by कविता बहार | Feb 9, 2024 | छत्तीसगढ़ी कविता, हिंदी कविता
चार के चरचा*****4***चार दिन के जिनगी संगीचार दिन के हवे जवानीचारेच दिन तपबे संगीफेर नि चलय मनमानी।चारेच दिन के धन दौलतचारेच दिन के कठौता।चारेच दिन तप ले बाबूफेर नइ मिलय मौका।।चार भागित चार,होथे बराबर गण सुन।चार दिन के जिनगी मचारो ठहर गुण।।चार झन में चरबत्ता गोठचारो...
by कविता बहार | Feb 7, 2024 | हिंदी कविता
मकर संक्रांति आई है / रचना शास्त्री मगर संक्रांति आई है। मकर संक्रांति आई है। मिटा है शीत प्रकृति में सहज ऊष्मा समाई है।उठें आलस्य त्यागें हम, सँभालें मोरचे अपने । परिश्रम से करें पूरे, सजाए जो सुघर सपने | प्रकृति यह प्रेरणा देती । मधुर संदेश लाई है। मिटा है शीत...
by कविता बहार | Jan 18, 2024 | हिंदी कविता
श्रम के देवता- किसान हिंदी कविता / वीरेंद्र शर्मा वीरेंद्र शर्मा की “श्रम के देवता किसान” एक शक्तिशाली हिंदी कविता है जो हमारे समाज में किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका का प्रतीक है। यह उनकी अटूट प्रतिबद्धता और राष्ट्र के पोषण में उनके योगदान की प्रशंसा करता है। यह...
by कविता बहार | Jan 18, 2024 | हिंदी कविता
तुझे कुछ और भी दूँ !/ रामअवतार त्यागी तन समपित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित चाहता हूँ, देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ!माँ ! तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन किंतु इतना कर रहा फिर भी निवेदन, थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब स्वीकार कर लेना दयाकर वह समर्पण ! गान अर्पित, प्राण...
by कविता बहार | Jan 18, 2024 | हिंदी कविता
बज उठी रण-भेरी / शिवमंगलसिंह ‘सुमन’ शिवमंगल सिंह ‘सुमन ‘ मां कब से खड़ी पुकार रही, पुत्रों, निज कर में शस्त्र गहो । सेनापति की आवाज हुई, तैयार रहो, तैयार रहो।आओ तुम भी दो आज बिदा, अब क्या अड़चन, अब क्या देरी ? लो, आज बज उठी रण-भेरी।अब बढ़े चलो...