ झरोखे राज महल के
    जो मेरे द्वारे तू आए ।

    उतर चाँदनी नील गगन से
    पूरे चौका मन आँगन में
    चुनचुन मोती जड़ें रातभर
    सितारे फकीरी दामन में

    थपकी दे अरमान उनींदे
    अंक सुलाए रजनीगंधा
    भर-भर प्याली स्वपन सुधा की
    चितवन से छलकाए चंपा

    भोर भए पंछी-बिस्मिल्लाह
    शहनाई ले रस बरसाए ।
    छोड़ झरोखे राज महल के
    जो मेरे द्वारे तू आए ।

    अशोक दीप

    प्रेम सबको होता है

    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।


    यह लड़की को होता है,
    यह लड़के को होता है।
    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।


    किसी को कम होता है,
    किसी को ज्यादा होता है।
    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।


    कोई मुझसे कहे न ये,
    प्रेम हमको न होता है।
    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।


    किसी को इंसान से होता है,
    किसी को भगवान से होता है।
    किसी को शिक्षक से होता है,
    किसी को शिक्षा से होता है।
    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।


    प्रेम जिसको न होता है,
    वो सारी उम्र रोता है।
    प्रेम न करने वाला ही,
    अपना सबकुछ खोता है।
    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।

    प्रेम अमर रत्न की

    प्रेम अमर रत्न की ,
    वो एक मुस्कुराहट है ,
    जिस रत्न से हम सराबोर है ,
    नभ की अभिकल्पनाओं में ,
    जीवन तरंगित हुआ ,

    मन पुलकित हुआ ,
    मन द्रुम्लित हुआ ,
    नेह नयनों की आभा ,
    प्यार के फुल मे ,
    दिल विस्मित हुआ !

    निकिता कुमारी

    कुछ तो है तेरे मेरे बीच

    कुछ तो है 
    तेरे मेरे बीच 
    जो मैं कह नहीं सकता .
    और तुम सुन नहीं सकते.
    इस कुछ को खोज रहा हूँ .
    जो मिले तुम्हें बता देना.
    आखिर तुम कह सकते हो.
    और मैं सुन लूँगा.

    मैं पूछता मेरे ख्यालों से दिन रात
    क्यूँ सिर उठाते हैं देखकर तुम्हें
    दिल के सारे जज्बात.
    तुम अपने तो नहीं 
    ना कभी होगे.
    पर गैरों सा ये मन 
    तुम्हें अपना लेना चाहता है
    जो भी मिला अब तक ज़िन्दगी में
    वो सब देना चाहता है.

    इसलिए नहीं कि
    हासिल करना हैं तुम्हें.
    इसीलिए भी नहीं कि,
    काबिल हूँ मैं तेरे लिए.
    पर फिर भी….

    कुछ और सोचूं इस खातिर
    बोल उठती है मेरी चेतना.
    ठहर जाओ!
    इसे रहने दो अनाम .
    जो तेरा हो नहीं सकता,
    उसे मत करो बदनाम.

    पर
    कुछ तो है 
    तेरे मेरे बीच 
    जो मैं कह नहीं सकता .
    और तुम सुन नहीं सकते.
    लेकिन हाँ ! जी जरुर सकते हैं .

    -मनीभाई नवरत्न

    सबको चांद का दीदार चाहिए…

    मुझे तो मेरा चांद पास मिला है।
    ये वो  नहीं जो आसमान का है…
    ये नक्षत्र तो मेरे दिल में खिला है।
    तू चांद देख जानम..और अपना व्रत तोड़ ले।
    मैं ना छोड़ूँ  ये व्रत , चाहे सारा जग छोड़ दे।
    तेरे साथ रहना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।
    तेरे संग चलना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।
    इस दुपट्टे की लाल में प्यार की गहराई है।
    माथे के सिन्दूरी में  यादों की शहनाई है।
    गले में ये मंगलसूत्र रिश्तों की पूजा है।
    तुमसे बढ़के मेरा यहाँ कोई ना दूजा है ।
    मैं ना बिकूंगा तुझे चोट देने के लिए
    कोई मुझे चाहे लाख करोड़ दें।
    मैं ना छोड़ूँ ये व्रत , चाहे सारा जग छोड़ दे।
    तेरे साथ रहना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।
    तेरे संग चलना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।
    शाम की इन हवाओं में रंगीनी छाई है।
    जैसे समां ने खुशी से मेंहदी रचाई  है।
    हर पति खुशकिस्मत है चेहरे में साज है।
    आज अपने पत्नी पे उसे गर्व और नाज़ है।
    करवाचौथ का त्यौहार हम सबके लिये
    रिश्तों में खुशहाली मोड़ दें।
    मैं ना छोड़ूँ  ये व्रत , चाहे सारा जग छोड़ दे।
    तेरे साथ रहना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।
    तेरे संग चलना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।

