जीवन भर का संचित धन हिंदी कविता
जीवन भर का संचित धन हिंदी कविता सांध्य परिदर्शन गृह का पृष्ठ भाग उपवन है,तरु, लता, वनस्पति सघन है,मेरी यह दिनचर्या में शामिल,जीवन भर का संचित धन है! प्रातः पांच बजे उठकर जब,इधर उधर नज़रें दौड़ाता,मेरा गांव , वहां का जीवन,सहसा याद मुझे अा जाता! मेरे पिता माता को उर में,सजा रखा है, ज्योति जगा … Read more