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  • हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर कविता

    हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर कविता

    हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर कविता

    सच कहो,
    चाहे तख्त पलट दो, चाहे ताज बदल दो
    भले “साहब” गुस्सा हो, चाहे दुनिया इधर से उधर हो
    तुम रहो या ना रहो
    पर, जब कुछ कहो तो, सच कहो।

    सच पर ही तो, न्याय टिका है
    शासन खड़ा है, धर्म बना है
    हे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ!
    सच से ही तुम हो
    तो, अगर कुछ कहो तो, सच कहो।

    तुम अपनी राय मत दो
    तुम किसी के गुलाम नहीं हो
    सिर्फ, सच दिखाओ आवाम को
    मरो-कटो-खपो, लड़ो-भिड़ो-गिरो
    पर, अगर कुछ कहो तो, सच कहो।

    ध्यान रखो, तुम न “साहब” के हो
    ना ही तुम “शहजादे” से हो
    तुम सिर्फ देश के जवाबदेह हो
    सच बोलने से जो दर्द हो, तो चीख लो

    पर, तंत्र को जिंदा रखो
    लोकतंत्र को जिंदा रखो
    सच झूठ के इस युद्ध को, रोक दो
    हे लोकतंत्र-स्तंभ! बस, सच बोल दो. .!!

    प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”
    युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार
    लखनऊ, उत्तर प्रदेश
    सचलभाष/व्हाट्सअप : 6392189466

  • दीपावली पर कविता (Diwali kavita in hindi)

    का के राजा रावण का वध कर पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे तो उस दिन पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा रही थी. भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या आगमन पर दिवाली मनाई गई थी. हर नगर हर गांव में दीपक जलाए गए थे. तब से लेकर आज तक दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है. और इसी पर आधारित ये कुछ कविताएँ –

    भले ही न आए लक्ष्मी

    दीपावली पर कविता (Diwali kavita in hindi)

    आशंका है मुझे,
    कार्तिक मास की
    अमावस को
    लक्ष्मी के आने की।

    लोगों ने
    इतनी लड़ियाँ लगाई
    लक्ष्मी को लेकर।
    कैसे आ पाएगा
    उसका वाहन उल्लू?
    चुंधिया जाएंगी
    उसकी आँखें
    लड़ियों के प्रकाश से।

    डर जाएगा उल्लू
    आतिशबाजी की
    कानफोड़ू ध्वनि से।
    वह हो जाएगा बेहोश
    आतिशबाजी के धुंए से।

    इसलिए ही
    मैंने नहीं लगाई लड़ियाँ।
    नहीं फूंके पटाखे
    नहीं की आतिशबाजी
    नहीं खाई
    मिलावटी मिठाई।

    भले ही न आए लक्ष्मी
    जो पास है
    वह तो न जाए।

    विनोद सिल्ला

    चार दीयों से खुशहाली

    चार दीयों से खुशहाली
    चार दीयों से खुशहाली
    ( लावणी छंद )

    एक दीप उनका रख लेना,
    तुम पूजन की थाली में।
    जिनकी सांसे थमी रही थी,
    भारत की रखवाली में.!!

    एक दीप की आशा लेकर,
    अन्न प्रदाता बैठा है। ।
    शासन पहले रूठा ही था,
    राम भी जिससे रूठा है।

    निर्धन का धर्म नही होता,
    बने जाति भी बेमानी ।।
    एक दीप उनका भी रखकर,
    समझो सब राम कहानी।।

    एक दीप शिक्षा का रखकर,
    आखर अलख जगालो तुम।
    जगमग होगी दुनिया सारी,
    खुशियाँ खूब मनालो तुम।

    चार दीप सब सच्चे मन से,
    दीवाली रोशन करना।
    मन में दृढ़ सकल्प यही हो,
    देश हेतु जीना – मरना।

    और दीप भी खूब जलाना,
    खुशियाँ मिले अबूझ को।
    खील बताशे, लक्ष्मी-पूजन,
    गोवर्धन, भई दूज को।

    बाबू लाल शर्मा

    अमावस्या पूनम बनने को अड़ी है

    सजे हैं बाजार जगमगाता शहर है,
    दीपोत्सव आया आनंद लहर है,
    अंधेरे से आज दीपों की ठनी है,
    अमावस्या पूनम बनने को अड़ी है।

    बड़े बच्चे सबके खुशी की घड़ी है
    हर द्वार वंदनवार फूलों की लड़ी है।
    स्वागत में माँ लक्ष्मी के सब खड़े हैं,
    फूट रहे हैं पटाखे जली फुलझड़ी है।

    खुशी ही खुशी सबके चेहरे पे छाई,
    गले मिलते देखो खिलाते मिठाई,
    रिश्ते निभाने को प्रेम बढ़ाने को,
    दीवाली उत्सव सर्वोत्तम कड़ी है।

    चौदह बरस के वनवास से राम,
    लौटे इसी दिन थे वो अपने धाम,
    मनाया नगरवासियों ने था आनंद,
    वही रीत युग-युग से चल पड़ी है।

