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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर ० मदन सिंह शेखावत के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • श्रम की कर नित साधना- मेहनत पर दोहे

    श्रम की कर नित साधना- मेहनत पर दोहे

    श्रम की कर नित साधना- मेहनत पर दोहे

    यहां पर आदरणीय मदन सिंह शेखावत द्वारा रचित मेहनत पर दोहे का संकलन किया गया है।


    श्रम की कर नित साधना,जीवन हो आसान।
    कठिन परिश्रमकर सदा,तपता सदा किसान।।

    श्रम से पाकर लक्ष्य को,करता नित आराम।
    सोकर के चाहे जहाॅ , कर लेना विश्राम।।

    श्रम से पहुचे हैं शिखर,करता नित संघर्ष।
    बाधाए आती बहुत , जीवन जीना हर्ष।।

    स्वेद बहा श्रमकर सखे,रखना मंगल भाव।
    जीवन मे आनन्द हो , त्याग सभी दुर्भाव।।

    मिले तभी तो सफलता, श्रम करना स्वीकार।
    श्रम बिन जीवन व्यर्थ हैं ,सधतें लक्ष्य हजार।।

    सुखमय जीवन हो सखा,श्रम से नाता जोङ।
    यही रहें नित धारणा ,आलस करना छोङ।।

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर

  • भाई पर कुण्डलिया छंद

    साहित रा सिँणगार १०० के सौजन्य से 17 जून 2022 शुक्रवार को पटल पर संपादक आ. मदनसिंह शेखावत जी के द्वारा विषय- भाई पर कुण्डलिया में रचना आमंत्रित किया गया.

    कुंडलियां विधान-

    एक दोहा + एक रोला छंद
    दोहा -विषम चरण १३ मात्रा चरणांत २१२
    सम चरण ११ मात्रा चरणांत २१
    समचरण सम तुकांत हो
    रोला – विषम चरण – ११ मात्रा चरणांत २१
    सम चरण – १३ मात्रा चरणांत २२

    भाई पर कुण्डलिया छंद
    hindi kundaliyan || हिंदी कुण्डलियाँ

    बहिन पर कुंडलियां

    चंदा है आकाश में, धरती इतनी दूर।
    बहिन बंधु का नेह शुभ, निभे रीति भरपूर।
    निभे रीति भरपूर, नहीं तुम बहिन अकेली।
    भावों का संचार, समझना कठिन पहेली।
    नित उठ करते याद, नेह फिर क्यों हो मंदा।
    रखो धरा सम धीर, बंधु चाहे मन चंदा।


    बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ

    भाई पर कुण्डलिया छंद

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर के कुण्डलिया

    भाई हो तो भरत सा,दिया राज सब त्याग।
    उदासीन रहकर सदा , राम चरण अनुराग।
    राम चरण अनुराग , वेदना मन में भारी।
    देता खुद को दोष , कैकयी की तैयारी।
    कहे मदन कर जोर , शत्रु बन माता आई।
    मन मे अति है रोष , भरत से हो सब भाई।।


    भाई भाई प्रेम हो , रहे न कुछ तकरार।
    जान छिड़कते है सदा , बेशुमार है प्यार।
    बेशुमार है प्यार , सदा मिलकर है रहते।
    करे समस्या दूर ,वचन कटु कभी न कहते।
    कहे मदन कर जोर , करे घाटा भरपाई।
    रहे सदा ही त्याग , प्रेम हो भाई भाई।।


    भाई अब दुश्मन बना , चले फरेबी चाल।
    आया ऐसा दौर है , हर घर है बेहाल।
    हर घर है बेहाल , नहीं आपस में बनती।
    करते है तकरार , तुच्छ बाते हो सकती।
    आया समय खराब , रूष्ट होती है माई।
    मिलकर करना काम ,नही बन दुश्मन भाई।।

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर

    पुष्पा शर्मा”कुसुम” के कुण्डलिया


    भाई -भाई मिल रहें, आपस में हो प्यार।
    दुख -सुख में साथी रहें,यह अपना परिवार।
    यह अपना परिवार,साथ जीवन में देता।
    मने पर्व त्योहार,खुशी दामन भर लेता।
    बगिया रहे बहार ,कुसुम कलियाँ मुस्काई।
    हिम्मत होती साथ, जहाँ मिल रहते भाई।।

    पुष्पा शर्मा ‘कुसुम’

