Tag: *ग्रामीण परिवेश पर आधारित कविता

  • जीवन भर का संचित धन हिंदी कविता

    जीवन भर का संचित धन हिंदी कविता

    village gram gaanv based hiindi poem
    गाँव पर हिंदी कविता

    सांध्य परिदर्शन

    गृह का पृष्ठ भाग उपवन है,
    तरु, लता, वनस्पति सघन है,
    मेरी यह दिनचर्या में शामिल,
    जीवन भर का संचित धन है!

    प्रातः पांच बजे उठकर जब,
    इधर उधर नज़रें दौड़ाता,
    मेरा गांव , वहां का जीवन,
    सहसा याद मुझे अा जाता!

    मेरे पिता माता को उर में,
    सजा रखा है, ज्योति जगा कर,
    विवशता में, दूरस्थ ग्राम के,
    आश्रित हूं, कुटुम्ब को लाकर!

    इक्कीस डेसी मील जमीन का,
    क्रय कर, भवन निर्माण किया
    घर को छोड ख़ाली धरती पर,
    नीम सागौन पौध गाड़ दिया

    आज वे पौधे, बड़े बड़े हैं,
    जमीन पर, तनकर खड़े हैं!
    कितनी आंधियों, बरसात से,
    योद्धा बनकर वे लड़े हैं!

    कोयल कूक रही पेड़ों पर,
    उछल रहे हैं, उस पर बन्दर!
    फुदक रही हैं, कई गिलहरी,
    बहुत जोश है, उनके अन्दर!

    रंग बिरंगी तितलियां भी,
    उड़ती है, फूलों से सटकर,
    दादुर यूं छलांग फांदते,
    सब खेलों से, लगते हटकर!

    अब झींगुर तान दे रहे,
    बरस रहा जैसे संगीत!
    गौरैया भी सुना रही हैं,
    अपने प्रेमी को, ज्यों गीत!

    मेरा मन है, मुग्ध, देखकर,
    हरी भरी क्यारी पर ऐसे,
    मेरे जीवन में, बचपन ज्यों,
    लौट आया है, फिर से जैसे!

    पद्म मुख पंडा
    ग्राम महा पल्ली पोस्ट लोइंग
    जिला रायगढ़ छ ग

  • मोर गांव मोर मितान

    मोर गांव मोर मितान

    मोर गांव मोर मितान जिसके रचनाकार अनिल जांगड़े जी हैं । कविता ने ग्रामीण परिवेश का बहुत सुंदर वर्णन किया है। आइए आनंद लें ।

    मोर गांव मोर मितान

    मोर गांव मोर मितान

    मोर गाॅंव के तरिया नदिया,नरवा मोर मितान
    रूख राई म बसे हवय जी,मोर जिंनगी परान।

    गली खोर के मॅंय हंव राजा,
    दुखिया के संगवारी हंव
    दया धरम हे सिख सिखानी
    बैरी बर मॅंय कटारी हंव
    बिन फरिका के दुवारी हंव रे
    मोर अलग पहचान
    मोर गांव के तरिया नदिया,नरवा मोर मितान।

    गाॅंव के कुकुर बिलई संग हे
    मोर सुघर मितानी
    परछी बइठे बुढ़वा बबा मोर
    करथे मोर सियानी
    मॅंय गाॅंव के लहरिया बेटा
    दाई ददा भगवान
    मोर गाॅंव के तरिया नदिया,नरवा मोर मितान।

    गाॅंव म शीतला ठाकुर देवता
    करथे हमर रखवारी
    छानी परवा टूटहा कुरिया
    हवय हमर चिनहारी
    बोरे बासी खा के कमाथन
    माटी म उगाथंन धान
    मोर गाॅंव के तरिया नदिया, नरवा मोर मितान।

    🖊️ अनिल जांगड़े
    सरगांव मुंगेली छत्तीसगढ़
    8120861255

  • अब तो मेरे गाँव में

    अब तो मेरे गाँव में

    अब तो मेरे गाँव में

    अब तो मेरे गाँव में
    गाँव पर हिंदी कविता


    . ( १६,१३ )
    अमन चैन खुशहाली बढ़ती ,
    अब तो मेरे गाँव में,
    हाय हलो गुडनाइट बोले,
    मोबाइल अब गाँव में।

    टेढ़ी ,बाँकी टूटी सड़कें
    धचके खाती कार में,
    नेता अफसर डाँक्टर आते,
    अब तो कभी कभार में।

    पण्चू दादा हुक्का खैंचे,
    चिलम चले चौपाल मे,
    गप्पेमारी ताश चौकड़ी,
    खाँप चले हर हाल में।

    रम्बू बकरी भेड़ चराता,
    घटते लुटते खेत में,
    मल्ला काका दांव लगाता
    कुश्ती दंगल रेत में।

    पनघट एकल पाइंट, बने
    नीर गया …पाताल़ मे,
    भाभी काकी पानी भरती,
    बहुएँ रहे मलाल… में।

    भोले भाले खेती करते
    रात ठिठुरे पाणत रात में।
    मजदूरों के टोल़े मे भी
    बात चले हर बात में।