    गीता द्विवेदी

    शुभ धनतेरस

    हृदय में हर्षोल्लास हो,
    माता लक्ष्मी जी का वास हो।
    खुशियों भरा हो जीवन,
    सुख शांति की सौगात हो।।
    घर में आये खुशहाली,
    धन संपदा की बरसात हो।।
    परिवार हो समृद्ध ,
    भगवान कुबेर जी पास हो।
    धूप दीप पुष्प अर्पण करुँ,
    जब तक अंतिम श्वास हो।
    सम्पन्न एवं समृद्धशाली बने,
    माँ रमा जी का आशीर्वाद हो।
    पूर्ण हो आप सभी की,
    समस्त मनोकामनाएं।
    धनतेरस एवं दीपावली की,
    आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं।।

    महदीप जंघेल

    जगमग दीया जलाबो

    चक चंदन दिखे सुघ्घर,
    लिपे -पोते घर आंगन उज्जर !
    जगमग दीया जलाबो,
    लक्ष्मी दाई ल मनाबो !

    पावन पबरीत परब आए हे,
    मिल -जुल के मनाबो !
    मया पिरीत के दीया म संगी
    सुनता के बाती लगाबो !
    बिरबिट कारी ये अंधियारी ,
    सुरहुती मभगाबो !

    जाति -धरम के खोचका -डिपरा,
    मेड़पार बरोबर करबो !
    परे- डरे गीरे -थके के,
    दुख -पीरा ल हरबो !
    गरीब गुरवा के कुरिया म
    चंदा- चंदईनी ऊगाबो!

    पचदिनिया देवारी तिहार- पद्मा साहू

    आगे जगमग-जगमग पचदिनिया, देवारी तिहार।
    लीपे पोते सुग्घर दिखत हावे, जगमग घर दुवार।

    धनतेरस के खरीदी भारी, सोना,चांँदी,बर्तन भाड़ा,
    नवा-नवा कपड़ा लत्ता लेवत, मन भरे उद्गार।
    करसा दीयना लेवे, अउ लेवे फटाका सुरसुरी ,
    दाई बहिनी लेवत हावे, चूड़ी फुंदरी पुछत मनिहार।
    पाँचे दिन के देवारी, कातिक महीना के भईया,
    अंतस मा लाथे प्रेम भाईचारा, खुशियाँ अपार।
    आगे जगमग,,,,,,,,,,

    नरक चउदस यमदेव बर, अँगना मा चंउक पुराबो,
    दूर हो जाहि अकाल काल, यमदूत के जम्मो बिचार।
    घरो घर लछमी दाई के आरती, अउ होही दीपदान,
    जगमगावत दीया चारों कोती, मिट जाही अंधियार ।
    कार्तिक मावस के, कुलूप अंधियारी रात मा,
    पाँव परत लछमी दाई के, हो जही उजियार।
    आगे जगमग,,,,,,,,,,,,,

    गौरा-गौरी के कलशा निकलही, होत पहाती गली में,
    रिगबिग-रिगबिग बरही दीया, मन के हरत अंधियार।
    गिरधर भोग लगा, गाय गरुवा ल खिचड़ी खवाबो,
    ठाकुर घर जोहारत, राउत भईया मन करही जोहार।
    गऊ माता ल सोहई बांध, कोठी डोली भरे देही आशीष,
    राउत मन काछन घोंडत,पारही आनीबानी दोहा गोहार।
    आगे जगमग,,,,,,,,,,,,,

    गौठाने मा कुम्हड़ा ढूला, होगी अखाड़ा मतराही,
    किसम-किसम फटाका जला,मनाबो देवारी तिहार।
    लईका सियान सब, नवा-नवा कुर्ता पहीने,
    धूमधड़ाक जलाही सब, फुलझड़ी, बम,अनार।
    यम-यमुना भाई बहिनी के, तिहार भाई दूज,
    एक दूसर के रक्षा करे, देही वचन अउ उपहार।
    आगे जगमग-जगमग, पचदिनिया देवारी तिहार।
    लीपे पोते सुग्घर दिखत हावे, जगमग घर दुवार।

    पद्मा साहू “पर्वणी”
    खैरागढ़ राजनांदगांव छत्तीसगढ़

    आगे देवारी तिहार

    तिहार आगे ग , तिहार आगे जी,
    लिपे पोते छाभे मूंदे के ,तिहार आगे।
    मन म खुशी अमागे ग,
    मन म खुशी अमागे जी।
    जुरमिल के दिया बारे के,
    तिहार आगे ।

    घर -घर गांव शहर,
    पोतई बूता चलत हे।
    दाई माई दीदीमन,
    छभई मुंदई करत हे।
    गांव -गांव ,गली-गली,
    अंजोर बगरत हे।
    जगमग जगमग ,
    दियना बरत हे।
    जीवन म सबके ,उजियार आगे जी,
    लिपे पोते छाभे मूंदे के ,तिहार आगे।।

