मैं गुलाब हूँ

मैं गुलाब हूँ मैं गुलाब हूं खूबसूरती में बेमिसाल हूं थोड़ा नाजुक और कमजोर हूं छूते ही बिखर जाती हूं फैल जाती है मेरी पंखुड़ियां ऐसा लगता है पलाश हूं…

मैं गुलाब हूं – रामबृक्ष

यह कविता गुलाब पर लिखी गई एक सामाजिक कविता है जिसमें गुलाब की तुलना मानव जीवन से की गयी है। जिस प्रकार गुलाब अपने गुणों के द्वारा सभी को प्रसन्न और खुश रखता है या विभिन्न उच्च व उचित या आदर्श स्थानों पर स्थान लेता है उसी प्रकार मानव को भी अपने उत्तम कार्यों के द्वारा उचित और उत्तम स्थान बनाना चाहिए

संसद ल सड़क म लगा के तो देख

गुरुजी कस पारा म पढ़ा के तो देख, अरे ! संसद ल सड़क म लगा के तो देख। गिंजरथे गुरु ह गली म पुस्तक ल धर के, बटोरे हे लईकन ल मास्टर गाँव भर के।