विकास पर कविता
उनकी सोच विकासवादी है
उन्हें विश्वास है केवल विकास पर
विकास के सारे सवालों पर
वे मुखर होकर देते है जवाब
उनके पास मौजूद हैं
विकास के सारे आँकड़े
कृषि में आत्मनिर्भर हैं
खाद्यान से भरे हुए हैं उनके भंडार
आप भूख से मरने का सवाल नहीं करना
वे आंकड़ों में जीत जाएंगे
आप सबूत नहीं दे पाएंगे
आपको मुँह की खानी पड़ेगी
वे विज्ञान में भी हैं आगे
वे आसमान की बातें करते हैं
धरती की बात उन्हें गवारा नहीं
अंतरिक्ष, चाँद और उपग्रह पर
चाहे जितना सवाल उनसे पूछ लो
कभी ग़लती से भी
ज़मीनी सवाल पूछने की ज़ुर्रत नहीं करना
वरना जमींदोज हो जावोगे एक दिन
उनके संचार भी बड़े तगड़ें हैं
वे आपके बारे में पल-पल की ख़बर रखते हैं
ये और बात है
बाख़बर होते हुए भी बेख़बर होते हैं
उनके संचार व्यवस्था पर
आप सवाल करें यह मुमकिन ही नहीं
उसने मुफ़्त में बांट रखे हैं फोर जी नेटवर्क
खाना आपको मिले या न मिले
ख़बरों से जरूर भरा जाएगा आपका पेट
भाई साहब उनके पास
विकास के तमाम आँकड़े हैं
आपके पास उतने तो
विकास के सवाल भी नहीं हैं
गरीबी,बेकारी,भूखमरी ये सारे
पीछड़ेपन की निशानी है
उनके लिए पीछड़ेपन पर चर्चा करना
सवाल उठाना महज़ बेवकूफ़ी से कम नहीं
वे भला विकास छोड़
पिछड़ों से बात करें
उनके सवाल सुनें
हरगिज़ संभव नहीं
दरअसल उनके लिए
पिछड़ों के सवाल सवाल ही नहीं होते
इसलिए
सावधान !याद रखना विकास के सवालों में
कभी आदमी का सवाल मत करना
उनके लिए सबसे बड़ा गुनाह है
विकास के सवालों में आदमी को जोड़ना।
— नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479