Author: कविता बहार

  • खिचड़ी भाषा त्याग कर / डाॅ विजय कुमार कन्नौजे

    खिचड़ी भाषा त्याग कर / डाॅ विजय कुमार कन्नौजे

    खिचड़ी भाषा त्याग कर


    खिचड़ी भाषा त्याग कर
    साहित्य कीजिए लेख।
    निज जननी को नमन करो
    कहे कवि विजय लेख।।

    हिन्दी साहित्य इतिहास में
    खिचड़ी भाषा कर परहेज।
    इंग्लिश शब्द को न डालिए
    हिन्दी वाणी का है संदेश।।

    हिन्दी स्वयं में सामर्थ्य है
    हर शब्दों का उल्लेख।
    हर वस्तु का हिन्दी नाम है
    हिन्दी शब्दकोश में लेख।।

    हिन्दी इतना कमजोर नहीं
    जो मिलायें खिचड़ी भाषा।
    सभी भाषा का अपमान है
    क्यों करते मिलावटी आशा।

    टांग टुटकर द्वी भाषा की
    लंगड़ाईयां ही आती है।
    साहित्य सृजन कार हिंदी का
    मुस्काईयां भी आती है।

    क्षमा क्षमा चाहूंगा क्षमा
    इन साहित्य कारों से।
    साहित्य सृजन कीजिए
    हिन्दी विशेषांक विचारों से।।

  • रसायन चुर्ण हिन्दी/ डाॅ विजय कुमार कन्नौजे

    रसायन चुर्ण हिन्दी


    हिन्दी शब्दकोश खंगालकर
    शब्द चयन कर साथ।
    शब्दकोश का भंडार पड़ा है
    ज्ञानार्जन दीजिए बाट।।

    हिन्दी कोष महासागर है
    पाते हैं गोता खोर।
    तैर सको तो तैर सागर को
    गहरा है अति घोर।।

    डुबकी लगाये अंदर जावें
    गोता लगावें, गोता खोर।
    आसमान सा ऊपर हिन्दी
    पताल पुरी सा गहरा छोर।।

    सृजन साहित्य,नवरस धारा
    रस छंद दोहा अलंकृत है।
    संधि समास परिपुर्ण हिंन्दी
    वर्ण माला भी सुसज्जित है।

    सात स्वर संगीत की धारा
    ब्याकरण से परिपूर्ण है।
    आंनद भर उल्लास करती
    महौषधि रसायन चूर्ण है।।

  • राम को माने राम का नही/राजकुमार ‘मसखरे’

    राम को माने राम का नही/राजकुमार ‘मसखरे’

    राम को माने,राम का नही
    (राम की प्रकृति पूजा)


    ओ मेरे प्रभु वनवासी राम
    आ जाओ अपनी धराधाम,
    चौदह वर्ष तक पितृवचन में
    वन-वन विचरे बिना विराम!

    निषाद राज गंगा पार कराये
    कंदमूल खाकर सरिता नहाए,
    असुरों को राम ख़ूब संहारे
    ऋषिमुनियों को जो थे सताए !

    भूमि कन्या थी सीतामाई
    शेष अवतारी लक्ष्मण भाई ,
    पर्ण कुटी सङ्ग,घास बिछौना
    भील राज सङ्ग करे मिताई !

    सबरी को तारे, अहिल्या उबारे
    गिलहरी,जटायू सङ्ग कागा कारे,
    सङ्ग-सङ्ग रहे रीछ,वानर मितवा
    ऐसे थे प्रभु श्रीराम जी हमारे !

    लोग पूजे, सिर्फ चित्र तुम्हारे
    चरित्र को तुम्हारे जाना नही ,
    राम को तो ये रात-दिन माने
    पर राम का तनिक माना नही !

    — *राजकुमार ‘मसखरे’*

  • माँ मै आ गया हूँ / कमल कुमार सिंह

    माँ मै आ गया हूँ / कमल कुमार सिंह

    माँ मै आ गया हूँ /कमल कुमार सिंह

    माँ अस्पताल के बिस्तर पर पड़ी है
    ना सुन सकती है न बोल सकती है
    देख कर भी कुछ कह नही सकती
    काले अंधेर दुनिया मे गुम हो चुकी है
    उम्मीद की किरण अब खो चुकी है
    दुनिया को अलविदा कह चुकी है..
    माँ मै आ गया हूँ

    माँ मै आ गया हूँ / कमल कुमार सिंह


    जब वो बीमार थी
    तब उसको इग्नोर करते रहे
    अकेला छोड़ अपनी मस्ती मे डूबे रहे
    बेटा बेटी पैसे का हिसाब करते रहे
    कोन रखेगा उसका जुगाड़ करते रहे
    कही इन्फैक्ट न हो जाऊ हाथ धोते रहे
    माँ मै आ गया हूँ
    दरवाजे बंद अब घर मे नही है
    दूर यात्रा पर निकल गयी है
    सभी के शिकवे खत्म कर गयी
    अब वो न लौट कर आयेगी
    अपने दूध का हिसाब न मांगेगी
    उसकी यादों मे अब जिंदगी खत्म हो जाएगी..
    तुम बस चिल्लाते रहो
    माँ मै आ गया हूँ

    कमल कुमार सिंह
    बिलासपुर

  • रूख राई हे खास/ डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    रूख राई हे खास/ डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    रूख राई हे खास/ डॉ विजय कुमार कन्नौजे

    tree
    पेड़


    जंगल झाड़ी अउ रूख राई
    प्राणी जगत के संगवारी हे।
    काटथे‌ फिटथे जउन संगी
    ओ अंधरा मुरूख अज्ञानी हे।

    अपने हाथ अउ अपने गोड़
    मारत हवय जी टंगिया।
    अपन हाथ मा घाव करय
    बेबस हवय बनरझिया।।

    पेट ब्याकुल बनी करत हे
    ठेकेदार के पेट भरत हे।
    नेता मन के कोठी भरत हे
    जीव जंतु जंगल के मरत हे।।

    अपने हाथ खुद करत हन
    घांव।
    रूख राई ला काट काट के
    मेटत हवन छांव।
    बिन रूख राई के संगवारी
    शहर बचय न गांव ।

    बिन पवन पुरवईया के संगी
    न पानी रहे न स्वांस।
    बिन प्रकृति सृष्टि जगत नहीं
    रूख राई बड़ हे खास।।

    डॉ विजय कुमार कन्नौजे छत्तीसगढ़ रायपुर