    प्रेम पत्र पर कविता

    पत्र लिख लिख के फाड़े
    भू को अम्बर भेज न पाए।
    भेद मिला यह मेघ श्याम को
    ओस कणों ने तरु बहकाए।।

    मौन प्रीत मुखरित कब होती
    धरती का मन अम्बर जाने
    पावस की वर्षा में जन मन
    दादुर की भाषा पहचाने

    मोर नाचते संग मोरनी
    पपिहा हर तरुवर पर गाए।
    प्रेम पत्र ……………….।।

    तरुवर ने संदेशे भेजे
    बूढ़े पीले पत्तों संगत
    पुरवाई मधुमास बुलाए
    चाहत फूल कली की पंगत

    ऋतु बसंत ने बीन बजाई
    कोयल प्रेम गीत दुहराये।
    प्रेम पत्र………………..।।

    शशि के पत्र चंद्रिका लाई
    सागर जल मिलने को मचला
    लहर लहर में यौवन छाया
    ज्वार उठा जल मिलने उछला

    अनपाए पत्रों को पढ़ कर
    धरती का कण कण हरषाया।
    प्रेम पत्र…………………….।।

    बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*

    वेलेन्टाइन डे की कहानी”

    दिन,महिना,साल भूल के,
    अब मंथ,ईयर व डे हैं कहाये जाते ।
    साल के तीन सौ पैंसठ दिन में,
    कुछ न कुछ डे तो मनाये जाते ॥
    इन्हीं डे में वेलेन्टाइन डे,
    जो प्रेमी जोडे़ हैं मनाया करते ।
    इस दिन सब कुछ भुल-भाल के,
    बस प्यार का पाठ पढ़ाया करते ॥
    जिस किसी को प्यार किसी से,
    वो इजहार प्यार का किया करते ।
    इक-दूजे को भेंट मे कुछ तो,
    प्यार का उपहार दिया करते ॥
    वेलेंटाइन डे की भी कहानी मित्रों,
    अपनी जुबा से सुनाता हूं ।
    सेंट वेलेंटाइन डे का किस्सा,
    जो सुना है मै दुहराता हूं ॥
    रोम देश मे एक इसाई,
    जिसका नाम सेंट वेलेन्टाइन था ।
    वहां की राजा की बेटी से,
    भरपूर प्यार भी उसको था ॥
    बिना शादी के लड़का-लड़की,
    सारे रिश्ते कर सकते हैं ।
    पति-पत्नी नही तो क्या,
    वे प्रेमी जोड़े बन कर रह सकते हैं ॥
    ये बात उसने राजा से,
    बड़ी निडरता से कह डाला ।
    लाल रंग के दिल को उसने,
    राजकुमारी की झोली मे डाला ॥
    उसकी गुस्ताखी देख के राजा,
    उसे फासी की सजा है सुनवाया ।
    चौदह फरवरी के दिन ही उसको,
    सजाए मौत है दिलवाया ॥
    इसी दिन को याद करके प्रेमी,
    अपने प्यार को खुब रिझाते हैं ।
    प्यार-मुहब्बत करके वे,
    वेलेन्टाइन डे को मनाते हैं ॥
    पर पश्चिमी सभ्यता का अंधाधुंध अनुकरण मित्रों,
    वर्तमान मे लग रहा होगा अच्छा ।
    पर इसका दुष्परिणाम भयंकर होगा,
    ये बात भी मित्रों है सच्चा ॥
    पर इसका दुष्परिणाम भयंकर होगा,
    ये बात भी मित्रों है सच्चा ……..

