Author: कविता बहार

  • गाय सड़क पर- राजकिशोर धिरही


    गाय सड़क पर

    गाय सड़क पर देख के,हो जाते हम मौन।
    लक्ष्मी अब माने नहीं,पाले इनको कौन।।

    दुर्घटना अब रोज ही,करते मानव हाय।
    बस बाइक कैसे चले,सड़कों पर है गाय।।

    पालन पोषण बंद है,ले कर दौड़े बेत।
    गाय बैल अब चर रहें,घूम घूम कर खेत।।

    घर लगते टाइल्स ही,पशु पालन है बंद।
    बाहर से ले दूध को,कैल्शियम रहे मंद।।

    मरे कहीं पर गाय तो,बने नहीं अंजान।
    माता कहते गाय को,दे पूरा सम्मान।।

    बेजा कब्जा बढ़ गया,दिखे नहीं मैदान।
    घास फूस उगते कहाँ,जानवर परेशान।।

    राजकिशोर धिरही
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • गजल का अर्थ क्या है व इसके नियम / ग़ज़ल कैसे लिखें ( How to write GAZAL)

    गजल का अर्थ क्या है व इसके नियम / ग़ज़ल कैसे लिखें ( How to write GAZAL)

    यहाँ हम आपको ” ग़ज़ल कैसे लिखें/गजल का अर्थ क्या है व इसके नियम क्या हैं ” के बारे में बताने वाले हैं जिसे विभिन्न माध्यम से हमने संग्रहित किया है .

    गजल का अर्थ क्या है व इसके नियम / ग़ज़ल कैसे लिखें ( How to write GAZAL)

    ग़ज़ल कैसे लिखें ( How to write GAZAL)

    ग़ज़ल सीखने के लिए जरूरी बातें

    ग़ज़ल सीखने के लिए जरूरी है कि आपको
    १-मात्रा ज्ञान हो।
    २-रुक्न (अरकान) की जानकारी हो।
    ३-बहरों का ज्ञान हो।
    ४-काफ़िया का ज्ञान हो।
    ५-रदीफ का ज्ञान हो।
    और फिर शेर और उसका मफ़हूम (कथन)।
    एवं ग़ज़ल की जबान की समझ हो।

    १- मात्राज्ञान-

    क) जिस अक्षर पर कोई मात्रा नहीं लगी है या जिस पर छोटी मात्रा लगी हो या अनुस्वार (ँ) लगा हो सभी की एक (१) मात्रा गिनी जाती है.

    ख) जिस अक्षर पर कोई बड़ी मात्रा  लगी हो या जिस पर   अनुस्वार (ं) लगा हो  या जिसके बाद क़ोई आधा  अक्षर   हो सभी की दो (२) मात्रा
    गिनी जाती है।

    ग) आधाअक्षर की एक मात्रा उसके पूर्व के अक्षर की एकमात्रा  में जुड़कर उसे दो मात्रा का बना देती है।

    घ) कभी-कभी आधा अक्षर के पूर्व का अक्षर अगर दो मात्रा वाला पहले ही है तो फिर आधा अक्षर की भी एक मात्रा अलग से गिनते हैं. जैसे-रास्ता २ १ २ वास्ता २ १ २ उच्चारण के अनुसार।

    च) ज्यादातर आधा अक्षर के पूर्व  अगर द्विमात्रिक है तो अर्द्धाक्षर को छोड़ देते हैं उसकी मात्रा नहीं गिनते. किन्तु  अगर पूर्व का अक्षर एक मात्रिक है तो उसे दो मात्रा गिनते हैं. विशेष शब्दों के अलावा जैसे इन्हें,उन्हें,तुम्हारा । इनमें इ उ तु की मात्रा एक ही गिनते हैं। आधा अक्षर की कोई मात्रा नहीं गिनते।

    छ) यदि पहला अक्षर ही आधा अक्षर हो तो उसे छोड़ देते हैं कोई मात्रा नहीं गिनते। जैसे-प्यार,ज्यादा,ख्वाब में प् ज् ख् की कोई मात्रा नहीं गिनते।

    कुछ अभ्यास यहाँ दिए जा रहे हैं।

    शब्द उच्चारणमात्रा (वजन)
    कमल.      क मल.           12
    रामनयन.  रा म न यन.   2112
    बरहमन.     बर ह मन      212
    चेह्रा              चेह रा         22
    शम्अ.         शमा          21
    शह्र.             शहर.         21
    जिन्दगी       जिन्दगी       212
    कह्र.             कहर21
    तुम्हारा         तुमारा         122
    दोस्त.           दोस्त.          21
    दोस्ती           दो स् ती      212
    नज़ारा          नज़्जारा             222
    नज़ारा       
                           
    122
    नज़ारः     121

    २- रुक्न /अरकान की जानकारी 

    •  रुक्न को गण ,टुकड़ा या खण्ड कह सकते हैं।
    • इसमें लघु (१) और दीर्घ (२) मात्राओं का एक निर्धारित क्रम होता है। 
    • कई रुक्न (अरकान) के मेल से मिसरा/शेर/गज़ल बनती है।।
    • इन्हीं से बहर का निर्माण होता है।
    • मुख्यतः अरकान कुल आठ (८) हैं।
    नाम        वज़न   शब्द
    १-मफ़ाईलुन.  १२२२.   सिखाऊँगा
    २-फ़ाइलुन.     २१२.     बानगी
    ३-फ़ऊलुन.     १२२.    हमारा
    ४-फ़ाइलातुन.  २१२२. कामकाजी
    ५-मुतफ़ाइलुन११२१२ बदकिसमती
    ६-मुस्तफ़इलुन २२१२ आवारगी
    ७-मफ़ाइलतुन१२११२ जगत जननी
    ८-मफ़ऊलात ११२२१यमुनादास