    घर अंगना म दिया,
    ख़ुशी के जलत हे।
    प्रेम अउ मया के ,
    झरना झरत हे।
    लक्ष्मी मइया के ,
    अशीष बरसत हे।
    सुख अउ शांति ,
    घर म उपजत हे।
    घर-घर ख़ुशी के बहार ,आगे जी
    अंधियारी दानव ल भगाय बर,
    अंजोरी तिहार आगे जी।।
    लिपे पोते छाभे मूंदे के ,तिहार आगे।।

    लड़ई झगरा अउ,
    बैर ल भुलाय के।
    एके जगह रहिके,
    सुख-दुख ल गोठियाय के।
    पारा परोस म ,
    सुख बगराय के।
    मया पिरित के ,
    दियना ल जलाय के।
    तिहार आगे जी ,तिहार आगे ।
    एकमई होके दिया बारे के,
    तिहार आगे।
    लिपे पोते छाभे मूंदे के ,तिहार आगे ।
    तिहार आगे…….

    महदीप जंघेल

    दीया बन प्रकाश करे-मदन सिंह शेखावत

    दीया बन प्रकाश करे, हटाए अंधकार ।
    जग मे सुन्दर काम कर,कुसमित हो संसार ।
    कुसमित हो संसार ,अन्धेरा रह न पाये।
    ज्ञान की लौ लगाय,तिमिर को दूर भगाये।
    कहै मदन कविराय, संसार से खुब लीया ।
    सुन्दर करके काज,जले खुद बनकर दीया।।

    जीवन मे उत्साह हो,घर घर मंगलाचार ।
    तभी सार्थक दिपावली,बदले सब व्यवहार।
    बदले सब व्यवहार,मदद के हाथ बढाये।
    खुशियो का उपहार, दीन के घर पहुचाये
    कहै मदन कविराय,खुशिया बहुत है मन मे।
    मिल कर सभी मनाय, बांटले सब जीवन मे।

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर 

    शुभ दिवाली

               (1)
    हर घर दीया जला होगा,
    जीवन में अंधेरा मिटा होगा।
    शुभ दीवाली हर आँगन हो,
    खुशियों से घर भरा होगा।
              (2)
    न कोई अब दुखी होगा,
    न गम का अंधेरा होगा।
    सभी आत्मजोत जगा लो,
    नई रोशनी से सवेरा होगा।
             (3)
    न किसी से बैर होगा,
    न किसी से झगड़ा होगा।
    प्रेम की गंगा बहा दो,
    हर कोई अपना होगा।
              (4)
    न सिर शर्म से नीचा होगा,
    न ही घमंड से ऊचां होगा।
    सदभावना का दीप जला लो,
    रोशन विश्व समूचा होगा।
             (5)
    न किसी से गिला होगा,
    न किसी का भय होगा ।
    सबको मिलकर गले लगा ले,
    गदगद तेरा हृदय होगा।

    रचनाकार डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”

    गरीब के दीवाली

    का छिरछिरी? का मिरचा? का गोंदली फटाखा?
    का सूरसूरी अऊ थारी?नी जाने एटम के भाखा?
    नी फोरे फटाखा मोर संगी,  नइ होवे जी डरहा।
    दूसर के खुशी ल देखके,  खुश होवथे गरीबहा।
    खाय तेल म बरे दीया, धाज आये लाली लाली।
    रात भर जल रे दीया, तय ही गरीब के दीवाली।
    का के नवा ओनहा अउ ,का खरीदिही साजू ?
    जइसे तइसे जिनगी काटे, मांग के आजू बाजू।
    छुहीगेरू के लीपईपोतई  ,आमाडारा बांधत हे।
    लखमी पूजा के खातिर , जवरी भात रांधत हे।
    कोन जानी कब भेजत हे मां ,घर म खुशहाली।
    रात भर जल रे दीया, तय ही गरीब के दीवाली।
    रिंगीचिंगी रंगोली देखके ,लइकामन मोहावत हे।
    कोयला, ईंटागुड़ा , हरदी पीसके फेर रंगावत हे।
    अपन कलाकारी म,सब्बोझन ला मोहे डारत हे।
    मन के खुशी ह बड़े होथे, एहि बात बगरावत हे।
    कृपा कर एसो अन्नपूरना,  सोनहा कर दे बाली।
    रात भर जल रे दीया,  तय ही गरीब के दीवाली।

    मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़

    मोर संग चलव रे

    (मोर संग चलव रे…. आदरणीय श्री लक्ष्मण मस्तुरिहा के गीत से प्रेरित व उसी के तर्ज़ पर)

    मोर संग पढ़व रे
    मोर संग गढ़व ….
    ओ दीदी बहनी नोनी मन
    अउ लइका के महतारी मन
    मोर संग पढ़व रे
    मोर संग गढ़व ।

    महिला मन के हक ल छिनै
    ए पुरुष समाज।
    भोग विलास के चीज जानै
    लुट के जेकर लाज।
    अपन लड़ई अपन हाथ म
    अपन रक्षा करव रे।
    मोर संग लड़व ….

