गुरु महिमा – बासुदेव अग्रवाल नमन

भारत के गुरुकुल, परम्परा के प्रति समर्पित रहे हैं। वशिष्ठ, संदीपनि, धौम्य आदि के गुरुकुलों से राम, कृष्ण, सुदामा जैसे शिष्य देश को मिले।

डॉ. राधाकृष्णन जैसे दार्शनिक शिक्षक ने गुरु की गरिमा को तब शीर्षस्थ स्थान सौंपा जब वे भारत जैसे महान् राष्ट्र के राष्ट्रपति बने। उनका जन्म दिवस ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

गुरु शिष्य

गुरु महिमा

अज्ञान तिमिर का ज्ञान-भानु,
वह मन में फैलाता ज्ञानालोक।
करता उभय लोक सफल गुरु,
हरता सब जीवन का शोक।।

जीव कूप-मण्डूक सा बन कर,
पा नश्वर जीवन हो रहा भ्रमित।
तब ब्रह्म-रूप गुरु जीवन में आकर,
सच्चा पथ दिखला करे चकित।।

माया के गूढ़ावरण में लिप्त,
जो जीव चकित है वसुधा देख।
करा के परिचित जीवन तत्वों से,
गुरु लिखता उसकी भाग्य-रेख।।

लोह-मन का गुरु पारस पत्थर,
घिस घिस भाव करे संचार।
जर्जर तन करता कंचनमय,
ज्ञान-ज्योति का करके प्रसार।।

नश्वर जीवन के प्राणों में जो,
निर्मित करता भावों का आगार।
अमर बनाता क्षणभंगुर तन,
पीयूष धारा का कर संचार।।

चुका नहीं हम सकते तेरे ऋण,
जीवन का भी दे उपहार।
सूखे मानस-पादप के माली को,
मेरे हो अनंत नमस्कार।।

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ 
तिनसुकिया

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