    बृजमोहन गौड़ के कुण्डलिया

    भाई भाई में कहाँ,पहले जैसा प्यार ।
    रिश्ते सारे कट गए,तलवारों की धार ।
    तलवारों की धार,हुआ बटवारा भारी ।
    बटे खेत खलिहान,बटे बापू महतारी ।
    बृज कैसी यह राह,लाज खुद रही लजाई ।
    बचे कहाँ अब राम, और लक्ष्मण से भाई ।।

    @ बृजमोहन गौड़

    डॉ एन के सेठी राजस्थान के कुण्डलियां

    भाई भरत समान हो,त्याग दिए सुख चैन।
    भ्रात राम की भक्ति में, लगे रहे दिन रैन।।
    लगे रहे दिन रैन, त्याग का पाठ पढ़ाया।
    चरण पादुका पूज,राम का राज्य चलाया।।
    मन में रख सद्भाव, खुशी की आस जगाई।
    सभी करें यह आस, भरत सा होवे भाई।।

    भाई लक्ष्मण सा कभी, करे न कोई त्याग।
    राम और सिय के लिए,रखते मनअनुराग।।
    रखते मन अनुराग, तभी तो वन स्वीकारा।
    रहे भ्रात के साथ,सदा ही उनको प्यारा।।
    कह सेठी करजोरि, रीत रघुवंशी छाई।
    सबकी है यह चाह,भरत लक्ष्मण सा भाई।।

    डॉ एन के सेठी

  • भोजन पर दोहे का संकलन

    भोजन पर दोहे का संकलन

    15 जून 2022 को साहित रा सिंणगार साहित्य ग्रुप के संरक्षक बाबूलाल शर्मा ‘विज्ञ’ और संचालक व समीक्षक गोपाल सौम्य सरल द्वारा ” भोजन ” विषय पर दोहा छंद कविता आमंत्रित किया गया जिसमें से भोजन पर बेहतरीन दोहे चयनित किया गया। जो कि इस प्रकार हैं-

    भोजन पर दोहे का संकलन

    मदन सिंह शेखावत के दोहे

    सादा भोजन कर सदा, करे परहेज तेल।
    पेट रहे आराम तो , होता सुखमय मेल।।

    तेल नमक शक्कर सदा,करना न्यून प्रयोग।
    रहे बिमारी दूर सब , सुखद बने संयोग।।

    भोजन में खिचड़ी रखे, खाकर हो आनंद।
    अच्छा रहता है उदर , होता परमानंद।।

    भोजन करना अल्प है , हो शरीर अनुसार।
    दीर्घ आयु होगा मनुज , पाता है आधार।।

    खट्टा मीठ्ठा जस मिले , समझे प्रभो प्रसाद।
    रुच रुच कर खाना सभी,मिट जाये अवसाद।।

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर

    राधा तिवारी ‘राधेगोपाल’ के दोहे

    भोजन सब करते रहो, दूर रहेंगे रोग।
    भोजन से ताकत मिले, कहते हैं कुछ लोग।।

    भोजन निर्धन को मिला, नहीं कभी भरपेट ।
    उसके बच्चे ताकते, सदा पड़ोसी गेट।।

    भोजन के तो सामने, फीके सब पकवान।
    भोजन के तो साथ में, मत करना जलपान।।

    भजन करें कैसे यहाँ, बिन भोजन के मीत।
    भरे पेट तब हो भजन, यह है जग की रीत।।

    हल्का भोजन ही रखे, हमको यहाँ निरोग।
    तेलिय भोजन का नहीं, करना अब उपयोग।।

    रोटी चावल लीजिए, भोजन में मनमीत।
    फल सब्जी अरु दाल से, करलो ‘राधे’ प्रीत।।

    राधा तिवारी ‘राधेगोपाल’
    अंग्रेजी एलटी अध्यापिका
    खटीमा, उधम सिंह नगर
    (उत्तराखंड)