    बंध के नारी, चारदीवारी
    कइसे विकास पाय।
    घुट घुट के मर जाही तभोले
    पुरूष नी करे हाय।
    भीख बरोबर मांगव झन
    आपन हक़ छीनव रे।
    मोर संग लड़व…..

    मनीभाई नवरत्न

    किसान के दरद

    कनहू नी समझे
    किसान के दरद ला।
    पहिली के पहिली बूता
    हर बाचेच हे।
    समे नइये  गंवई घूमे के ,
    लोकजन ला भूला गयहे
    रबी फसल के चक्कर म ।
    एसो लागा ल भी
    अड़बड़ छुट करिस शासन ह।
    तहुंच ले नई चुकता होईस
    सेठ के तीन परसेंटी बियाज।
    जोशेजोश म बोर ल खदवाईस हे।
    जम्मो डोली टिकरा ल उपजाईस हे।
    बिजली आफिस के
    कोरी चक्कर लगाईस हे।
    टेंशन म सबो चुंदी झर्राईस हे।
    कनहू काल म
    “लईन गोल” हो जाथे।
    गेरी के मछरी बरोबर
    हो जाथे किसान।
    न खेत-खार पोसै सकय न छाड़त।
    हदरके हटर-हटर
    काटत राथे मंझनिया
    रुक तरी म।
    लेकम
    कनहू नी समझे किसान के दरद ला
    किसनहा मन ही जानही……
    ✒️मनीभाई ‘नवरत्न’ भौंरादादर,बसना, छत्तीसगढ़।

    मोर संग पढ़व रे 

    मोर संग पढ़व रे 
    मोर संग लिखव रे
    ओ दीदी बहनी नोनी मन
    अउ लइका के महतारी मन
    मोर संग पढ़व रे 
    मोर संग लिखव रे

    महिला मन के हक ल छिनै
    ए पुरुष समाज। 
    भोग विलास के चीज जानै
    लुट के जेकर लाज। 
    अपन लड़ई अपन हाथ म
    अपन रक्षा करव रे। 
    मोर संग लड़व …. 

    बंध के नारी, चारदीवारी
    कइसे विकास पाय।
    घुट घुट के मर जाही तभोले
    पुरूष नी करे हाय। 
    भीख बरोबर मांगव झन
    आपन हक़ छीनव रे। 
    मोर संग लड़व….. 

    मनीभाई नवरत्न

    महतारी के मया

    महतारी के मया ल,आखर म कैसे कहौ?
    दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ।
    लाने हस मोला दुनिया म
    मोर अंग अंग म तोर अधिकार हे।
    भगवान बरोबर तय होथस ,
    तोर पूजा बिना चारोंधाम बेकार हे।
    तोर आशीष मोर मुड़ म तो,जग ला नई डरौ।
    दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ।
    भुख लागे ल दाई मोर,
    अपन हाथ ले कौंरा खवाथें।
    हिचकी आ जाय ले,
    लकर-धकर  पानी  पियाथें।
    अतक मया हे कि मुहु ले न बोले सकौ ।
    दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ।
    बाबूजी मोर आजादी के,
    सब्बो दिन खिलाफत रइथें।
    महतारी बूता ले छुट्टी दे के
    झटकुन घर आ जाबे कहिथें।
    मोर मन के सबो बात,दाई ल कहे सकौ।
    दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ।
    बोली भाखा सिखाय हे,
    दय हे जिनगी के ग्यान।
    सुत उठके आशीष दय,
    मोर बेटा बने जग म महान।
    करज उतारे बिना तोर, हरू नई होय सकौ।
    दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ।

    छत्तीसगढ़, मनीभाई ‘नवरत्न’, 

    मनीभाई नवरत्न

  • करवाचौथ पर हिंदी कविता

    करवाचौथ पर हिंदी कविता

    करवाचौथ पर हिंदी कविताकरवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भारत के जम्मू, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ मनाती हैं। यह व्रत सवेरे सूर्योदय से पहले लगभग 4 बजे से आरंभ होकर रात में चंद्रमा दर्शन के उपरांत संपूर्ण होता है।

    करवा चौथ पर कविता

    करवा चौथ पर गीत- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

    जीवन हो उनका मंगलमय, कभी न उनके लगें खरोचें
    करवा चौथ मनाती हैं जो, वे अपने पति का हित सोचें।

    इस दुनिया में पति से बढ़कर, कोई कहीं न होता दूजा
    उसको ही भगवान मानकर, करती हैं वे उसकी पूजा

    पति की सेवा में जो तत्पर, कभी न वे उसका धन नोचें
    करवा चौथ मनाती हैं जो, वे अपने पति का हित सोचें।

    इस व्रत के पीछे सदियों से, चलती आई एक कहानी
    देख चंद्रमा को पत्नी फिर, पति के हाथों पीती पानी