    ऐसे शब्दों को आप खुद चुन सकते हैं।
    इन्हीं अरकान से बहरों का निर्माण होता है।

    ३-बहर

    • रुक्न/अरकान /मात्राओं के एक निश्चित क्रम को बहर कहते हैं।
    • इनके तीन प्रकार हैं-

    १-मुफ़रद(मूल) बहरें।
    २-मुरक्क़ब (मिश्रित) बहरें।
    ३-मुजाहिफ़ (मूल रुक्न में जोड़-तोड़ से बनी)बहरें।
    बहरों की कुल संख्या अनिश्चित है।

    गजल सीखने के लिए बहरों के नाम की भी कोई जरूरत नहीं। केवल मात्रा क्रम जानना आवश्यक है,इसलिए यहाँ प्रचलित ३२ बहरों का मात्राक्रम दिया जा रहा है। जिसपर आप ग़ज़ल कह सकते हैं, समझ सकते हैं।

    • 1)-11212-11212-11212-11212
    • 2)-2122-1212-22
    • 3)-221-2122-221-2122
    • 4)-1212-1122-1212-22
    • 5)-221-2121-1221-212
    • 6)-122-122-122
    • 7)-122-122-122-122
    • 8)-122-122-122-12
    • 9)-212-212-212
    • 10)-212-212-212-2
    • 11)-212-212-212-212
    • 12)-1212-212-122-1212-212-122
    • 13)-12122-12122-12122-12122
    • 14)-2212-2212
    • 15)-2212-1212
    • 16)-2212-2212-2212
    • 17)-2122-2122
    • 18)-2122-1122-22
    • 19)-2122-2122-212
    • 20)-2122-2122-2122
    • 21)-2122-2122-2122-212
    • 22)-2122-1122-1122-22
    • 23)-1121-2122-1121-2122
    • 24)-2122-2122-2122-2122
    • 25)-1222-1222-122
    • 26)-1222-1222-1222
    • 27)-221-1221-1221-122
    • 28)-221-1222-221-1222
    • 29)-212-1222-212-1222
    • 30)-212-1212-1212-1212
    • 31)-1212-1212-1212-1212
    • 32)-1222-1222-1222-1222

    विशेष-

    • जिन बहरों का अन्तिम रुक्न 22 हो उनमें 22 को 112 करने की छूट हासिल है।
    • सभी बहरों के अन्तिम रुक्न में एक 1(लघु) की इज़ाफ़त (बढ़ोत्तरी)  करने की छूट है। किन्तु यदि सानी मिसरे में इज़ाफ़त की गयी है तो गज़ल के हर सानी मिसरे में इज़ाफ़त करनी होगी.जबकि उला मिसरे के लिए कोई प्रतिबन्ध नहीं है. जिसमें चाहे करें और जिसमें चाहें न करें।
    • दो बहरें १)२१२२-११२२-२२ और२) २१२२-१२१२-२२ के पहले रुक्न २१२२ को ११२२ किसी भी मिसरे मे करने की छूट हासिल है।
    • मात्रिक बहरों २२ २२ २२ २२ इत्यादि  जिसमें सभी गुरु हैं ,में -(क- ). किसी भी (२)गुरु को दो लघु (११) करने की छूट इस शर्त के साथ हासिल  है कि यदि सम के गुरु (२) को ११ किया गया है तो सिर्फ सम को ही करें और यदि विषम को तो सिर्फ विषम को। मतलब यह कि या तो विषम- पहले,तीसरे,पाचवें,सातवें,नौवे आदि में सभी को या जितने को मर्जी हो २ को ११ कर सकते हैं। या फिर सिर्फ सम दूसरे, चौथे, छठवें, आठवें आदि के २ को ११ कर सकते हैं।
    • २२२ को १२१२,२१२१ ,२११२ भी कर सकते हैं।
    गजल का अर्थ क्या है व इसके नियम / ग़ज़ल कैसे लिखें ( How to write GAZAL)

    कुछ अभ्यास तक्तीअ (गिनती/विश्लेषण) के साथ-

    A-
    2122 1212 22
    दोस्त मिलता /नसीब से /ऐसा,
    2122.          /1212.     /22

    जो ख़िजा को /बहार कर/ता है।।
    2122.          /1212.     /22

    B-
    1222 1222 1222 1222
    दिया है छो/ड़ उसने भो/र में अब भै/रवी गाना,
    1222 /1222 /1222 /1222

    मुहब्बत की /वो मारी बस/ विरह के गी/त गाती है।।
    1222 /1222/1222 /1222

    C-
    2122 2122 2122 212
    हुश्न औ ई/मान तक है  /
    2122.     /2122          /
    बिक रहा बा/जार में,
    2122.       /212

