दीपावली मुबारक
सबको बारम्बार मुबारक।
दीपावली त्यौहार मुबारक।।
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मेरे राम पधारे जब अयोध्या,
उस दिन की यादगार मुबारक।
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तिमिर भगाए जो जीवन का,
खुशियों का उजियार मुबारक।
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इक दूजे को जो करते रोशन,
दीपों की वो कतार मुबारक।
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बम्ब, पटाखे, फूल-झड़ी संग,
चकरी, राकेट, अनार मुबारक।
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कर महा लक्ष्मी पूजन, वंदन,
धन, दौलत अम्बार मुबारक।
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‘शिव’ की मंगल कामना वाला
प्यार भरा उपहार मुबारक।
दीपावली की शुभ कामनाओं के साथ….🙏
शिवराज सिंह चौहान
नान्धा, रेवाड़ी (हरियाणा)
Category: हिंदी कविता
दीपावली मुबारक /शिवराज सिंह चौहान
शिक्षा संसार / शिवराज सिंह चौहान
शिक्षा संसार
मात शारदे को नमन,
कर दिया मुझे निहाल।
हंसी खुशी पूरे हुए,
साढ़े अट्ठाइस साल।।
भुला कभी ना पाऊंगा
वो आदर सत्कार।
मिला मान सम्मान मुझे,
और सभी का प्यार।।
जाने अंजाने में कोई,
हरकत हुई फिजूल।
गर गलती मुझसे हुई,
जाना सब कुछ भूल।।
मुझे बहुत कुछ दे दिया,
तूने शिक्षा संसार।
कभी चुका ना पाऊंगा,
सर पे चढ़ा उधार।।
नत-मस्तक नम नयन हुए,
हृदय रहा पसीज।
सर आंखों धारण करी,
सब ने ये नाचीज़।।
संगी, साथी, सर्व जन,
विनय यही कर जोड़।
हमराही जो भी रहे,
साथ न जाना छोड़।।
सभी का बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद।
🙏शिवराज सिंह चौहान
( पूर्व प्राचार्य )
रा.व.मा.वि. नाहड़, [रेवाड़ी]
शिक्षा विभाग, हरियाणा।शुभ दीपावली / स्वपन बोस,, बेगाना,,
शुभ दीपावली
दीपावली की शुभ दिन आज आया है।
जगमग, जगमग हर घर द्वार सजा है।
दीपावली की शुभ दिन आया है।
दूर हो दुःखों का अंधेरा सबने अपने आंगन में उम्मीद की दीपक जलाया है।
सच्चा दीपावली उसी का है, जिसके हृदय में प्रेम समाया है।
दीपावली का शुभ दिन आया है।
चौदह वर्ष की वनवास काटकर सिया संग श्री राम का आगमन हुआ है।
जीवन के अंधेरे को उत्सव से लड़ने को यह पल मन में समाया है।
दीपावली का शुभ दिन आया है।
साई बाबा ने दीपक जल से जला देते हैं। जिसके हृदय में प्रेम है वह हर अंधेरा मीटा देते हैं।जो आज सबसे गले न मिले उसने बहु मुल्य समय गंवाया है। दीपावली का शुभ दिन आया है।
जलाओ सावधान होकर पटाखे।
पर्यावरण का भी ख्याल हों।
प्रेम भरा इस वर्ष दीपावली हों।
छोटों को दो स्नेह और माता पिता, बड़ों का प्यार दिल में समाया है।
सभी को दीपावली कि हार्दिक शुभकामनाए कहता बेगाना कवि
मन में हर्ष समाया है।
दीपावली की शुभ दिन आया है,,,।
स्वपन बोस,, बेगाना,,
9340433481
जिला कोण्डागांव छत्तीसगढ़सुहागिनों का प्रेम और आस्था का त्यौहार / डॉ एन के सेठी
इस दोहों की श्रृंखला में करवा चौथ के त्यौहार का सुंदर चित्रण किया गया है, जिसमें सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना के लिए व्रत रखती हैं। दिनभर की पूजा-अर्चना के बाद, वे चंद्रमा का दर्शन कर व्रत खोलती हैं और अपने पति के प्रति अमिट प्रेम और समर्पण को प्रकट करती हैं। इन दोहों में त्यौहार की परंपराएं, सौभाग्य और अखंड प्रेम की भावना को भावुकता से व्यक्त किया गया है।सुहागिनों का प्रेम और आस्था का त्यौहार
आया करवा चौथ है, खुशियों का त्यौहार।
इसे मनाती सुहागिनें, पाए पति का प्यार।।
पति की आयु दीर्घ हो, करे कामना नार।
करती व्रत वह चौथ का,पूजे वह भरतार।।
धूप दीप नैवेद्य से, करती पूजन नार।
अक्षत रोली साथ में, आरत लेय उतार।।
दर्शन करती पीय का, फिर लेती व्रत खोल।
पति पत्नी का प्रेम ही, होता है अनमोल।।
सजी धजी है नारियाँ, लगे अप्सरा लोक।
मुख उनका ज्यों चंद्रमा,फैला जग आलोक।।
व्रत खोले वे रात में, लेती चंद्र निहार।
देती अर्घ्य सुहागिनें, सुखी हो घर संसार।।
माँ अखंड सौभाग्य हो, विनय करे बस एक।
प्रेम न कम हो पीय का, यही कामना नेक।।
*© डॉ एन के सेठी*शरद पूर्णिमा / स्वपन बोस बेगाना
इस कविता में शरद पूर्णिमा की चांदनी रात को अद्वितीय सौंदर्य और गहरे भावनात्मक जुड़ाव से जोड़ा गया है। चंद्रमा की रोशनी प्रियसी के मिलन की प्रतीक्षा को दर्शाती है, जबकि मानव जीवन में भगवान से दूर होने की पीड़ा और अनिश्चितता की झलक दिखाई देती है। कविता में नायक शरद पूर्णिमा की रात को अपने अंदर की भावनाओं और प्रियसी की याद में गहरे दर्द को व्यक्त करता है।शरद पूर्णिमा
चांदनी रात शरद पूर्णिमा पुरे शबाब पर है।
जीवन तो चल रही है यु ही आजकल लोग हों रहें हैं चांद, तारों से दूर जिंदगी जीए जा रहें हैं जैसे कोई हिसाब पर है।
शरद की पुर्णिमा तो बरस रही है।
कृष्ण से मिलने को राधा तरस रही है।
अब न जाने रास क्यों नहीं हो रहा है। दुःख से तड़प रहा इंसान,मानव भगवान से दूर कहीं खो रहा है। इसलिए इंसान रो रहा है।
शरद पूर्णिमा की चांद की खुबसूरती जैसे प्रिया मिलन को सजी है।
गहरे आकाश के माथे पर बसी कोई दुल्हन की बिंदी है।
मंद मंद हवा बह रही है रात शीतल है। पेड़ पौधों के पत्ते डोल रहें हैं।
तारों की बारात लेकर शरद की पुर्णिमा की चंद्रमा सुंदर सजी है।
शरद पूर्णिमा में मैं बेगाना कवि प्रियसी की याद में रो रहा हूं।
कब वो देंगी दर्शन मुझे बस यही चांद को देख सोच रहा हूं।
वादियों में आज अजीब सा नशा है।
क्यों की इस चांदनी रात में उसकी याद दिल में बसा है।
जनम जनम से उसकी ही तलाश है।
इस शरद पूर्णिमा में उस प्रभु से मिलन की आस है।
स्वपन बोस,, बेगाना,,
9340433481