खुशनसीब -माधुरी डड़सेना मुदिता

खुशनसीब मैं खुशनसीब हूँ कि मुझे यार मिल गया दिल को बड़ा सकूं है दिलदार मिल गया । दर दर भटक रहे थे कभी हम यहाँ वहाँअब डर नहीं किसी से सरकार मिल गया । हमराज बन गए हैं दिन रात अब नयारंगत बहार में है इतबार मिल गया । दुनिया बड़ी ही जालिम जीने … Read more

आओ गिलहरी बनें -डाॅ.संजय जी मालपाणी

आओ गिलहरी बनें सागर पर जब सेतु बना था, गिलहरी ने क्या काम किया था जहां-जहां भी दरार रहती, उसने उसको मिटा दिया था वैसे तो वह छोटी सी थी, राम कार्य में समर्पित थी रेती उठाकर चल पड़ती थी, अथक निरंतर प्रयासरत थी प्रभु ने जब उसको था देखा, हाथ घुमाया बन गई रेखा … Read more

राजनीति बना व्यापार जी – राजकुमार मसखरे

राजनीति बना व्यापार जी देखो आज इस राजनीति ककैसे बना गया ये व्यापार जी ,लोक-सेवक अब गायब जो हैंमिला बड़ा उन्हें रोज़गार जी !राजनीति अब स्वार्थ- नीति हैकर रहे अपनों का उपकार जी,कुर्सी में चिपके रहने की लतबस एक ही इनका आधार जी !चमचा बनो व जयकारा लगाओफ़लफूल रहा है ये बाज़ार जी,छुट-भैये नेता पीछे … Read more

गुलबहार -माधुरी डड़सेना

गुलबहार होश में हमीं नहीं सनम कभी पुकार अबहो तुम्हीं निगाह में हमें ज़रा निहार अब । वक़्त की फुहार है ये रोज़ की ही बात है दिल मचल के कह रहा मुझे तुम्हीं से प्यार अब। खिल उठा गुलाब है चमन में रौनकें सजी हर गली महक रहा कि चढ़ रहा खुमार अब। अजीब … Read more

नशा नाश करके रहे- विनोद सिल्ला

यहां पर नशा नाश करके रहे , जो कि नशा मुक्ति पर लिखी गई विनोद सिल्ला की कविता है। नशा नाश करके रहे नशा नाश करके रहे,नहीं उबरता कोय।दूर नशे से जो रहे, पावन जीवन होय।। नशा करे हो गत बुरी, बुरे नशे के खेल।बात बड़े कहकर गए,नशा नाश का मेल।। नशा हजारों मेल का, … Read more