    शर्म आती /है तिजारत /
    2122.     /2122.       /
    से तिजारत/ क्या करूँ।।
    2122.      /212

    D-
    1212 1122 1212 112
    किसी का हुश्/न नहीं को/
    1212.          /1122.      /
    ई भी शबा/ब नहीं।
    1212.    /112

    मेरे नसी/ब में शायद /कोई गुला/
    1212. /1122.        /1212.     /
    ब नहीं।।
    112

    E-
    221 2121 1221 212
    गुलदस्ता /ए ग़ज़ल हो/
    221.       /2121.       /
     कि तुम कोई/ ख्वाब हो।
    1221         /212

    बाद ए त/हूर ए हुस्न ओ /
    221.     /2121.             /
    अदा लाज/वाब हो।।
    1221.      /212

    F-
    2222 2222 2222 222
    पाकिस्तानी /बोल बोलते,
    2222         /21212
    कुछ अपने ही /साथी हैं,
    2222.          /222

    जन-गण-मन की /हार लिखें या,/
    2222.               /21122.         /
     फिर उनको गद्/दार लिखें।।
    2222.           /2112

    ऐसे ही आप अपनी व अन्य की गजलों की तक्तीअ कर के अपना अभ्यास बढ़ा सकते हैं।

    4- क़ाफ़िया (समान्त)

    क़ाफ़िया समझने के लिए पहले एक गज़ल लेते हैं जिससे समझने में आसानी हो।

    बहर-१२२२-१२२२-१२२२-२२
    क़ाफ़िया-आने
    रदीफ़-वाले हैं।

    गज़ल का उदहारण

    सुना है वो कोई चर्चा चलाने वाले हैं।
    सदन में फिर नया  मुद्दा उठाने वाले हैं।।(मतला).?

    अदब से दूर तक रिश्ता नहीं कोई जिनका,
    सलीका अब वही हमको सिखाने वाले हैं।।

    लगा के ज़ाल कोई अब वहाँ  बैठे  होंगे,
    सुना है फिर से वो हमको मनाने वाले हैं।।

    बड़ी मुश्किल से हम  निकले हैं जिनकी चंगुल से,
    सुना है फिर कोई फ़न्दा लगाने वाले हैं।।

    भरोसा अब नहीं हमको है जिनकी बातों पर,
    नया वो दाव कोई आजमाने वाले हैं।

    हैं फिर नज़दीकियाँ हमसे बढ़ाने आये जो,
    कोई इल्जाम क्या वो फिर लगाने वाले हैं।।

    पता जिनको नहीं है खुद के ही हालातों का,
    मिलन तकदीर वो मेरी बताने वाले हैं।।(मक्ता).?
         ——–मिलन.

    इस गजल में काफिया के शब्द हैं-
    चलाने,उठाने,सिखाने,मनाने,लगाने,आजमाने,लगाने, बताने।
    आप देख रहे हैं कि काफिया के शब्द सचल हैं। बदलते रहते हैं। हर शब्द में एक अक्षर अचल है -ने,और एक स्वर अचल है आ। दोनों को मिलाकर काफिया बना है-आने, इस प्रकार हम देखते हैं कि क़ाफिया भी अचल है किन्तु काफिया के शब्द सचल।
    अगर हम काफ़िया के शब्दों से आने निकाल दें तो बचेगा-चल,उठ,सिख,मन आदि. सभी समान मात्रा या समान वजन के हैं।

    काफ़िया की मुख्य बातें-

    १-काफ़िया के शब्द से काफिया निकाल देने पर जो बचे वो समान स्वर और समान वजन के हों।
    २-काफ़िया के रूप में (हमारे) के साथ (बहारें) ,हवा के साथ धुआँ  नहीं ले सकते । अनुस्वार (ं) का फर्क है।
    ३-मतले के शेर से ही क़ाफ़िया तय होता है और एक बार क़ाफ़िया तय हो जाने के बाद उसका अक्षरशः पालन पूरी गजल में अनिवार्य होता है।

     5- रदीफ़(पदान्त)

    १-क़ाफ़िया के बाद आने वाले  अक्षर,शब्द, या वाक्य को रदीफ़ कहा जाता है।
    २-यह मतले के शेर के दोनो मिसरों में और बाकी के शेर के सानी मिसरे में काफिया के साथ जुड़ा रहता है।
    ३-यह अचल और अपरिवर्तित होता है। इसमें बदलाव नहीं होता।
    ४-यह एक अक्षर का भी हो सकता है और एक वाक्य का भी। किन्तु छोटा रदीफ़ अच्छा माना जाता है।
    ५- शेर से रदीफ़ को निकाल देने पर यदि शेर अर्थहीन हो जाए तो रदीफ़ अच्छा माना जाता है।
     

