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  • विष्णुपद छंद [सम मात्रिक] कैसे लिखें

    विष्णुपद छंद [सम मात्रिक] विधान – 26 मात्रा, 16,10 पर यति, अंत में वाचिक भार 2 या गा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l

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    उदाहरण :
    अपने से नीचे की सेवा, तीर-पड़ोस बुरा,
    पत्नी क्रोधमुखी यों बोले, ज्यों हर शब्द छुरा।
    बेटा फिरे निठल्लू बेटी, खोये लाज फिरे,
    जले आग बिन वह घरवाला, घर पर गाज गिरे।

    – ओम नीरव

  • रूपमाला/मदन छंद [सम मात्रिक]

    रूपमाला/मदन छंद [सम मात्रिक] विधान – 24 मात्रा, 14,10 पर यति, आदि और अंत में वाचिक भार 21 गाल l कुल चार चरण , क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांत l

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    उदाहरण :
    देह दलदल में फँसे हैं, साधना के पाँव,
    दूर काफी दूर लगता, साँवरे का गाँव l
    क्या उबारेंगे कि जिनके, दलदली आधार,
    इसलिए आओ चलें इस, धुंध के उसपार l

    – ओम नीरव

  • त्रिभंगी छंद [सम मात्रिक]

    त्रिभंगी छंद [सम मात्रिक] विधान – 32 मात्रा, 10,8,8,6 पर यति, चरणान्त में 2 गा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l

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    पहली तीन या दो यति पर आतंरिक तुकांत होने से छंद का लालित्य बढ़ जाता है l तुलसी दास जैसे महा कवि ने पहली दो यति पर आतंरिक तुकान्त का अनिवार्यतः प्रयोग किया है l

    उदाहरण :
    तम से उर डर-डर, खोज न दिनकर, खोज न चिर पथ, ओ राही,
    रच दे नव दिनकर, नव किरणें भर, बना डगर नव, मन चाही।
    सद्भाव भरा मन, ओज भरा तन, फिर काहे को, डरे भला,
    चल-चल अकला चल, चल अकला चल, चल अकला चल, चल अकला।

    – ओम नीरव

  • सार छंद [सम मात्रिक]

    सार छंद [सम मात्रिक] विधान – 28 मात्रा, 16,12 पर यति, अंत में वाचिक भार 22 गागा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l

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    उदाहरण :
    कितना सुन्दर कितना भोला, था वह बचपन न्यारा,
    पल में हँसना पल में रोना, लगता कितना प्यारा।
    अब जाने क्या हुआ हँसी के, भीतर रो लेते हैं,
    रोते-रोते भीतर-भीतर, बाहर हँस देते हैं।

    – ओम नीरव

    विशेष : इस छंद की मापनी को इसप्रकार लिखा जाता है –
    22 22 22 22, 22 22 22
    गागा गागा गागा गागा, गागा गागा गागा
    फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन, फैलुन फैलुन फैलुन
    किन्तु केवल गुरु स्वरों से बनने वाली इसप्रकार की मापनी द्वारा एक से अधिक लय बन सकती है तथा इसमें स्वरक(रुक्न) 121 को 22 मानना पड़ता है जो मापनी की मूल अवधारणा के विरुद्ध है l इसलिए यह मापनी मान्य नहीं है , यह मनगढ़ंत मापनी है l फलतः यह छंद मापनीमुक्त ही मानना उचित है l

  • गगनांगना छंद [सम मात्रिक] कैसे लिखें

    गगनांगना छंद [सम मात्रिक] विधान – 25 मात्रा, 16,9 पर यति, चरणान्त में 212 या गालगा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l

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    उदाहरण :

    कब आओगी फिर, आँगन की, तुलसी बूझती,
    किस-किस को कैसे समझाऊँ, युक्ति न सूझती।
    अम्बर की बाहों में बदरी, प्रिय तुम क्यों नहीं,
    भारी है जीवन की गठरी, प्रिय तुम क्यों नहीं।

    – ओम नीरव