    बृजमोहन गौड़ के दोहे

    जीने को खाना सखे, खाने को मत जीव l
    देर रात भोजन नहीं,तगड़ी जीवन नीव ll

    कम खाना अच्छा सदा,काया रहे निरोग l
    कर लो कुछ व्यायाम भी,और प्रात में योग ll

    पाचक और सुपथ्य कर,मांसाहारी त्याग l
    खान-पान को ही बने,खेत बगीचे बाग ll

    @ बृजमोहन गौड़

    अनिल कसेर “उजाला” के दोहे

    भोजन से जीवन चले, रहता स्वथ्य शरीर।
    सादा भोजन जो करें, भागे तन से पीर।

    भोजन हल्का ही करें, दूर रहे सब रोग।
    समय रहत भोजन करें, और करें जी योग।

    कोई भूखा मत रहे, करो अन्न का दान।
    जो उपजाता अन्न है, दे उनको सम्मान।

    अनिल कसेर “उजाला”

    केवरा यदु मीरा के दोहे

    सदा करेला खाइये, दूर रहे फिर रोग।
    शुगर रोग होवे नहीं,कहते डाक्टर लोग।।

    सादा भोजन जो करे,रहते सदा निरोग।
    भोजन बिन कब कर सके, योगासन या योग।।

    भोजन के ही बाद में, कहते पीजे नीर।
    घंटे भर के बाद पी,तन से भागे पीर।।

    भोजन संग सलाद हो,ककड़ी मूली मान।
    हरी सब्जियाँ लीजिए,देख परख पहचान।।

    भाजी में गुण है बहुत,पालक बथुआ साग।
    मिले विटामिन सी सुनो, रोग जाय फिर भाग।।

    केवरा यदु मीरा

    गोपाल सौम्य सरल के दोहे

    काया अपनी यंत्र है, चाहे यह आहार।
    भोज कीजिए पथ्य तुम, सुबह शाम दो बार।।

    भोजन से तन मन चले, ऊर्जा मिले अपार।
    खान-पान दो खंभ है, हरदम करो विचार।।

    तन को भोजन चाहिए, मन को भले विचार।
    खान-पान अच्छा करो, रहते दूर विकार।।

    बैठ पालथी मारके, रख आसन लो भोज।
    शांत चित्त के खान से, सँवरे मुख पाथोज।।

    ग्रास चबाकर खाइए, बने तरल हर बार।
    रस भोजन का तन लगे, आये बहुत निखार।।

    नमक मिर्च अरु तेल सब, खाओ कर परहेज।
    तेज लिये से रोग हो, मुख हो फिर निस्तेज।।

    दूध दही लो भोज में, ऋतु फल भरें समीच।
    कर अति का परहेज सब, उदय अस्त रवि बीच।।

    खट्टा मीठा चटपटा, सभी बढ़ाएं भोग।
    उचित करो उपयोग सब, काया रहे निरोग।।

    सुबह करो रसपान तुम, ऋतु फल उत्तम जान।
    दूध पीजिए रात को, जाये उतर थकान।।

    सात दिवस में एक दिन, रखो सभी उपवास।
    सुधरे पाचन तंत्र जब, बीते हर दिन खास।।

    नींद जरूरी भोज है, तन चाहे विश्राम।
    स्वस्थ रहे फिर मन बड़ा, अच्छे होते काम।।

    भोज प्रसादी ईश की, देती सबको जान।
    रूखी सूखी जो मिले, लो प्रभु करुणा मान।।

    शब्दार्थ-
    पाथोज- कमल
    समीच- जल निधि/ यहाँ ‘रस युक्त’

    गोपाल ‘सौम्य सरल’

    पुष्पा शर्मा कुसुम के दोहे

    आवश्यक तन के लिए,भोजन उचित प्रबंध।
    पोषण सह बल भी बढ़े, जीवन का अनुबंध।।

    सात्विक भोजन कीजिए, बने स्वास्थ्य सम्मान।
    तजिए राजस तामसी, है रोगों की खान।।

    भोजन माता हाथ का,रहे अमिय रसपूर।
    मिले तृप्ति शीतल हृदय,ममता से भरपूर।।

    भूख स्नेह कारण बने, भोजन करना साथ।
    हो अभाव जो स्नेह का,नहीं बढ़ायें हाथ।।

    अन्न, वस्त्र, जल दान से, मिलता है परितोष।
    भूखे को भोजन दिये, मन पाता संतोष।।

    पुष्पा शर्मा ‘कुसुम’

    डॉ एन के सेठी के दोहे

    सात्विकभोजन कीजिए,मन हो सदा प्रसन्न।
    चित्त सदा ऐसा रहे, जैसा खाओ अन्न।।

    भोजन मन से ही करें, बढ़े भोज का स्वाद।
    तन मन दोनों स्वस्थ हों, रहे नहीं अवसाद।।