    गजल की विशेष बातें

    १-पहले शेर को मतले का शेर कहा जाता या गजल का मतला (मुखड़ा)।
    जिसके दोनो मिसरों(पंक्तियों): मिसरा उला (पहली या पूर्व पंक्ति) और मिसरा सानी (दूसरी पंक्ति या पूरक पंक्ति) दोनों में रदीफ़ (पदान्त) होता है।
    २-गजल में कम से कम पाँच शेर जरूर होने चाहिए।
    ३-गजल का आखिरी शेर जिसमें शायर का नाम होता है; को मक्ते का शेर या मक्ता कहा जाता है।
    ४-बिना रदीफ़ के भी गजल होती है जिसे ग़ैरमुरद्दफ़ (पदान्त मुक्त) गजल कहते हैं।
    ५-यदि गजल में एक से अधिक मतले के शेर हैं तो पहले के अलावा सभी को हुस्ने मतला (सह मुखड़ा)  कहते हैं।
    ६-बिना मतले की गजल को उजड़े चमन की गजल, बेसिर की गजल,सिरकटी गजल,सफाचट गजल,गंजी गजल आदि नाम मिले हैं।हमें ऐसी गजल कहने से बचना चाहिए।
    ७-बिना काफ़िया गजल नहीं होती।

     गजल के कुछ नियम-

    १-अलिफ़ वस्ल का नियम –

    एक साथ के दो शब्दों में जब अगला शब्द स्वर से शुरु हो तभी ये सन्धि होती है।

    जैसे- हम उसको=हमुसको, आखिर इस= आखिरिश,अब आओ=अबाओ।
    ध्यान यह देना है कि नया बना शब्द नया अर्थ न देने लगे।
    जैसे- हमनवा जिसके=हम नवाजिस के

    २-मात्रा गिराने का नियम-

    १) संज्ञा शब्द और मूल शब्द के अतिरिक्त सभी शब्दों के आखिर के दीर्घ को  आवश्यकतनुसार गिराकर लघु किया जा सकता है।  इसका कोई विशेष नियम नहीं है,उच्चारण के अनुसार गिरा लेते हैं।
    २) जिन अक्षरों पर ं लगा हो उसे नहीं गिरा सकते। पंप, बंधन आदि।
    ३) यदि अर्द्धाक्षरों से बना कोई शब्द की मात्रा दो है तो उसे नहीं गिरा सकते।जैसे क्यों ,ख्वाब,ज्यादा आदि।

    ३-मैं के साथ मेरा
    तूँ के साथ तेरा
    हम के साथ हमारा
    तुम के साथ तुम्हारा
    मैं के साथ तूँ
    मेरा के साथ तेरा
    हम के साथ तुम
    हमारा के साथ तुम्हारा
    का प्रयोग ही उचित है ।

     ४-एकबचन और बहुबचन एक ही मिसरे में न हो ,और अगर होता है तो शेर के कथन में फर्क न हो।

    ५-ना की जगह न या मत का प्रयोग उचित है।

    ६-अक्षरों का टकराव न हो जैसे- तुम-मत-तन्हा-हाजिर-रहना-नाखुश में म,त,हा,र का टकराव हो रहा है। इनसे बचना चाहिए।

    ७-मतले के अलावा किसी उला मिसरे के आखिर में रदीफ के आखिर का शब्द या अक्षर होना दोषपूर्ण है।

    ८-किसी मिसरे में वजन पूरा करने के लिए कोई शब्द डाला गया हो जिसके होने या न होने से कथन पर फर्क नहीं पड़ता ऐसे शब्दों को भर्ती के शब्द कहा जाता है। ऐसा करने से बचना चाहिए।

    गज़ल की ख़ासियत-

    अच्छी गजल वह है-
    १) जो बहर से ख़ारिज़ न हो।
    २) क़ाफ़िया रदीफ़ दुरुस्त हों।
    ३) शेर सरल हों।
    ४) शायर जो कहना चाहता है वही सबकी समझ में आसानी से आए।
    ५) नयापन हो।
    ६) बुलन्द खयाली हो।
    ७) अच्छी रवानी हो।
    ८) शालीन शब्दों का प्रयोग

    ग़ज़ल के प्रकार

    तुकांतता के आधार पर ग़ज़लें दो प्रकार की होती हैं-

    • मुअद्दस ग़जलें– जिन ग़ज़ल के अश’आरों में रदीफ़ और काफ़िया दोनों का ध्यान रखा जाता है।
    • मुकफ़्फ़ा ग़ज़लें- जिन ग़ज़ल के अश’आरों में केवल काफ़िया का ध्यान रखा जाता है।

    भाव के आधार पर भी गज़लें दो प्रकार की होती हैं-

    • मुसल्सल गज़लें– जिनमें शेर का भावार्थ एक दूसरे से आद्यंत जुड़ा रहता है।
    • ग़ैर मुसल्सल गज़लें– जिनमें हरेक शेर का भाव स्वतंत्र होता है।

    संक्षेप में,

    शेर:- 2 लाइन(1 मिसरा) मिला के एक शेर बनता है।
    ग़ज़ल:-5 या 5 से अधिक शेर से ग़ज़ल बनता है जो मुख्यतः तरन्नुम में होता है।
    अशआर:-5 या उससे अधिक शेर जो अलग अलग मायने दे वो अशआर कहलाता है।
    कता :-5 से कम शेर कता कहलाता है।

  • दोहा छंद विधान व प्रकार

    दोहा छंद विधान व प्रकार – प्रदीप कुमार दाश “दीपक”

    “दोहा” अर्द्धसम मात्रिक छंद है । इसके चार चरण होते हैं। विषम चरण (प्रथम तथा तृतीय) में १३-१३ मात्राएँ और सम चरण (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ होती हैं।

