Author: कविता बहार

  • वह शक्ति हमें दो दयानिधे

    वह शक्ति हमें दो दयानिधे

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्तव्य मार्ग पर डट जावें l

    पर सेवा पर उपकार में हम, जगजीवन सफल बना जावें ll

    हम दीन दुखी निबलों विकलों, के सेवक बन संताप हरें l

    जो हैं अटके भूले भटके, उनको तारे खुद तर जावें ll

    वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्तव्य मार्ग पर डट जावें …..

    छल दंभ द्वेष, पाखंड झूठ, अन्याय से निश दिन दूर रहें l

    जीवन हो शुद्ध सरल अपना, सूचि प्रेम सुधा रस बरसावें ll

    वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्तव्य मार्ग पर डट जावें …..

    निज आन मान मर्यादा का, प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे l

    जिस पुण्य राष्ट्र में जन्म लिया, बलिदान उसी पर हो जावें lI

    वह शक्ति हमें दो दया निधि कर्तव्य मार्ग पर जावें l

    पर सेवा पर उपकार में हम, जगजीवन सफल बना जावें ll

  • तुम ही हो माता पिता तुम्ही हो

    तुम ही हो माता पिता तुम्ही हो

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    तुम ही हो माता पिता तुम्ही हो

    तुम ही बंधू , सखा तुम्ही हो

    तुम्ही हो साथी तुम ही सहारे

    कोई न अपना सिवाए तुम्हारे

    तुम्ही हो नैया तुम्ही खिवैया

    तुम ही हो बंधू सखा तुम्ही हो …

    जो खिल सके न वो फूल हम हैं

    तुम्हारे चरणों की धुल हम हैं

    दया की दृष्टि सदा ही रखना

    तुम ही हो बंधू सखा तुम ही हो…

  • जीवन विद्या प्रार्थना

    जीवन विद्या प्रार्थना

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    वन्दना उनकी करें, जिनसे सुशोभित है धरा ।
    जिनसे है मानव का पथ, प्रकाश ज्योति से भरा ।।
    जिनसे दिशा हमको मिली, नित मानवीय मार्ग की ।
    पथ मिला निश्चित हमें थी, कामना जिस मार्ग की ।
    कृतज्ञता से सौम्यता की, नित्य आयी निरन्तरा ।
    जिनसे है मानव का पथ, प्रकाश ज्योति से भरा ॥
    जिनका है चिन्तन शुभ यही, कैसे हो मानव सुखमयी ?
    प्रेरणा से जिनकी है, मानव का जीवन सुखमयी ।।
    श्रद्धा समर्पित जिनसे आये, मानवीय परम्परा ।
    जिनसे है मानव का पथ, प्रकाश ज्योति से भरा ।।
    सबके सुख की कामना ले, रहती जिनकी प्रेरणा ।
    निकली जिनसे मानवीय पथ, हेतु निश्चित योजना ।।
    पूज्यता उत्त हेतु जिनसे, हो सुसज्जित हो बसुन्धरा ।
    जिनसे है मानव का पथ, प्रकाश ज्योति से भरा।

    प्रदीप पूरक
    गोविन्दपुर, बिजनौर

  • तू प्यार का सागर है (Tu Pyar Ka Sagar Hai)

    तू प्यार का सागर है (Tu Pyar Ka Sagar Hai)

    kavita
    sarv-dharm-prarthna

    तू प्यार का सागर है,
    तेरी एक बूँद के प्यासे हम ।
    लौटा जो दिया तूने,
    चले जायेंगे जहां से हम ।
    तू प्यार का सागर है..॥

    घायल मन का पागल पंछी,
    उड़ने को बेकरार ।
    पंख हैं कोमल, आँख है धुंदली,
    जाना है सागर पार ।
    अब तू ही इसे समझा,
    राह भूले थे कहाँ से हम ।
    तू प्यार का सागर है..॥

    इधर झूम के गाए जिन्दगी,
    उधर है मौत खड़ी ।
    कोई क्या जाने कहाँ है सीमा,
    उलझन आन पड़ी ।
    कानों में ज़रा कह दे,
    कि आएं कौन दिशा से हम ।
    तू प्यार का सागर है..॥

    तू प्यार का सागर है,
    तेरी एक बूँद के प्यासे हम ।
    लौटा जो दिया तूने,
    चले जायेंगे जहां से हम ।
    तू प्यार का सागर है..॥

  • वैष्णव जन तो तेने कहिये

    वैष्णव जन तो तेने कहिये

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    जे पीड परायी जाणे रे ।

    पर दुःखे उपकार करे तो ये,

    मन अभिमान न आणे रे ॥

    ॥ वैष्णव जन तो तेने कहिये..॥

    सकल लोकमां सहुने वंदे,

    निंदा न करे केनी रे ।

    वाच काछ मन निश्चळ राखे,

    धन धन जननी तेनी रे ॥

    ॥ वैष्णव जन तो तेने कहिये..॥

    समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी,

    परस्त्री जेने मात रे ।

    जिह्वा थकी असत्य न बोले,

    परधन नव झाले हाथ रे ॥

    ॥ वैष्णव जन तो तेने कहिये..॥

    मोह माया व्यापे नहि जेने,

    दृढ़ वैराग्य जेना मनमां रे ।

    रामनाम शुं ताली रे लागी,

    सकल तीरथ तेना तनमां रे ॥

    ॥ वैष्णव जन तो तेने कहिये..॥

    वणलोभी ने कपटरहित छे,

    काम क्रोध निवार्या रे ।

    भणे नरसैयॊ तेनुं दरसन करतां,

    कुल एकोतेर तार्या रे ॥

    ॥ वैष्णव जन तो तेने कहिये..॥

    वैष्णव जन तो तेने कहिये,

    जे पीड परायी जाणे रे ।

    पर दुःखे उपकार करे तो ये,

    मन अभिमान न आणे रे ॥

    लेखक: नरसी मेहता / नर्सी मेहता / नर्सी भगत