    बढ़ता प्यार खूब आपस में, उनके बीच न लड़तीं चोचें
    करवा चौथ मनाती हैंं जो, वे अपने पति का हित सोचें।

    झगड़ा होता नहीं कभी जब, फिर क्यों चले मुकदमेंदारी
    क्यों तलाक की नौबत आए, और मचे क्यों मारा-मारी

    तालमेल हो संभव तब ही, समाधान में हों जब लोचें
    करवा चौथ मनाती हैं जो, वे अपने पति का हित सोचें।

    सब आनंदित होते घर में, अपनापन जब रहता जारी
    धन- दौलत की कमी नहीं हो, लगे न फिर कोई बीमारी

    जीवन के पथ पर जो बढ़ते, उन चरणों में क्यों हों मोचें
    करवा चौथ मनाती हैं जो, वे अपने पति का हित सोचें।

    रचनाकार -उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
    ‘कुमुद -निवास’
    बरेली (उत्तर प्रदेश)
    मोबा.- 98379 44187

    करवाचौथ पर हिंदी कविता- डी कुमार अजस्र

    मइया करवा मइया ,
    मइया ओ करवा मइया ।

    करवा मइया तेरी मेहरबानी रहे ,
    मेरे सजना की जीवन रवानी रहे ।

    सात फेरों के थे जो वचन वो ,
    मिलके निभते रहे, तेरी जय हो ।
    मांग सिंदूर भरे,जीवन संग-संग चले ।
    मेरी धड़कन उन्हीं की दीवानी रहे ।
    दीवानी रहे…मइया करवा मइया
    करवा मइया तेरी मेहरबानी रहे ,
    मेरे सजना की जीवन रवानी रहे ।

    मेरी सुनले तू अब मोरी मइया ,
    मेरे जीवन की तू ही खेवइया।
    जीवन ये भी रहे ,भले फिर से मिले ।
    मेरी सजना के संग ही कहानी रहे ।
    कहानी रहे…मइया करवा मइया
    करवा मइया तेरी मेहरबानी रहे ,
    मेरे सजना की जीवन रवानी रहे ।

    माह कातिक का जब-जब भी आये,
    करके पूजन तुझे हम मनाएं ,
    सजना संग-संग रहे ,हर सुहागन कहे ।
    मरते दम तक वो राजा की रानी रहे ।
    वो रानी रहे…..मइया करवा मइया
    करवा मइया तेरी मेहरबानी रहे ,

    मेरे सजना की जीवन रवानी रहे ।
    मइया करवा मइया ,
    मइया ओ करवा मइया ।

    *डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी/राज)*

    करवाचौथ पर हिंदी कविता

    करवा चौथ के व्रत का वह पल , बड़ा सुहाना लगता है ।
    जमीं के चांद का आसमान के चांद से मिलने का पल , बड़ा सुहाना लगता है।
    पति प्रेम से लिप्त यह व्रत , मन को लुभाना लगता है।
    करवा चौथ के व्रत का वह पल , बड़ा सुहाना लगता है।


    किए सोलह श्रृंगार नारियां जब छतों में आती हैं ,
    चांद को देखने का वह पल , बड़ा सुहाना लगता है।
    हाथों में मेहंदी , आंखो पे काजल, गले में हार का दीदार सुहाना लगता है।
    नई चूड़ी , नए कंगना , नवीनता का सारा श्रृंगार सुहाना लगता है।


    पहन कर चुनरी सतरंगी , पिया को रिझाना लगता है।
    कर सोलह श्रृंगार सज कर , पिया के मन को लुभाना लगता है।
    कार्तिक की चतुर्थी चांदनी में , मुझे पिया चांद सी बनना लगता है।
    निर्जल व्रत रखकर , पिया की उम्र बढ़ाना लगता है।


    करवा चौथ के व्रत का वह पल , बड़ा सुहाना लगता है।
    आसमान का एक चांद भी शरमा जाता है, जमीं के लाखों चांद को देख कर,
    शरमाने की अदा का वह पल बड़ा सुहाना लगता है।


    प्रकती भी देती है जमीं के देवियों का साथ,
    सर्दी की हल्की बौछार का वह पल, बड़ा सुहाना लगता है।
    अखंड सुहाग रहे सभी मां – बहनों का,
    खुदा से दुआ दोहराना लगता है ।
    करवा चौथ के व्रत का वह पल, बड़ा सुहाना लगता है।।

    चांद का साया

    ए चांद दीखता है तुझमें,
                 मुझे मेरे चांद का साया है।
    हुआ दीदार जो तेरा तो
             ये चांद भी अब मुस्काया है।।

    सदा सुहागन चाहत दिल में,
             पति हित उपवास किया मैंने।
    जीवन भर साजन संग पाऊं,
                मन में एहसास किया मैंने।।
     जितना जब मांगा है तुमसे,
                  उससे ज्यादा ही पाया है…