    विषम चरणों के आदि में प्राय: जगण (।ऽ।) टाला जाता है, लेकिन इसकी आवश्यकता नहीं है। कबीर जी का दोहा ‘बड़ा हुआ तो’ पंक्ति का आरम्भ भी ‘ज-गण’ से ही हुआ है। सम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा (ऽ।) का होना आवश्यक है, एवं साथ में तुक भी ।

    विशेष – (क) विषम चरणों के कलों का क्रम निम्नवत होता है –
    4+4+3+2 (चौकल+चौकल+त्रिकल+द्विकल)

    3+3+2+3+2 (त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल+द्विकल)
    सम चरणों के कलों का क्रम निम्नवत होता है –
    4+4+3 (चौकल+चौकल+त्रिकल)
    3+3+2+3 (त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल)
    (ख़) उल्लेखनीय है कि लय होने पर कलों का प्रतिबन्ध अनिवार्य है किन्तु कलों का प्रतिबन्ध होने पर लय अनिवार्य नहीं है। जैसे –
    श्रीरा/म दिव्य/ रूप/ को , लंके/श गया/ जान l
    4+4+3+2, 4+4+3 अर्थात कलों का प्रतिबन्ध सटीक है फिर भी लय बाधित है l
    (ग) कुछ लोग दोहे को दो ही पंक्तियों/पदों में लिखना अनिवार्य मानते हैं किन्तु यह कोरी रूढ़िवादिता है इसका छंद विधान से कोई सम्बन्ध नहीं है l दोहे के चार चरणों को चार पन्तियों में लिखने में कोई दोष नहीं है l

    बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
        पंथी को छाया नहीं, फल लागैं अति दूर ।।

      – कबीर जी

            दोहों पर कई विद्वान अपने-अपने मत रख चुके हैं फिर भी कई बार देखा जाता है कि नये रचनाकारों को दोहा छंद के विधान व इसके तेईस प्रकारों के संदर्भ ज्ञात नहीं रहते हैं । इस जानकारी में भ्रम की स्थिति न रहे, अस्तु दोहा ज्ञान में एक छोटा सा प्रयास मेरे द्वारा प्रस्तुत है –
     
         

    दोहा छंद के 23 प्रकार

    1. भ्रमर दोहा – 22 गुरु 04 लघु वर्ण
    2. सुभ्रमर दोहा – 21 गुरु 06 लघु वर्ण
    3. शरभ दोहा – 20 गुरु 08 लघु वर्ण
    4. श्येन दोहा – 19 गुरु 10 लघु वर्ण
    5. मण्डूक दोहा – 18 गुरु 12 लघु वर्ण
    6. मर्कट दोहा – 17 गुरु 14 लघु वर्ण
    7. करभ दोहा – 16 गुरु 16 लघु वर्ण
    8. नर दोहा – 15 गुरु 18 लघु वर्ण
    9. हंस दोहा – 14 गुरु 20 लघु वर्ण
    10. गयंद दोहा – 13 गुरु 22 लघु वर्ण
    11. पयोधर दोहा – 12 गुरु 24 लघु वर्ण
    12. बल दोहा – 11 गुरु 26 लघु वर्ण
    13. पान दोहा – 10 गुरु 28 लघु वर्ण
    14. त्रिकल दोहा – 09 गुरु 30 लघु वर्ण
    15. कच्छप दोहा – 08 गुरु 32 लघु वर्ण
    16. मच्छ दोहा – 07 गुरु 34 लघु वर्ण
    17. शार्दूल दोहा – 06 गुरु 36 लघु वर्ण
    18. अहिवर दोहा – 05 गुरु 38 लघु वर्ण
    19. व्याल दोहा – 04 गुरु 40 लघु वर्ण
    20. विडाल दोहा – 03 गुरु 42 लघु वर्ण
    21. श्वान दोहा – 02 गुरु 44 लघु वर्ण
    22. उदर दोहा – 01 गुरु 46 लघु वर्ण
    23. सर्प दोहा – केवल 48 लघु वर्ण

    दोहा छंद विधान व प्रकार के 16 दोहे

    माँ वाणी को कर नमन, लिखूँ दोहा प्रकार ।
    भूल-गलती क्षमा करें, विनम्र करूँ गुहार ।।

    चार-चरण का छंद यह, अनुपम दोहा स्वरुप ।
    विषम में मात्रा तेरह, एकादश सम रूप ।।

    तेरह-ग्यारह की यति, गति की शक्ति अनूप ।
    गुरु-लघु मिल पूरण करें, सम चरण अंतिम रूप ।।

    बाइस गुरु औ चार लघु, भ्रमर उड़ रहा  जान ।
    इक्कीस गुरु अगर छः लघु,  सुभ्रमर होता मान ।।

    बींस गुरु जान शरभ के, लघु होते हैं आठ ।
    दस लघु और उन्नीस गुरु, यह श्येन का पाठ ।।

    गुरु अठारह लघु बारह, यह दोहा मण्डूक,
    लघु चौदह व गुरु सत्रह, जान फिर मर्कट रूप ।।

    सोलह-सोलह करभ के, लघु-गुरु द्वय सम रूप ।
    पन्द्रह गुरु जान नर के, लघु अठारह स्वरुप ।।

