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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०अशोक शर्माके हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • उपवास का महत्व

    उपवास का महत्व

    kavita
    hindi gadya lekh || हिंदी गद्य लेख

    धरा पर मानव जीवन अपने आप में एक अमूल्य सौगात है। भारतीय संस्कृति में उपवास को धर्म की परिधि में रखा गया है।आदि काल से ही हमारे मनीषियों ने स्वस्थ मानव जीवन की प्राप्ति हेतु अनेक उपाय सुझाये। हमारे ग्रंथ भी हमें शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रखने हेतु तत्पर हैं। हमारे धर्म ग्रंथों में आस्था की महत्ता रही है। पूजा पाठ के दौरान उपवास को प्राथमिकता दी गयी है।

    उपवास का अर्थ

    उपवास का अर्थ है – उप+ वास, अर्थात आपकी आत्मा में परमात्मा का वास ही उपवास है। उपवास में तीन चीजों की आवश्यकता होती है-संयम, नियम का पालन, देवाराधन (लक्ष्य के निष्ठा)। इन तीनों के कारण मन में आस्था और विश्वास की वृद्धि होती है।

    उपवास का दूसरा नाम

    उपवास का दूसरा नाम है संयम। चाहे खाने पीने की चीजों का हो या मन मस्तिष्क पर संयम या विचारों का संयम होना ही उपवास है। वास्तव में उपवास मानव शरीर की जैविक क्रियाओं को आराम देने की एक परंपरा है। उपवास मन की उद्विग्नता को शांत करके मानसिक शांति देने का एक स्तंभ है।

    उपवास के द्वारा तनाव , चिंता व अवसाद जैसी भयंकर मानसिक स्थिति से बचा जा सकता है। एक तरफ जहाँ हमें लगता है हमारे इष्ट खुश रहे हैं , उससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है । वहीं दूसरी तरफ शरीर के अंगों को आराम मिलने से वे फिर से उचित गति से अपने कार्यों का निष्पादन करने लगते हैं और दीर्घायु जीवन यापन में मदद करते हैं।

  • सावन में भक्ति

    प्रस्तुत कविता सावन में भक्ति भगवान शिव पर आधारित है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है।

    सावन में भक्ति

    सावन सुहाना आया,
    हरीतिमा जग छाया,
    भोले की कृपा है पायी,
    जयति शिव बोल।

    झूम रही डाली डाली,
    मस्त होके मतवाली,
    सूरज भी काफी खुश,
    नेत्र अपना खोल।

    तन तन घंटा बोले,
    मन शिव नाम डोले,
    बेल पत्र चढ़ाकर,
    त्रिदेव जय बोल।

    पहला सोमवार है,
    रिमझिम फुहार है,
    दान दया कर कुछ,
    कर भक्ति अनमोल।

    मुख पर बहार है,
    नागों का गले हार है,
    जग को जगा रहे हैं,
    डमरू और ढोल।

    सावन की बेला आयी,
    हरि प्रीत मन छायी,
    सुहानी घड़ी में सब,
    भक्ति का रस घोल।

    ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
    अशोक शर्मा, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

  • कोशिश फिर से करते हैं

    कोशिश फिर से करते हैं

    kavita

    आओ एक कोशिश फिर से करते हैं,
    टूटी हुई शिला को फिर से गढ़ते हैं।
    आओ एक कोशिश फिर से करते हैं,
    हाँ, मैं मानता हूँ
    इरादे खो गए,
    हौसले बिखर गए,
    उम्मीद टूट चुकी,
    सपनों ने साथ छोड़ दिया,
    हमने कई अपनों को गवाया,
    अपनों से खूब छलावा पाया,
    तो क्या हुआ?