    माही की है रची महावर,
                          मंगल सूत्र पहना है।
    कुमकुम मांग सजाई है,
                    सोलह श्रंगारी गहना है।।
    चौथ कहानी सुनी आज,
              और करवा साथ सजाया है…

    नहीं करो तुम लुक्का छिप्पी,
            मुझको बिल्कुल नहीं भाती ये।
    बैरन बदली को समझा दो,
                जले पर नमक लगाती ये।।
    हुई इंतेहा इंतजार की,
                 बीते नहीं वक्त बिताया है…

    सुबह से लेकर अभी तलक,
              मैं निर्जल और निराहार रही।
    अंत समय तक करूं चतुर्थी,
                     खांडे की ही धार सही।।
    चांद रहो तुम सदा साक्षी,
              जब पिया ने व्रत खुलाया है…

                      शिवराज चौहान
                   नांधा, रेवाड़ी (हरियाणा)

    करवा चौथ-सुचिता अग्रवाल

    कार्तिक चौथ घड़ी शुभ आयी। सकल सुहागन मन हरसायी।।
    पर्व पिया हित सभी मनाती। चंद्रोदय उपवास निभाती।।

    करवे की महत्ता है भारी। सज-धज कर पूजे हर नारी।।
    सदा सुहागन का वर हिय में। ईश्वर दिखते अपने पिय में।।

    जीवनधन पिय को ही माना। जनम-जनम तक साथ निभाना।।
    कर सौलह श्रृंगार लुभाती। बाधाओं को दूर भगाती।।

    माँग भरी सिंदूर बताती। पिया हमारा ताज जताती।।
    बुरी नजर को दूर भगाती। काजल-टीका नार लगाती।।

    गजरे की खुशबू से महके। घर-आँगन खुशियों से चहके।।
    सुख-दुख के साथी बन जीना। कहता मुँदरी जड़ा नगीना।।

    साड़ी की शोभा है न्यारी। लगती सबसे उसमें प्यारी।।
    बिछिया पायल जोड़े ऐसे। सात जनम के साथी जैसे।।

    प्रथा पुरानी सदियों से है। रहती लक्ष्मी नारी में है।।
    नारी शोभा घर की होती। मिटकर भी सम्मान न खोती।।

    चाहे स्नेह सदा अपनों से। जाना नारी के सपनों से।।
    प्रेम भरा संदेशा देता। पर्व दुखों को है हर लेता।।

    उर अति प्रेम पिरोये गहने। सारी बहनें मिलकर पहने।।
    होगा चाँद गगन पर जब तक। करवा चौथ मनेगी तब तक।।

    डॉ.सुचिता अग्रवाल “सुचिसंदीप”
    तिनसुकिया, असम

    करवाचौथ पर हिंदी कविता

      ( सरसी छंद)  

    आज सजी है देखो नारी, कर सोलह श्रृंगार ।

    करे आरती पूजा करके , पाने पति का प्यार ।।  

    पायल बाजे रुनझुन रुनझुन , बिन्दी चमके माथ ।

    मंगलसूत्र गले में पहने , लगे मेंहदी हाथ ।।  

    करवा चौथ लगे मन भावन, आये बारम्बार ।

    आज सजी है देखो नारी,  कर सोलह श्रृंगार ।।  

    रहे निर्जला दिनभर सजनी , माँगे यह वरदान ।

    उम्र बढे हर दिन साजन का , बने बहुत बलवान ।।  

    छत के ऊपर देखे चंदा , खुशियाँ मिले अपार ।

    भोली सी सूरत को देखे , सजन लुटाए प्यार ।।  

    सुखी रहे परिवार सभी का, जुड़े ह्रदय का तार।

    आज सजी है देखो नारी,  कर सोलह श्रृंगार ।।    

    *महेन्द्र देवांगन माटी*

    *पंडरिया छत्तीसगढ़*

    हूँ करवा मैं

    मेरे चाँद में
    बहत्तर हैं छेद
    हूँ करवा मैं
    पति की बढ़े उम्र
    हों दीर्घजीवी
    जब भी वो चेतेंगे
    देख के त्याग
    बनेंगे पत्नीव्रता
    खुलेगा भाग्य
    मेरा मेरे बच्चों का
    होगा उद्धार
    संवरेगा संसार
    मिलेगा प्यार
    करवा चौथ व्रत
    होगा सफल
    चांद मेरा धवल
    यही मेरा संबल।।

    भवानीसिंग राठौड़

    करवा चौथ व्रत पर नारी चिंतन

    छटा तुम्हारी शिवा सुहानी।।
    करवा चौथ मात व्रत मेरा।
    करती पूजन गौरी तेरा।।१

    चंदा दर्श पिया सन करना।
    मात कामना मम मन धरना।।
    रहे अटल अहिवात हमारा।
    मिले सदा आशीष तुम्हारा।।२

    पति जीवन हित जीवन अपना।
    परिजन सुख चाहत नित सपना।।
    रहे दीर्घ जीवी पति देवा।
    नित्य करूँ माँ प्रभु की सेवा।।३

