Tag: #डॉ विजय कुमार कन्नौजे

  • पृथ्वी माता पर कविता/  विजय कुमार कन्नौजे

    पृथ्वी माता पर कविता/  विजय कुमार कन्नौजे

    पृथ्वी माता पर कविता/  विजय कुमार कन्नौजे

    Global-Warming-
    Global-Warming-

    मां की गरिमा मां ही जानें
    इनकी महिमा कौन बखाने
    मातृ भूमि को मेरा प्रणाम
    सीना तानें जग को बचाने।।

    रसातल गगन बीच बैठकर
    सम भाव खुद में सहेज कर
    पृथ्वी माता तुम्हें है प्रणाम
    रक्षा कीजिए मां पुत्र मानकर

    हीरा पन्ना और सोना खान
    तेरी महिमा मां तुम ही जान
    खुशबू दिए मां तुम फुलों में
    मेरी पृथ्वी माता तुम्हें प्रणाम।

    जन्म मृत्यु के बीच में माता
    सीना तान कर तुम खड़ी है
    रसातल में डुबने से बचाने तु
    दीवाल बनकर बीच अड़ी हैं

    मौलिक स्वरचित रचना
    रचनाकार
    डॉ विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग

  • धरती पर कविता/ डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    धरती पर कविता/ डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    धरती पर कविता/ डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    JALATI DHARATI
    JALATI DHARATI

    जलती धरती तपन ज्वलन
    क्रोधाग्नि सा ज्वाला।
    नशा पान में चुर हो बनते पाखंडी है मतवाला।।

    काट वृक्ष धरा किन्ह नगन
    धरती जलती , तु हो मगन
    वाह रे मानव,खो मानवता
    क्या सृष्टि का है यही लगन।।

    जरा सोचो,कुछ कर रहम
    ना कीजिए प्रकृति दमन
    तेरा प्राण बसा है वहीं
    धरती पवन और गगन।।

    कैसा मानव है तुम,जो करते
    सृष्टि का दमन ।
    प्रकृति पुरुष प्राण तुम्हारा
    जरा कीजिए,कुछ तो शर्म।।

    चांद सितारे सुर्य देव हैं
    प्रकृति पुरुष प्रधान।
    मानवता में रहिए ,सदा
    तुम, विधि का‌ विधान।्

  • मर्द का दर्द / डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    मर्द का दर्द / डॉ विजय कुमार कन्नौजे


    नारी बिना ना मर्द हैं
    मर्द का एक दर्द है।
    एक अनजाने कन्या लाकर
    पालने पोसने का कर्ज है।

    सिर झुका विनती नार को
    हाथ जोड़ अर्ज है।
    जन्म दाता माता पिता का
    जिंदगी भरे कर्ज है।

    मर्द का एक दर्द है।।

    पाप कर्म किया है मर्द
    बच्चन पालना फर्ज है
    माता पिता पत्नी सहित
    बच्चों का कर्ज है।
    मर्द का एक दर्द है।।

    भू गगन जल अग्नि वायु
    इनका भी अर्ज है।
    देश भक्ति कर्तव्य पालन
    मर्द का एक दर्द है।।

    संस्कार संस्कृति सभ्यता
    मानवता का धर्म है।
    कर्त्तव्य कठिन जीवन में
    मर्द का एक दर्द है।।

    जन्म से मौत तक मर्द का
    भंयकर कर्ज है।
    उऋण होना इस कलयुग में
    मर्द का एक दर्द है।।

    मिल जाती यदि नार सुशील
    महौषधि तर्ज है।
    नर नारी मिल द्वी कर्ज चुकाते
    दर्द मिटाने अर्ज है।।

  • गणेश वंदना / डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    गणेश वंदना / डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    गणेश वंदना / डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    गणेश वंदना
    गणेश वंदना


    मै हव अड़हा निच्चट नदान
    दया करबे ग गणेश भगवान
    गौरी गौरा आथे सुरता
    तुंहर संग नंदी मेहरबान।

    मुसुवा सवारी लड्डू खवइया
    मुल बाधा तै दुख दुर करइया
    तोर घर परिवार आथे सुरता
    दया करबे ज्ञान देवइया।।

    कवि विजय के बिनती मानबे
    रिद्धि सिद्धि तै संग मा लानबे
    मोर अंगना बढा़दे शोभा
    कारज घलो मोर सुधारदे।।

    जय हो गणेश, कांटों क्लेश
    तोला कइथे गौरी गणेश
    अवघड़ दानी भोले बाबा
    नंदी सवारी पिता महेश।।

  • रूख राई हे खास/ डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    रूख राई हे खास/ डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    रूख राई हे खास/ डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    tree
    पेड़


    जंगल झाड़ी अउ रूख राई
    प्राणी जगत के संगवारी हे।
    काटथे‌ फिटथे जउन संगी
    ओ अंधरा मुरूख अज्ञानी हे।

    अपने हाथ अउ अपने गोड़
    मारत हवय जी टंगिया।
    अपन हाथ मा घाव करय
    बेबस हवय बनरझिया।।

    पेट ब्याकुल बनी करत हे
    ठेकेदार के पेट भरत हे।
    नेता मन के कोठी भरत हे
    जीव जंतु जंगल के मरत हे।।

    अपने हाथ खुद करत हन
    घांव।
    रूख राई ला काट काट के
    मेटत हवन छांव।
    बिन रूख राई के संगवारी
    शहर बचय न गांव ।

    बिन पवन पुरवईया के संगी
    न पानी रहे न स्वांस।
    बिन प्रकृति सृष्टि जगत नहीं
    रूख राई बड़ हे खास।।

    डॉ विजय कुमार कन्नौजे छत्तीसगढ़ रायपुर