धर्म एक धंधा है
गंगाधर मनबोध गांगुली “सुलेख “
समाज सुधारक ” युवा कवि “
क्या धर्म है ,क्या अधर्म है ?
आज अधर्म को ही धर्म समझ बैठें हैं ।
धर्म से ही वर्ण व्यवस्था ,
समाज में आया है ।
धर्म ही इंसान को ,
इंसान का दुश्मन बनाया है ।।01।।
वर्ण व्यवस्था बाद में ,
जाति व्यवस्था में बदल गया ।
मानव समाज को देखो ,
अपने आपमें बिखर गया ।।02।।
समाज सुधारक पैदा हुए ,
समाज को सुधारने के लिए ।
समाज के बुराइयों को ,
समाज से मिटाने के लिए ।।03।।
आज शिक्षित इंसान भी,
अशिक्षित जैसा सो रहा है ।
समाज की हालत देखकर ,
समाज सुधारक रो रहा है ।।04।।
आज के इंसान में ,
इंसानियत नहीं है ।
आज के मानव में ,
मानवता नहीं है ।।05।।
लड़ रहे हैं हम ,
सिर्फ अपने आप से ।
रूढ़िवाद, जातिवाद ,
और अंधविश्वास से ।।06।।
सभ्यता और संस्कृति कहकर ,
बुराई को भी ढ़ो रहे हैं ।
शिक्षित हैं फिर भी ,
अशिक्षित जैसे सो रहे हैं ।।07।।
तर्क – वितर्क लगता नहीं कोई ,
फिर भी धार्मिक बंदा है ।
धर्म तो एक धंधा है ,
मानव आज भी अंधा है ।।08।।
सिर्फ नारा लगाते हैं लोग :—-
हिन्दू , मुस्लिम, सिख ,ईसाई ।
आपस में हैं ,भाई – भाई ।
तो आप ही बताइए ?
धर्म के नाम पर क्यो होता है लड़ाई ? ।।9।।
मुझे तो लगता है :—
तर्क – वितर्क लगता नहीं कोई ,
फिर भी धार्मिक बंदा है ।
धर्म तो एक धंधा है ,
मानव आज भी अन्धा है ।।10।।
गंगाधर मनबोध गांगुली ” सुलेख “
समाज सुधारक ” युवा कवि “
9754217202