    जय जय माँ गौरी जग माई।
    आज तुम्हारे द्वारे आई ।।
    रहूँ सुहागिन ऐसा वर दे।
    घर में खुशियाँ मंगल कर दे।।४

    चंद्र चौथ के साक्ष्य हमारे।
    पति परमेश्वर प्राण पियारे।।
    दर्श तुम्हें फिर नीर चढाकर।
    पति सन पावन प्रीत बढ़ाकर।५

    सुनती कथा पूजती गवरी।
    पति, शशि चौथ दर्श हित सँवरी।।
    पति सन बैठ खोलती व्रत को।
    जनम जनम पालूँ पति सत को।।६

    बाबू लाल शर्मा, बौहरा

  • हिन्दी की महत्ता पर कविता

    हिन्दी की महत्ता पर कविता

    हिन्दी की महत्ता पर कविता – मानव जाति अपने सृजन से ही स्वयं को अभिव्यक्त करने के तरह-तरह के माध्यम खोजती रही है। आपसी संकेतों के सहारे एक-दूसरे को समझने की ये कोशिशें अभिव्यक्ति के सर्वोच्च शिखर पर तब पहुँच गई जब भाषा का विकास हुआ। भाषा लोगों को आपस मे जोड़ने का सबसे सरल और जरूरी माध्यम है। आज यानी 14 सितंबर को हिंदी दिवस के अवसर पर, इस आलेख में हिंदी भाषा के महत्ता पर कविता दी गई है।

    हिन्दी की महत्ता पर कविता 1

    हाथ जोड़ विनती करूँ,हिन्दी में हो बात।
    नही कभी भी छोड़ना,दिन हो चाहे रात।।

    हिन्दी हम सबकी हो भाषा।
    मान बढ़ेगा है अभिलाषा।

    भारत का नित गौरव जानें।
    हिन्दी भाषा अपना मानें।

    हिन्दी से ही जीवन अपना।
    आदत में हो लिखना पढ़ना।


    हम सब बनकर भाषी हिन्दी।
    माथ लगाये जननी  बिन्दी।

    आओ इसकी प्राण बचायें।
    हिन्दी खातिर उदिम चलायें।

    हिन्दी सबकी शान है,रखे हृदय में ध्यान।
    भाष विदेशी छोड़ दें,बढ़े हिन्द का मान।।

    तोषण कुमार चुरेन्द्र

    हिन्दी की महत्ता पर कविता 2

    हिंदी महज भाषा नहीं
    हम सब की पहचान है
    जोड़े रखती मातृभूमि से
    यह भारत की शान है

    हिंदी में है मिठास भरी
    सहज सरल आसान है
    भावनाओं से ओतप्रोत है
    जो ना समझे नादान है

    छोटों को भी जी बोलती
    बड़ों को करती प्रणाम है
    सबको यह महत्व देती
    इसकी बिंदी का भी मान है

    दूसरों से प्रतिद्वंदिता नहीं
    सबका करती सम्मान है
    सब से घुल-मिल कर रहती
    यह गुणों की खान है

    अ से ज्ञ तक के सफर में
    बड़ा ही गूढ़ ज्ञान है
    अनपढ़ से ज्ञानी बनाती
    हिंदी सचमुच महान है

                 – आशीष कुमार
              मोहनिया कैमूर बिहार
           मो० नं०- 8789441191

    हिन्दी की महत्ता पर कविता 3

    सोलह सितंबर हुई
    और खत्म हुआ
    हिंदी पखवाड़ा

    अब खत्म हुई
    अधोषित हिंदी में ही
    लिखने की
    या फिर बोलने की
    आचार संहिता

    आप स्वतंत्र हैं अब
    अंग्रेजी भाषा में
    या अर्ध अंग्रेजी भाषा में
    लिखने को

    मुझे पता है सहज नहीं
    बनावटी बातें बनाना
    मुखौटों के नीचे चहरों पर
    आ जाते हैं पसीने

    अगले सितंबर में
    फिर करना होगा
    थोड़ा-बहुत ढकोसला ।

    -विनोद सिल्ला

    हिन्दी की महत्ता पर कविता 4

    हिन्दी की महत्ता पर कविता

    हिन्दी है हमारी भाषा हिंदुस्तान की आत्मा,
    हिन्दी से कोई बना विद्वान तो कोई महात्मा।
    हिन्दी में है जीवन हिन्दी में है विकास,
    चहूँ दिशाओं में फैलाए ज्ञान का प्रकाश।
    हिन्द के निवासी हम हिन्दी है हमारी जान,
    हिन्दी-हिन्द की धड़कन, हिन्दी है महान।

    बंगाल से महाराष्ट्र और कश्मीर से कन्याकुमारी,
    भिन्न भाषऐं हैं यहाँ लेकिन हिन्दी सबको प्यारी।
    हिन्दी में है माधुर्यता हिन्दी से है पहचान,
    हिन्दी-हिन्द की धड़कन, हिन्दी है महान।

