मनुजता शूचिता शुभता,खुशियों की पहचान होती है। जहाँ बिटिया के मुखड़े पर,धवल मुस्कान होती है। इसी बिटिया से ही खुशियाँ,सतत उत्थान होती है। जहाँ बिटिया के मुखड़े,पर धवल मुस्कान होती है।
सदन में हर्ष था उस दिन,सुता जिस दिन पधारी थी। दिया जिसने पिता का नाम,यह बिटिया दुलारी थी। महा लक्ष्मी यही बेटी,यही वात्सल्य की दानी। सदा झंडा गड़ाती है,सुता जिस दिन जहाँ ठानी। मिटाने हर कलुषता को,सुता को ज्ञान होती है। जहाँ बिटिया के मुखड़े पर,धवल मुस्कान होती है।
यही बंदूक थामी है,जहाजे भी उड़ाती है। यही दो कुल सँवारी है,यही सबको पढ़ाती है। सुता सौंधिल मृदुल माटी, सुता परित्राण की घाटी। सुता से ही सदा सजती,सुखद परिवार परिपाटी। मगर क्योंकर पिता के घर,सुता मेहमान होती है। जहाँ बिटिया के मुखड़े पर,धवल मुस्कान होती है।
यहाँ माँ पर कविता हिंदी में लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।
माँ मुझको गर्भ में ले ले
हे ! माँ मुझको गर्भ में ले ले, बाहर मुझको डर लागे। देह-लुटेरे , देह के दुश्मन, मुझको अब जन-जन लागे। अधपक कच्ची कलियों को भी, समूल ही डाल से तोड़ दिया। आत्मा तक को नोंच लिया फिर, जीवित माँस क्यों छोड़ दिया। खुद के घर भी अरक्षित बनकर, अपना सब कुछ लुटा बैठी। गैरों की क्या बात कहूं मैं, अपनों ने भाग्य निचोड़ लिया। मेरी रक्षा कौन करेगा , कम्पित मन सोता जागे । हे ! माँ मुझको गर्भ में ले ले, बाहर मुझको डर लागे। देह-लुटेरे , देह के दुश्मन, मुझको अब जन-जन लागे।
देह की पूंजी तुझसे पाई , रक्षा इसकी कैसे करूँ । नौ माह में बनी सुरक्षित , अब क्या ,कैसे प्रबंध करूँ। जन्म बाद के पल-पल,क्षण-क्षण, मुझको डर क्यों लगता है। युवपन तक भी पहुंच ना पाऊं, उससे पहले जीवित मरुँ । राक्षस-भेड़िए क्या संज्ञा दूं ? दया न क्यों, उन मन जागे । हे ! माँ मुझको गर्भ में ले ले, बाहर मुझको डर लागे। देह-लुटेरे , देह के दुश्मन, मुझको अब जन-जन लागे।
हे ! गिरधारी, लाज बचाने , कहां-कहां तुम आओगे। अगणित द्रोपदियाँ बचपन लुट गई, कैसे सबको बचाओगे ? भरी सभा-सा समाज यह देखें, बैठा है आंखें मूंदे । आह वो भरता, खुद ही डरता , अब कैसे इसे जगाओगे । मेरा सहारा किसको मानूँ , कौन रहे मेरा होके । हे ! माँ मुझको गर्भ में ले ले, बाहर मुझको डर लागे। देह-लुटेरे , देह के दुश्मन, मुझको अब जन-जन लागे।
सीता तो अपहरित होकर भी, लाज तो फिर भी बचा पाई। मां की गोद जो दूर हुई मैं , जानू क्या मैं ,कौन कसाई। रावण से कई गुना है बढ़कर, उनका पाप,क्योंन जग डोले। शेषनाग , विष्णु अवतारी , बोलो, कैसे धरा बचाई। खून हमारे सनी हुई वह , डर-डर कर खुद ही काँपे। हे ! माँ मुझको गर्भ में ले ले, बाहर मुझको डर लागे। देह-लुटेरे , देह के दुश्मन, मुझको अब जन-जन लागे।
श्रीरामनवमी पर कविता: चैत्र मास के शुल्क पक्ष की नवमी तिथि के दिन ही सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने धरती पर श्री राम के रूप में जन्म लिया था। राम लला के जन्म की पवित्र बेला को ही राम नवमी के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान विष्णु अयोध्या के राजा दशरथ के घर जन्म लेकर उनके अवतार में स्वरूप के दर्शन हुए।
हर पल जो यादों में/प्रवीण शर्मा
हर पल जो यादों में रहते,
मेरा वंदन राम हैं
रोम-रोम में राम बसे हैं,
अलख निरंजन राम हैं।
जग जिसकी खुशबू से महके,
ऐसा चंदन राम है।
राम सभी के दिल की धड़कन
और अभिनंदन राम है ।
राम बसे हैं जन-जन में,
राम बसे हर महफिल में
सबका प्यार राम से है और,
राम बसे हैं तिल-तिल में ।
सूरज की किरणों में राम,
पुरवाई पवनों में राम ।
हनुमान के हृदय में और
दशरथ के चरणों में राम ।
कौशल्या का नूर है राम,
सीता का सिंदूर है राम ।
राम तपस्वी के तप में है,
भक्ति में भरपूर हैं राम ।
नगर – नगर और गाँव में राम,
पंचवटी की छाँव में राम ।
राम समुंदर की लहरों में,
और केवट की नाव में राम ।
मर्यादा की शाला राम,
प्रेम भरा हैं प्याला राम ।
राम मंत्र, सामग्री समिधा,
हवनकुंड की ज्वाला राम ।
तुलसी, केशव, गुप्त, कबीरा।
दिनकर और निराला राम ।
महादेवी, प्रसाद, पंत और
नीरज है मतवाला राम ।
विनय पत्रिका, कथा स्वयंवर,
गीत बने जल धारा राम ।
यामा, कामायनी संग में,
बच्चन की मधुशाला राम ।
राम तुम्हारे आदर्शों/ गोपालकृष्ण अरोड़ा
राम तुम्हारे आदर्शों पर फिर से आज कुठार है।
फिर से तेरी जनम भूमि पर खर-दूषन का वार है।
फिर से धरा शरण आई है, फिर से सुर-मुनि त्रस्त हैं।
फिर से दनुज रक्त संचय में, होते जाते व्यस्त हैं।
कब के विश्वामित्र खड़े हैं, राघव तुम्हें पुकारते ।