    चौदह गुरु और बींस लघु, हंस भरता उड़ान ।
    तेरह गुरु बाईस लघु,  गयंद लेना मान ।।

    पयोधर के गुरु बारह, लघु होते चौबीस  ।
    बल के गुरु ग्यारह हैं, लघु मिलते छब्बीस ।।

    दस गुरु दोहा पान के, लघु अट्ठाइस जहाँ ।
    त्रिकल के मिलें तीस लघु, गुरु नव मिलाप यहाँ ।।

    आठ गुरु हों बत्तीस लघु, जलचर कच्छप जान ।
    सप्त गुरु व चौंतीस लघु, जल में मच्छ समान ।।

    षट गुरु अउ छत्तीस लघु, परिचय यह शार्दूल
    लघु अड़तीस व पंच गुरु, अहिवर का है रूप ।।

    चार गुरु व चालीस लघु, दोहा छंद व्याल
    लघु द्वाचत्वारिंशत्, गुरु त्रय से विडाल ।।

    लघु चव्वालीस गुरु द्वे, श्वान दोहा है जान ।
    छियालीस लघु गुरु एकः, उदर दोहरा मान ।।

    लगे छंद मनहरण यह, लघु अड़तालिस वर्ण ।
    सर्प ये दोहा अनन्य, गुरु जिसके हैं शून्य ।।

    दोहरे रसिक आप तो, विज्ञ पाठक सुजान ।
    छंद मर्म बतला रहा, रवि को दीप समान ।।

  • ताँका कैसे लिखें

    ताँका कैसे लिखें

    ताँका कैसे लिखें

    literature in hindi
    literature in hindi

    “ताँका” जापान का बहुत ही प्राचीन काव्य रूप है । यह क्रमशः 05,07,05,07,07 वर्ण क्रम में रची गयी पंचपदी रचना है, जिसमें कुल 31 वर्ण होते हैं । व्यतिक्रम स्वीकार नहीं है । “हाइकु” विधा के परिवार की इस “ताँका” रचना को “वाका” भी कहा जाता है । “ताँका” का शाब्दिक अर्थ “लघुगीत” माना गया है । “ताँका” शैली से ही 05,07,05 वर्णक्रम के “हाइकु” स्वरूप का विन्यास स्वतंत्र अस्तित्व प्राप्त किया  है ।

    वर्ष 2000 में रचित मेरी एक ताँका रचना उदाहरण स्वरूप देखें –

    मन मंदिर  (05 वर्ण)
    बजा रही घण्टियाँ  (07 वर्ण)
    प्रातः पवन  (05 वर्ण)
    पूर्वी नभ के भाल   (07 वर्ण)
    लगा रवि तिलक ।  (07 वर्ण)

    प्रदीप कुमार दाश “दीपक”

    वास्तविकता यह कि “ताँका” अतुकांत वर्णिक छंद है । लय इसमें अनिवार्य नहीं, परंतु यदि हो तो छान्दसिक सौंदर्य बढ़ जाता है । एक महत्वपूर्ण भाव पर आश्रित “ताँका” की प्रत्येक पंक्तियाँ स्वतंत्र होती हैं । शैल्पिक वैशिष्ट्य के दायरे में ही रचनाकार के द्वारा रचित कथ्य की सहजता, अभिव्यक्ति क्षमता व काव्यात्मकता से परिपूर्ण रचना श्रेष्ठ “ताँका” कहलाती है ।

    प्रदीप कुमार दाश “दीपक “

  • छंदों की प्रारंभिक जानकारी

    छंदों की प्रारंभिक जानकारी

    छन्द क्या है?

    यति, गति, वर्ण या मात्रा आदि की गणना के विचार से की गई रचना छन्द अथवा पद्य कहलाती है।

    चरण या पद – 

    छन्द की प्रत्येक पंक्ति को चरण या पद कहते हैं। प्रत्येक छन्द में उसके नियमानुसार दो चार अथवा छः पंक्तियां होती हंै। उसकी प्रत्येक पंक्ति चरण या पद कहलाती हैं। जैसे –
    रघुकुल रीति सदा चलि जाई।
    प्राण जाहिं बरू वचन न जाई।।
    उपयुक्त चौपाई में प्रथम पंक्ति एक चरण और द्वितीय पंक्ति दूसरा चरण हैं।

    मात्रा – 

    किसी वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है, उसे ‘मात्रा’ कहते हैं। ‘मात्राएँ’ दो प्रकार की होती हैं –

    (१) लघु । (२) गुरू S

    लघु मात्राएँ – उन मात्राओं को कहते हैं जिनके उच्चारण में बहुत थोड़ा समय लगता है। जैसे – अ, इ, उ, अं की मात्राएँ ।

    गुरू मात्राएँ – उन मात्राओं को कहते हैं जिनके उच्चारण में लघु मात्राओं की अपेक्षा दुगुना अथवा तिगुना समय लगता हैं। जैसे – ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राएँ।

    लघु वर्ण – ह्रस्व स्वर और उसकी मात्रा से युक्त व्यंजन वर्ण को ‘लघु वर्ण’ माना जाता है, उसका चिन्ह एक सीधी पाई (।) मानी जाती है।

