चटक लाल रोली कपाल
चटक लाल रोली कपाल,
मस्तक पर अक्षत लगा हुआ,
मुखमंडल पर आभा ऐसी,
दिनकर जैसे नभ सजा हुआ |
ये अरुणोदय का है प्रकाश,
या युवा ह्रदय की प्रबल आस,
सुर्ख सुशोभित मस्तक पर,
प्रस्फुटित हुआ जैसे उजास |
अक्षत रमणीय छवि बिखेरे,
माणिक को ज्यो कुंदन घेरे,
लगा लाल के भाल दमकने,
चला प्रभात करन पग-फेरे |
विस्मयकारी छटा मनोहर,
अलौकिक हैं दिव्य रूप धर,
सुधा कलश से छलकी ऐसे,
तरल तरंगों में गुंजित स्वर |
– उमा विश्वकर्मा, कानपुर, उत्तरप्रदेश