Category: हिंदी कविता

  • मानवता के दीप /भुवन बिष्ट

    मानवता के दीप /भुवन बिष्ट

    मानवता के दीप/ भुवन बिष्ट

    मानवता के दीप /भुवन बिष्ट

    मानवता के दीप/ भुवन बिष्ट

    हम तो सदा ही मानवता के दीप जलाते हैं,
    उदास चेहरों पर सदा मुस्कराहट लाते हैं।

    हार मानकर  बैठते जो कठिन राहों को देख,
    हौंसला बढ़ाकर उनको भी चलना सिखाते हैं।

    कर देते पग डगमग कभी उलझनें देखकर,
    मन में साहस लेकर हम फिर भी मुस्कराते हैं।

    मिल जाये साथ सभी का बन जायेगा कारंवा,
    मिलकर आओ अब एकता की माला बनाते हैं।

    लक्ष्य को पाने में सदा आती हैं कठिनाईयां,
    साहस से जो डटे रहते सदा मंजिल वही पाते हैं।

    राह रोकने को आती दिवारें सदा बड़ी-बड़ी,
    सच्चाई पाने को अब हम दिवारों से टकराते हैं।

    फैलायें आओ मानवता को मिलकर चारों ओर,
    दुनियां को अपनी एकता आओ हम दिखाते हैं।
     भुवन बिष्ट
     रानीखेत (उत्तराखण्ड)

  • चांदनी रात / क्रान्ति

    चांदनी रात / क्रान्ति

    चांदनी रात / क्रान्ति द्वारा रचित

    चांदनी रात / क्रान्ति

    चांदनी रात / क्रान्ति

    चांदनी रात में
    पिया की याद सताए
    मिलने की चाह
    दिल में दर्द जगाए।।

    हवा की तेज लहर
    जिगर में घोले जहर
    कैसे बताऊं मैं तुम्हें
    सोई नहीं मैं रातभर।।

    दिल के झरोखे में
    दस्तक देती हवाएं
    देखकर हंसे मुझपर
    दिल के पीर बढ़ाए।।

    दिल पर रख के पत्थर
    दर्द अपना छुपाया है
    कैसे बताऊं तुझको मैं
    तू कितना याद आया है।।

    क्रान्ति,सीतापुर,सरगुजा,छग

  • धूप की ओट में बैठा क्षितिज / निमाई प्रधान’क्षितिज’

    धूप की ओट में बैठा क्षितिज / निमाई प्रधान’क्षितिज’

    धूप की ओट में बैठा क्षितिज /निमाई प्रधान’क्षितिज’

    धूप की ओट में बैठा क्षितिज / निमाई प्रधान'क्षितिज'

    रवि-रश्मियाँ-रजत-धवल
    पसरीं वर्षान्त की दुपहरी
    मैना की चिंचिंयाँ-चिंयाँ से
    शहर न लगता था शहरी
    वहीं महाविद्यालय-प्रांगण में
    प्राध्यापकों की बसी सभा थी
    किंतु परे ‘वह’ एक-अकेला
    छांव पकड़ना सीख रहा था !

    धूप की ओट में बैठा ‘क्षितिज’
    ख़ुद के भीतर जाना सीख रहा था !!

    मधु-गीत लिये , मधु-रंग लिये
    दिये वर्ष ने कई प्रीति-प्रस्ताव
    पीछे वैभव-सुख छूटा जाता था
    किंतु न मोड़ा ‘उसने’ जीवन-प्रवाह
    जहाँ जाना उसे था, ‘वह’ चले चला..
    नित-नित आगे बढ़ना सीख रहा था !

    धूप की ओट में बैठा ‘क्षितिज’
    ख़ुद के भीतर जाना सीख रहा था !!

    कितने पराये यहाँ अपनों के वेश में
    कितने अजनबियों का साथ मिला
    प्रतिक्षण घात मिला , संघात मिला
    विश्वासों को रह-रह आघात मिला
    हर चोट, हर धोखे से संभलता ‘वह’
    चेहरों के मुखौटे गिनना सीख रहा था !

    धूप की ओट में बैठा ‘क्षितिज’
    ख़ुद के भीतर जाना सीख रहा था !!


    *-@निमाई प्रधान’क्षितिज’*
        रायगढ़,छत्तीसगढ़
         31/12/2018

  • दैव व दानवों की वृत्तियां /पुष्पा शर्मा “कुसुम”

    दैव व दानवों की वृत्तियां /पुष्पा शर्मा “कुसुम”

    दैव व दानवों की वृत्तियां /पुष्पा शर्मा “कुसुम”द्वारा रचित

    दैव व दानवों की वृत्तियां /पुष्पा शर्मा "कुसुम"

    दैव व दानवों की वृत्तियां/ पुष्पा शर्मा “कुसुम”

    कंटक चुभकर पैरों में
    अवरोधक बन जाते हैं,
    किन्तु सुमन तो सदैव ही
    निज सौरभ फैलाते हैं।

    बढा सौरभ लाँघ कंटक
    वन उपवन और वादियाँ,
    हो गया विस्तार छोड़कर
    क्षेत्र धर्म और जातियाँ।

    धरा के अस्तित्व से चली
    दैव व दानवों की वृत्तियां,
    ज्ञान का ले सहारा मनुज
    सुलझाता रहता गुत्थियां।

    सदियों से प्रयास करते
    आ रहे प्रबुद्धजन जग में,
    ज्ञान का आलोक दिखाते
    शान्ति हो जाये भुवन में।

    सद्ग्रंथ ज्ञान विवेक सागर
    सत्पुरुष जीवन आचरण ,
    किन्तु मनुज विवेक पर ही
    छाया मूढता का आवरण ।

    पर सत्पथ पर बढने की
    जिसने भी मनमें ठानी है,
    अवरोध मार्ग के हटे सभी
    रहा साथ ईश वर दानी है।

    पुष्पा शर्मा “कुसुम”

  • कहां गए हो छोड़कर आती हर पल याद / पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’

    कहां गए हो छोड़कर आती हर पल याद / पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’

    कहां गए हो छोड़कर आती हर पल याद / पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’ द्वारा रचित

    virah viyog bewafa sad women

    कहां गए हो छोड़कर आती हर पल याद/ पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’

    कहाँ गए हो छोड़कर,आती हर पल याद।
    घर का हर कोना हुआ,यादों से आबाद।

    चीख रहा है बैठका,रोती चौकी रिक्त।
    टिकी छड़ी दीवार से,देख नैन हों सिक्त।
    बेल वेदना उर बढ़े,मिले विरह की खाद।
    कहां गए हो छोड़कर,आती हर पल याद।।

    सदा बड़ों को मान दो,अरु छोटों को प्यार।
    जीवन में हो सादगी,ऊँँचे रखो विचार।
    यही सिखाया आपने,समय न कर बर्बाद।
    कहां गए हो छोड़कर,आती हर पल याद।।

    धूल किताबें फाँकतीं,अलमारी में मौन।
    तितर-बितर टेबल पड़ा,उसे सजाए कौन।
    तुम बिन दिखती गाय की,तबीयत है नाशाद।
    कहां गए हो छोड़कर,आती हर पल याद।।

    पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’
    असिस्टेंट प्रोफेसर

    (हिंदी विभाग,जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय चित्रकूट,उत्तर प्रदेश)
    मोबाइल नंबर-8604112963