    गुरू वर्ण – दीर्घ स्वर और उसकी मात्रा से युक्त व्यंजन वर्ण को ‘गुरू वर्ण’ माना जाता है। इसकी दो मात्राएँ गिनी जाती है। इसका चिन्ह (ऽ) यह माना जाता है।
    उदाहरणार्थ –
    क, कि, कु, र्क – लघु मात्राएँ हैं।
    का, की, कू , के , कै , को , कौ – दीर्घ मात्राएँ हैं।

    मात्राओं की गणना

    (१) संयुक्त व्यन्जन से पहला ह्रस्व वर्ण भी ‘गुरू अर्थात् दीर्घ’ माना जाता है।
    (२) विसर्ग और अनुस्वार से युक्त वर्ण भी “दीर्घ” जाता माना है। यथा – ‘दुःख और शंका’ शब्द में ‘दु’ और ‘श’ ह्रस्व वर्ण होंने पर भी ‘दीर्घ माने जायेंगे।
    (३) छन्द भी आवश्यकतानुसार चरणान्त के वर्ण ‘ह्रस्व’ को दीर्घ और दीर्घ को ह्रस्व माना जाता है।

    यति और गति

    यति – छन्द को पढ़ते समय बीच–बीच में कहीं कुछ रूकना पड़ता हैं, इसी रूकने के स्थान कों गद्य में ‘विराग’ और पद्य में ‘यति’ कहते हैं।
    गति – छन्दोबद्ध रचना को लय में आरोह अवरोह के साथ पढ़ा जाता है। छन्द की इसी लय को ‘गति’ कहते हैं।
    तुक – पद्य–रचना में चरणान्त के साम्य को ‘तुक’ कहते हैं। अर्थात् पद के अन्त में एक से स्वर वाले एक या अनेक अक्षर आ जाते हैं, उन्हीं को ‘तुक’ कहते हैं।
    तुकों में पद श्रुति, प्रिय और रोंचक होता है तथा इससे काव्य में लथपत सौन्दर्य आ जाता है।

    गण

    तीन–तीन अक्षरो के समूह को ‘गण’ कहते हैं। गण आठ हैं, इनके नाम, स्वरूप और उदाहरण नीचे दिये जाते हैं : –

     नाम  स्वरूप    उदाहरण   सांकेतिक
    १ यगण  ।ऽऽ वियोगी य
    २ मगण ऽऽऽ मायावी मा
    ३ तगण ऽऽ। वाचाल ता
    ४ रगण ऽ।ऽ  बालिका रा
    ५ जगण ।ऽ। सयोग ज
    ६ भगण ऽ।। शावक भा
    ७ नगण ।।। कमल न
    ८ सगण ।।ऽ सरयू स
    निम्नांकित सूत्र गणों का स्मरण कराने में सहायक है –

    “यमाता राजभान सलगा”

    इसके प्रत्येक वर्ण भिन्न–भिन्न गणों परिचायक है, जिस गण का स्वरूप ज्ञात करना हो उसी का प्रथम वर्ण इसी में खोजकर उसके साथ आगे के दो वर्ण और मिलाइये, फिर तीनों वर्णों के ऊपर लघु–गुरू मात्राओं के चिन्ह लगाकर उसका स्वरूप ज्ञात कर लें। जैसे –
    ‘रगण’ का स्वरूप जानने के लिए ‘रा’ को लिया फिर उसके आगे वाले ‘ज’ और ‘भा’ वर्णों को मिलाया। इस प्रकार ‘राज भा’ का स्वरूप ‘ऽ।ऽ’ हुआ। यही ‘रगण’ का स्वरूप है।

    छन्दों के भेद

    छन्द तीन प्रकार के होते हैं –
    (१) वर्ण वृत्त – जिन छन्दों की रचना वर्णों की गणना के नियमानुसार होती हैं, उन्हें ‘वर्ण वृत्त’ कहते हैं।
    (२) मात्रिक – जिन छन्दों के चारों चरणों की रचना मात्राओं की गणना के अनुसार की जाती है, उन्हें ‘मात्रिक’ छन्द कहते हैं।
    (३) अतुकांत और छंदमुक्त – जिन छन्दों की रचना में वर्णों अथवा मात्राओं की संख्या का कोई नियम नहीं होता, उन्हें ‘छंदमुक्त काव्य कहते हैं। ये तुकांत भी हो सकते हैं और अतुकांत भी।

    प्रमुख मात्रिक छंद-

    (१) चौपाई

    चौपाई के प्रत्येक चरण में १६ मात्राएँ होती हैं तथा चरणान्त में जगण और तगण नहीं होता।
    उदाहरण   देखत भृगुपति बेषु कराला।
    ऽ-।-। ।-।-।-।  ऽ-।- ।-ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
    उठे सकल भय बिकल भुआला।
    ।-ऽ ।-।-।  ।-।  ।-।-।  ।-ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
    पितु समेत कहि कहि निज नामा।
    ।-।  ।-ऽ-।  ।-।  ।-।  ।-।   ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
     लगे करन सब दण्ड प्रनामा।
    ।-ऽ ।-।-।  ।-।  ऽ-।  ऽ-ऽ-ऽ  (१६ मात्राएँ)

