Author: कविता बहार

  • वर्ल्ड जूनोसिस डे पर नारे

    वर्ल्ड जूनोसिस डे पर नारे

    वर्ल्ड जूनोसिस डे हर साल 6 जुलाई को मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य जूनोटिक रोगों (पशुओं से मनुष्यों में फैलने वाले रोग) के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। यह दिन लुई पाश्चर द्वारा पहली सफल रेबीज वैक्सीन का परीक्षण करने की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। जूनोसिस रोगों को रोकने के लिए अच्छे स्वच्छता उपाय, पशुओं का टीकाकरण और उचित पशु चिकित्सा देखभाल महत्वपूर्ण हैं।

    वर्ल्ड जूनोसिस डे पर नारे

    वर्ल्ड जूनोसिस डे पर नारे

    जूनोसिस दिवस आया है।

    जागरूकता का संदेश लाया है।।

    स्वच्छता का पालन करके, स्वास्थ्य को अपनाना है,  

    पशु चिकित्सा का ख्याल रख, रोगों को दूर भगाना है।

    लुई पाश्चर की याद में, ये दिवस मनाया जाता है,  

    रेबीज वैक्सीन , एक महान खोज बताया जाता है।

    मिलकर सब संकल्प करें, स्वस्थ समाज बनाएंगे,  

    जूनोटिक रोगों को हराकर, खुशहाली को लाएंगे।

    स्वास्थ्य और सुरक्षा के पथ पर, आगे बढ़ते जाएंगे,  

    इस जूनोसिस दिवस पर, एक नया कदम उठाएंगे।

    जूनोसिस से लड़ने का, सबको पाठ पढ़ाना है,  

    जानवरों से दूरी रख, स्वस्थ जीवन अपनाना है।

    हर पशु की सेहत पर, ध्यान हमें देना होगा,  

    पशु टीकाकरण ही, एक सुरक्षा घेरा होगा।

    गांवों से लेकर शहरों तक, संदेश हमें फैलाना है,  

    जूनोसिस रोग खत्म कर, स्वस्थ समाज बनाना है।

    संजीवनी बने यह दिवस, मन में विश्वास जगाए,  

    पशु-मानव के बीच प्रेम हो, रोगों को दूर भगाए।

    जागरूकता के दीप जलाकर, अज्ञानता को मिटाना है,  

    जूनोसिस मुक्त संसार का, सपना हमें साकार करना है।

    मिलकर चलें इस राह पर, हाथों में हाथ मिलाएं,  

    वर्ल्ड जूनोसिस डे पर हम, नई दिशा दिखलाएं।

  • छत्तीसगढ़ परिचय (दोहा छंद )/ वेदकांति रात्रे “देविका”

    छत्तीसगढ़ परिचय (दोहा छंद )/ वेदकांति रात्रे “देविका”

    छत्तीसगढ़ कविता
    छत्तीसगढ़ कविता

    छत्तीसगढ़ परिचय (दोहा छंद )

    नामकरण पर राज्य के, मत हैं विविध प्रकार।
    चेदिसगढ़ था नाम शुभ , हीरा के अनुसार।।

    रहते थे छत्तीस कुल , जरासंध के काल ।
    नामकरण पर राज्य के , कहे वेगलर हाल ।।

    चेदी जनपद काल में, चेदिसगढ़ सुखधाम।
    चेदिसगढ़ से है बना, इस प्रदेश का नाम ।।

    शासक थे जो कल्चुरी ,किए किला निर्माण।
    संख्या में छत्तीस थे , मिलते चिस्म प्रमाण।।

    ठाकुर प्यारेलाल थे ,शंकर पवन बघेल।
    अथक मेहनत से बना, पावन राज्य सुवेल।।

    एक नवंबर सौम्य तिथि,दो हजार था वर्ष।
    राज्य बना छत्तीसगढ़, मना रहें सब हर्ष।।
    7.राज्य बना छब्बीसवाँ, मिली नई पहचान।
    अपने भारत देश में, नौवाँ है शुभ स्थान।।

    नया रायपुर राज्य में, शासन का आवास।
    प्रशासनिक है केंद्र ये,सुंदर है विन्यास।।

    सप्तम राज्यों से घिरा, सीमा सुखद महान।
    मनमोहक आकार है, सागर अश्व समान।।

    मुख्य बना आधार है, कागज का व्यवसाय।
    मूल्यवान वन संपदा, होती इससे आय।।

  • अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस (International Olympic Day) पर कविता

    अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस (International Olympic Day) पर कविता

    अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस (International Olympic Day) प्रत्येक वर्ष 23 जून को आयोजित किया जाता है। यह दिन मुख्य रूप से आधुनिक ओलंपिक खेलों के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह दिन खेल से जुड़े स्वास्थ्य और सद्भाव के पहलू को मनाने के लिए भी मनाया जाता है। यह दिन अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) की नींव का प्रतीक है।

    कविता की शुरुआत में ओलंपिक दिवस को खेलों का पर्व और महान उत्सव बताया गया है। इसे हर किसी के लिए महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक माना गया है।

    अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस (International Olympic Day) पर कविता

    अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस पर कविता

    खेलों का पर्व, उत्सव महान,
    ओलंपिक दिवस, सबके प्राण।
    सपनों की राह, संग हो इंसान,
    जीवन में भर दे, उमंगों का गान।

    सद्भावना की मूरत, एकता की डोर,
    संघर्ष की मिसाल, वीरता का शोर।
    सपनों के पंख, लगाकर उड़ान,
    जीत की हसरत, मंजिल आसान।

    हर देश, हर रंग, हर जाति के लोग,
    साथ में जुड़ते, बनते एक योग।
    मैदान में दिखती, मेहनत की चमक,
    हर खेल में बसी, विजय की दमक।

    पसीने की बूंदें, संघर्ष का रंग,
    जीवन की तस्वीर, मेहनत का संग।
    जीत या हार, बस खेल का नाम,
    खिलाड़ियों का मन, सदा रहे थाम।

    ओलंपिक दिवस, संदेश ये लाए,
    हर दिल में उत्साह, नया जोश जगाए।
    खेलों से जुड़े, स्वस्थ जीवन को पाएं,
    आओ मिलकर, इस पर्व को मनाएं।

    सपनों को साकार, बनाएं नया इतिहास,
    हर दिल में बसाएं, खेलों का विश्वास।
    ओलंपिक की ज्योति, जलती रहे यूं ही,
    सदियों से सदियों तक, रहे ये रौशनी।

    – ओलंपिक की भावना में बसी, एक कविता

  • विश्व वर्षावन दिवस (World Rainforest Day) पर कविता

    विश्व वर्षावन दिवस (World Rainforest Day) पर कविता

    विश्व वर्षावन दिवस (World Rainforest Day) के अवसर पर कविता में विविधता और सौंदर्य का वर्णन किया जाता है। इसमें वर्षा के मौसम की सुंदरता, उसके साथ आने वाले खुशियों और उत्साह का वर्णन होता है।

     विश्व वर्षावन दिवस (World Rainforest Day) पर कविता

    विश्व वर्षावन दिवस (World Rainforest Day) पर कविता

    बरसात की बूंदों में गुलजार बसा , प्रकृति की सौंधी खुशबू फैला।

    मेघ छाए हैं आसमान में खुले, धरती को आगामी वर्षा की चेतना ।

    हरियाली छाई है, पेड़-पौधों का मेला , अभिनव सैलाब प्रकृति की अनंत सौंदर्य ।

    बादल धीरे-धीरे आते हैं नजर, धरती पर खुशियों का बहारा है बिखरा ।

    पर्वतों से निकली धारें नदियों में मिलीं, धरती की गोद में बरसात की मधुर लहरें बहीं।

    फूलों की चमक, पुष्पों की सुगंध, कर दिया बरसात ने सबको मदहोश।

    प्रकृति की यह अनमोल सौंदर्य, करता है प्रेरित संगीत में।

    वर्षावन का यह दिवस, हर कवि के लिए विशेष,

    गाते हैं हम सब, वर्षा के इस प्रभात पर जीवन के नेत्र से।

    वर्षावन के दिनों में प्रकृति की बाहरी और भीतरी सुंदरता का वर्णन, वृक्षों की हरियाली, गांव के छोटे-छोटे बच्चों की खुशियों का संदेश, वर्षा से उत्पन्न होने वाले नए अनुभवों की चर्चा, आदि हो सकता है।

  • सावन के दोहे/ नरेन्द्र वैष्णव “सक्ती”

    सावन के दोहे/ नरेन्द्र वैष्णव “सक्ती”

    नरेंद्र वैष्णव जी का “सावन के दोहे”” काव्य विशेष रूप से उनकी कविताओं में एक प्रमुख पहलू हैं। वे उत्तर भारतीय संस्कृति और भारतीय जीवन-दर्शन को अपनी कविताओं में प्रकट करने वाले प्रमुख कवि रहे हैं।

    सावन के दोहे/ नरेन्द्र वैष्णव “सक्ती”

    सावन के दोहे/ नरेन्द्र वैष्णव "सक्ती"


    बारिश की यादें लिए , सिसके सावन देख ।
    वर्णन करना चाहता , काव्य सजा कवि लेख ।।

    बीत रहा चौमास है , नीर बिना बेहाल ।
    कहीं-कहीं वर्षा अधिक , संग उतारे काल ।।

    रूठा सावन कह रहा , मैं जीवन पट चीत ।
    कोई क्रंदन कर रहा , कोई गाता गीत ।।

    साजूँ अवनि सुजानिए , अनुपम प्रेम प्रगाढ़ ।
    रूठा सावन कह चला , काल रूप मैं बाढ़ ।।

    सूखी भू छत्तीसगढ़ , विस्मित सावन देख ।
    लोग कहें कर प्रार्थना , बनो नहीं अब मेख ।।

    ले आओ काली घटा , हे सावन मनमीत ।
    व्योम-धरा पथ नृत्य से , साज दामिनी प्रीत ।।

    सावन की शुभ पूर्णिमा , दे जाना सौगात ।
    प्यारे सावन भ्रात तुम , करना शुभ बरसात ।।
    (नरेन्द्र वैष्णव “सक्ती”)
    छत्तीसगढ़