    चोट वोट मे दारु पीते,
    लड़ते मनते गाँव में,
    दुख, सुख में सब साझी रहते,
    अब …भी मेरे गाँव में।

    नेताओं के बँगले कोठे
    अब तो मेरे गाँव में,
    रामसुखा की वही झोंपड़ी
    कुछ शीशम की छाँव में।

    कुछ पढ़कर नौकर बन जाते,
    अब तो मेरे गाँव मे,
    शहर में जाकर रचते बसते,
    मोह नही फिर गाँव में।

    अमरी दादी मंदिर जाती,
    नित तारो की छाँव में,
    भोपा बाबा झाड़ा देता ,
    हर बीमारी भाव मे।

    नित विकास का नारा सुनते
    टीवी या अखबार से,
    चमत्कार की आशा रखते,
    थकते कब सरकार से।

    फटे चीथड़े गुदड़ी ओढ़े,
    अब भी नौरँग लाल है,
    स्वाँस दमा से पीड़ित वे तो,
    असली धरती पाल है।

    धनिया अब भी गोबर पाथे,
    झुनिया रहती छान मे,
    होरी अब भी अगन मांगता,
    दें कैसे …गोदान में।

    बीमारी की दवा न होती,
    दारू मिलती गाँव में,
    फटी जूतियाँ चप्पल लटके,
    शीत घाम निज पाँव में।

    गाय बिचारी दोयम हो गई,
    . चली डेयरी चाव में,
    माँगे ढूँढे छाछ न मिलती ,
    , मिले न घी अब गाँव में।

    अमन चैन खुशहाली बढ़ती ,
    अब तो मेरे गाँव में,
    हाय हलो गुडनाइट बोले
    मोबाइल अब गाँव में।
    ————
    बाबू लाल शर्मा,बौहरा

  • गाँव की महिमा पर अशोक शर्मा जी की कविता

    गाँव की महिमा पर अशोक शर्मा जी की कविता

    गाँव की महिमा पर अशोक शर्मा जी की कविता

    गाँव की महिमा पर अशोक शर्मा जी की कविता

    गांव और शहर


    लोग भागे शहर-शहर , हम भागे देहात,
    हमको लागत है गाँवों में, खुशियों की सौगात।

    उहाँ अट्टालिकाएं आकाश छूती, यहाँ झोपड़ी की ठंडी छाँव।
    रात रात भर चलता शहर जब,चैन शकून से सोता गाँव।

    जगमग जगमग करे शहर, ग्राम जुगनू से उजियारा है।
    चकाचैंध में हम खो जाते,टिमटिमाता गाँव ही न्यारा है।

    फाइव स्टार रेस्त्रां में, पकवान मिलते एक से एक।
    पर गाँवों का लिट्टी चोखा,हमको लगता सबसे नेक।

    बबुआ के जब तबियत बिगड़े, गाँव इकट्ठा होता है,
    पर शहरों का मरीज तो, अक्सर तन्हाई में रोता है।

    पैसा से सब काम होत है, शहर विकसे बस पैसा से,
    खेती गाँव में भी हो जाती, बिन पैसा कभी पईंचा से।

    खरीद खरीदकर सांस लेते, महँगी प्राणवायु शहरों में,
    गाँवों में स्वच्छ वायु मिल जाती, मुफ्त में हर पहरों में।

    जंक फूड जब शहर का खाये, मन न भरे अब बथुआ से,
    गमछा बिछा मलकर खाये, तब जिया जुड़ाला सतुआ से।

    शहर के व्यंजन महंगे होते, कम पैसे में जैसे भीख,
    बिन पैसे मिलती गांवों में, भर पेट खाने को ईख।

    दूध मलाई शहर के खाईं, महँगी पड़ी दवाई,
    गऊँवा के सरसो के भाजी, रोग न कवनो लाई।

    शहर गाँव से आगे बाटे, सब लोग कहते रहते,
    हमको तो गाँव ही भाये, जनाब आप क्या कहते?


    ★★अशोक शर्मा,लक्ष्मीगंज,कुशीनगर, उत्तर प्रदेश★★

  • कहाँ बचे हैं गाँव

    कहाँ बचे हैं गाँव

    कहाँ बचे हैं गाँव

    जब से बौने वृक्ष हुए हैं, बौनी हो गयी छाँव |

    शहरी दखल हुआ जबसे, कहाँ बचे हैं गाँव ?

    कहाँ बचे हैं गाँव

    पट गए सारे ताल-तलैया,

    नहरों को भी पाट दिया,

    आस-पास जितने जंगल थे,

    उनको हमने काट दिया,

    थका पथिक को राह में,

    मिला नहीं ठहराव |

    जब से बौने वृक्ष हुए हैं, बौनी हो गयी छाँव |

    पगडंडी पर चलना छोड़ा,

    हम बाइक पे चलते हैं,

    हुए रिटायर बैल हमारे,

    ट्रैक्टर से काम निकलते हैं,

    हुआ मशीनी जीवन अपना,

    ये कैसा बदलाव ?

    जब से बौने वृक्ष हुए हैं, बौनी हो गयी छाँव |

    • उमा विश्वकर्मा, कानपुर, उत्तरप्रदेश