    अभी तक जिंदगी ने हार नहीं मानी है,
    कोशिश करने की फिर से ठानी है,
    आओ एक कोशिश फिर से करते हैं।
    हौसलों में बुलंद जान भरते हैं,
    उम्मीदों को नई रोशनी देते हैं,
    सपनों को फिर निखारते हैं,
    इरादों को जोड़ते हैं,
    हार का मुंह तोड़ते हैं,
    आओ एक कोशिश फिर से करते हैं।
    जीवन में इंद्रधनुष लाते हैं,
    दुनिया को खुशियाँ दे जाते हैं,
    आओ फिर सपनों की उड़ान भरते हैं,
    आओ एक कोशिश फिर से करते हैं।

    अशोक शर्मा

  • पर्यावरण और मानव/ अशोक शर्मा

    पर्यावरण और मानव/ अशोक शर्मा

    पर्यावरण और मानव/ अशोक शर्मा

    Save environment

    धरा का श्रृंगार देता, चारो ओर पाया जाता,
    इसकी आगोश में ही, दुनिया ये रहती।
    धूप छाँव जल नमीं, वायु वृक्ष और जमीं,
    जीव सहभागिता को, पर्यावरण कहती।

    पर देखो मूढ़ बुद्धि, नही रही नर सुधि,
    काट दिए वृक्ष देखो, धरा लगे जलती।
    कहीं सूखा तूफ़ां कहीं, प्रकृति बीमार रही,
    मही पर मानवता, बाढ़ में है बहती।

    वायु बेच देता नर, सांसों की कमीं अगर,
    लाशों से भी बेच देता, भाग ठीक रहती।
    किला खड़ा किया नर, जंगलों को काटकर ,
    खुशहाली देखो अब, भू कम्पनों में ढहती।

    भू हो रही उदास, वन दहके पलाश,
    जले नर संग तरु, जब चिता जलती।
    बरस जहर रहा, प्रकृति कहर रहा,
    खोट कारनामों से, जल विष बहती।

    वृक्ष अपने पास हों, तो दस पुत्र साथ हों,
    गिरे तरु एक,धरा, बड़ा दर्द सहती।
    ऐसे करो नित काम, स्वस्थ बने तेरा धाम,
    स्वच्छ वात्तरु जल से, धरा खुश रहती।


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    ◆अशोक शर्मा, लक्ष्मीगंज,कुशीनगर,उ.प्र.◆
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  • 03 जून विश्व साइकिल दिवस पर दोहे

    03 जून विश्व साइकिल दिवस पर दोहे

    03 जून विश्व साइकिल दिवस पर दोहे

    03 जून विश्व साइकिल दिवस पर दोहे

    पाँवगाड़ी


    साइकिल साधन एक है,सस्ता और आसान।
    जिसकी मर्जी वो चले, चल दे सीना तान।।

    बचपन साथी संग चढ़, बैठे मौज उड़ाय।
    धक्का दें साथी गिरे त, उसको खूब चिड़ाय।।

    आगे पीछे बीच में, तीन पीढ़ी बिठाय।
    हँसते गाते बढ़े चलें, देख लोग हरसाय।।

    खुद ढोती व बोझ संग, खर्चे भी कम कराय।
    जब मिले मजबूर कोई, उसको लेत बिठाय।।

    नर नारी सब चले, जग में सिर उठाय।
    जब कहीं खराब होवे, जलदी से बन जाय।।

    बढ़ती चर्बी और वसा, पैडल से घुल जाय।
    कब्ज अम्लता दूर कर , सुंदर करे सुभाय।।

    नित साइकिल का प्रयोग, अस्थि मजबूत बनाय।
    जोड़ दर्द और गठिया, होने कभी न पाय।।

    साधन छोटा है मगर, गली गली पहुँचाय।
    वायु न दूषित करे,ईंधन खर्च बचाय।।

    कितने भी धनवान हों, तनिको ना शरमाँय।
    विषम समय बैद्य कहते, इसको रोज चलाँय।।

    सुबह सायम जो साथी, साइकिल नित चलाँय,
    स्वस्थ सुन्दर निरोग व, कांतिमय तन पाँय।।


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    अशोक शर्मा, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश
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