    चबा चबा कर खाइए, भोजन का ले स्वाद।
    तभी भोज तन को लगे, होय नहीं बर्बाद।।

    भोजन उतना लीजिए, जिससे भरता पेट।
    झूठा अन्न न छोड़िए, यह ईश्वर की भेंट।।

    भोजन की निंदा कभी,करे न मुख से बोल।
    षडरस काआनंद ले,हो प्रसन्न दिल खोल।।

    © डॉ एन के सेठी

    डॉ मंजुला हर्ष श्रीवास्तव मंजुल के दोहे

    भोजन तब रुचिकर लगे,बने प्रेम से रोज।
    भावों की मधु चाशनी, नित्य नवल हो खोज।।

    मैदा शक्कर अरु नमक , सेवन दे नुकसान।
    गुड़ आटा फल सब्जियाँ, खा कर हों बलवान।।

    सर्वोत्तम भोजन वही,माँ का जिसमें प्यार।
    कभी न मन से छूटता ,अद्भुत स्वाद दुलार।।

    चटनी की चटकार से ,बढ़े भोज का स्वाद।
    आम आँवला जाम हर, चटनी रहती याद।।

    मूँग चना अरु मोठ को ,रखिये रोज भिगाँय।
    करें अंकुरित साथ गुड़ , प्रात:खा बल पाँय।।

    डॉ मंजुला हर्ष श्रीवास्तव मंजुल

  • रोटी पर 5 बेहतरीन कविताएं -चौपाई छंद

    13 जून 2022 को साहित रा सिंणगार साहित्य ग्रुप के संरक्षक बाबूलाल शर्मा ‘विज्ञ’ और संचालक व समीक्षक गोपाल सौम्य सरल द्वारा ” रोटी” विषय पर चौपाई छंद कविता आमंत्रित किया गया जिसमें से रोटी पर 5 बेहतरीन कविताएं चयनित किया गया। जो कि इस प्रकार हैं-

    रोटी पर 5 बेहतरीन कविताएं -चौपाई छंद

    कविता 1


    भूख लगे तब रोटी खाना।
    तभी लगे वह स्वाद खजाना।।
    कच्ची भूख में नहीं खाना।
    चाहे मन को बस कर पाना।।

    हानि बहुत स्वास्थ यही करती।
    कई बिमारी शरीर भरती।।
    सादा रोटी सबसे अच्छी।
    लेकिन हो नहीं कभी कच्ची।।

    नित्य आहार करना तुम उत्तम।
    होती है सेहत सर्वोत्तम।।
    दाल भात अरु रोटी खाना।
    चूल्हे पर तुम इसे पकाना।।

    मिलकर के सब मौज मनाना।
    जीवन अपना सफल बनाना।।
    रोटी की महिमा है न्यारी।
    होती है यह दुर्लभ भारी।।

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर

    कविता 2




    रोटी की है अजब कहानी।
    बच्चों तुमको बात बतानी।।
    है साधन जीवन यापन की ।
    आवश्यकता रोटी जन की।।

    रोटी की चिन्ता में जीना।
    बहे पिता का सदा पसीना।।
    माता सेंके निशिदिन रोटी।
    बड़ी कभी हो जाती छोटी।।

    रोटी में ईमान भरा हो।
    रूखी- सूखी प्यार भरा हो।।
    मेहनत की रोटी अति प्यारी।
    तृप्ति अमिय सम देती न्यारी।।

    मुझको बस इतना ही कहना।
    चोरी हिंसा से बच रहना।।
    दीन दुखी जब द्वार पुकारे।
    रोटी देकर क्षुधा निवारें।

    पुष्पाशर्मा’कुसुम’

    कविता 3

    ईश्वर ऐसा दिन दिखलाओ l
    भूखे रहे न लोग अभावों ll
    माना करते सब मनमानी l
    जाने क्या मानव ने ठानी ll
    दंभ करे करता बरबादी l
    आयोजन कोई या शादी ll
    रोटी कचरे फेंकी जाती l
    हा अब दुनिया नहीं लजाती ll
    आज देश में कुछ हैं ऐसा l
    भरी गरीबी ईश्वर पैसा ll
    एक समय का दाना पानी l
    चलती खाली पेट कहानी ll
    अब बात ये सोचने वाली l
    जितना खा उतना ले थाली ll