    मोहन श्रीवास्तव

    फरवरी महिना पर कविता

    लोग कहते हैं इश्क़ कमीना है
    हम कहते हुस्न का नगीना है।
    देखो चली है मस्त हवा कैसी
    आ रहा मुहब्बत का महीना है।

    जनवरी संग गुजर गयी सर्दी
    प्यार का ये फरवरी महीना है।
    वेलेंटाइन तो पश्चिमी खिलौना
    यहां तो सदियों से ही मनता
    रहा मदनोत्सव का महीना है।

    सोलहो श्रृंगार कर रही सजनी
    आ रहा उसका जो सजना है।
    यमुनातट आया कृष्ण कन्हैया
    संग राधा नाचती ता-ता थैया है।
    मुरली के धुन पर गोपियां क्या?
    वृंदावन की नाची सारी गैया है।

    फूलों की सुगंध देखो मकरंद
    कैसा उड़ता फिरता बौराया है।
    बागों में लगे है फूलों के झूले
    झूलती सजनी संग सजना है।
    धरा पे पुष्पों सजा ये गहना है
    आया मुहब्बत का ये महीना है।

    वंसतोत्सव में झूमता सदियों से
    आर्यावर्त का नाता ये पुराना है
    प्रेम की हम करते हैं इबादत
    नही वासना का झूठा बहाना है।

    कृष्ण राधा का मीरा का माधव
    रति कामदेव का ही ये महीना है
    आया मुहब्बत का ये महीना है
    इश्क़ वाला ये फरवरी महीना है।   

    पंकज भूषण पाठक “प्रियम”

    वो प्यार जो हकीकत में प्यार होता है – मधुमिता घोष

    वो प्यार जो हकीकत में प्यार होता है,
    उसमें न कोई जीत,न कोई हार होता है,
    न होता है भाव अहम का,
    न होता है शब्द रहम का,
    बस एक -दूजे की खुशी में सारा संसार होता है।
    वो प्यार…………………….

    न बीते दिनों की सच्चाई जुदा करती है,
    न अकेले में तन्हाई जुदा करती है,
    बस आँखों में प्यार का महल होता है,
    दिल में प्यार का सम्बल होता है, अपने प्यार की खुशी में ही संसार होता है।
    वो प्यार…………………………..

    न बारिश में वो भीगता है,
    न पतझड़ में वो सूखता है,
    हर मौसम में जिस पर,
    यौवन का खुमार होता है,
    अपने प्यार की एक मुस्कुराहट के लिए जो न्यौछावर बार-बार होता है।
    वो प्यार………………………..

    आँखों का समंदर जब,
    उसकी यादों में फूटता है,
    दिल न जाने इस दरमियाँ,
    कितनी बार टूटता है,
    फिर भी मन में उम्मीदों का आसार होता है।
    वो प्यार……………….….

    मधुमिता घोष

    तुम्हारी यही बातें मुझे अच्छी लगतीं हैं

    तुम्हारी यही बातें मुझे अच्छी लगतीं हैं
    गुज़रे यादों में जो रातें मुझे अच्छी लगतीं हैं


    तुम्हें न देखूँ तो दिल को न मेरे चैन मिलता है
    छुप छुप के मुलाकातें मुझे अच्छी लगतीं हैं
    दिल में दबा के रखते हो तुम जिन अरमानो को
    वो छुपी छुपी तेरी चाहतें मुझे अच्छी लगतीं हैं


    सुना है प्यार करने वाले हिम्मत वाले होते हैं
    ये रंज और ये आफतें मुझे अच्छी लगतीं हैं
    तुम ये रोज़ लिख लिख कर जो मुझको भेजते हो
    ये ख़त में प्रेम सौगातें मुझे अच्छी लगतीं हैं

    निशां उल्फ़त का दामन से सुनो रह रह के जाता है
    चुनरिया तुम जो रंग जाते मुझे अच्छी लगतीं हैं
    तेरी ‘चाहत’ है वो ख़ुशबू बिखरी मेरे तन मन पे
    निगाहों की करामातें मुझे अच्छी लगतीं हैं


    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
    झाँसी