मिला जो आशियाना
मिला जो आशियाना मिला जो आशियानावह सर्द रातों में ठिठुरताआसरा ढूंढता पेड़ो के नीचेपेड़ भी तो टपक रहे हैंचीथड़े खोजता अपने लिएजिससे ढक सकेकम्पित बदन कोमसृण पात…बैरी बनेएक बूंद ….एक शीतल बूंदसिहरन पैदा करती अंतर तकश्वान से सटकरहल्की गर्माहट महसूस करताघुटने भी सिकुड़कर ,छू रहे चिबुक कोसांसो की भाप से तपाता,हस्त,नेत्रों कोनींद तो कहाँ?गुजर जाये … Read more