    (२) रोला

    रोला छन्द में २४ मात्राएँ होती हैं। ग्यारहवीं और तेरहवीं मात्राओं पर विराम होता है। अन्त मे दो गुरू होने चाहिए।
    उदाहरण –
    ‘उठो–उठो हे वीर, आज तुम निद्रा त्यागो।
    करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो।।
    तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो।
    भारत के दिन लौट, आयगे मेरी मानो।।
    ऽ-।-।  ऽ ।-।  ऽ-।  ऽ-।-ऽ  ऽ-ऽ  ऽ-ऽ (२४ मात्राएँ)

    (३) दोहा

    इस छन्द के पहले तीसरे चरण में १३ मात्राएँ और दूसरे–चौथे चरण में ११ मात्राएँ होती हैं। विषय (पहले तीसरे) चरणों के आरम्भ जगण नहीं होना चाहिये और सम (दूसरे–चौथे) चरणों अन्त में लघु होना चाहिये।
    उदाहरण –
    मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरि सोय।
    जा तन की झाँई परे, श्याम हरित दुति होय।।(२४ मात्राएँ)

    (४) सोरठा

    सोरठा छन्द के पहले तीसरे चरण में ११–११ और दूसरे चौथे चरण में १३–१३ मात्राएँ होती हैं। इसके पहले और तीसरे चरण के तुक मिलते हैं। यह विषमान्त्य छन्द है।
    उदाहरण –
    रहिमन हमें न सुहाय, अमिय पियावत मान विनु।
    जो विष देय पिलाय, मान सहित मरिबो भलो।।
    ऽ  ।-।  ऽ-।  ।-ऽ-।   ऽ-।  ।-।-।  ।-।-ऽ  ।-ऽ

    (५) कुण्डलिया

    कुंडली या कुंडलिया के आरम्भ में एक दोहा और उसके बाद इसमें छः चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में चौबीस मात्राएँ होती हैं। दोहे का अन्तिम चरण ही रोला का पहला चरण होता है तथा इस छन्द का पहला और अंतिम शब्द भी एक ही होता है।
    उदाहरण –
    दौलत पाय न कीजिये, सपने में अभिमान।
    चंचल जल दिन चारिको, ठाऊँ न रहत निदान।।
    ठाँऊ न रहत निदान, जयत जग में जस लीजै।
    मीठे वचन सुनाय, विनय सब ही की कीजै।।
    कह ‘गिरिधर कविराय’ अरे यह सब घट तौलत।
    पाहुन निशि दिन चारि, रहत सबही के दौलत।।

    (६) सवैया

    इस छन्द के प्रत्येक चरण में सात भगण और दो गुरु वर्ण होते हैं। यथा –
    उदाहरण –
    मानुष हौं तो वही रसखानि, बसौ ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
    जो पशु हौं तो कहा बस मेरे चारों नित नन्द की धेनु मभारन।।
    पाहन हौं तो वहीं गिरि को जो धरयों कर–छत्र पुरन्दर धारन्।।
    जो खग हौं तो बसैरो करौं मिलि कलिन्दी–कूल–कदम्ब की डारन।।

    (७) कवित्त

    इस छन्द में चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में १६, १५ के विराम से ३१ वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के अन्त में गुरू वर्ण होना चाहिये। छन्द की गति को ठीक रखने के लिये ८, ८, ८ और ७ वर्णों पर यति रहना चाहिये। जैसे –
    उदाहरण –
    आते जो यहाँ हैं बज्र भूमि की छटा को देख,
    नेक न अघाते होते मोद–मद माते हैं।
    जिस ओर जाते उस ओर मन भाये दृश्य,
    लोचन लुभाते और चित्त को चुराते हैं।।
    पल भर अपने को वे भूल जाते सदा,
    सुखद अतीत–सुधा–सिंधु में समाते हैं।।
    जान पड़ता हैं उन्हें आज भी कन्हैया यहाँ,
    मैंया मैंया–टेरते हैं गैंया को चराते हैं।।

    (८) अतुकान्त और छन्दमुक्त

    जिस रचना में छन्द शास्त्र का कोई नियम नहीं होता। न मात्राओं की गणना होती है और न वर्णों की संख्या का विधान। चरण विस्तार में भी विषमता होती हैं। एक चरण में दस शब्द है तो दूसरे में बीस और किसी में केवल एक अथवा दो ही होते हैं। इन रचनाओं में राग और श्रुति माधुर्य के स्थान पर प्रवाह और कथ्य पर विशेष ध्यान दिया जाता है। शब्द चातुर्य, अनुभूति गहनता और संवेदना का विस्तार इसमें छांदस कविता की भाँति ही होता है।
    उदाहरण –
    वह तोड़ती पत्थर
    देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर वह तोड़ती पत्थर
    कोई न छायादार
    पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकर
    श्याम तन, भर बंधा यौवन,
    नत नयन, प्रिय–कर्म–रत–मन,
    गुरु हथौड़ा हाथ,
    करती बार–बार प्रहार –
    सामने तरू–मालिक अट्टालिका आकार।
    चढ़ रही थी धूप
    गर्मियों के दिन,
    दिवा का तमतमाता रूप
    उठी झुलसाती हुई लू,
    रूई ज्यों जलती हुई भू,
    गर्द चिनगी छा गई
    प्रायः हुई दोपहर –
    वह तोड़ती पत्थर।