    @ बृज

    कविता 4

    भूख पेट की है आग बड़ी।
    बैठी है तन ज्यों सोन चड़ी।।
    जीव जगत को जो लगती है।
    पेट भरे से जो मिटती है।।

    भूख लगी तो सब संसारी।
    करने लगे मेहनत भारी।।
    काम-धाम कर अर्थ कमाएं।
    लेकर दानें खाना खाएं।।

    दाल-भात या रोटी प्यारी।
    खाते हैं सब जन घरबारी।।
    रोटी सब्जी बहुत सुहाये।
    मय चटनी जी भर जाये।।

    माँ रोटी में रस भरती है।
    स्वाद भोज में करती है।।
    दादी अपने हाथ खिलाती।
    सब बच्चों को बहुत सुहाती।।

    रोटी घर की बहुत सुहाये।
    सभी पेट भर खाना खाये।।
    तोंद डकारें ले इठलाती।
    नींद बहुत फिर सबको आती।।

    रोटी की आती है रंगत।
    जैसी हो तन मन की संगत।।
    मन होता है सबका वैसा।
    खाते हैं जो दाना जैसा।।

    रोजी जैसी रोटी मिलती।
    रोटी जैसी काया फलती।।
    नीयत जैसी रोजी-रोटी।
    होती सद् या होती खोटी।।

    प्राण जीव का है ये रोटी।
    इस खातिर है लूट खसोटी।।
    गिरा आदमी रोटी खातिर।
    लूटे सबको बनकर शातिर।।

    नेक हृदय सब जन काम करो।
    नेक कमाई से नाम करो।।
    भूखे को तुम भोजन देना।
    छीन निवाला दोष न लेना।।

    @ गोपाल ‘सौम्य सरल’

    कविता 5

    माता रोटी रोज बनाती।
    बिठा सामने लाल खिलाती।।
    माँ रोटी में प्यार मिलाती।
    शक्ति सही है, यहाँ ताकत ले।

    पिता खेत में अन्न उगाते।
    तब हम रोटी बैठे खाते।।
    पिता कहाते पालनहारा।
    पाले सुख से है परिवारा।।

    रोटी मोटी पतली रहती।
    भूख सभी की रोटी हरती।।
    घी से चुपड़ी होवे रोटी
    चाहे सूखी खायें रोटी।।

    ज्वाला रोज मिटाती रोटी।।
    खा बच्चे सो जाये रोटी।।
    सो जाये बच्चे खा रोटी।
    रोटी क्या क्या रंग दिखाती।
    चोरी ड़ाका है करवाती।।

    महनत की रोटी है फलती।
    रोटी से काया है बनती।।
    कभी नहीं तुम फेंको रोटी।
    भूखे को तुम दे दो रोटी।।

    कहूँ राम जी देना रोटी ।
    सबको एक समाना रोटी।।
    बिन रोटी मुनिया है रोती।
    जाग जाग रातों में सोती।।

    केवरा यदु”मीरा”राजिम

  • होली पर्व -कुण्डलियाँ

    होली पर्व -कुण्डलियाँ

    होली पर्व पर कुण्डलियाँ ( Holi par Kundaliya) का संकलन हिंदी में रचना आपके समक्ष पेश है . होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है, जो आज विश्वभर में मनाया जाने लगा है। 

    होली पर्व – कुण्डलियाँ

    Holi par kavita
    Holi par kavita

    होली के इस पर्व पर, मेटे सब मतभेद।
    भूल गिला शिकवा सभी, खूब जताये खेद।
    खूब जताये खेद, शिकायत रह क्यों पाये।
    आपस मे रह प्रेम, उसे भूले कब जाये।
    मदन कहै समझाय,खुशी की भर दे झोली।
    जीवन हो मद मस्त, प्यार की खेलें होली।।

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर

    होली की कविता

    होली छटा निहारिए, बरस रहा मधु रंग ।
    मंदिर-मस्जिद प्रेम से, खेल रहे मिल संग ।।
    खेल रहे मिल संग, धर्म की भींत ढही है ।
    अंतस्तल में आज, प्रीत की गंग बही है ।।
    कहे दीप मतिमंद, रहे यह शुभ रंगोली ।
    लाती जन मन पास, अरे मनभावन होली ।।

    -अशोक दीप

    होली पर पारम्परिक कथा

    होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है।