    हिन्दी भाषा सब को बनाता है एक,
    चाहे हमारी जाति-धर्म हो अनेक।
    हिन्दी है प्राचीन आर्यों की भाषा,
    समझाती है भारत की परिभाषा।
    हिन्दी है हिन्दुस्तान की मातृभाषा,
    शांति-एकता है हिंदी की अभिलाषा।
    मैं सहृदय करूँ नित्य हिन्दी का गुणगान,
    हिन्दी-हिन्द की धड़कन, हिन्दी है महान।

    प्रेम – सौहार्द और बढ़ाए आपसी – भाईचारा,
    विश्व की सभी भाषाओं में हिंदी हैं मुझे प्यारा।
    हिंदुस्तान की शान और आत्म सम्मान है हिंदी,
    जैसे हिन्द – नारी की पहचान है माथे की बिंदी।
    हिन्दी की महत्ता को माना है सारा जहान,
    हिन्दी-हिन्द की धड़कन, हिन्दी है महान।

    हिन्दी सभी बोले चाहे गोरा हो या काला,
    हिंद की सरज़मीं में हिन्दी सब को पाला।
    कहता है अकिल सदैव हिन्दी का करो सम्मान,
    बड़ी शिद्दत से मिली है हिंदी भाषा को पहचान।
    मैं लेखनी से करूं नित हिन्दी का बखान,
    हिन्दी-हिन्द की धड़कन, हिन्दी है महान।

    —- अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ. ग.) पिन – 496440.

    हिन्दी की महत्ता पर कविता 5

    हिन्दी भारत देश में, भाषा मातृ समान।
    सुन्दर भाषा लिपि सुघड़, देव नागरी मान।।


    आदि मात संस्कृत शुभे, हिंदी सेतु समान।
    अंग्रेजी सौतन बनी , अंतरमन पहचान।।


    हिन्दी की बेटी बनी, प्रादेशिक अरमान।
    बेटी की बेटी बहुत, जान सके तो जान।।


    हिन्दी में बिन्दी सजे, बात अमोलक तोल।
    सज नारी के भाल से,अगणित बढ़ता मोल।।


    मातृभाष सनमान से, बढ़े देश सम्मान।
    प्रादेशिक भाषा भला, राष्ट्र ऐक्य अरमान।।


    हिन्दी की सौतन भले, दे सकती है कार।
    पर हिन्दी से ही निभे, देश धर्म संस्कार।।


    हिन्दी की बेटी भली, प्रादेशिक पहचान।
    बेटी की बेटी कहीं, सुविधा या अरमान।।


    देश एकता के लिए, हिन्दी का हो मान।
    हिन्दी में सब काम हो, नूतन हिन्द विधान।।

    कोर्ट कचहरी में करें, हिन्दी काज विकास।
    हिन्दी में कानून हो , प्रसरे हिन्द प्रकाश।।


    विभिन्नता में एकता, भाषा हो प्रतिमान।
    राज्य प्रांत चाहो करो, हिन्दी हिन्द गुमान।।


    उर्दू,अरबी सम बहिन, हिन्दी धर्म प्रधान।
    गंगा जमनी रीतियाँ, भारत भाग्य विधान।।


    अंग्रेजी सौतन बनी, प्रतिदिन बढ़ता प्यार।
    निज भाषा सद्भाव दे, पर भाषा तकरार।।


    हिन्दी का सुविकास हो,जनप्रिय भाषा मान।
    वेद ग्रंथ संस्कृत सभी, अनुदित कर विज्ञान।।


    हिन्दी संस्कृत मेल से, आम जनो के प्यार।
    मातृभाष सम्मान कर, हत आंगल व्यापार।।


    सबसे है अरदास यह, हित हिन्दी जयहिन्द।
    शर्मा बाबू लाल के, हिन्दी हृदय अलिन्द।।


    बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
    V/P…सिकदरा,303326. जिला…दौसा ( राज.)

  • टेचराही….(व्यंग) दिन आगे कइसा

    टेचराही….(व्यंग) दिन आगे कइसा

    गोरर-गोरर के
    जिनगी सही
    चलत हे नेट,
    महिना पुट
    भरे परथे
    भरे झन पेट।

    दु दिन आघु
    मटकत रहिथे
    आरो मोबाइल म
    फोन आथे छोकरी के
    कहिथे ,स्टाइल म।

    जल्दी भरवा लो
    आपके सेवा
    हो जाही बंद,
    कसके लेवव
    फेसबुक, वाट्सअप
    के आनंद।

    मरता
    का न करता
    लगा थे जुगाड़,
    लइका के
    फीस पटे झन पटे
    हो भले आड़।

    मुड़ खुसारे
    नटेरे आँखी
    अंगरी चलत हे,
    निसा धरे
    लत परगे
    रात-दिन कलत हे।

    चुहक डरिस
    नेट वाला
    मंगलू के पइसा,
    बिन सुवारी
    रही जही
    दिन आगे कइसा।।


    धनराज साहू